मेले की मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती
जल्दी में कभी दिल से कोई बात नहीं होती।
वो जो हो जाती है जेठ के महीने में
बरसात वो मौसमे -बरसात नहीं होती।
चुराते दिल को तो होती बात कुछ और
नज़रें चुराना यार कोई बात नहीं होती।
डर लगने लगता है मुझे खुद से उस घडी
पहरों जब उन से मेरी मुलाक़ात नहीं होती।
वो मैकदा ,वो साकी वो प्याले अब न रहे
अंगडाई लेती अब नशीली रात नहीं होती।
आना है मौत ने तो आएगी एक दिन
कोई भी दवा आबे -हयात नहीं होती।
Tuesday, December 27, 2011
Sunday, December 25, 2011
अपने ही घर का रास्ता भूल जाती है
बात जब मुंह से बाहर निकल जाती है।
रुसवाई किसी की किसी नाम का चर्चा
करती हुई हर मोड़ पर मिल जाती है।
गली मोहल्ले से निकलती है जब वो
नियम कुदरत का भी बदल जाती है।
सब पूछा करते हैं हाले दिल उसका
वो होठों पर खुद ही मचल जाती है।
कौन चाहता है उसे मतलब नहीं उसे
वो चाहत में बल्लियों उछल जाती है।
अच्छी होने पर खुशबु बरस जाती है
बुरी हो तो राख मुंह पर मल जाती है।
बात जब मुंह से बाहर निकल जाती है।
रुसवाई किसी की किसी नाम का चर्चा
करती हुई हर मोड़ पर मिल जाती है।
गली मोहल्ले से निकलती है जब वो
नियम कुदरत का भी बदल जाती है।
सब पूछा करते हैं हाले दिल उसका
वो होठों पर खुद ही मचल जाती है।
कौन चाहता है उसे मतलब नहीं उसे
वो चाहत में बल्लियों उछल जाती है।
अच्छी होने पर खुशबु बरस जाती है
बुरी हो तो राख मुंह पर मल जाती है।
Wednesday, December 21, 2011
Sunday, December 18, 2011
किसी के लिए खुद को मिटाकर तो देखते
हाले दिल किसी को सुनाकर तो देखते।
गम तुम्हारा भी बहल जाता यकीनन
गम को मेरे जरा सहलाकर तो देखते।
जहां महक उठता सारा खुशबु से तेरी
प्यार का लोबान जला कर तो देखते।
सितारे जमीं पर उतर आते खुद ही
चाँद को पहलू में सजा कर तो देखते।
गम के सिवा दिल में आ बसता कोई और
निगाहों में किसी की समा कर तो देखते।
हाले दिल किसी को सुनाकर तो देखते।
गम तुम्हारा भी बहल जाता यकीनन
गम को मेरे जरा सहलाकर तो देखते।
जहां महक उठता सारा खुशबु से तेरी
प्यार का लोबान जला कर तो देखते।
सितारे जमीं पर उतर आते खुद ही
चाँद को पहलू में सजा कर तो देखते।
गम के सिवा दिल में आ बसता कोई और
निगाहों में किसी की समा कर तो देखते।
Wednesday, December 14, 2011
मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं
मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं।
कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको
वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं।
हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई
वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं।
बात का खुलासा होता भी तो कैसे
सब हैं कि नई गाँठ लगाने में लगे हैं।
फ़िराक़ मुझे जबसे लगने लगा अज़ीज़
वो मुझे मुहब्बत सिखाने में लगे हैं।
यकीनन चेहरा उनका बड़ा खुबसूरत है
उस पर भी नया चेहरा चढ़ाने में लगे हैं।
मुझसे न पूछा क्या है तमन्ना कभी मेरी
बस वो अपना रुतबा बढ़ाने में लगे हैं।
मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं।
कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको
वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं।
हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई
वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं।
बात का खुलासा होता भी तो कैसे
सब हैं कि नई गाँठ लगाने में लगे हैं।
फ़िराक़ मुझे जबसे लगने लगा अज़ीज़
वो मुझे मुहब्बत सिखाने में लगे हैं।
यकीनन चेहरा उनका बड़ा खुबसूरत है
उस पर भी नया चेहरा चढ़ाने में लगे हैं।
मुझसे न पूछा क्या है तमन्ना कभी मेरी
बस वो अपना रुतबा बढ़ाने में लगे हैं।
Saturday, December 3, 2011
पुराने किसी ज़ख्म का खुरंड उतर गया
दिल का सारा दर्द निगाहों में भर गया।
धुंआ बाहर निकला तब मालूम ये हुआ
जिगर तक जलाकर वो राख़ कर गया।
एक अज़ब सा जादू था हसीन आँखों में
तमाशा बनकर चारों सू बिखर गया।
तस्वीर जो मुझ से बात करती थी सदा
गरूर में उसके भी नया रंग भर गया।
लगने लगा डर मुझे आईने से भी अब
धुंधला मेरा अक्स इस क़दर कर गया।
दरीचा खुला होता तो यह देख लेता मैं
नसीब मेरा मुझे छोड़ कर किधर गया।
चिराग उम्मीदों का दुबारा न जलेगा
निशानियाँ ऐसी कुछ वो नाम कर गया।
दिल का सारा दर्द निगाहों में भर गया।
धुंआ बाहर निकला तब मालूम ये हुआ
जिगर तक जलाकर वो राख़ कर गया।
एक अज़ब सा जादू था हसीन आँखों में
तमाशा बनकर चारों सू बिखर गया।
तस्वीर जो मुझ से बात करती थी सदा
गरूर में उसके भी नया रंग भर गया।
लगने लगा डर मुझे आईने से भी अब
धुंधला मेरा अक्स इस क़दर कर गया।
दरीचा खुला होता तो यह देख लेता मैं
नसीब मेरा मुझे छोड़ कर किधर गया।
चिराग उम्मीदों का दुबारा न जलेगा
निशानियाँ ऐसी कुछ वो नाम कर गया।
Tuesday, November 22, 2011
गली गली मैख़ाने हो गये
कितने लोग दीवाने हो गये।
महक गई न दूध की मूंह से
बच्चे जल्दी सयाने हो गये।
हम प्याला हो गये वो जबसे
रिश्ते सभी बेगाने हो गये।
जाम से जाम टकराने के
हर पल नये बहाने हो गये।
हर ख़ुशी ग़म के मौके पर
छलकते अब पैमाने हो गये।
जबसे बस गये शहर जाकर
अब वो आने जाने हो गये।
एक जगह मन लगे भी कैसे
रहने के कई ठिकाने हो गये।
उन्हें देख डर लगने लगा है
अब वो कितने सयाने हो गये।
कितने लोग दीवाने हो गये।
महक गई न दूध की मूंह से
बच्चे जल्दी सयाने हो गये।
हम प्याला हो गये वो जबसे
रिश्ते सभी बेगाने हो गये।
जाम से जाम टकराने के
हर पल नये बहाने हो गये।
हर ख़ुशी ग़म के मौके पर
छलकते अब पैमाने हो गये।
जबसे बस गये शहर जाकर
अब वो आने जाने हो गये।
एक जगह मन लगे भी कैसे
रहने के कई ठिकाने हो गये।
उन्हें देख डर लगने लगा है
अब वो कितने सयाने हो गये।
Thursday, November 17, 2011
Monday, November 14, 2011
बेगाना मुझे गैर बता कर चले गये
वो एक नया शोर मचाकर चले गये।
खुशबु को तरसा करेंगे हम उम्र-ता
गमले में ज़ाफ़रान बुआकर चले गये।
रक्खे थे दर्द हमने छिपाकर कहीं
नुमाइश सबकी लगाकर चले गये।
परिंदा पंखों से बड़ा थका हुआ था
उसको आसमा में उड़कर चले गये।
आहटें करनी लगी हैं दर-बदर मुझे
पुरकशिश ख्वाब दिखाकर चले गये।
सब देखने लगे मुझे बेगाने की तरह
पहचान मेरी मुझसे चुराकर चले गये।
अज़नबी लगने लगा खुद को भी मैं अब
जाने मुझे वो कैसा बनाकर चले गये।
वो एक नया शोर मचाकर चले गये।
खुशबु को तरसा करेंगे हम उम्र-ता
गमले में ज़ाफ़रान बुआकर चले गये।
रक्खे थे दर्द हमने छिपाकर कहीं
नुमाइश सबकी लगाकर चले गये।
परिंदा पंखों से बड़ा थका हुआ था
उसको आसमा में उड़कर चले गये।
आहटें करनी लगी हैं दर-बदर मुझे
पुरकशिश ख्वाब दिखाकर चले गये।
सब देखने लगे मुझे बेगाने की तरह
पहचान मेरी मुझसे चुराकर चले गये।
अज़नबी लगने लगा खुद को भी मैं अब
जाने मुझे वो कैसा बनाकर चले गये।
Wednesday, November 9, 2011
जानते तो हैं मगर वो मानते नहीं
किसी को भी कुछ कभी बांटते नहीं।
ज़िद लिए हैं रेत में वो चांदी बोने की
मिट्टी में दाने मगर वो डालते नहीं।
दरिया पार करते हैं चलके पानी पर
पाँव सख्त जमीन पर उतारते नहीं।
आदी हैं करने को मनमानी अपनी
उंचाई क़द की अपने वो नापते नहीं।
चलने का काम है चले जा रहे हैं हम
बस इससे आगे हम कुछ जानते नहीं।
फूल गई साँसें धक्के दे देकर अपनी
हम किसी की बात मगर टालते नहीं।
चिराग बन कर जलते हैं रात भर
सुबह से पहले बुझना हम जानते नहीं।
लोग मुझे शायर कहने लगे मगर
हम ग़लत फहमी कोई पालते नहीं।
किसी को भी कुछ कभी बांटते नहीं।
ज़िद लिए हैं रेत में वो चांदी बोने की
मिट्टी में दाने मगर वो डालते नहीं।
दरिया पार करते हैं चलके पानी पर
पाँव सख्त जमीन पर उतारते नहीं।
आदी हैं करने को मनमानी अपनी
उंचाई क़द की अपने वो नापते नहीं।
चलने का काम है चले जा रहे हैं हम
बस इससे आगे हम कुछ जानते नहीं।
फूल गई साँसें धक्के दे देकर अपनी
हम किसी की बात मगर टालते नहीं।
चिराग बन कर जलते हैं रात भर
सुबह से पहले बुझना हम जानते नहीं।
लोग मुझे शायर कहने लगे मगर
हम ग़लत फहमी कोई पालते नहीं।
Sunday, October 30, 2011
हादसा मुझ से बच कर निकल गया
ग़मज़दा लेकिन वो मुझे कर गया।
वक़्त ने गुजरना था गुज़र ही गया
जाते जाते भी वो कमाल कर गया।
वो भी कमाल था वक़्त का ही कि
मैं किसी के दिल में था उतर गया।
और ये भी कमाल है वक़्त का ही
कि मैं उस ही दिल से उतर गया।
वो रुतबा अपने बढ़ाने के वास्ते
अपना हाथ मेरे सर पर धर गया।
लौटा दी मैंने उसको उसकी अमानतें
मगर मुझे वो दर-ब-दर कर गया।
लब कहीं आरिज़ कहीं गेसू कहीं
मेरा दोस्त मुझे बे क़दर कर गया।
ग़मज़दा लेकिन वो मुझे कर गया।
वक़्त ने गुजरना था गुज़र ही गया
जाते जाते भी वो कमाल कर गया।
वो भी कमाल था वक़्त का ही कि
मैं किसी के दिल में था उतर गया।
और ये भी कमाल है वक़्त का ही
कि मैं उस ही दिल से उतर गया।
वो रुतबा अपने बढ़ाने के वास्ते
अपना हाथ मेरे सर पर धर गया।
लौटा दी मैंने उसको उसकी अमानतें
मगर मुझे वो दर-ब-दर कर गया।
लब कहीं आरिज़ कहीं गेसू कहीं
मेरा दोस्त मुझे बे क़दर कर गया।
Tuesday, October 25, 2011
धरा पर उतर आये हैं रंगीन सितारे
दिल लुभा रहे हैं दियों के नज़ारे।
लक्ष्मी के आने की तैयारी में सब हैं
रंगोली सज रही है हर घर के द्वारे।
शुभ कामना हमारी सबको यही है
जीवन में खुशियाँ ही बरसे तुम्हारे।
दीपक का उजियारा घर घर जाये
हर घर में लक्ष्मी जी सदा पधारे।
फूल खिले रहे बगिया में सब के
काम संवरे रहे हर सांझ सकारे।
सकारे- सुबह
दिल लुभा रहे हैं दियों के नज़ारे।
लक्ष्मी के आने की तैयारी में सब हैं
रंगोली सज रही है हर घर के द्वारे।
शुभ कामना हमारी सबको यही है
जीवन में खुशियाँ ही बरसे तुम्हारे।
दीपक का उजियारा घर घर जाये
हर घर में लक्ष्मी जी सदा पधारे।
फूल खिले रहे बगिया में सब के
काम संवरे रहे हर सांझ सकारे।
सकारे- सुबह
Monday, October 24, 2011
इस जमाने के चलन से डर लगता है
मुझे अपने ही जुनून से डर लगता है।
जिसको पकड़कर हम घूमते फिरते थे
अब मुझे उसी दामन से डर लगता है।
वो जो हाथों में तासीर थी मेरे कभी
अब मुझे अपने उस फ़न से डर लगता है।
पराई हो गई है किस्मत जब से यह
अब मुझे लफ्ज़ मिलन से डर लगता है।
मुफलिसी को मेरी जग ज़ाहिर न कर दे
मुझे अपने इस पैरहन से डर लगता है।
हादसे गली गली में होने लगे हैं इतने
अब तो मुझे इस तन से डर लगता है।
आईने के सामने जब भी खड़ा होता हूँ
मुझे अपने बुरे मन से डर लगता है।
मुझे अपने ही जुनून से डर लगता है।
जिसको पकड़कर हम घूमते फिरते थे
अब मुझे उसी दामन से डर लगता है।
वो जो हाथों में तासीर थी मेरे कभी
अब मुझे अपने उस फ़न से डर लगता है।
पराई हो गई है किस्मत जब से यह
अब मुझे लफ्ज़ मिलन से डर लगता है।
मुफलिसी को मेरी जग ज़ाहिर न कर दे
मुझे अपने इस पैरहन से डर लगता है।
हादसे गली गली में होने लगे हैं इतने
अब तो मुझे इस तन से डर लगता है।
आईने के सामने जब भी खड़ा होता हूँ
मुझे अपने बुरे मन से डर लगता है।
Friday, October 21, 2011
हंसी को मुस्कराते लबों पर गरूर है
अश्कों को हसीन आँखों पर गरूर है।
मेहनत के जज़्बे से वाकिफ हूँ खूब मैं
मुझे मेरे मिट्टी सने पावों पर गरूर है।
चेहरा निखर जाता है हर पल हर घड़ी
बच्चे को अपने खिलोनों पर गरूर है।
ज़िद थी मुझे मंजिल चूम लेने की
अब मंज़िल को हौसलों पर गरूर है।
हंसी कभी रुदन ,चुभन कभी कसक
जिंदगी को अपनी चीज़ों पर गरूर है।
वो हर वक़्त नया इम्तिहान लेता है
मुझे उसकी नवाज़िशों पर गरूर है।
वो जो प्यार करते हैं दिल से मुझे
मुझे दोस्तों के दिलों पर गरूर है।
अश्कों को हसीन आँखों पर गरूर है।
मेहनत के जज़्बे से वाकिफ हूँ खूब मैं
मुझे मेरे मिट्टी सने पावों पर गरूर है।
चेहरा निखर जाता है हर पल हर घड़ी
बच्चे को अपने खिलोनों पर गरूर है।
ज़िद थी मुझे मंजिल चूम लेने की
अब मंज़िल को हौसलों पर गरूर है।
हंसी कभी रुदन ,चुभन कभी कसक
जिंदगी को अपनी चीज़ों पर गरूर है।
वो हर वक़्त नया इम्तिहान लेता है
मुझे उसकी नवाज़िशों पर गरूर है।
वो जो प्यार करते हैं दिल से मुझे
मुझे दोस्तों के दिलों पर गरूर है।
Tuesday, October 18, 2011
उसको अपनी तकदीर कैसे दे दूं ?
अपने ख्वाबों की हीर कैसे दे दूं ?
रुख़ बदल लेगी पास उसके जाके
उसे मैं अपनी तस्वीर कैसे दे दूं ?
क़द मेरे क़द से बड़ा है जिसका
उसको अपनी शमशीर कैसे दे दूं ?
लहजे में नरमाहट नहीं है जिसके
गुनगुनाने की उसे पीर कैसे दे दूं ?
हवा न चले जिस मौसम में कभी
खुशबु की उसे तहरीर कैसे दे दूं ?
जिसने चूमा नहीं मेरे नसीब को
उसे मैं दर्द की लकीर कैसे दे दूं ?
वफ़ा की जिसको कद्र ही नहीं है
उसे इश्क की जागीर कैसे दे दूं ?
अपने ख्वाबों की हीर कैसे दे दूं ?
रुख़ बदल लेगी पास उसके जाके
उसे मैं अपनी तस्वीर कैसे दे दूं ?
क़द मेरे क़द से बड़ा है जिसका
उसको अपनी शमशीर कैसे दे दूं ?
लहजे में नरमाहट नहीं है जिसके
गुनगुनाने की उसे पीर कैसे दे दूं ?
हवा न चले जिस मौसम में कभी
खुशबु की उसे तहरीर कैसे दे दूं ?
जिसने चूमा नहीं मेरे नसीब को
उसे मैं दर्द की लकीर कैसे दे दूं ?
वफ़ा की जिसको कद्र ही नहीं है
उसे इश्क की जागीर कैसे दे दूं ?
Sunday, October 16, 2011
पंखुडियां ग़ज़ल की खिलती चली गई
खुशबू कतरा कतरा बिखरती चली गई।
धडकने दिल की थी या रूह की ख़ुशी
रफ्ता रफ्ता जिस्म में भरती चली गई।
अदा उनके कहने की भी लाजवाब थी
महबूब बनके ज़हन में बसती चली गई।
गुलबन्द थी पायजेब थी या थी चूड़ियाँ
खनकी ऐसे दिल में उतरती चली गई।
ज़र्रा ज़र्रा रोशन हो गया बज़्म का
चांदनी सी मानो बिखरती चली गई।
और इससे ज्यादा मैं ज़िक्र क्या करूं
मन में उथल पुथल मचती चली गई।
खुशबू कतरा कतरा बिखरती चली गई।
धडकने दिल की थी या रूह की ख़ुशी
रफ्ता रफ्ता जिस्म में भरती चली गई।
अदा उनके कहने की भी लाजवाब थी
महबूब बनके ज़हन में बसती चली गई।
गुलबन्द थी पायजेब थी या थी चूड़ियाँ
खनकी ऐसे दिल में उतरती चली गई।
ज़र्रा ज़र्रा रोशन हो गया बज़्म का
चांदनी सी मानो बिखरती चली गई।
और इससे ज्यादा मैं ज़िक्र क्या करूं
मन में उथल पुथल मचती चली गई।
अब चिट्ठी पत्री मिले जमाने गुज़र गए
तुम्हे गाँव में आये जमाने गुज़र गये।
दूधिया रातों में सूनी छत पर बैठ कर
वो रूह छू लेने के जमाने गुज़र गये।
तालाब के किनारे की लम्बी गुफ्तगू
कुछ कहने सुनने के जमाने गुज़र गये।
किसकी नज़र लगी जाने मेरी उम्र को
वो आइना देखने के जमाने गुज़र गये।
आजाओ मेरी रुखसती बेहद करीब है
कहोगे वरना ,मिले जमाने गुज़र गये।
तुम्हे गाँव में आये जमाने गुज़र गये।
दूधिया रातों में सूनी छत पर बैठ कर
वो रूह छू लेने के जमाने गुज़र गये।
तालाब के किनारे की लम्बी गुफ्तगू
कुछ कहने सुनने के जमाने गुज़र गये।
किसकी नज़र लगी जाने मेरी उम्र को
वो आइना देखने के जमाने गुज़र गये।
आजाओ मेरी रुखसती बेहद करीब है
कहोगे वरना ,मिले जमाने गुज़र गये।
Friday, October 14, 2011
जो है उस से अब बेहतर चाहिए
दरिया सूख गया समंदर चाहिए।
इन रस्तों पर चलते उम्र गुजर गई
सफ़र को अब नई रहगुज़र चाहिए।
जो हुआ सो हुआ अब उसे भूल जा
अब दिल प्यार से तर-ब-तर चाहिए।
जिंदगी को तस्वीर बना कर रख दे
मुझे एक नया मुसव्विर चाहिए।
खिदमत माँ बाप की अच्छी नहीं लगती
उन्हें रहने के लिए अलग घर चाहिए।
हंसने पर कोई भी पाबंदी न हो जहाँ
ख्वाहिशों में भीगा वह शहर चाहिए।
मुसव्विर-कलाकार
दरिया सूख गया समंदर चाहिए।
इन रस्तों पर चलते उम्र गुजर गई
सफ़र को अब नई रहगुज़र चाहिए।
जो हुआ सो हुआ अब उसे भूल जा
अब दिल प्यार से तर-ब-तर चाहिए।
जिंदगी को तस्वीर बना कर रख दे
मुझे एक नया मुसव्विर चाहिए।
खिदमत माँ बाप की अच्छी नहीं लगती
उन्हें रहने के लिए अलग घर चाहिए।
हंसने पर कोई भी पाबंदी न हो जहाँ
ख्वाहिशों में भीगा वह शहर चाहिए।
मुसव्विर-कलाकार
Thursday, October 13, 2011
Wednesday, October 12, 2011
जाने कैसे पीछे वह छुट गया था
इतनी सी बात पर बस रूठ गया था।
छेड़ना उसको बड़ी ही एहितयात से
उस साज़ का कोई तार टूट गया था।
कर्ज़ हवाओं का मैं हर रोज़ लेता हूँ
वर्ना जिस्म तो कबका छुट गया था।
तेरा कहना सही है मैं कुछ नहीं कहता
लफ्जों का खज़ाना मेरा लुट गया था।
चिकना हो गया था पानी की चोट से
इस पत्थर में दर्द ऐसे कुट गया था।
मेरा जनून मुबारक देता है मुझको
दम तो बचपन में ही घुट गया था।
इतनी सी बात पर बस रूठ गया था।
छेड़ना उसको बड़ी ही एहितयात से
उस साज़ का कोई तार टूट गया था।
कर्ज़ हवाओं का मैं हर रोज़ लेता हूँ
वर्ना जिस्म तो कबका छुट गया था।
तेरा कहना सही है मैं कुछ नहीं कहता
लफ्जों का खज़ाना मेरा लुट गया था।
चिकना हो गया था पानी की चोट से
इस पत्थर में दर्द ऐसे कुट गया था।
मेरा जनून मुबारक देता है मुझको
दम तो बचपन में ही घुट गया था।
Saturday, October 8, 2011
फूल कभी जख्मे-सर कर नहीं सकता
नन्हा कतरा समन्दर भर नहीं सकता।
जिगर तेरा आसमान से भी बड़ा है
बराबरी मैं उसकी कर नहीं सकता।
गलियाँ मेरे गाँव की बहुत ही तंग हैं
तेरा ख्याल उनमे ठहर नहीं सकता।
मेरा दर्द तो मेरा हासिले-हस्ती है
मेरी हद से कभी गुज़र नहीं सकता।
नशा इस दिल से तेरे फ़िराक का
इस जन्म में तो उतर नहीं सकता।
सुदामा दिली दोस्त रहा था उसका
इस बात से कृष्ण मुकर नहीं सकता।
हासिले-हस्ती --जीवन की उपलब्धि
नन्हा कतरा समन्दर भर नहीं सकता।
जिगर तेरा आसमान से भी बड़ा है
बराबरी मैं उसकी कर नहीं सकता।
गलियाँ मेरे गाँव की बहुत ही तंग हैं
तेरा ख्याल उनमे ठहर नहीं सकता।
मेरा दर्द तो मेरा हासिले-हस्ती है
मेरी हद से कभी गुज़र नहीं सकता।
नशा इस दिल से तेरे फ़िराक का
इस जन्म में तो उतर नहीं सकता।
सुदामा दिली दोस्त रहा था उसका
इस बात से कृष्ण मुकर नहीं सकता।
हासिले-हस्ती --जीवन की उपलब्धि
Tuesday, October 4, 2011
झूठी शान दिखाने से क्या फायदा
दिन में दिए जलाने से क्या फायदा।
बदसूरत हो गया है अब चेहरा बहुत
नया शीशा मंगाने से क्या फायदा।
उम्र भर याद किया है इतना उन्हें
अब नज़रें चुराने से क्या फायदा।
हमारे किस्से भी लोग सुनायेंगे ही
ग़लत बातें बनाने से क्या फायदा।
बात पुरानी है एहसास तो जिंदा है
फिर रिश्ते निभाने से क्या फायदा।
बैठकर के जो सुन सके उसे ही सुना
हर किसी को सुनाने से क्या फायदा।
दुनिया वाले तुझको भला देंगे भी क्या
जख्म सबको दिखाने से क्या फायदा।
दीवानगी की भी कोई तो हद होगी
खुद को पागल बनाने से क्या फायदा।
दिन में दिए जलाने से क्या फायदा।
बदसूरत हो गया है अब चेहरा बहुत
नया शीशा मंगाने से क्या फायदा।
उम्र भर याद किया है इतना उन्हें
अब नज़रें चुराने से क्या फायदा।
हमारे किस्से भी लोग सुनायेंगे ही
ग़लत बातें बनाने से क्या फायदा।
बात पुरानी है एहसास तो जिंदा है
फिर रिश्ते निभाने से क्या फायदा।
बैठकर के जो सुन सके उसे ही सुना
हर किसी को सुनाने से क्या फायदा।
दुनिया वाले तुझको भला देंगे भी क्या
जख्म सबको दिखाने से क्या फायदा।
दीवानगी की भी कोई तो हद होगी
खुद को पागल बनाने से क्या फायदा।
Saturday, October 1, 2011
Friday, September 30, 2011
पेड़ गिरा तो उसने दिवार ढहा दी
फिर एक मुश्किल और बढ़ा दी।
पहले ही मसअले क्या कम थे
उन्होंने एक नई कहानी सुना दी।
फूल कहीं थे सेज कहीं बिछी थी
मिलन की कैसी यह रात सजा दी।
क्या खूब है जमाने का दस्तूर भी
जितना क़द बढ़ा बातें उतनी बढ़ा दी।
चीखते फिर रहे हैं अब साये धूप में
क्यों सूरज को सारी हकीकत बता दी।
तन्हाई पर मेरी हँसता है बहुत शोर
किसने उसे मेरे घर की राह दिखा दी।
तुम्हे पता था बिजली अभी न आएगी
जलती शमां फिर भी यकदम बुझा दी।
जख्म बिछ गये हैं जिस्म पर मेरे
जाने तुमने मुझे यह कैसी दुआ दी।
मैंने तो बात तुमको ही बताई थी
तुमने अपनी हथेली सबको दिखा दी।
वो ज़हर उगल रहे थे मुंह से अपने
तुमने उनकी बातें मखमली बता दी।
नींद जब आँखों से ही दूर हो गई
तुमने भी जागते रहने की दवा दी।
फिर एक मुश्किल और बढ़ा दी।
पहले ही मसअले क्या कम थे
उन्होंने एक नई कहानी सुना दी।
फूल कहीं थे सेज कहीं बिछी थी
मिलन की कैसी यह रात सजा दी।
क्या खूब है जमाने का दस्तूर भी
जितना क़द बढ़ा बातें उतनी बढ़ा दी।
चीखते फिर रहे हैं अब साये धूप में
क्यों सूरज को सारी हकीकत बता दी।
तन्हाई पर मेरी हँसता है बहुत शोर
किसने उसे मेरे घर की राह दिखा दी।
तुम्हे पता था बिजली अभी न आएगी
जलती शमां फिर भी यकदम बुझा दी।
जख्म बिछ गये हैं जिस्म पर मेरे
जाने तुमने मुझे यह कैसी दुआ दी।
मैंने तो बात तुमको ही बताई थी
तुमने अपनी हथेली सबको दिखा दी।
वो ज़हर उगल रहे थे मुंह से अपने
तुमने उनकी बातें मखमली बता दी।
नींद जब आँखों से ही दूर हो गई
तुमने भी जागते रहने की दवा दी।
Wednesday, September 28, 2011
गुज़रे हुए जमाने की याद दिला दी
मेरे ही अफ़साने की याद दिला दी।
मेरे दिल पे कब्जा था तुम्हारा कभी
मुझे उस ठिकाने की याद दिला दी।
प्यार के चंद मोती बंद जिसमे थे
उस छिपे खजाने की याद दिला दी।
सुरमई शामों में झील के किनारे
नगमें गुनगुनाने की याद दिला दी।
गम ग़लत करते थे बैठकर के जहां
हमें उस मयखाने की याद दिला दी।
मेरे ही अफ़साने की याद दिला दी।
मेरे दिल पे कब्जा था तुम्हारा कभी
मुझे उस ठिकाने की याद दिला दी।
प्यार के चंद मोती बंद जिसमे थे
उस छिपे खजाने की याद दिला दी।
सुरमई शामों में झील के किनारे
नगमें गुनगुनाने की याद दिला दी।
गम ग़लत करते थे बैठकर के जहां
हमें उस मयखाने की याद दिला दी।
Monday, September 26, 2011
हम तपते सहरा में घर से निकल जाते हैं
वो मोम के बने हैं झट से पिघल जाते हैं।
हम सोचते रहते हैं वो काम कर जाते हैं
सबको टोपी उढ़ाकर आगे निकल जाते हैं।
तमाम मोजों के हमले जब रवां होते हैं
चलते चलते वो सफीने बदल जाते हैं।
मिलना जुलना रखते हैं सारी दुनिया से
बस हमें देखते ही तेवर बदल जाते हैं।
यह भी आदत में ही शुमार है उनकी
अपने वायदे से जल्दी फिसल जाते हैं।
उनकी नादानियों का ज़िक्र क्या करें
खिलौना मिलते ही वो बहल जाते हैं।
रवां - बढे
वो मोम के बने हैं झट से पिघल जाते हैं।
हम सोचते रहते हैं वो काम कर जाते हैं
सबको टोपी उढ़ाकर आगे निकल जाते हैं।
तमाम मोजों के हमले जब रवां होते हैं
चलते चलते वो सफीने बदल जाते हैं।
मिलना जुलना रखते हैं सारी दुनिया से
बस हमें देखते ही तेवर बदल जाते हैं।
यह भी आदत में ही शुमार है उनकी
अपने वायदे से जल्दी फिसल जाते हैं।
उनकी नादानियों का ज़िक्र क्या करें
खिलौना मिलते ही वो बहल जाते हैं।
रवां - बढे
Saturday, September 24, 2011
चाँद को छत पर चढ़ कर नहीं देखा
मैंने तुम्हे कभी जी भर कर नहीं देखा।
दम ही दम भरते रहे मुहब्बत का तुम
तुमने भी कभी मुड कर नहीं देखा।
आरज़ू तो करते रहे तुम एहतिराम की
मैं जिंदा हूँ कि नहीं आकर नहीं देखा।
मैं गम को भीतर ही सिमेट तो लेता
बदकिस्मती से मैंने समंदर नहीं देखा।
मेरे घर के आईने को एक ही मलाल है
किसी ने भी उसमे संवरकर नहीं देखा।
क़दम चूमने को बेताब थी खुशियाँ
मैंने ही उस रस्ते पे चलकर नहीं देखा।
एहतिराम- सम्मान
मैंने तुम्हे कभी जी भर कर नहीं देखा।
दम ही दम भरते रहे मुहब्बत का तुम
तुमने भी कभी मुड कर नहीं देखा।
आरज़ू तो करते रहे तुम एहतिराम की
मैं जिंदा हूँ कि नहीं आकर नहीं देखा।
मैं गम को भीतर ही सिमेट तो लेता
बदकिस्मती से मैंने समंदर नहीं देखा।
मेरे घर के आईने को एक ही मलाल है
किसी ने भी उसमे संवरकर नहीं देखा।
क़दम चूमने को बेताब थी खुशियाँ
मैंने ही उस रस्ते पे चलकर नहीं देखा।
एहतिराम- सम्मान
Thursday, September 15, 2011
Tuesday, September 13, 2011
हिंदी की सम्पदा मिटती जा रही है।
हिंदी हर पल सिसकती जा रही है।
हर वर्ष हिंदी दिवस मनाकर बस
बरसी के दायरे में सिमटती जा रही है।
प्रयोग करने को भी शब्द नहीं मिलते
विपदाएं हिंदी की बढती जा रही हैं।
अंग्रेजी स्कूल में पढी नई पीढी की
हिंदी बहुत ही बिगडती जा रही है।
व्यवहार में भी हिंदी हिंदी न रही
गहन कालिमा में विचरती जा रही है।
कितनी ही कोशिशें कर के देख ली
पर दिल से हिंदी मिटती जा रही है।
हिंदी हर पल सिसकती जा रही है।
हर वर्ष हिंदी दिवस मनाकर बस
बरसी के दायरे में सिमटती जा रही है।
प्रयोग करने को भी शब्द नहीं मिलते
विपदाएं हिंदी की बढती जा रही हैं।
अंग्रेजी स्कूल में पढी नई पीढी की
हिंदी बहुत ही बिगडती जा रही है।
व्यवहार में भी हिंदी हिंदी न रही
गहन कालिमा में विचरती जा रही है।
कितनी ही कोशिशें कर के देख ली
पर दिल से हिंदी मिटती जा रही है।
न वह शान न शौकत रही हिंदी की
न ही दिलों में चाहत रही हिंदी की।
हर क़दम पर यहाँ सवाल है खड़ा
क्यों दिल मे न मुहब्बत रही हिंदी की।
सिसकती है तड़फती कभी घुटती है
दिल मे हैं पीडाएं अनंत रही हिंदी की।
भीड़ मे गुम हो जाते हैं ज्योंकर रिश्ते
कुछ ऐसी ही हकीकत रही हिंदी की।
बताओ कहाँ मिलेंगे वह हीरे वह मोती
वह जो सम्पदा अकूत रही हिंदी की।
न ही दिलों में चाहत रही हिंदी की।
हर क़दम पर यहाँ सवाल है खड़ा
क्यों दिल मे न मुहब्बत रही हिंदी की।
सिसकती है तड़फती कभी घुटती है
दिल मे हैं पीडाएं अनंत रही हिंदी की।
भीड़ मे गुम हो जाते हैं ज्योंकर रिश्ते
कुछ ऐसी ही हकीकत रही हिंदी की।
बताओ कहाँ मिलेंगे वह हीरे वह मोती
वह जो सम्पदा अकूत रही हिंदी की।
Saturday, September 10, 2011
Wednesday, September 7, 2011
दूर तलक कोई साथ चलता नहीं
दिवानगी का सिला अब मिलता नहीं।
वह और थे सफ़र जो तय कर गये
अँधेरे में भी जुगनू अब दिखता नहीं।
शहर की रौनक में भूल गये खुद को
पता दुनियादारी का भी मिलता नहीं।
ख़ाली हाथ कौन निकलता है घर से
फकीरी मिजाज़ अब कोई रखता नहीं।
बिजली खुली छोड़ आये अच्छा किया
चिराग आंधी में कभी जलता नहीं।
तन्हाइयों के मेले में हम भी चले जाते
दर्द कोई मुफ्त में मगर मिलता नहीं।
दिवानगी का सिला अब मिलता नहीं।
वह और थे सफ़र जो तय कर गये
अँधेरे में भी जुगनू अब दिखता नहीं।
शहर की रौनक में भूल गये खुद को
पता दुनियादारी का भी मिलता नहीं।
ख़ाली हाथ कौन निकलता है घर से
फकीरी मिजाज़ अब कोई रखता नहीं।
बिजली खुली छोड़ आये अच्छा किया
चिराग आंधी में कभी जलता नहीं।
तन्हाइयों के मेले में हम भी चले जाते
दर्द कोई मुफ्त में मगर मिलता नहीं।
Sunday, September 4, 2011
हवा के ठंडे झोंके से बरसात नहीं होती
हर रात जश्न की भी रात नहीं होती।
गर्दिश के दिन घिर आते हैं जब भी
अच्छे दिनों से फिर बात नहीं होती।
सन्नाटों की जिस बस्ती में हम रहते हैं
वहां कभी सुबह कभी रात नहीं होती।
हस्ती ग़म की खैरात में नहीं मिलती
भले ही इसकी कोई औकात नहीं होती।
जिंदगी जल्दबाजी में कटती जाती है
अच्छे से इसकी खिदमात नहीं होती।
कुछ चेहरे ज़हन में सदा नक्श रहते हैं
भले ही उनसे मुलाक़ात नहीं होती।
बहुत सिरफिरा हूँ मैं यह लोग कहते हैं
कहने को जब उन पे कोई बात नहीं होती।
हर रात जश्न की भी रात नहीं होती।
गर्दिश के दिन घिर आते हैं जब भी
अच्छे दिनों से फिर बात नहीं होती।
सन्नाटों की जिस बस्ती में हम रहते हैं
वहां कभी सुबह कभी रात नहीं होती।
हस्ती ग़म की खैरात में नहीं मिलती
भले ही इसकी कोई औकात नहीं होती।
जिंदगी जल्दबाजी में कटती जाती है
अच्छे से इसकी खिदमात नहीं होती।
कुछ चेहरे ज़हन में सदा नक्श रहते हैं
भले ही उनसे मुलाक़ात नहीं होती।
बहुत सिरफिरा हूँ मैं यह लोग कहते हैं
कहने को जब उन पे कोई बात नहीं होती।
Wednesday, August 31, 2011
Friday, August 26, 2011
Thursday, August 25, 2011
खुशबु का कौन तलबगार नहीं होता
खुशबु का मगर घर बार नहीं होता।
हवा किसी को भी कब्जा नहीं देती
हवा का कोई कर्ज़दार नहीं होता।
खींचातानी तो सदा चलती रहती है
उसूलों के बिनाकभी प्यार नहीं होता।
हिफाज़त नहीं कर सके प्यार की जो
चाहत का वो भी हक़दार नहीं होता।
बेशक पानी समन्दर का खारा होता है
मगर आंसूओं की धार नहीं होता।
रोशन रखता है तमाम शहर को जो
चिराग़ वो चिराग़े-मज़ार नहीं होता।
कितनी खराब हो जाये तबियत चाहे
तिल तिल मौत का इंतज़ार नहीं होता।
जख्म न लिया हो जिसने जिगर पर
शख्श वो कभी भी दिलदार नहीं होता।
छत की मुंडेर पर बैठा हुआ परिंदा
उड़ने को कभी भी लाचार नहीं होता।
खुशबु का मगर घर बार नहीं होता।
हवा किसी को भी कब्जा नहीं देती
हवा का कोई कर्ज़दार नहीं होता।
खींचातानी तो सदा चलती रहती है
उसूलों के बिनाकभी प्यार नहीं होता।
हिफाज़त नहीं कर सके प्यार की जो
चाहत का वो भी हक़दार नहीं होता।
बेशक पानी समन्दर का खारा होता है
मगर आंसूओं की धार नहीं होता।
रोशन रखता है तमाम शहर को जो
चिराग़ वो चिराग़े-मज़ार नहीं होता।
कितनी खराब हो जाये तबियत चाहे
तिल तिल मौत का इंतज़ार नहीं होता।
जख्म न लिया हो जिसने जिगर पर
शख्श वो कभी भी दिलदार नहीं होता।
छत की मुंडेर पर बैठा हुआ परिंदा
उड़ने को कभी भी लाचार नहीं होता।
Friday, August 19, 2011
अब तोहम हद से गुज़र के देखेंगे
नया कुछ भी हम कर के देखेंगे।
भ्रष्टाचार खत्म करने को सदा ही
हम सब अन्ना बन कर के देखेंगे।
हमें रोके ताब किस में है इतना
हम इतिहास बदल कर के देखेंगे।
मानवता से इस दानवता का
पर्दा अब तो हटा कर के देखेंगे।
अपना अपना सुधार कर के हम
नित नई जोत जगाकर के देखेंगे।
लड़ाई तो अभी अभी शुरू हुई है
जीत भी हम मना कर के देखेंगे।
अमर तिरंगे को आसमा में ऊँचा
नए ढंग से लहरा कर के देखेंगे।
नया कुछ भी हम कर के देखेंगे।
भ्रष्टाचार खत्म करने को सदा ही
हम सब अन्ना बन कर के देखेंगे।
हमें रोके ताब किस में है इतना
हम इतिहास बदल कर के देखेंगे।
मानवता से इस दानवता का
पर्दा अब तो हटा कर के देखेंगे।
अपना अपना सुधार कर के हम
नित नई जोत जगाकर के देखेंगे।
लड़ाई तो अभी अभी शुरू हुई है
जीत भी हम मना कर के देखेंगे।
अमर तिरंगे को आसमा में ऊँचा
नए ढंग से लहरा कर के देखेंगे।
Monday, August 15, 2011
पहरों फूलों की निगहदारी नहीं होती
नसीब की मेहरबानी हर घडी नहीं होती।
जरूरत तो पूरी हो जाती है फकीर की
ख्वाहिश बादशाह की पूरी नहीं होती।
महल ख्वाबों का कब तलक सजाओगे
सन्नाटों में कोई बस्ती बसी नहीं होती।
खुद्दारी तेरी ठीक है तो मेरी भी ठीक है
जिंदगी बेदाम किसी की भी नहीं होती।
पतझड़ की रुत आती है तो कह जाती है
सूखे जर्द पत्तों में जिंदगानी नहीं होती
अपनी ही कुछ मजबूरियाँ होंगी वक़्त की
वरना बेताल्लुकी कभी बढ़ी नहीं होती।
नई तरह की कैफियत होती है दिल में
महफ़िल अदब से जब सजी नहीं होती।
जिंदगी बिन बात के ही ज़लील कर देती
अगर सलीके से इसे हमने जी नहीं होती।
निगह्दारी- देखभाल
नसीब की मेहरबानी हर घडी नहीं होती।
जरूरत तो पूरी हो जाती है फकीर की
ख्वाहिश बादशाह की पूरी नहीं होती।
महल ख्वाबों का कब तलक सजाओगे
सन्नाटों में कोई बस्ती बसी नहीं होती।
खुद्दारी तेरी ठीक है तो मेरी भी ठीक है
जिंदगी बेदाम किसी की भी नहीं होती।
पतझड़ की रुत आती है तो कह जाती है
सूखे जर्द पत्तों में जिंदगानी नहीं होती
अपनी ही कुछ मजबूरियाँ होंगी वक़्त की
वरना बेताल्लुकी कभी बढ़ी नहीं होती।
नई तरह की कैफियत होती है दिल में
महफ़िल अदब से जब सजी नहीं होती।
जिंदगी बिन बात के ही ज़लील कर देती
अगर सलीके से इसे हमने जी नहीं होती।
निगह्दारी- देखभाल
Saturday, August 13, 2011
पीढियां बदली आज़ादी बदली बदला पन्द्रह अगस्त
केवल तारीख बन कर ही है आता पन्द्रह अगस्त।
भ्रष्टाचार में पल रहा और आतंक वाद से डर रहा
कितना सहमा सहमा सा है रहता पन्द्रह अगस्त।
समस्याएं अनगिनत खड़ी हैं हाथ फैलाये सर पर
महंगाई और भुखमरी से लड़ रहा पन्द्रह अगस्त।
कितने वीर शहीद हुए थे तब हमने पाया था झंडा
नई पीढी नहीं जाने है संतालिस का पन्द्रह अगस्त।
सर पे कफ़न बाँध कर के चूमा था फांसी का फंदा
उस संघर्ष की याद नहीं दिलाता पन्द्रह अगस्त।
देश भक्ति के गाने गाकर और झंडा फहराकर ही
है कुछ ही पलों में खत्म हो जाता पन्द्रह अगस्त।
खुद को बदल कर के नमन शहीदों को कर चलो
मनाये बापू सुभाष के सपनों का पन्द्रह अगस्त।
केवल तारीख बन कर ही है आता पन्द्रह अगस्त।
भ्रष्टाचार में पल रहा और आतंक वाद से डर रहा
कितना सहमा सहमा सा है रहता पन्द्रह अगस्त।
समस्याएं अनगिनत खड़ी हैं हाथ फैलाये सर पर
महंगाई और भुखमरी से लड़ रहा पन्द्रह अगस्त।
कितने वीर शहीद हुए थे तब हमने पाया था झंडा
नई पीढी नहीं जाने है संतालिस का पन्द्रह अगस्त।
सर पे कफ़न बाँध कर के चूमा था फांसी का फंदा
उस संघर्ष की याद नहीं दिलाता पन्द्रह अगस्त।
देश भक्ति के गाने गाकर और झंडा फहराकर ही
है कुछ ही पलों में खत्म हो जाता पन्द्रह अगस्त।
खुद को बदल कर के नमन शहीदों को कर चलो
मनाये बापू सुभाष के सपनों का पन्द्रह अगस्त।
Monday, August 1, 2011
पत्थर पत्थर है कहाँ पिघलता है
मोम नर्म दिल है तब ही जलता है।
बादल के पास अपना कुछ भी नहीं
समंदर का गम लेकर बरसता है।
जरा सी बात पर खफ़ा जो होता है
हर बात पर वही तो बिगड़ता है।
पुरानी यादों से आग निकलती है
दरिया आग का बहता लगता है।
जितने दिन भी जी लेता है आदमी
कर्ज़ साँसों का ही अदा करता है।
गुबार जो इक्कठा होता है दिल में
ग़ज़ल बनकर लब से निकलता है।
मोम नर्म दिल है तब ही जलता है।
बादल के पास अपना कुछ भी नहीं
समंदर का गम लेकर बरसता है।
जरा सी बात पर खफ़ा जो होता है
हर बात पर वही तो बिगड़ता है।
पुरानी यादों से आग निकलती है
दरिया आग का बहता लगता है।
जितने दिन भी जी लेता है आदमी
कर्ज़ साँसों का ही अदा करता है।
गुबार जो इक्कठा होता है दिल में
ग़ज़ल बनकर लब से निकलता है।
Sunday, July 31, 2011
दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे
तुझसे हुई वह मुलाकात याद है मुझे।
बरसते पानी में हुस्न का धुल जाना
दहकी हुई वह बरसात याद है मुझे।
तेरा संवरना उसपे ढलका आंचल
संवरी बिखरी सी हयात याद है मुझे।
सर्द कमरे में गर्म साँसों की महक
हसीं लम्हों की सौगात याद है मुझे।
दिल में उतरके रहने की तेरी वो ज़िद
ह्या में डूबी रेशमी रात याद है मुझे।
तेरी आँखों की मुस्कराती तहरीर
दिल लुभाती हर बात याद है मुझे।
तुझसे हुई वह मुलाकात याद है मुझे।
बरसते पानी में हुस्न का धुल जाना
दहकी हुई वह बरसात याद है मुझे।
तेरा संवरना उसपे ढलका आंचल
संवरी बिखरी सी हयात याद है मुझे।
सर्द कमरे में गर्म साँसों की महक
हसीं लम्हों की सौगात याद है मुझे।
दिल में उतरके रहने की तेरी वो ज़िद
ह्या में डूबी रेशमी रात याद है मुझे।
तेरी आँखों की मुस्कराती तहरीर
दिल लुभाती हर बात याद है मुझे।
Wednesday, July 27, 2011
हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं
पिया क्यों शहर में मुझे भूले पड़े हैं।
आजाओ जल्दी से अब रहा नहीं जाता
कि अमिया की ड़ाल पर झूले पड़े हैं।
सावन का महीना है मौका तीज का
पहने आज हाथों में मैंने नए कड़े हैं।
समां क्या होगा जब आकर कहोगे
गोरी अब तो तेरे नखरे ही बड़े हैं।
आजाओ जल्दी अब रहा नहीं जाता
हाथों में रची मेहँदी सूने झूले पड़े हैं।
पिया क्यों शहर में मुझे भूले पड़े हैं।
आजाओ जल्दी से अब रहा नहीं जाता
कि अमिया की ड़ाल पर झूले पड़े हैं।
सावन का महीना है मौका तीज का
पहने आज हाथों में मैंने नए कड़े हैं।
समां क्या होगा जब आकर कहोगे
गोरी अब तो तेरे नखरे ही बड़े हैं।
आजाओ जल्दी अब रहा नहीं जाता
हाथों में रची मेहँदी सूने झूले पड़े हैं।
रोज़ रोज़ जश्न या जलसे नहीं होते
मोती क़दम क़दम पे बिखरे नहीं होते।
सदा मेरी लौटकर आ जाती है सदा
उनसे मिलने के सिलसिले नहीं होते।
खुश हो लेता था दिल जिन्हें गाकर
अब होठों पर प्यार के नगमे नहीं होते।
कितने ही बरसा करें आँख से आंसू
सावन में सावन के चरचे नहीं होते।
घबरा रहा है क्यों वक़्त की मार से
बार बार ऐसे सिलसिले नहीं होते।
गुज़र गई सर पर कयामतें इतनी
किसी बात में उनके चरचे नहीं होते।
मोती क़दम क़दम पे बिखरे नहीं होते।
सदा मेरी लौटकर आ जाती है सदा
उनसे मिलने के सिलसिले नहीं होते।
खुश हो लेता था दिल जिन्हें गाकर
अब होठों पर प्यार के नगमे नहीं होते।
कितने ही बरसा करें आँख से आंसू
सावन में सावन के चरचे नहीं होते।
घबरा रहा है क्यों वक़्त की मार से
बार बार ऐसे सिलसिले नहीं होते।
गुज़र गई सर पर कयामतें इतनी
किसी बात में उनके चरचे नहीं होते।
Wednesday, July 6, 2011
मैं प्यार की इबारत लिख देता
अगर खुशबू की सूरत देख लेता।
मुहब्बत दर पर ही भटकती मेरे
जो चेहरा वो खुबसूरत देख लेता।
मेरा ख्वाब-गह दूधिया हो जाता
उन आँखों की शरारत देख लेता।
वो हंसी वो मिटटी सने पाँव उसके
उन में अपनी किस्मत देख लेता।
रात भर गलियों में न भटकता
अगर वो मेरी चाहत देख लेता।
नज़रों से नजरें यदि मिल जाती
मेरी आँखों की वहशत देख लेता।
मेरा बदन भी गुलाब हो जाता
एक नज़र मुझे वसंत देख लेता।
सारे खुबसूरत लफ्ज़ लिख देता
दिल को यदि सलामत देख लेता।
अगर खुशबू की सूरत देख लेता।
मुहब्बत दर पर ही भटकती मेरे
जो चेहरा वो खुबसूरत देख लेता।
मेरा ख्वाब-गह दूधिया हो जाता
उन आँखों की शरारत देख लेता।
वो हंसी वो मिटटी सने पाँव उसके
उन में अपनी किस्मत देख लेता।
रात भर गलियों में न भटकता
अगर वो मेरी चाहत देख लेता।
नज़रों से नजरें यदि मिल जाती
मेरी आँखों की वहशत देख लेता।
मेरा बदन भी गुलाब हो जाता
एक नज़र मुझे वसंत देख लेता।
सारे खुबसूरत लफ्ज़ लिख देता
दिल को यदि सलामत देख लेता।
सितम को देख इनायत की बात होने लगी
क़हर के बाद हिफाज़त की बात होने लगी।
बीच समंदर के शोर मच गया यह कैसा
बुत को देख इबादत की बात होने लगी।
संगमरमर में दफ़न ठंडा दर्द है ताजमहल
देख कर उसे मुहब्बत की बात होने लगी।
मौत की इतनी हसीन तस्वीर देख कर
रूहों में भी हैरत की बात होने लगी।
अखलाक उसका अच्छा है उसका बुरा
कशिश देख चाहत की बात होने लगी।
इंसान का बदल गया है ज़मीर इतना
हर तरफ हसरत की बात होने लगी।
फलक पर निकल आया दूज का चाँद
गली गली मन्नत की बात होने लगी।
क़हर के बाद हिफाज़त की बात होने लगी।
बीच समंदर के शोर मच गया यह कैसा
बुत को देख इबादत की बात होने लगी।
संगमरमर में दफ़न ठंडा दर्द है ताजमहल
देख कर उसे मुहब्बत की बात होने लगी।
मौत की इतनी हसीन तस्वीर देख कर
रूहों में भी हैरत की बात होने लगी।
अखलाक उसका अच्छा है उसका बुरा
कशिश देख चाहत की बात होने लगी।
इंसान का बदल गया है ज़मीर इतना
हर तरफ हसरत की बात होने लगी।
फलक पर निकल आया दूज का चाँद
गली गली मन्नत की बात होने लगी।
Wednesday, June 22, 2011
चेहरा देखने को एक आइना चाहिए
आइना देख कर मुस्कराना चाहिए।
बिन बात के हंसता पगला लगेगा
मुस्कराने के लिए बहाना चाहिए।
आंसू हर वक्त कहाँ निकलते हैं
रोने के लिए भी अफसाना चाहिए।
बादलों में घूमा फिरेगा कब तलक
परिंदे को भी एक ठिकाना चाहिए।
हुनर है तो काम मिल ही जायेगा
इसके लिए पसीना बहाना चाहिए।
डरने से कभी मंजिल नहीं मिलती
हिम्मत रख क़दम बढ़ाना चाहिए।
सुख औ दर्द जिंदगी का हिस्सा है
जश्न हर हाल में मनाना चाहिए।
आइना देख कर मुस्कराना चाहिए।
बिन बात के हंसता पगला लगेगा
मुस्कराने के लिए बहाना चाहिए।
आंसू हर वक्त कहाँ निकलते हैं
रोने के लिए भी अफसाना चाहिए।
बादलों में घूमा फिरेगा कब तलक
परिंदे को भी एक ठिकाना चाहिए।
हुनर है तो काम मिल ही जायेगा
इसके लिए पसीना बहाना चाहिए।
डरने से कभी मंजिल नहीं मिलती
हिम्मत रख क़दम बढ़ाना चाहिए।
सुख औ दर्द जिंदगी का हिस्सा है
जश्न हर हाल में मनाना चाहिए।
कभी कमतर था अब खूबतर है
गैर था कभी अब हमसफ़र है।
तब बाहर आने की जद्दोज़हद थी
रहता अब घर के ही अन्दर है।
वहशत शाम की देखी नहीं जाती
तासीर उसकी रहती रात भर है।
जीना भी हर पल दुश्वार है यहाँ
महफूज़ कहाँ रहा अब शहर है।
जब चाहे खत्म कर दे हमको
वक्त के हाथों में वो खंज़र है।
उस दिन सूरज का क्या होगा
जिस दिन हुई अगर न सहर है।
अलफ़ाज़ मैं खुबसूरत लिखता हूँ
उस्ताद मेरा मुझसे मुअतबर है।
मुअतबर - विश्वस्त
गैर था कभी अब हमसफ़र है।
तब बाहर आने की जद्दोज़हद थी
रहता अब घर के ही अन्दर है।
वहशत शाम की देखी नहीं जाती
तासीर उसकी रहती रात भर है।
जीना भी हर पल दुश्वार है यहाँ
महफूज़ कहाँ रहा अब शहर है।
जब चाहे खत्म कर दे हमको
वक्त के हाथों में वो खंज़र है।
उस दिन सूरज का क्या होगा
जिस दिन हुई अगर न सहर है।
अलफ़ाज़ मैं खुबसूरत लिखता हूँ
उस्ताद मेरा मुझसे मुअतबर है।
मुअतबर - विश्वस्त
Tuesday, June 21, 2011
काश ! थोडा वक्त मेरे लिए होता
कोई संग मुस्कराने के लिए होता।
उम्मीदें नई दिल में घर कर जाती
वो अगर तसल्ली देने के लिए होता।
बंदिशें अगर लगी हुई नहीं होती
दिल खोलकर रखने के लिए होता।
जो कुछ मेरा था वो मेरा ही रहता
यदि शौक मेरा कुछ पैसे लिए होता।
आइना बुरा मेरा भी मान जाता
अगर मैं अनेक चेहरे लिए होता।
सूरज के दम पर कभी न चमकता
चाँद गर अपने उजाले लिए होता।
रो लेते हम भी जी भर कर अगर
आँखों में पानी रोने के लिए होता।
कोई संग मुस्कराने के लिए होता।
उम्मीदें नई दिल में घर कर जाती
वो अगर तसल्ली देने के लिए होता।
बंदिशें अगर लगी हुई नहीं होती
दिल खोलकर रखने के लिए होता।
जो कुछ मेरा था वो मेरा ही रहता
यदि शौक मेरा कुछ पैसे लिए होता।
आइना बुरा मेरा भी मान जाता
अगर मैं अनेक चेहरे लिए होता।
सूरज के दम पर कभी न चमकता
चाँद गर अपने उजाले लिए होता।
रो लेते हम भी जी भर कर अगर
आँखों में पानी रोने के लिए होता।
जिंदगी खुदा का दिया एक तोहफा है
मौत से हर वक्त करती मुकाबला है।
मुझमें और तुझमें कोई अंतर नहीं है
दिल में भरा हुआ अगर हौसला है।
मेरा नहीं है वह तेरा भी नहीं है वह
जुर्म करने वाले को देता सज़ा है।
जिंदगी सफ़र है समंदर से गहरा
ख़ुशी के साथ गम भूला बिसरा है।
उम्र पर पाबंदियां लगी हुई हैं क्यों
पीना रुतबे जरूरत का मामला है।
भ्रस्टाचार मिटाने को कहते हैं सब
मिटे कैसे दिल का तो यह हिस्सा है।
मौत से हर वक्त करती मुकाबला है।
मुझमें और तुझमें कोई अंतर नहीं है
दिल में भरा हुआ अगर हौसला है।
मेरा नहीं है वह तेरा भी नहीं है वह
जुर्म करने वाले को देता सज़ा है।
जिंदगी सफ़र है समंदर से गहरा
ख़ुशी के साथ गम भूला बिसरा है।
उम्र पर पाबंदियां लगी हुई हैं क्यों
पीना रुतबे जरूरत का मामला है।
भ्रस्टाचार मिटाने को कहते हैं सब
मिटे कैसे दिल का तो यह हिस्सा है।
Sunday, June 19, 2011
फादर डे पर
पिता का प्यार मां के बाद ही आंका जाता है
पिता का स्थान भी मां के बाद ही आता है।
मां के पैरों तले ही तो जन्नत भी होती है
बाप के दिल से होके उसका रस्ता जाता है।
माना कि मां का प्यार सबसे उंचा होता है
बाप का रिश्ता भी तो बेटे से ख़ास होता है।
मां बेटे के सर पे हाथ रख खाना खिलाती है
पिता का प्यार उसको जीना सिखाता है।
हाथ मां के साथ सर पर बाप का भी जरूरी है
बाप जिम्मेदारियों का सब बोझ उठाता है।
पिता का स्थान भी मां के बाद ही आता है।
मां के पैरों तले ही तो जन्नत भी होती है
बाप के दिल से होके उसका रस्ता जाता है।
माना कि मां का प्यार सबसे उंचा होता है
बाप का रिश्ता भी तो बेटे से ख़ास होता है।
मां बेटे के सर पे हाथ रख खाना खिलाती है
पिता का प्यार उसको जीना सिखाता है।
हाथ मां के साथ सर पर बाप का भी जरूरी है
बाप जिम्मेदारियों का सब बोझ उठाता है।
Friday, June 17, 2011
कभी ऊचाइयों से डर नहीं लगता
कभी रुसवाइयों से डर नहीं लगता।
खुशियों से डर लगता है हर वक़्त
कभी उदासियों से डर नहीं लगता।
तैरना आ गया है दिल को जब से
अब गहराइयों से डर नहीं लगता।
मुहब्बत दीवानापन और रतजगे
इन बस्तियों से डर नहीं लगता।
खामोश परछाइयाँ देखी हैं इतनी
अब वीरानियों से डर नहीं लगता।
अपने रूप पर कभी घमंड था हमें
अब बरबादियों से डर नहीं लगता।
जिंदगी भर नादानियाँ की इतनी
अब नादानियों से डर नहीं लगता।
कभी रुसवाइयों से डर नहीं लगता।
खुशियों से डर लगता है हर वक़्त
कभी उदासियों से डर नहीं लगता।
तैरना आ गया है दिल को जब से
अब गहराइयों से डर नहीं लगता।
मुहब्बत दीवानापन और रतजगे
इन बस्तियों से डर नहीं लगता।
खामोश परछाइयाँ देखी हैं इतनी
अब वीरानियों से डर नहीं लगता।
अपने रूप पर कभी घमंड था हमें
अब बरबादियों से डर नहीं लगता।
जिंदगी भर नादानियाँ की इतनी
अब नादानियों से डर नहीं लगता।
Thursday, June 16, 2011
मन के तहखाने कहाँ खुलते हैं
हंसने के बहाने कहाँ मिलते हैं।
पीने की तलब uthti rahti hai
हर जगह मैखाने कहाँ मिलते हैं।
धूप में पानी में कहीं भी बिठा दे
ऐसे अब दीवाने कहाँ मिलते हैं।
तन मन सबका सुलग उठता है
जलते हुए परवाने कहाँ मिलते हैं।
आँखें तो यूँ ही नम हो जाती हैं
गम वह पुराने कहाँ मिलते हैं।
हुलस हुलस कर देख तो लेते हैं
मिलने के बहाने कहाँ मिलते हैं।
हंसने के बहाने कहाँ मिलते हैं।
पीने की तलब uthti rahti hai
हर जगह मैखाने कहाँ मिलते हैं।
धूप में पानी में कहीं भी बिठा दे
ऐसे अब दीवाने कहाँ मिलते हैं।
तन मन सबका सुलग उठता है
जलते हुए परवाने कहाँ मिलते हैं।
आँखें तो यूँ ही नम हो जाती हैं
गम वह पुराने कहाँ मिलते हैं।
हुलस हुलस कर देख तो लेते हैं
मिलने के बहाने कहाँ मिलते हैं।
Wednesday, June 15, 2011
हमें तो हमारी ही आदत ने मारा
उससे जुड़े रहने की चाहत ने मारा।
शहर में कोई भी दुश्मन नहीं था
मिल कर रहने की आदत ने मारा।
बड़ी हसरत से तकती थी मुझको
उन आँखों की शरारत ने मारा।
साथ तेरा बहुत हसीन था मगर
हमको वहम की आदत ने मारा।
मुझ में किसी शय की कमी थी
उसे एक इसी शिकायत ने मारा।
दिये ने हौसला हारा ही कब था
उसे तो हवा की सियासत ने मारा।
कुछ दिन और भी जी लेता मगर
दिल को दिल की हिफाज़त ने मारा।
उससे जुड़े रहने की चाहत ने मारा।
शहर में कोई भी दुश्मन नहीं था
मिल कर रहने की आदत ने मारा।
बड़ी हसरत से तकती थी मुझको
उन आँखों की शरारत ने मारा।
साथ तेरा बहुत हसीन था मगर
हमको वहम की आदत ने मारा।
मुझ में किसी शय की कमी थी
उसे एक इसी शिकायत ने मारा।
दिये ने हौसला हारा ही कब था
उसे तो हवा की सियासत ने मारा।
कुछ दिन और भी जी लेता मगर
दिल को दिल की हिफाज़त ने मारा।
ईंट ईंट जोड़ कर मकान बनता है
सजाने से घर आलिशान बनता है।
ज़र्रा जो आसमान चूमकर आता है
सबकी नज़र में महान बनता है।
सनक नहीं चाहिए समझ चाहिए
समझ से आदमी इंसान बनता है।
कमाल तो सब ही करते हैं मगर
कोई आंसू ही मुस्कान बनता है।
ऐसे आदमी का करे क्या कोई
समझते हुए जो नादान बनता है।
काफिले से अलग चलता है जो
शख्श वही तो सुल्तान बनता है।
सजाने से घर आलिशान बनता है।
ज़र्रा जो आसमान चूमकर आता है
सबकी नज़र में महान बनता है।
सनक नहीं चाहिए समझ चाहिए
समझ से आदमी इंसान बनता है।
कमाल तो सब ही करते हैं मगर
कोई आंसू ही मुस्कान बनता है।
ऐसे आदमी का करे क्या कोई
समझते हुए जो नादान बनता है।
काफिले से अलग चलता है जो
शख्श वही तो सुल्तान बनता है।
साफ़ कहता हूँ हकलाता नहीं हूँ
गलत काम भी करवाता नहीं हूँ।
बची रहे शाख सदा ही जिस से
अनजाना वैभव जुटाता नहीं हूँ।
बुनियादी तौर से मजबूत हूँ मैं
तूफ़ान से भी घबराता नहीं हूँ।
जब तक दम है उम्र का क्या
दिल में नाउमीदी लाता नहीं हूँ।
कितनी दलीलें दिया करे कोई
किसी से शिकस्त खाता नहीं हूँ।
चुस्त दुरुस्त बना रहता हूँ सदा
किसी का बोझ बढाता नहीं हूँ।
ठेठ हिन्दुस्तानी हूँ दिल से मैं
विदेशी राग अपनाता नहीं हूँ।
मुंबई -१५ जून २०११
गलत काम भी करवाता नहीं हूँ।
बची रहे शाख सदा ही जिस से
अनजाना वैभव जुटाता नहीं हूँ।
बुनियादी तौर से मजबूत हूँ मैं
तूफ़ान से भी घबराता नहीं हूँ।
जब तक दम है उम्र का क्या
दिल में नाउमीदी लाता नहीं हूँ।
कितनी दलीलें दिया करे कोई
किसी से शिकस्त खाता नहीं हूँ।
चुस्त दुरुस्त बना रहता हूँ सदा
किसी का बोझ बढाता नहीं हूँ।
ठेठ हिन्दुस्तानी हूँ दिल से मैं
विदेशी राग अपनाता नहीं हूँ।
मुंबई -१५ जून २०११
Monday, June 13, 2011
आदमी गोरा हो या काला क्या फर्क पड़ता है
अखलाक अच्छा है कि बुरा इसका फर्क पड़ता है।
रिश्वत कितनी खिलाई क्या फर्क पड़ता है
काम हुआ या कि नहीं हुआ फर्क पड़ता है।
मेहनत से कमाई गई है या फिर लूट कर
दौलत सफ़ेद हो या काली क्या फर्क पड़ता है।
वक्त था लोग पैसा छोड़ देते थे आदर्श नहीं
आज पैसा है आदर्श नहीं क्या फर्क पड़ता है।
अब महत्ता मिलती है पैसे को या पद को
नजरिया बदल गया है इसका फर्क पड़ता है।
अखलाक अच्छा है कि बुरा इसका फर्क पड़ता है।
रिश्वत कितनी खिलाई क्या फर्क पड़ता है
काम हुआ या कि नहीं हुआ फर्क पड़ता है।
मेहनत से कमाई गई है या फिर लूट कर
दौलत सफ़ेद हो या काली क्या फर्क पड़ता है।
वक्त था लोग पैसा छोड़ देते थे आदर्श नहीं
आज पैसा है आदर्श नहीं क्या फर्क पड़ता है।
अब महत्ता मिलती है पैसे को या पद को
नजरिया बदल गया है इसका फर्क पड़ता है।
Friday, June 10, 2011
ज़ख्म अधूरा कभी सिया नहीं जाता
मुश्किल में हर वक्त रहा नहीं जाता।
सम्भलने में कुछ तो वक्त लगेगा
गम हर वक्त भी झेला नहीं जाता।
किसको फुरसत है यहाँ मरने की
मरने वाले के लिए मरा नहीं जाता।
मेरी महफ़िल में ही रहता है सदा
दर्द कहीं भी मेरे सिवा नहीं जाता।
सामने सर उठा कर चलूं कैसे तेरे
चेहरे पे मेरा नाम पढ़ा नहीं जाता।
तेरे शहर में हूँ मैं यही बहुत है
हर वक्त घर पर रहा नहीं जाता।
मसअला मसअला बना रहता है
जब तलक हल किया नहीं जाता।
चेहरे फूल से खिले लगते हैं सब
हर फूल को भी छुआ नहीं जाता।
मुश्किल में हर वक्त रहा नहीं जाता।
सम्भलने में कुछ तो वक्त लगेगा
गम हर वक्त भी झेला नहीं जाता।
किसको फुरसत है यहाँ मरने की
मरने वाले के लिए मरा नहीं जाता।
मेरी महफ़िल में ही रहता है सदा
दर्द कहीं भी मेरे सिवा नहीं जाता।
सामने सर उठा कर चलूं कैसे तेरे
चेहरे पे मेरा नाम पढ़ा नहीं जाता।
तेरे शहर में हूँ मैं यही बहुत है
हर वक्त घर पर रहा नहीं जाता।
मसअला मसअला बना रहता है
जब तलक हल किया नहीं जाता।
चेहरे फूल से खिले लगते हैं सब
हर फूल को भी छुआ नहीं जाता।
पेड़ लचीला था पर टूट गया
साथ पुराना था छूट गया।
रफ्तार तूफ़ान की तेज थी
अपनों से रिश्ता टूट गया।
दर्द का बखान अब करें कैसे
जिस पे भरोसा था टूट गया।
रंग है न खुशबु न फूल कोई
हवाओं में सब ही लुट गया।
उसको अठखेलियाँ सूझी थी
किसी का आबला फूट गया।
तुम्हारे गाल गुलनार हैं मुझसे
कहते हुए आइना टूट गया।
जिसे देख वो याद आ रहा था
ख़त हाथों से वह ही छूट गया।
अब गीत ग़ज़ल मैं लिखूं कैसे
कलम ही कहीं मेर छूट गया।
आबला-छाला
गुलनार-लाल
साथ पुराना था छूट गया।
रफ्तार तूफ़ान की तेज थी
अपनों से रिश्ता टूट गया।
दर्द का बखान अब करें कैसे
जिस पे भरोसा था टूट गया।
रंग है न खुशबु न फूल कोई
हवाओं में सब ही लुट गया।
उसको अठखेलियाँ सूझी थी
किसी का आबला फूट गया।
तुम्हारे गाल गुलनार हैं मुझसे
कहते हुए आइना टूट गया।
जिसे देख वो याद आ रहा था
ख़त हाथों से वह ही छूट गया।
अब गीत ग़ज़ल मैं लिखूं कैसे
कलम ही कहीं मेर छूट गया।
आबला-छाला
गुलनार-लाल
Wednesday, June 8, 2011
हवा भी चलती रहे दिया भी जलता रहे
ऐसा कुछ हो जाये काम सब चलता रहे।
नामुमकिन कुछ नहीं है यह भी जान ले
ख्याल दिल में सदा यह भी पलता रहे।
खामोशियाँ जान लेवा होती हैं बहुत
कहकहों में दिल उन्हें दफ़न करता रहे।
दुनिया को झुकादे कभी खुदको कभी
अकड़ कर रहे कभी कभी पिघलता रहे।
प्यार के वफ़ा के रिश्ते निभाता रहे
आदतें ऐसी हों की वजूद निखरता रहे।
आँखों में शर्म रहे जुबान भी नर्म रहे
दिल एहितराम भी सबका करता रहे।
ऐसा कुछ हो जाये काम सब चलता रहे।
नामुमकिन कुछ नहीं है यह भी जान ले
ख्याल दिल में सदा यह भी पलता रहे।
खामोशियाँ जान लेवा होती हैं बहुत
कहकहों में दिल उन्हें दफ़न करता रहे।
दुनिया को झुकादे कभी खुदको कभी
अकड़ कर रहे कभी कभी पिघलता रहे।
प्यार के वफ़ा के रिश्ते निभाता रहे
आदतें ऐसी हों की वजूद निखरता रहे।
आँखों में शर्म रहे जुबान भी नर्म रहे
दिल एहितराम भी सबका करता रहे।
Tuesday, June 7, 2011
एक बार लब से छुआ कर तो देखिये
चीज़ लाजवाब है पी कर तो देखिये।
बड़ी हसीं शय है कहते हैं इसे शराब
दवा दर्दे दिल है आजमाकर तो देखिये।
उदासी खराशें थकान मिट जाएँगी
जाम से जाम टकरा कर तो देखिये।
गम ही गम हैं यहाँ कौन कहता है
ख़ुशी महक उठेंगी पीकर तो देखिये।
इसका अलग निजाम है जान जाओगे
इसके साथ जरा लहरा कर तो देखिये।
तहे दिल से करोगे इसे तुम सलाम
एक बार अपना बना कर तो देखिये।
चीज़ लाजवाब है पी कर तो देखिये।
बड़ी हसीं शय है कहते हैं इसे शराब
दवा दर्दे दिल है आजमाकर तो देखिये।
उदासी खराशें थकान मिट जाएँगी
जाम से जाम टकरा कर तो देखिये।
गम ही गम हैं यहाँ कौन कहता है
ख़ुशी महक उठेंगी पीकर तो देखिये।
इसका अलग निजाम है जान जाओगे
इसके साथ जरा लहरा कर तो देखिये।
तहे दिल से करोगे इसे तुम सलाम
एक बार अपना बना कर तो देखिये।
लकीर चेहरे पर उम्र का पता देती है
लकीर हाथ की मुकद्दर का पता देती है।
हवा नमकीन समंदर से उड़के आती है
उदास हो तो टूटे जिगर का पता देती है।
बेहद प्यार से संवारते हैं हम घर को
उजड़ी हवेली खंडहर का पता देती है।
दुखों का बंटवारा कर नहीं पाते हम
ख़ुशी किसी धरोहर का पता देती है।
कभी हंसी कोई जान निकाल देती है
कोई दिल के अन्दर का पता देती है।
गाँव बनावटीपन से बहुत दूर होता है
रोटी दिल लुभाते शहर का पता देती है।
लकीर हाथ की मुकद्दर का पता देती है।
हवा नमकीन समंदर से उड़के आती है
उदास हो तो टूटे जिगर का पता देती है।
बेहद प्यार से संवारते हैं हम घर को
उजड़ी हवेली खंडहर का पता देती है।
दुखों का बंटवारा कर नहीं पाते हम
ख़ुशी किसी धरोहर का पता देती है।
कभी हंसी कोई जान निकाल देती है
कोई दिल के अन्दर का पता देती है।
गाँव बनावटीपन से बहुत दूर होता है
रोटी दिल लुभाते शहर का पता देती है।
जिंदगी पाँव में घुँघरू बंधा देती है
जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है।
सुबह और होती है शाम कुछ और
गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है।
कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ
कभी कोई भी सजा दिला देती है।
चादर ओढ़ लेती है आशनाई की
हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है।
चलते चलते थक जाती है जिस शाम
मुसाफिर को कहीं भी सुला देती है।
आशनाई -अपरिचय
जब चाहे जैसे चाहे नचा देती है।
सुबह और होती है शाम कुछ और
गम कभी ख़ुशी के नगमें गवा देती है।
कहती नहीं कुछ सुनती नहीं कुछ
कभी कोई भी सजा दिला देती है।
चादर ओढ़ लेती है आशनाई की
हंसता हुआ चेहरा बुझा देती है।
चलते चलते थक जाती है जिस शाम
मुसाफिर को कहीं भी सुला देती है।
आशनाई -अपरिचय
Saturday, June 4, 2011
जवानी अपनी जवानी पर थी
निगाहें उसकी जवानी पर थी।
अज़ब खुमारी का माहौल था
दीवानगी पूरी दीवानी पर थी।
किसी को अपनी परवा न थी
शर्त भी रूहे-कुर्बानी की थी।
हुस्न भी सचमुच का हुस्न था
खुशबु भी तो जाफरानी पर थी।
वक़्त का पता नहीं कटा कैसे
चर्चा दिल की नादानी पर थी।
तैरने वाले भी तैरते भला कैसे
दरिया ए इश्क उफानी पर थी।
निगाहें उसकी जवानी पर थी।
अज़ब खुमारी का माहौल था
दीवानगी पूरी दीवानी पर थी।
किसी को अपनी परवा न थी
शर्त भी रूहे-कुर्बानी की थी।
हुस्न भी सचमुच का हुस्न था
खुशबु भी तो जाफरानी पर थी।
वक़्त का पता नहीं कटा कैसे
चर्चा दिल की नादानी पर थी।
तैरने वाले भी तैरते भला कैसे
दरिया ए इश्क उफानी पर थी।
Thursday, June 2, 2011
न बादल होता न बरसात होती
दिन अगर न होता न रात होती।
गम ही न होता अगर जिंदगी में
बहार से भी न मुलाक़ात होती।
नए लोगों की जो आमद न होती
रंगों से कैसे फिर मुलाक़ात होती।
लफ्ज़ ख़ूबसूरत लिखने न आते
मुहब्बत में हमें फिर मात होती।
अच्छा है रही न कोई भी तलब
मिटती हुई उमीदें-हालात होती।
खुशबु-ऐ-हिना उड़कर आई थी
मिल जाती कुछ और बात होती।
जुर्म जिसका था सजा उसे मिलती
हुज्ज़त की न कोई बात होती।
अंगड़ाइयों से बदन टूट जाता
बरसात की अगर यह रात होती।
दिन अगर न होता न रात होती।
गम ही न होता अगर जिंदगी में
बहार से भी न मुलाक़ात होती।
नए लोगों की जो आमद न होती
रंगों से कैसे फिर मुलाक़ात होती।
लफ्ज़ ख़ूबसूरत लिखने न आते
मुहब्बत में हमें फिर मात होती।
अच्छा है रही न कोई भी तलब
मिटती हुई उमीदें-हालात होती।
खुशबु-ऐ-हिना उड़कर आई थी
मिल जाती कुछ और बात होती।
जुर्म जिसका था सजा उसे मिलती
हुज्ज़त की न कोई बात होती।
अंगड़ाइयों से बदन टूट जाता
बरसात की अगर यह रात होती।
आज की रात यूं ही गुज़र जाने दे
पहलू में नई शय उभर जाने दे।
तेरी रज़ा में ही मैं ढल जाऊँगा
कतरा बनके मुझे बिखर जाने दे।
बहुत शोर मचा है जिंदगी में तो
तन्हाई में भी तूफ़ान भर जाने दे।
यादों का आना जाना लगा रहेगा
सीने में कुछ देर दर्द ठहर जाने दे।
अँधेरे की फितरत से वाकिफ हूँ
आँगन में बस सहर उतर जाने दे।
आसमां जमीं पर ही उतर आएगा
शून्य को तह दर तह भर जाने दे।
मुर्दे में भी जान आ ही जाएगी
एहसास से जरा उसे भर जाने दे।
आवाज़ देकर बुला लेना कभी भी
इस वक़्त मुझे पार उतर जाने दे।
पहलू में नई शय उभर जाने दे।
तेरी रज़ा में ही मैं ढल जाऊँगा
कतरा बनके मुझे बिखर जाने दे।
बहुत शोर मचा है जिंदगी में तो
तन्हाई में भी तूफ़ान भर जाने दे।
यादों का आना जाना लगा रहेगा
सीने में कुछ देर दर्द ठहर जाने दे।
अँधेरे की फितरत से वाकिफ हूँ
आँगन में बस सहर उतर जाने दे।
आसमां जमीं पर ही उतर आएगा
शून्य को तह दर तह भर जाने दे।
मुर्दे में भी जान आ ही जाएगी
एहसास से जरा उसे भर जाने दे।
आवाज़ देकर बुला लेना कभी भी
इस वक़्त मुझे पार उतर जाने दे।
मैंने तेरे नाम चाहतें लिख दी
आँखों की तमाम हसरतें लिख दी।
रंग जो हवा में बिखर गये थे
ढूँढने की उन्हें सिफारिशें लिख दी।
अपनी मुहब्बत तुझे सुपुर्द कर
तेरे नाम सारी वहशतें लिख दी।
खुशबु उड़ाती तेरी शामों के नाम
बहार की सब नर्मआहटें लिख दी।
चमकते जुगनुओं की कतार में
ख़ुशी की मैंने वसीयतें लिख दी।
किस जुबां से तुझे शुक्रिया दूं मैं
अपने हाथों में तेरी लकीरें लिख दी।
तुझे खबर नहीं दी अपने होने की
फिर भी तेरे नाम साजिशें लिख दी।
आँखों की तमाम हसरतें लिख दी।
रंग जो हवा में बिखर गये थे
ढूँढने की उन्हें सिफारिशें लिख दी।
अपनी मुहब्बत तुझे सुपुर्द कर
तेरे नाम सारी वहशतें लिख दी।
खुशबु उड़ाती तेरी शामों के नाम
बहार की सब नर्मआहटें लिख दी।
चमकते जुगनुओं की कतार में
ख़ुशी की मैंने वसीयतें लिख दी।
किस जुबां से तुझे शुक्रिया दूं मैं
अपने हाथों में तेरी लकीरें लिख दी।
तुझे खबर नहीं दी अपने होने की
फिर भी तेरे नाम साजिशें लिख दी।
Tuesday, May 31, 2011
बात कर लेते तो कुछ बात हो जाती
नई शायद कोई करामात हो जाती।
लफ्जों का सहारा मिल जाता आँखों को
दिलों की आपस में ही बात हो जाती।
जाने वाले आवाज़ देते नहीं कभी भी
अगर पुकार लेते मुलाक़ात हो जाती।
रुखसती का इल्म पहले से अगर होता
करवटों के नाम ही सारी रात हो जाती।
कमाल शख्श था बस चेहरा देखता रहा
जुल्फें तराश देता तो बरसात हो जाती।
वक़्त अगर रुक रुक कर ही चलता तो
आशिकी में भी कोई नई बात हो जाती।
मुझसे मेरी पहचान गुम नहीं होती जो
समय रहते आईने से मुलाक़ात हो जाती।
नई शायद कोई करामात हो जाती।
लफ्जों का सहारा मिल जाता आँखों को
दिलों की आपस में ही बात हो जाती।
जाने वाले आवाज़ देते नहीं कभी भी
अगर पुकार लेते मुलाक़ात हो जाती।
रुखसती का इल्म पहले से अगर होता
करवटों के नाम ही सारी रात हो जाती।
कमाल शख्श था बस चेहरा देखता रहा
जुल्फें तराश देता तो बरसात हो जाती।
वक़्त अगर रुक रुक कर ही चलता तो
आशिकी में भी कोई नई बात हो जाती।
मुझसे मेरी पहचान गुम नहीं होती जो
समय रहते आईने से मुलाक़ात हो जाती।
Monday, May 23, 2011
इतनी बेरूखी कभी अच्छी नहीं
ज्यादा दीवानगी भी अच्छी नहीं।
फासला जरूरी चाहिए बीच में
इतनी दिल्लगी भी अच्छी नहीं।
मेहमान नवाजी अच्छी लगती है
सदा बेत्क्लुफ्फी भी अच्छी नहीं।
कहते हैं प्यार अँधा होता है मगर
आँखों की बेलिहाज़ी भी अच्छी नहीं।
हर बात का एक दस्तूर होता है
प्यार में खुदगर्जी भी अच्छी नहीं।
वायदे तो खुबसूरत होते हैं बहुत
वायदा-खिलाफी भी अच्छी नहीं।
ज्यादा दीवानगी भी अच्छी नहीं।
फासला जरूरी चाहिए बीच में
इतनी दिल्लगी भी अच्छी नहीं।
मेहमान नवाजी अच्छी लगती है
सदा बेत्क्लुफ्फी भी अच्छी नहीं।
कहते हैं प्यार अँधा होता है मगर
आँखों की बेलिहाज़ी भी अच्छी नहीं।
हर बात का एक दस्तूर होता है
प्यार में खुदगर्जी भी अच्छी नहीं।
वायदे तो खुबसूरत होते हैं बहुत
वायदा-खिलाफी भी अच्छी नहीं।
किताब आदमी को आदमी बनाती है
बेकद्री इनकी दिल को जख्मी बनाती है।
किताब कोई कभी भी भारी नहीं होती
किताब आदमी को पढना सिखाती है।
अदब आदमी जब सब भूल जाता है
किताब ही तब तहजीब सिखाती है।
उसके हर सफ़े पर लिखी हुई इबारत
सारी जिंदगी का एहसास दिलाती है।
किताबों के संग बुरा सलूक मत करना
यह मिलने जुलने के ढंग सिखाती है।
कभी रुलाती है कभी बहुत हंसाती है
नहीं किसी को ये कभी भरमाती है।
बेकद्री इनकी दिल को जख्मी बनाती है।
किताब कोई कभी भी भारी नहीं होती
किताब आदमी को पढना सिखाती है।
अदब आदमी जब सब भूल जाता है
किताब ही तब तहजीब सिखाती है।
उसके हर सफ़े पर लिखी हुई इबारत
सारी जिंदगी का एहसास दिलाती है।
किताबों के संग बुरा सलूक मत करना
यह मिलने जुलने के ढंग सिखाती है।
कभी रुलाती है कभी बहुत हंसाती है
नहीं किसी को ये कभी भरमाती है।
घाव ठीक हो गया दर्द अभी बाकी है
पेड़ पर पत्ता कोई ज़र्द अभी बाकी है।
सजल नर्म चांदनी तो खो गयी रात में
धूप निकल गयी हवा सर्द अभी बाकी है।
आइना तू मुस्कराना न भूलना कभी
चेहरे पर जमी हुई गर्द अभी बाकी है।
इंसान मर चूका इंसान के अन्दर का
अन्दर का शैतान मर्द अभी बाकी है।
जाने किस हाल में हैं आगे चले गये वो
यहाँ तो सफ़र की गर्द अभी बाकी है।
मेरे हाथों की लिखी हुई तहरीर में
वहशते-दिल का दर्द अभी बाकी है।
पेड़ पर पत्ता कोई ज़र्द अभी बाकी है।
सजल नर्म चांदनी तो खो गयी रात में
धूप निकल गयी हवा सर्द अभी बाकी है।
आइना तू मुस्कराना न भूलना कभी
चेहरे पर जमी हुई गर्द अभी बाकी है।
इंसान मर चूका इंसान के अन्दर का
अन्दर का शैतान मर्द अभी बाकी है।
जाने किस हाल में हैं आगे चले गये वो
यहाँ तो सफ़र की गर्द अभी बाकी है।
मेरे हाथों की लिखी हुई तहरीर में
वहशते-दिल का दर्द अभी बाकी है।
Saturday, May 21, 2011
बेरुखी ऐसी की छिपाए न बने
बेबसी ऐसी की बताए न बने।
वो रु-ब-रु भी इस तरह से हुए
उनको देखे न बने लजाए न बने।
उनके हाथों की हरारत नर्म सी
हाथ छोड़े न बने सहलाए न बने।
चेहरा निखरता गया हर एक पल
महक छिप न सके उडाए न बने।
वक्त अच्छा था गुज़र गया जल्दी
याद आए न बने भुलाए न बने।
बहुत जानलेवा बना है सन्नाटा
घर रहते न बने कहीं जाते न बने।
बेबसी ऐसी की बताए न बने।
वो रु-ब-रु भी इस तरह से हुए
उनको देखे न बने लजाए न बने।
उनके हाथों की हरारत नर्म सी
हाथ छोड़े न बने सहलाए न बने।
चेहरा निखरता गया हर एक पल
महक छिप न सके उडाए न बने।
वक्त अच्छा था गुज़र गया जल्दी
याद आए न बने भुलाए न बने।
बहुत जानलेवा बना है सन्नाटा
घर रहते न बने कहीं जाते न बने।
Friday, May 20, 2011
शाम होते ही शरारतों की याद आती है
चमकती तेरी आँखों की याद आती है।
वक़्त वह जब एक दूसरे को देखा था
महकते फूल से लम्हों की याद आती है।
सर-ता-पा तुझे आज तक भूला नहीं हूँ
मिट्टी से सने तेरे पावों की याद आती है।
मुहब्बत की फिजाओं में उस सफ़र की
खाई कौलों कसमों की याद आती है।
उन दिनों मैं मर मर कर जिया था
उस उम्र के कई जन्मों की याद आती है।
चिलचिलाती जेठ की तपती दुपहरी में
साया देते तेरे गेसूओं की याद आती है।
कहीं रहो तुम रहो खैरियत के साथ
दिल को इन्ही दुआओं की याद आती है।
चमकती तेरी आँखों की याद आती है।
वक़्त वह जब एक दूसरे को देखा था
महकते फूल से लम्हों की याद आती है।
सर-ता-पा तुझे आज तक भूला नहीं हूँ
मिट्टी से सने तेरे पावों की याद आती है।
मुहब्बत की फिजाओं में उस सफ़र की
खाई कौलों कसमों की याद आती है।
उन दिनों मैं मर मर कर जिया था
उस उम्र के कई जन्मों की याद आती है।
चिलचिलाती जेठ की तपती दुपहरी में
साया देते तेरे गेसूओं की याद आती है।
कहीं रहो तुम रहो खैरियत के साथ
दिल को इन्ही दुआओं की याद आती है।
आज दूरियां सिमटना चाह रही थी
आंधी बनकर लिपटना चाह रही थी।
ख्वाहिशों का कोई भी अंत नहीं था
हसरतें उड़ान भरना चाह रही थी।
कटने का उसे डर नहीं था जरा भी
पतंग ऊँची उड़ना चाह रही थी।
राज़ कोई न जान सका आज तक
मीरा क्यों जोगन बनना चाह रही थी।
पहाड़ों पर बर्फ पिघली जा रही थी
खुशबु जाफरानी बनना चाह रही थी।
लोग बड़े प्यार से सुन रहे थे सब
ग़ज़ल लब से निकलना चाह रही थी।
कौन है जिसने बुझा डाले थे चिराग
रात और आगे बढ़ना चाह रही थी।
आंधी बनकर लिपटना चाह रही थी।
ख्वाहिशों का कोई भी अंत नहीं था
हसरतें उड़ान भरना चाह रही थी।
कटने का उसे डर नहीं था जरा भी
पतंग ऊँची उड़ना चाह रही थी।
राज़ कोई न जान सका आज तक
मीरा क्यों जोगन बनना चाह रही थी।
पहाड़ों पर बर्फ पिघली जा रही थी
खुशबु जाफरानी बनना चाह रही थी।
लोग बड़े प्यार से सुन रहे थे सब
ग़ज़ल लब से निकलना चाह रही थी।
कौन है जिसने बुझा डाले थे चिराग
रात और आगे बढ़ना चाह रही थी।
मरने के बाद जिंदगी जैसा कुछ नहीं होता
स्वर्ग नरक कहते हैं वैसा कुछ नहीं होता।
कहने की बात है कहानी परियों की सी है
मरने के बाद जीने जैसा कुछ नहीं होता।
चिर निंद्रा में सो जाता है इन्सान जब भी
जगने जगाने जैसा वैसा कुछ नहीं होता।
दिल के अंदर झाँक सके तो झाँक देख ले
मन्दिर में भगवान जैसा कुछ नहीं होता।
जोगन बनना मीरा का बुद्ध का घर छोड़ना
लौ लग गई फिर ऐसा वैसा कुछ नहीं होता।
शब् के नसीब में तारीकियाँ हैं सदियों की
जलते दीयों से दिन जैसा कुछ नहीं होता।
ईद दिवाली होली क्रिसमस या बैसाखी
मुफलिसी में त्यौहार वैसा कुछ नहीं होता।
स्वर्ग नरक कहते हैं वैसा कुछ नहीं होता।
कहने की बात है कहानी परियों की सी है
मरने के बाद जीने जैसा कुछ नहीं होता।
चिर निंद्रा में सो जाता है इन्सान जब भी
जगने जगाने जैसा वैसा कुछ नहीं होता।
दिल के अंदर झाँक सके तो झाँक देख ले
मन्दिर में भगवान जैसा कुछ नहीं होता।
जोगन बनना मीरा का बुद्ध का घर छोड़ना
लौ लग गई फिर ऐसा वैसा कुछ नहीं होता।
शब् के नसीब में तारीकियाँ हैं सदियों की
जलते दीयों से दिन जैसा कुछ नहीं होता।
ईद दिवाली होली क्रिसमस या बैसाखी
मुफलिसी में त्यौहार वैसा कुछ नहीं होता।
Wednesday, May 18, 2011
प्यादे बहुत मिले कोई वज़ीर न मिला
सबकुछ लुटा दे ऐसा दानवीर न मिला।
जिसे दरम चाहिए न चाहिए दीनार
ऐसा कोई मौला या फकीर न मिला।
अपनी फकीरी में ही मस्त रहता हो
फिर ऐसा कोई संत कबीर न मिला।
प्यार के किस्से सारे पुराने हो चले
अब रांझा ढूंढता अपनी हीर न मिला।
जख्म ठीक कर दे जो बिना दवा के
हमें ऐसा मसीहा या पीर न मिला।
खुद ही उड़ कर लग जाए माथे से
ऐसा भी गुलाल और अबीर न मिला।
किस्मत को कोसते हुए सारे मिले
लिखता कोई अपनी तकदीर न मिला।
सबकुछ लुटा दे ऐसा दानवीर न मिला।
जिसे दरम चाहिए न चाहिए दीनार
ऐसा कोई मौला या फकीर न मिला।
अपनी फकीरी में ही मस्त रहता हो
फिर ऐसा कोई संत कबीर न मिला।
प्यार के किस्से सारे पुराने हो चले
अब रांझा ढूंढता अपनी हीर न मिला।
जख्म ठीक कर दे जो बिना दवा के
हमें ऐसा मसीहा या पीर न मिला।
खुद ही उड़ कर लग जाए माथे से
ऐसा भी गुलाल और अबीर न मिला।
किस्मत को कोसते हुए सारे मिले
लिखता कोई अपनी तकदीर न मिला।
धूप भी प्यार का ही एहसास है
लगता है जैसे कोई आस पास है।
पहाड़ों का दिल चीर देती है रात
दिन का होना सुख का एहसास है।
गुलाबी ठंड के साथ ताप जरूरी है
दर्द ही रौशनी का भी विश्वास है।
अर्श से फर्श पर आना आसान है
फर्श से अर्श तक जाना ही खास है।
चाँद के चेहरे पर दर्द पसरा है
रेत का बिस्तर चांदनी का वास है।
यह कहानी भी हमे सदा याद है
आँखों को आंसुओं की प्यास है।
सीमाएं अपनी जानता हूँ मैं
जबतक सांस है दिल में आस है।
वो मुझे पूछते हैं मेरा ही वजूद
प्यार करना ही मेरा इतिहास है।
काम मेरा रुका कभी भी नहीं
उस पर मुझे इतना विश्वास है।
लगता है जैसे कोई आस पास है।
पहाड़ों का दिल चीर देती है रात
दिन का होना सुख का एहसास है।
गुलाबी ठंड के साथ ताप जरूरी है
दर्द ही रौशनी का भी विश्वास है।
अर्श से फर्श पर आना आसान है
फर्श से अर्श तक जाना ही खास है।
चाँद के चेहरे पर दर्द पसरा है
रेत का बिस्तर चांदनी का वास है।
यह कहानी भी हमे सदा याद है
आँखों को आंसुओं की प्यास है।
सीमाएं अपनी जानता हूँ मैं
जबतक सांस है दिल में आस है।
वो मुझे पूछते हैं मेरा ही वजूद
प्यार करना ही मेरा इतिहास है।
काम मेरा रुका कभी भी नहीं
उस पर मुझे इतना विश्वास है।
कोई अपने वायदे से मुकर गया
कोई बात अपनी पूरी कर गया।
किसी सरहद ने उसे रोका नहीं
सफ़र अपना वो तय कर गया।
नाम उसका दिल से मिट गया
गुम हुए जिसे वक़्त गुज़र गया।
सिर्फ एक बार हुई मुझसे गल्ती
वह हर बार गलतियाँ ही कर गया।
आँखों के सहरा में नमी सी लिए
मेरी रूह तक तर बतर कर गया।
शाम से सुबह कटी मुश्किल से
ख्वाब वो सारे सिफ़र कर गया।
मुहब्बत करने वाले कम नहीं होंगे
एक पागल यह खबर कर गया।
जीने की तमन्ना फिर जग उठी
कोई दिल दिल में ऐसे उतर गया।
कोई बात अपनी पूरी कर गया।
किसी सरहद ने उसे रोका नहीं
सफ़र अपना वो तय कर गया।
नाम उसका दिल से मिट गया
गुम हुए जिसे वक़्त गुज़र गया।
सिर्फ एक बार हुई मुझसे गल्ती
वह हर बार गलतियाँ ही कर गया।
आँखों के सहरा में नमी सी लिए
मेरी रूह तक तर बतर कर गया।
शाम से सुबह कटी मुश्किल से
ख्वाब वो सारे सिफ़र कर गया।
मुहब्बत करने वाले कम नहीं होंगे
एक पागल यह खबर कर गया।
जीने की तमन्ना फिर जग उठी
कोई दिल दिल में ऐसे उतर गया।
वक़्त नहीं है कहते कहते वक़्त निकल गया
जुबान से हर वक़्त यही जुबला फिसल गया।
दिल से सोचने का कभी वक़्त नहीं मिला
दिमाग से सोचने में सारा वक़्त निकल गया।
खून के रिश्तों की बोली पैसों में लग गई
निज़ाम जमाने का किस क़दर बदल गया।
बुलाने वाले ने बुलाया हम ही रुके नहीं
अब तो वह भी बहुत आगे निकल गया।
हमें तो खा गई शर्त साथ साथ रहने की
वह शहर में रहा और घर ही बदल गया।
दिल मोम का बना है नहीं बना पत्थर का
जरा सी आंच पाते एक दम पिघल गया।
इतना प्यार हो गया है इस जिस्म से हमे
चोट खाकर दिलफिर झट से संभल गया।
तुम मिले मुझ को कुछ ऐसी अदा से
ग़ज़ल को मेरी खुबसूरत मिसरा मिल गया।
जुबान से हर वक़्त यही जुबला फिसल गया।
दिल से सोचने का कभी वक़्त नहीं मिला
दिमाग से सोचने में सारा वक़्त निकल गया।
खून के रिश्तों की बोली पैसों में लग गई
निज़ाम जमाने का किस क़दर बदल गया।
बुलाने वाले ने बुलाया हम ही रुके नहीं
अब तो वह भी बहुत आगे निकल गया।
हमें तो खा गई शर्त साथ साथ रहने की
वह शहर में रहा और घर ही बदल गया।
दिल मोम का बना है नहीं बना पत्थर का
जरा सी आंच पाते एक दम पिघल गया।
इतना प्यार हो गया है इस जिस्म से हमे
चोट खाकर दिलफिर झट से संभल गया।
तुम मिले मुझ को कुछ ऐसी अदा से
ग़ज़ल को मेरी खुबसूरत मिसरा मिल गया।
Sunday, May 8, 2011
मदर डे पर
तू हर एक से जुदा है मां
प्रार्थना और दुआ है मां।
मां के नाम का मोल नहीं
सन्तान का भला है मां।
मां के पैरों में ज़न्नत है
ममता का झूला है मां।
मां सुकून है दिल का
जख्मों पर दवा है मां।
कितनी अच्छी भोली है
लोरी है निंदिया है मां।
हमने देखा नहीं जिसे है
ईश्वर का पता है मां।
शत शत प्रणाम है तुझे
लक्ष्मी है व दुर्गा है मां।
प्रार्थना और दुआ है मां।
मां के नाम का मोल नहीं
सन्तान का भला है मां।
मां के पैरों में ज़न्नत है
ममता का झूला है मां।
मां सुकून है दिल का
जख्मों पर दवा है मां।
कितनी अच्छी भोली है
लोरी है निंदिया है मां।
हमने देखा नहीं जिसे है
ईश्वर का पता है मां।
शत शत प्रणाम है तुझे
लक्ष्मी है व दुर्गा है मां।
Friday, May 6, 2011
पत्थरों का खाक बनके उड़ना अभी बाकी है
फलक का टूट कर बिखरना अभी बाकी है।
रेत में तब्दील हो रही हैं नदियाँ सारी
आदमी का पत्थर में बदलना अभी बाकी है।
जिंदगी पर तो बस नहीं चल सका कोई
मौत को ही परेशान करना अभी बाकी है।
नाम सुनते रहे चीजों का देखी न कभी
दिल के कोने में बचपना अभी बाकी है।
कौन खुश है और कौन ना खुश है यहाँ
ठिकानो का हिसाब रखना अभी बाकी है।
अपने सूखे हुए जख्म सबने दिखा दिए
मुझे अपना हाल कहना अभी बाकी है।
पाँव रखना होशियारी से सम्भाल कर
दर्द पुराने जख्म का सहना अभी बाकी है।
मुकदमे का फैसला हो भी कैसे जाता
लाख का खोके में बदलना अभी बाकी है।
दिलों की धडकनों को खोज है लफ्जों की
ग़ज़ल का कहना सुनना अभी बाकी है।
फलक का टूट कर बिखरना अभी बाकी है।
रेत में तब्दील हो रही हैं नदियाँ सारी
आदमी का पत्थर में बदलना अभी बाकी है।
जिंदगी पर तो बस नहीं चल सका कोई
मौत को ही परेशान करना अभी बाकी है।
नाम सुनते रहे चीजों का देखी न कभी
दिल के कोने में बचपना अभी बाकी है।
कौन खुश है और कौन ना खुश है यहाँ
ठिकानो का हिसाब रखना अभी बाकी है।
अपने सूखे हुए जख्म सबने दिखा दिए
मुझे अपना हाल कहना अभी बाकी है।
पाँव रखना होशियारी से सम्भाल कर
दर्द पुराने जख्म का सहना अभी बाकी है।
मुकदमे का फैसला हो भी कैसे जाता
लाख का खोके में बदलना अभी बाकी है।
दिलों की धडकनों को खोज है लफ्जों की
ग़ज़ल का कहना सुनना अभी बाकी है।
Wednesday, May 4, 2011
उस उम्र में कभी फुरसत नहीं मिली
इस उम्र में हमको चाहत नहीं मिली।
सब वक़्त और किस्मत की बात है
वक़्त रहते हमें किस्मत नहीं मिली।
सबको मिल जाती है कभी भी कहीं भी
मुझे अपनी ही बस उल्फत नहीं मिली।
मुश्किलें सारी शायद आसान हो जाती
कभी मुझको अपनी जरूरत नहीं मिली।
आँखों में ढेर सारा समंदर ही भरा रहा
हिस्से की मेरे धूप खुबसूरत नहीं मिली।
अब कौन अपना कहने सुनने वाला है
वक़्त रहते ही कभी मुहलत नहीं मिली।
इस उम्र में हमको चाहत नहीं मिली।
सब वक़्त और किस्मत की बात है
वक़्त रहते हमें किस्मत नहीं मिली।
सबको मिल जाती है कभी भी कहीं भी
मुझे अपनी ही बस उल्फत नहीं मिली।
मुश्किलें सारी शायद आसान हो जाती
कभी मुझको अपनी जरूरत नहीं मिली।
आँखों में ढेर सारा समंदर ही भरा रहा
हिस्से की मेरे धूप खुबसूरत नहीं मिली।
अब कौन अपना कहने सुनने वाला है
वक़्त रहते ही कभी मुहलत नहीं मिली।
Monday, May 2, 2011
सिलसिला प्यार का मिलता चला गया
जिस्म ज़ाफ़रान सा महकता चला गया।
गेसू उस शोख ने अपने लहराए जैसे ही
इन्द्रधनुष जमीन पर उतरता चला गया।
तितलियाँ सब उड़ने को बैचैन हो उठी
फिजाओं में शहद घुलता चला गया।
इस अदा से बेनकाब हुआ वो लाजवाब
खुशियों में रंग नया भरता चला गया।
मन में उमंगों की मस्ती सी छा गयी
जाम पर जाम खुद भरता चला गया।
आँख मिलने की ही जैसे बस देर थी
सुखन को लहजा मिलता चला गया।
सुखन- साहित्य
जिस्म ज़ाफ़रान सा महकता चला गया।
गेसू उस शोख ने अपने लहराए जैसे ही
इन्द्रधनुष जमीन पर उतरता चला गया।
तितलियाँ सब उड़ने को बैचैन हो उठी
फिजाओं में शहद घुलता चला गया।
इस अदा से बेनकाब हुआ वो लाजवाब
खुशियों में रंग नया भरता चला गया।
मन में उमंगों की मस्ती सी छा गयी
जाम पर जाम खुद भरता चला गया।
आँख मिलने की ही जैसे बस देर थी
सुखन को लहजा मिलता चला गया।
सुखन- साहित्य
दर्द रिश्तों से हर पल रिसता था
सीने में गम ही गम पलता था।
टूट जाऊँगा मैं रिश्तों की तरह से
दिल बार बार बस यही कहता था।
दिन गिनती के ही रह गएथे कुछ
दिल इस बात से सहमा रहता था।
चंद रोज़ जिंदगी के बढ़ भी जाते
सितम मगर दिल बहुत सहता था।
अब वक़्त बचा न ही बची किस्मत
दोनों में कभी मेल बहुत रहता था।
शायद आखिरी शाम लौट आये वो
दिल में ख्याल सदा यही रहता था।
सीने में गम ही गम पलता था।
टूट जाऊँगा मैं रिश्तों की तरह से
दिल बार बार बस यही कहता था।
दिन गिनती के ही रह गएथे कुछ
दिल इस बात से सहमा रहता था।
चंद रोज़ जिंदगी के बढ़ भी जाते
सितम मगर दिल बहुत सहता था।
अब वक़्त बचा न ही बची किस्मत
दोनों में कभी मेल बहुत रहता था।
शायद आखिरी शाम लौट आये वो
दिल में ख्याल सदा यही रहता था।
पत्तों में इतनी सरसराहट क्यों है
दर पर अज़ब सी आहट क्यों है।
हमने कर ली है दिल से सुलह
सांसों में मगर थरथराहट क्यों है।
तूफ़ान भी गुज़र गया कभी का
बादलों में अब गडगडाहट क्यों है।
ठोकर कभी मायूसी कभी हादसा
पावों में इतनी लडखडाहट क्यों है।
बेटा जा रहा है शहर नौकरी करने
दिल में माँ के घबराहट क्यों है।
दिये ने तो जलना है तमाम रात
हवा में इतनी कंपकंपाहट क्यों है।
दर पर अज़ब सी आहट क्यों है।
हमने कर ली है दिल से सुलह
सांसों में मगर थरथराहट क्यों है।
तूफ़ान भी गुज़र गया कभी का
बादलों में अब गडगडाहट क्यों है।
ठोकर कभी मायूसी कभी हादसा
पावों में इतनी लडखडाहट क्यों है।
बेटा जा रहा है शहर नौकरी करने
दिल में माँ के घबराहट क्यों है।
दिये ने तो जलना है तमाम रात
हवा में इतनी कंपकंपाहट क्यों है।
Wednesday, April 27, 2011
है अपनी ज़मीं अपना आसमां
दोनों ही मुझ पर हैं मेहरबां।
भरोसा खुद पर है मुझे इतना
पूरे होंगे अपने सारे अरमां।
काम करते हैं मेहनत से हम
नहीं उड़ाते खाके-बयाबां।
बोते हैं फसलें सदा ही शादाब
हम नहीं हैं हल्क़-ऐ-बाजीगरां।
सारा जहां हमारा है कहते हैं हम
बदल कर रहेंगे तस्वीरे-जहां।
याद करेगा हमें जमाना सदा
छोड़ कर जायेंगे हम ऐसे निशां।
खाक-ऐ- बयाबां --वीराने की धूल
शादाब -- हरी भरी
हल्क़-ऐ- बाजीगरां --तमाशा दिखाने
वालों के झुण्ड
दोनों ही मुझ पर हैं मेहरबां।
भरोसा खुद पर है मुझे इतना
पूरे होंगे अपने सारे अरमां।
काम करते हैं मेहनत से हम
नहीं उड़ाते खाके-बयाबां।
बोते हैं फसलें सदा ही शादाब
हम नहीं हैं हल्क़-ऐ-बाजीगरां।
सारा जहां हमारा है कहते हैं हम
बदल कर रहेंगे तस्वीरे-जहां।
याद करेगा हमें जमाना सदा
छोड़ कर जायेंगे हम ऐसे निशां।
खाक-ऐ- बयाबां --वीराने की धूल
शादाब -- हरी भरी
हल्क़-ऐ- बाजीगरां --तमाशा दिखाने
वालों के झुण्ड
खिंची लकीरें रेत पर मिटती चली गई
तीरगी उजालों में सिमटती चली गई।
बात कल और थी है आज कुछ और
जिंदगी इसी तरह कटती चली गई।
जरूरतें हथेली पर बिखरी नहीं लगती
सब महंगाई के गले लगती चली गई।
कन्धा कोई न मिला क़द उंचा करने को
बड़ा दिखने की आरज़ू घटती चली गई।
एक रिश्ता था दोनों के बीच कल तलक
दोस्ती दुश्मनी में सिमटती चली गई।
फायदा किसी बात का अब नहीं रहा
हादसों से जिंदगी बिखरती चली गई।
अपने वजूद में सबको सिमटा देखकर
मजबूरी मुफिलसी में सिमटती चली गई।
तीरगी उजालों में सिमटती चली गई।
बात कल और थी है आज कुछ और
जिंदगी इसी तरह कटती चली गई।
जरूरतें हथेली पर बिखरी नहीं लगती
सब महंगाई के गले लगती चली गई।
कन्धा कोई न मिला क़द उंचा करने को
बड़ा दिखने की आरज़ू घटती चली गई।
एक रिश्ता था दोनों के बीच कल तलक
दोस्ती दुश्मनी में सिमटती चली गई।
फायदा किसी बात का अब नहीं रहा
हादसों से जिंदगी बिखरती चली गई।
अपने वजूद में सबको सिमटा देखकर
मजबूरी मुफिलसी में सिमटती चली गई।
Monday, April 25, 2011
उसके भीतर जो जहाँ था वीरान था
इस बात से मगर वह अनजान था।
नशा नहीं मस्ती नहीं न थी ख्वाहिशें
जाने किस किस्म का सारा सामान था।
राहगीरों को रोकता था छांह देने को
कभी उस शज़र को खुद पे गुमान था।
खंडहर बनके इतरा रहा है आज भी
कभी मकान जो बड़ा आलीशान था।
धूप कहीं छांह सर्दी गर्मी कहीं बारिश
दिखने में तो वही एक आसमान था।
टुकड़ों में सिमटकर रह गया है अब
कितना बड़ा वह एक खानदान था।
चेहरा बोलता था बात कहने के बाद
कभी अपने सलीके पर उसे गुमान था।
छिपाकर रखा था उसने सबसे मगर
उसके भीतर जो एक बड़ा आसमान था।
इस बात से मगर वह अनजान था।
नशा नहीं मस्ती नहीं न थी ख्वाहिशें
जाने किस किस्म का सारा सामान था।
राहगीरों को रोकता था छांह देने को
कभी उस शज़र को खुद पे गुमान था।
खंडहर बनके इतरा रहा है आज भी
कभी मकान जो बड़ा आलीशान था।
धूप कहीं छांह सर्दी गर्मी कहीं बारिश
दिखने में तो वही एक आसमान था।
टुकड़ों में सिमटकर रह गया है अब
कितना बड़ा वह एक खानदान था।
चेहरा बोलता था बात कहने के बाद
कभी अपने सलीके पर उसे गुमान था।
छिपाकर रखा था उसने सबसे मगर
उसके भीतर जो एक बड़ा आसमान था।
आज की रात करो न बहाना कोई
आज रात मेरा नहीं है ठिकाना कोई।
देख कर ही तुझे तसल्ली पा लेंगे
जरूरी नहीं है गले से लगाना कोई।
तेरे मिलने का एक लम्हा ही काफी है
नहीं चाहिए फिर मुझे जमाना कोई।
तितलियों पर भी पाबंदियां हैं लगी
नामुमकिन है खुशबु चुराना कोई।
जख्म पुराने हैं तकलीफ भी देंगे ही
जरूरी नहीं है मरहम लगाना कोई।
जिंदगी बीत गई तब जाकर ये जाना
ऐसे ही नहीं मिलता खज़ाना कोई।
ग़ज़ल खुद शमा सी पिघलती रही
दिल भूल गया सुनना तराना कोई।
नेकियाँ करके ही सोच लेते हैं हम
नहीं मुश्किल मुल्के-अदम जाना कोई।
आज रात मेरा नहीं है ठिकाना कोई।
देख कर ही तुझे तसल्ली पा लेंगे
जरूरी नहीं है गले से लगाना कोई।
तेरे मिलने का एक लम्हा ही काफी है
नहीं चाहिए फिर मुझे जमाना कोई।
तितलियों पर भी पाबंदियां हैं लगी
नामुमकिन है खुशबु चुराना कोई।
जख्म पुराने हैं तकलीफ भी देंगे ही
जरूरी नहीं है मरहम लगाना कोई।
जिंदगी बीत गई तब जाकर ये जाना
ऐसे ही नहीं मिलता खज़ाना कोई।
ग़ज़ल खुद शमा सी पिघलती रही
दिल भूल गया सुनना तराना कोई।
नेकियाँ करके ही सोच लेते हैं हम
नहीं मुश्किल मुल्के-अदम जाना कोई।
Friday, April 22, 2011
कहा जाता है कि बांस में जब फूल आता है तो कहर आता है ,सूखा पड़ता है ,अकाल पड़ता है ।बांस पर अगर फूल आ जाए तो बांस बांस बन ने से पहले ही मुरझा जाता है।अभी अखबार हिंदुस्तान में पढ़ा था कि इस वर्ष बांस में फूल खिले हैं,
इसी पर लिखा है,
बांस पर फूल आने कि खबर है
लगता है आने वाला कोई कहर है।
लोगो कि दिलचस्पियाँ बढ़ गई हैं
कुछ नया अजूबा होने कि खबर है।
गठरी सँभालने से होगा क्या अगर
वर्क वर्क पे लिखा होना दर बदर है।
खुदा महफूज़ रखना सबका मुकद्दर
बिखरा हुआ सबका सामाने-सफ़र है।
नींद का सिलसिला ख्वाब हो गया
जब से जाना नज़दीक वक्ते-सफ़र है।
समय गुजरा तो बात साफ़ यह हुई
किस्सा यह सारा ही बे असर है।
इसी पर लिखा है,
बांस पर फूल आने कि खबर है
लगता है आने वाला कोई कहर है।
लोगो कि दिलचस्पियाँ बढ़ गई हैं
कुछ नया अजूबा होने कि खबर है।
गठरी सँभालने से होगा क्या अगर
वर्क वर्क पे लिखा होना दर बदर है।
खुदा महफूज़ रखना सबका मुकद्दर
बिखरा हुआ सबका सामाने-सफ़र है।
नींद का सिलसिला ख्वाब हो गया
जब से जाना नज़दीक वक्ते-सफ़र है।
समय गुजरा तो बात साफ़ यह हुई
किस्सा यह सारा ही बे असर है।
वक़्त बेवक्त आंसू मत बहाया कर
खुद को कभी इतना मत सताया कर।
खज़ाना आंसुओं का अनमोल है बड़ा
पलकों का नमक अपनी मत जाया कर।
जिंदगी की चादर में तो सबकी छेद है
खुद को दिवालिया तू मत बताया कर।
जमाने का काम तो बस हवा देना है
अपने जख्म किसी को मत दिखाया कर।
आरज़ू सब पूरी नहीं होती किसी की
हर वक़्त रंगीन सपने मत सजाया कर।
कोई न जान पायेगा दिल की लगी तेरी
सब के सामने तू बस मुस्कराया कर।
खुद को कभी इतना मत सताया कर।
खज़ाना आंसुओं का अनमोल है बड़ा
पलकों का नमक अपनी मत जाया कर।
जिंदगी की चादर में तो सबकी छेद है
खुद को दिवालिया तू मत बताया कर।
जमाने का काम तो बस हवा देना है
अपने जख्म किसी को मत दिखाया कर।
आरज़ू सब पूरी नहीं होती किसी की
हर वक़्त रंगीन सपने मत सजाया कर।
कोई न जान पायेगा दिल की लगी तेरी
सब के सामने तू बस मुस्कराया कर।
खबर सुनकर फिर रुका नहीं जाता
उल्टा जूता पहन कर चला नहीं जाता।
अपने ही घर में लगा करता है मन
किसी के घर महीनो रहा नहीं जाता।
शब् गा उठी महकते ही रात रानी के
दिल के काबू में अब रहा नहीं जाता।
चाँद सितारे साथ रहने लगे जब से
तन्हाई में तन्हा अब रहा नहीं जाता।
जरूरत न थी नए को पुराना कह दिया
पुराने को मगर नया कहा नहीं जाता।
दामन तार तार होने को है तैयार पर
एहसान किसी का लिया नहीं जाता।
उल्टा जूता पहन कर चला नहीं जाता।
अपने ही घर में लगा करता है मन
किसी के घर महीनो रहा नहीं जाता।
शब् गा उठी महकते ही रात रानी के
दिल के काबू में अब रहा नहीं जाता।
चाँद सितारे साथ रहने लगे जब से
तन्हाई में तन्हा अब रहा नहीं जाता।
जरूरत न थी नए को पुराना कह दिया
पुराने को मगर नया कहा नहीं जाता।
दामन तार तार होने को है तैयार पर
एहसान किसी का लिया नहीं जाता।
आग को कभी ऐसी चिंगारी मत देना
भडके शोलों को जिंदगानी मत देना।
रौशनी दे दे तुम्हारे काम आ जाये
इससे आगे उसे आज़ादी मत देना।
नहीं तो कहर ढा देगी तेरे ही सामने
उसे कभी इतनी खुद्दारी मत देना।
आग की तरह ही है यह दुनिया भी
इसको अपनी जानकारी मत देना।
पूरी तरह तुझे बदनाम कर देगी
इसे अपनी तू कहानी मत देना।
शिद्दत से जला डालेगी तुझे यह
बस अपनी आतिशबाजी मत देना।
भडके शोलों को जिंदगानी मत देना।
रौशनी दे दे तुम्हारे काम आ जाये
इससे आगे उसे आज़ादी मत देना।
नहीं तो कहर ढा देगी तेरे ही सामने
उसे कभी इतनी खुद्दारी मत देना।
आग की तरह ही है यह दुनिया भी
इसको अपनी जानकारी मत देना।
पूरी तरह तुझे बदनाम कर देगी
इसे अपनी तू कहानी मत देना।
शिद्दत से जला डालेगी तुझे यह
बस अपनी आतिशबाजी मत देना।
Wednesday, April 20, 2011
अकेला ही मैं कारवां बन गया
किसी के दिल का जहाँ बन गया।
अब न रहा दिल में भी गुबार
पत्ता पत्ता मेहरबां बन गया।
मुतमईन है एक शज़र बहुत ही
छाहं देकर वो सायबां बन गया।
भाई को छत देने की जुगत में
सहन में नया आसमां बन गया।
टुकड़ों टुकड़ों में बंट गई दुनिया
ठिकाना सबका आसमां बन गया।
जिंदगी अब नहीं रही महफूज़
सफ़र कितना रायगां बन गया।
बला ज़ब से गुजर गई सर से
चप्पा चप्पा गुलिस्तां बन गया।
रायगां - बेकार
किसी के दिल का जहाँ बन गया।
अब न रहा दिल में भी गुबार
पत्ता पत्ता मेहरबां बन गया।
मुतमईन है एक शज़र बहुत ही
छाहं देकर वो सायबां बन गया।
भाई को छत देने की जुगत में
सहन में नया आसमां बन गया।
टुकड़ों टुकड़ों में बंट गई दुनिया
ठिकाना सबका आसमां बन गया।
जिंदगी अब नहीं रही महफूज़
सफ़र कितना रायगां बन गया।
बला ज़ब से गुजर गई सर से
चप्पा चप्पा गुलिस्तां बन गया।
रायगां - बेकार
खुद ही लड़ते हैं खुद सुलह करते हैं
वो प्यार भी दीवानों की तरह करते हैं।
खुशनुमा होते हैं लफ्ज़ उनके बहुत
जब भी कहते हैं बड़ी जिरह करते हैं।
नजाकत वक़्त की भी नहीं जानते
कुछ लोग बातें ही बेवजह करते हैं।
फितरतन बुजदिल होते हैं शख्श वो
अक्सर जो बहुत ही कलह करते हैं।
किसको देखूं मैं न देखूं किसको
बेमतलब मुझ पे निगह करते हैं।
मुझसे न पूछा हाल मेरे होने का
ख्वाहिशें मुझसे बहुत वह करते हैं।
कभी इस पार आये गये उधर कभी
रहने की तमन्ना हर जगह करते हैं।
सहर तो होती है वक़्त पर रोज़ ही
सितारे कहते हैं सुबह वह करते हैं।
वो प्यार भी दीवानों की तरह करते हैं।
खुशनुमा होते हैं लफ्ज़ उनके बहुत
जब भी कहते हैं बड़ी जिरह करते हैं।
नजाकत वक़्त की भी नहीं जानते
कुछ लोग बातें ही बेवजह करते हैं।
फितरतन बुजदिल होते हैं शख्श वो
अक्सर जो बहुत ही कलह करते हैं।
किसको देखूं मैं न देखूं किसको
बेमतलब मुझ पे निगह करते हैं।
मुझसे न पूछा हाल मेरे होने का
ख्वाहिशें मुझसे बहुत वह करते हैं।
कभी इस पार आये गये उधर कभी
रहने की तमन्ना हर जगह करते हैं।
सहर तो होती है वक़्त पर रोज़ ही
सितारे कहते हैं सुबह वह करते हैं।
Monday, April 18, 2011
ईमारत नीव पर ही खड़ी होती है- मुहब्बत दिल में पलके बड़ी होती है। एक नहीं दो नहीं बेतरतीब होती हैं - उम्मीद की हर दिल में झड़ी होती है। सिर्फ पिस कर रंग नहीं लाती हिना - पहरों पिसती है जिद्दी बड़ी होती है। सजती है नर्म हथेली पर ज्यों ही - रच कर के फिर खुश बड़ी होती है। तहरीरों के नश्तर चुभते हैं तो -जिगर में पीर बड़ी होती है। शहर का दस्तूर अलग होता है-दिलों में सबके दूरी बड़ी होती है। चंद लम्हों में टूट जाता है इन्सां-दिल की लगी अजीब बड़ी होती है। अपनी हस्ती हवा में खो देता है- दर पे सामने जब मौत खड़ी होती है।
Sunday, April 10, 2011
इससे पहले कि टूट ये जाए - मेरा दिल कोई चुरा ले जाए। कब से नींद मुझसे रूठी है- आँखों को भी सपना दे जाए। गम की जिसमे धार न हो - बहता हुआ ऐसा दरिया दे जाए। अपना रकीब बना कर -मेरी जीने की तमन्ना ले जाए। शामे महफ़िल में बुला कर मुझे - एक नया सिलसिला दे जाए। इसका भी गम नहीं होगा अगर - वो उम्र भर की सजा दे जाए।
सुनाई जा रही जो तेरी जुबानी थी - किसी और की नहीं मेरी कहानी थी। खंडहर बता रहे हैं ईमारत बुलंद थी- बुढ़ापा भी कभी किसी की जवानी थी। खुश है नदी पार कर कागज़ की नाव से- कुछ देर पहले तो दिल में परेशानी थी। तेज़ हो गया फिजा में तूफ़ान हंसी का- अभी अभी आँखों में सबके हैरानी थी। परेशानी में रहने लगा शहर हर वक़्त - कभी महक उसकी बड़ी जाफरानी थी। तस्वीर पर पड़ गया हार उसकी भी- बुलंद जिसके दिल की सुल्तानी थी।
दिखने में तो शांत बड़ा लगता है- अन्दर ही अंदर मचलता रहता है। समन्दर की दोस्ती है तस्करों से - इसलिए वह सहमा सा लगता है। नीला बना हुआ लगता है दिन भर - पूनम की चांदनी में बहका लगता है। शुरह्त की बुलंदी पल का तमाशा है- बाद उसके आदमी बिखरा लगता है। जी भर के कभी उसे देख नहीं पाते- उसे नज़र न लग जाए डर लगता है।
हर पल में प्यार है हर पल ख़ुशी है- खो दी तो यादें हैं जी ली जो जिंदगी है। फिक्र के दरिया ने हर दम बहना है- सोचो तो मुश्किल है नहीं तो मस्ती है। दस्तक भी मौत ने देनी दर दर है -हर चीज़ महंगी है जिंदगी सस्ती है। काफिला बिखरना है बिखरेगा ही- आँखों में क्यों वीरानी झलकती है। कोई बताये मुझे अब मैं करूं क्या -जख्म पर दवा काम नहीं करती है।
ऐसे मिला करो की लोग पूछते रहें- मिलने की आरज़ू तुमसे करते रहें। ऐसे रहा करो की जमाना मिसाल दे- महफ़िल में रहने को तेरी तरसते रहें। बढ़ता रहे क़द सदा हौसले के संग- जमीन पे रहके आसमा पे चलते रहे। दिल से भी तहजीब मरे नहीं कभी- तेरी सीरत पर लोग नाज़ करते रहें। सच्चाई का दामन न छूटे कभी भी -कितने ही रोड़े राह में मिलते रहें।
Saturday, April 2, 2011
समंदर कभी दर-बदर नहीं होता- मेरे फन का अब ज़िक्र नहीं होता। जितने भी सजदे करने हैं करो -आदमी खुदा मगर नहीं होता। कभी खेले थे नाव से कागज़ की -ऐसा खेलना उम्र भर नहीं होता। भटकता फिरता है गली में तन्हा -अपना जिस का घर नहीं होता। खज़ाना चाहे कितना भी मिल जाये- उस से हर दिल मुअत्तर नहीं होता। पास तुम हो तो पास गम नहीं होता -मुहब्बत को भी फिर सब्र नहीं होता। होता रहे दुनिया में जो भी होना है- हम उस मकाम पे हैं असर नहीं होता।
Thursday, March 31, 2011
शूल से नहीं हमें फूल से डर लगता है -उसके मुरझाने के ख्याल से डर लगता है। दुश्मन की बातों की परवाह नहीं करते -भाई के बस एक त्रिशूल से डर लगता है। घर से तो निकले थे बड़े ही शौक से- सड़क को पार करते हुए डर लगता है। पुराने घर में रह रहे थे दबे ढके हुए- नये मकान में जाते हुए डर लगता है। एक क़दम भी नहीं चलता था मेरे बिना- उसको शहर भेजते हुए डर लगता है।
Wednesday, March 23, 2011
हर रोज़ नयाफूल खिलाती है जिंदगी
हर रोज़ नई खुशबू उड़ाती है जिंदगी।
बरसात कभी सिर्फ गमों की होती है
खुशियों में कभी नहाती है जिंदगी।
रंग-रेज़ की उसे जरूरत नहीं पड़ती
हर रंग में ही रंग जाती है जिंदगी।
गिरगिट भी इतने रंग नहीं बदलता
रंग जितने बदल जाती है जिंदगी।
रंगो का तालमेल बिगड़ जाये अगर
एक दाग बन कर रह जाती है जिंदगी।
हर रोज़ फिर एक नया जश्न होता है
उस के रंग में जब रंग जाती है जिंदगी।
हर रोज़ नई खुशबू उड़ाती है जिंदगी।
बरसात कभी सिर्फ गमों की होती है
खुशियों में कभी नहाती है जिंदगी।
रंग-रेज़ की उसे जरूरत नहीं पड़ती
हर रंग में ही रंग जाती है जिंदगी।
गिरगिट भी इतने रंग नहीं बदलता
रंग जितने बदल जाती है जिंदगी।
रंगो का तालमेल बिगड़ जाये अगर
एक दाग बन कर रह जाती है जिंदगी।
हर रोज़ फिर एक नया जश्न होता है
उस के रंग में जब रंग जाती है जिंदगी।
उसकी आदत न गई अब तक भी तरसाने की
घर आँगन बाट जोह रहे हैं सब उसके आने की।
अब की होली में गुंजिया लाऊंगा बीकानेर की
खबर इस तरह से दी थी उसने अपने आने की।
गुलाल खूब लगाऊंगा गुलाबी गालों पर तेरे
हुडदंग मचेगा जमके होली होगी बरसाने की।
भीगा भीगा अंग होगा रंगो से रंगी हुई अंगिया
कितनी अलहड़ रुत होगी वो तेरे शर्माने की।
ढोल मंजीरे बज रहे हैं चोपालो पर फगुआ के
सब याद दिला रहे हैं मुझको मेरे दीवाने की।
घर आँगन बाट जोह रहे हैं सब उसके आने की।
अब की होली में गुंजिया लाऊंगा बीकानेर की
खबर इस तरह से दी थी उसने अपने आने की।
गुलाल खूब लगाऊंगा गुलाबी गालों पर तेरे
हुडदंग मचेगा जमके होली होगी बरसाने की।
भीगा भीगा अंग होगा रंगो से रंगी हुई अंगिया
कितनी अलहड़ रुत होगी वो तेरे शर्माने की।
ढोल मंजीरे बज रहे हैं चोपालो पर फगुआ के
सब याद दिला रहे हैं मुझको मेरे दीवाने की।
Tuesday, March 15, 2011
फागुन मदमाता आता है
मस्ती का राग सुनाता है।
झीना झीना उनका आंचल
लहर लहर लहराता है।
हम गीत प्रेम के गाए नहीं सपने आँखों में सजाए नहीं
मदमाते नजारों से कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
माथे पर रोली धनकती है
चूड़ी गोरी की खनकती है।
फागुनी भाषा में सतरंगी
कोयलिया खूब चहकती है।
हम फूल चाहत के खिलाएं नहीं मस्ती में रास रचाए नहीं
तुम घर घर जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
रस कच्ची अमिया में उभरा है
सुर्ख अधरों पे टेसू निखरा है।
पलाश दहके हैं कपोलों पर
भीगी अंगिया और घघरा है।
उम्र ये बवाल मचाए नहीं उमंगों के गुलाल उडाए नहीं
एक नहीं हजारों से कह दो यह बात हमे मंजूर नहीं।
हम दुश्मनी से नाता तोड़ेंगे
हम धागा नेह का जोड़ेंगे।
अबीर गुलाल होली में लगा
हम दिल को दिल से जोड़ेंगे।
हम होली में झूमें गाए नहीं बिछड़ों को गले लगाएं नहीं
दुनिया से जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
मस्ती का राग सुनाता है।
झीना झीना उनका आंचल
लहर लहर लहराता है।
हम गीत प्रेम के गाए नहीं सपने आँखों में सजाए नहीं
मदमाते नजारों से कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
माथे पर रोली धनकती है
चूड़ी गोरी की खनकती है।
फागुनी भाषा में सतरंगी
कोयलिया खूब चहकती है।
हम फूल चाहत के खिलाएं नहीं मस्ती में रास रचाए नहीं
तुम घर घर जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
रस कच्ची अमिया में उभरा है
सुर्ख अधरों पे टेसू निखरा है।
पलाश दहके हैं कपोलों पर
भीगी अंगिया और घघरा है।
उम्र ये बवाल मचाए नहीं उमंगों के गुलाल उडाए नहीं
एक नहीं हजारों से कह दो यह बात हमे मंजूर नहीं।
हम दुश्मनी से नाता तोड़ेंगे
हम धागा नेह का जोड़ेंगे।
अबीर गुलाल होली में लगा
हम दिल को दिल से जोड़ेंगे।
हम होली में झूमें गाए नहीं बिछड़ों को गले लगाएं नहीं
दुनिया से जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
रंग बिरंगी समीर हो गई
माटी भी अबीर हो गई।
मस्त फागुन के आते ही
धरती झूमके हीर हो गई।
अधरों पर धधका है टेसू
लाज भीगके नीर हो गई।
साँसों में महका है चन्दन
मैं तो बहुत अमीर हो गई।
दुश्मन लग गया गले से
दूर मन की पीर हो गई।
नेह का धागा जोड़ते जोड़ते
जिंदगी भी कबीर हो गई।
फागुन का है अभिनन्दन
उम्र मीठी अंजीर हो गई।
होरी आई है होरी आई
कहती मैं अधीर हो गई।
रंग बिरंगी दुनिया सारी
की सारी तस्वीर हो गई।
माटी भी अबीर हो गई।
मस्त फागुन के आते ही
धरती झूमके हीर हो गई।
अधरों पर धधका है टेसू
लाज भीगके नीर हो गई।
साँसों में महका है चन्दन
मैं तो बहुत अमीर हो गई।
दुश्मन लग गया गले से
दूर मन की पीर हो गई।
नेह का धागा जोड़ते जोड़ते
जिंदगी भी कबीर हो गई।
फागुन का है अभिनन्दन
उम्र मीठी अंजीर हो गई।
होरी आई है होरी आई
कहती मैं अधीर हो गई।
रंग बिरंगी दुनिया सारी
की सारी तस्वीर हो गई।
Saturday, March 12, 2011
ज़लज़ले के बाद का मंज़र- जापान
हर जगह दर्द भरी ख़ामोशी पसरी है
दिल में गज़ब की नाउम्मीदी पसरी है।
आंसुओं की सुनामी रुक नहीं रही
एक अज़ब तरह की उदासी पसरी है।
जलजले की ज़द में सब खत्म हो गया
चारों और तबाही ही तबाही पसरी है।
भूकम्प तो झेल लिया लहरों ने मिटा दिया
आँखों में सबके बहुत वीरानी पसरी है।
दर्द मिला ऐसा सब कुछ खत्म हो गया
चेहरों पर हर एक के मातमी पसरी है।
बेबस बना हुआ हर कोई देख रहा है
दिल में सबके डरावनी बैचनी पसरी है।
दिल में गज़ब की नाउम्मीदी पसरी है।
आंसुओं की सुनामी रुक नहीं रही
एक अज़ब तरह की उदासी पसरी है।
जलजले की ज़द में सब खत्म हो गया
चारों और तबाही ही तबाही पसरी है।
भूकम्प तो झेल लिया लहरों ने मिटा दिया
आँखों में सबके बहुत वीरानी पसरी है।
दर्द मिला ऐसा सब कुछ खत्म हो गया
चेहरों पर हर एक के मातमी पसरी है।
बेबस बना हुआ हर कोई देख रहा है
दिल में सबके डरावनी बैचनी पसरी है।
Monday, March 7, 2011
खरोंचों पे खुशबू वाला मरहम लगा दिया
खुश करने को एक नया करतब दिखा दिया।
किताबें खोल कर के वो बैठ गये सामने
सवालों का उन्होंने ज़मघट लगा दिया।
शौके जुनुं उनका मरने को हुआ ज़ब
नये किस्म का उन्होंने हल्ला मचा दिया।
फैसला होने से पहले मिल लेते उससे हम
ऐन वक़्त पर हमे किस्सा यह सुना दिया।
दरीचे को झट से बंद कर लिया कस कर
बंद करते करते चेहरा मगर दिखा दिया।
वो लम्हें खुबसूरत तितलियों से उड़ गये
जिस्म को अपने हमने पत्थर बना दिया।
खुश करने को एक नया करतब दिखा दिया।
किताबें खोल कर के वो बैठ गये सामने
सवालों का उन्होंने ज़मघट लगा दिया।
शौके जुनुं उनका मरने को हुआ ज़ब
नये किस्म का उन्होंने हल्ला मचा दिया।
फैसला होने से पहले मिल लेते उससे हम
ऐन वक़्त पर हमे किस्सा यह सुना दिया।
दरीचे को झट से बंद कर लिया कस कर
बंद करते करते चेहरा मगर दिखा दिया।
वो लम्हें खुबसूरत तितलियों से उड़ गये
जिस्म को अपने हमने पत्थर बना दिया।
हर बात की रहती कहाँ सबको खबर है
हर शख्श की अपनी अपनी रहगुज़र है।
किसी को मेरी बात का पता नहीं चले
दिन रात आदमी को यही रहती फिकर है।
दीखता है कम डाक्टर आँख का है मगर
मरीज़ ठीक हो रहे हैं उनका मुकद्दर है।
पहचान नहीं पाया उसे कोई भी कभी
इसीलिए वो खुद से भी रहता बेखबर है।
महफूज़ कोई भी नहीं है अब शहर में
दौड़ धूप दुनिया में बड़ी इस क़दर है।
हर शख्श की अपनी अपनी रहगुज़र है।
किसी को मेरी बात का पता नहीं चले
दिन रात आदमी को यही रहती फिकर है।
दीखता है कम डाक्टर आँख का है मगर
मरीज़ ठीक हो रहे हैं उनका मुकद्दर है।
पहचान नहीं पाया उसे कोई भी कभी
इसीलिए वो खुद से भी रहता बेखबर है।
महफूज़ कोई भी नहीं है अब शहर में
दौड़ धूप दुनिया में बड़ी इस क़दर है।
नगमें कुछ पुराने सुना के चले गये
जाते हुए करिश्मे दिखाके चले गये।
हट जाऊं वफ़ा की राह से उनकी मैं
पुराना मरहम जख्म पे लगाके चले गये।
मुफलिसी का मेरी मजाक बनाया यूं
फटी सी एक चादर ऊढाके चले गये।
कोई हसरत आरज़ू तमन्ना न रही
ऐसा वो मुकाम दिखा के चले गये।
मन तो कर रहा था रोने को बहुत
वो आँखों को बे आब बनाके चले गये।
पुराने रिश्तों को निभाने की फिक्र में
नयों को एक तरफा हटाते चले गये।
जाते हुए करिश्मे दिखाके चले गये।
हट जाऊं वफ़ा की राह से उनकी मैं
पुराना मरहम जख्म पे लगाके चले गये।
मुफलिसी का मेरी मजाक बनाया यूं
फटी सी एक चादर ऊढाके चले गये।
कोई हसरत आरज़ू तमन्ना न रही
ऐसा वो मुकाम दिखा के चले गये।
मन तो कर रहा था रोने को बहुत
वो आँखों को बे आब बनाके चले गये।
पुराने रिश्तों को निभाने की फिक्र में
नयों को एक तरफा हटाते चले गये।
नाकामियों से डरना छोड़ दिया मैंने
गलत राह पर चलना छोड़ दिया मैंने।
फ़िज़ा समन्दर की रास आ गई जबसे
सहरा में सुलगते रहना छोड़ दिया मैंने।
जिस्म ने सादगी की चादर ओढ़ ली
शुहरत पाकर मचलना छोड़ दिया मैंने।
फुरकत की रुत जब से घिर आई है
घड़ी घड़ी संवरना छोड़ दिया मैंने।
सूखा कहीं पे सैलाब तूफ़ान पसरा है
इनका ज़िक्र करना छोड़ दिया मैंने।
बदल गया शहरे- निज़ाम जबसे
अर्जे-तमन्ना करना छोड़ दिया मैंने।
मज़बूत इरादों वाला हो गया मैं अब
दिल की हिफाज़त करना छोड़ दिया मैंने।
गलत राह पर चलना छोड़ दिया मैंने।
फ़िज़ा समन्दर की रास आ गई जबसे
सहरा में सुलगते रहना छोड़ दिया मैंने।
जिस्म ने सादगी की चादर ओढ़ ली
शुहरत पाकर मचलना छोड़ दिया मैंने।
फुरकत की रुत जब से घिर आई है
घड़ी घड़ी संवरना छोड़ दिया मैंने।
सूखा कहीं पे सैलाब तूफ़ान पसरा है
इनका ज़िक्र करना छोड़ दिया मैंने।
बदल गया शहरे- निज़ाम जबसे
अर्जे-तमन्ना करना छोड़ दिया मैंने।
मज़बूत इरादों वाला हो गया मैं अब
दिल की हिफाज़त करना छोड़ दिया मैंने।
Sunday, February 27, 2011
घर के आँगन में आएँगी तितलियाँ बुलाकर तो देखिये
मेरी गोल्ड कलेन्द्दुला गुलाऊद खिलाकर तो देखिये।
तितलियों के संग मन भी उड़ान भरने को मचलेगा
उलझे उलझे ख्यालातों से बाहर आकर तो देखिये।
दुश्मनी आपसी खुद-ब-खुद ही मिटती जायेगी
जख्मों को नर्म लम्स से सहलाकर तो देखिये।
दुआओं का ढेर सामने लगता ही चला जायेगा
एक परिंदे को पिंजरे से उडाकर तो देखिये।
गम की काली घटाएं न रुलायेंगी तुझे कभी
दिलों में वासंती बयार बहाकर तो देखिये।
खुदा की बनाई हर एक चीज़ अनूठी होती है
रेगिस्तान में दिल बहलेगा आकर तो देखिये।
मेरी गोल्ड कलेन्द्दुला गुलाऊद खिलाकर तो देखिये।
तितलियों के संग मन भी उड़ान भरने को मचलेगा
उलझे उलझे ख्यालातों से बाहर आकर तो देखिये।
दुश्मनी आपसी खुद-ब-खुद ही मिटती जायेगी
जख्मों को नर्म लम्स से सहलाकर तो देखिये।
दुआओं का ढेर सामने लगता ही चला जायेगा
एक परिंदे को पिंजरे से उडाकर तो देखिये।
गम की काली घटाएं न रुलायेंगी तुझे कभी
दिलों में वासंती बयार बहाकर तो देखिये।
खुदा की बनाई हर एक चीज़ अनूठी होती है
रेगिस्तान में दिल बहलेगा आकर तो देखिये।
Friday, February 25, 2011
जमीं पे रह के जमीं से बेगाने हो गये
बंजारों की तरह उनके फसाने हो गये।
घर बुनियादी तौर पर बना नहीं कहीं
कभी यहाँ कभी वहां ठिकाने हो गये।
जब चाहा सड़क पर वो निकल पड़े
सड़क से उनके रिश्ते पुराने हो गये।
बहुत तेज़ चलते थे जब चलते थे वो
खत्म आँधियों के भी फसाने हो गये।
किसी महफ़िल में रहना न हुआ कभी
अदब के फन सारे अनजाने हो गये।
बंजारों की तरह उनके फसाने हो गये।
घर बुनियादी तौर पर बना नहीं कहीं
कभी यहाँ कभी वहां ठिकाने हो गये।
जब चाहा सड़क पर वो निकल पड़े
सड़क से उनके रिश्ते पुराने हो गये।
बहुत तेज़ चलते थे जब चलते थे वो
खत्म आँधियों के भी फसाने हो गये।
किसी महफ़िल में रहना न हुआ कभी
अदब के फन सारे अनजाने हो गये।
Tuesday, February 22, 2011
किश्ती में बैठ जाता पार उतर जाता
वक़्त मेरा भी आसानी से गुज़र जाता।
तहरीरों के नश्तर अगर न चुभे होते
शहर में तेरे अपना मैं नाम कर जाता।
बर्फीली वादी धुंध ये पहाडी तन्हाई
सहारा इनका न होता किधर जाता।
गुमनाम अंधरे में खौफ आंधी का
मैं गुनगुनाता न होता तो डर जाता।
ये दर्द उस पर आंसुओं का सैलाब
रुकता न गर दामने-रूह भर जाता।
थकान ये खराशें यह नींद का बोझ
सफ़र में न होता तो अपने घर जाता।
तस्सली हौसला यदि खुद को न देता
क़सम खुदा की मैं जल्दी मर जाता
।
वक़्त मेरा भी आसानी से गुज़र जाता।
तहरीरों के नश्तर अगर न चुभे होते
शहर में तेरे अपना मैं नाम कर जाता।
बर्फीली वादी धुंध ये पहाडी तन्हाई
सहारा इनका न होता किधर जाता।
गुमनाम अंधरे में खौफ आंधी का
मैं गुनगुनाता न होता तो डर जाता।
ये दर्द उस पर आंसुओं का सैलाब
रुकता न गर दामने-रूह भर जाता।
थकान ये खराशें यह नींद का बोझ
सफ़र में न होता तो अपने घर जाता।
तस्सली हौसला यदि खुद को न देता
क़सम खुदा की मैं जल्दी मर जाता
।
तेरी रेशमी साड़ी का पल्लू जब कंधे से ढलका जाता है
उमंग जवान हो उठती है मन हुलस हुलस हुलसाता है।
बिंदास हंसी के घुंघरू बाँध तुम छम छम करती आती हो
जलतरंग की सुरीली धुन सुन के मन चंचल हो जाता है।
भीगे बालों की सोंधी सुंगध साँसों को महका जाती है
वासन्ती तन का स्वर्णिम रोयाँ अंतस सिहरा जाता है।
मैं इन्द्रधनुष बन जाता हूँ तुम सारा आकाश होती हो
वर्षा रिम झिम तुम होती हो मन झील बन इतराता है।
पुष्पित सुरभित अमराई पर कोकिला तान सुनती है
रस अलंकार छंदों में बंध मन प्रणय गीत सुनाता है।
तुम्हारे अनुपम स्पर्शों से ह्रदय चन्दनवन हो जाता है
अमृत सा मधुर मिलन तन मन पुलकित कर जाता है।
उमंग जवान हो उठती है मन हुलस हुलस हुलसाता है।
बिंदास हंसी के घुंघरू बाँध तुम छम छम करती आती हो
जलतरंग की सुरीली धुन सुन के मन चंचल हो जाता है।
भीगे बालों की सोंधी सुंगध साँसों को महका जाती है
वासन्ती तन का स्वर्णिम रोयाँ अंतस सिहरा जाता है।
मैं इन्द्रधनुष बन जाता हूँ तुम सारा आकाश होती हो
वर्षा रिम झिम तुम होती हो मन झील बन इतराता है।
पुष्पित सुरभित अमराई पर कोकिला तान सुनती है
रस अलंकार छंदों में बंध मन प्रणय गीत सुनाता है।
तुम्हारे अनुपम स्पर्शों से ह्रदय चन्दनवन हो जाता है
अमृत सा मधुर मिलन तन मन पुलकित कर जाता है।
Monday, February 14, 2011
तन मन में बिखरी खुशबू गुलालों की है
धूम मचाती आयी दीवानों की टोली है।
मच रहा है हुरंग चारों तरफ रंगो का
मस्ती छाई हुई हर दिल में होली की है।
गोरी का भीगा घाघरा व तंग चोली है
आंटी भी आज सोलह बरस की होली है।
फागुनी बयार में छाये गुलाबी बादल हैं
उसने भंग में मुंह की लाली ही धो ली है।
कन्हैया भी राधा को कर रहा ई-मेल है
रुक्मणी भी आज इन्टरनेट की हो ली है।
रंगों के छींटे टी वी स्क्रीन पर बिखरे हैं
होली भी अब तो बहुत हाई टेक हो ली है।
चारों और मचा हुआ बस एक ही शोर है
बुरा मानो तो मानो भई आज तो होली है।
धूम मचाती आयी दीवानों की टोली है।
मच रहा है हुरंग चारों तरफ रंगो का
मस्ती छाई हुई हर दिल में होली की है।
गोरी का भीगा घाघरा व तंग चोली है
आंटी भी आज सोलह बरस की होली है।
फागुनी बयार में छाये गुलाबी बादल हैं
उसने भंग में मुंह की लाली ही धो ली है।
कन्हैया भी राधा को कर रहा ई-मेल है
रुक्मणी भी आज इन्टरनेट की हो ली है।
रंगों के छींटे टी वी स्क्रीन पर बिखरे हैं
होली भी अब तो बहुत हाई टेक हो ली है।
चारों और मचा हुआ बस एक ही शोर है
बुरा मानो तो मानो भई आज तो होली है।
वसंत वेलेंटाईन डे के बाद फागुन आना दस्तूर है
आई लव यू आई लव यू का बिखरा हुआ नूर है।
रंग बिरंगे पुते मुंह में गुलाल सनी उँगलियों से
रंगीन दही बड़े गूंझिया मीठी खाना भी दस्तूर है।
होली में हंगामा करना भंग पीकर के मचलना
इसको छेड़ा उसको पकड़ा तंग करना भी जरूर है।
मस्ती गली गली में पसरी खुमारी चहूँ ओर है।
पिया के संग करती गोरी मस्त मलंग भरपूर है।
बाबा उसके देवर बन गये छाया उस पे सरूर है
सास को भी मैंने देवरानी आज कहना जरूर है।
हंसते गाते धूम मचाते ढोल ओर नगाड़े बजाते
बुरा न मनो होली है सबका कहना ये दस्तूर है।
कोई हमें दीवाना कहे या कहे फिर मस्ताना
होली के रंग में डूबे हुए हमको सब मंजूर है।
आई लव यू आई लव यू का बिखरा हुआ नूर है।
रंग बिरंगे पुते मुंह में गुलाल सनी उँगलियों से
रंगीन दही बड़े गूंझिया मीठी खाना भी दस्तूर है।
होली में हंगामा करना भंग पीकर के मचलना
इसको छेड़ा उसको पकड़ा तंग करना भी जरूर है।
मस्ती गली गली में पसरी खुमारी चहूँ ओर है।
पिया के संग करती गोरी मस्त मलंग भरपूर है।
बाबा उसके देवर बन गये छाया उस पे सरूर है
सास को भी मैंने देवरानी आज कहना जरूर है।
हंसते गाते धूम मचाते ढोल ओर नगाड़े बजाते
बुरा न मनो होली है सबका कहना ये दस्तूर है।
कोई हमें दीवाना कहे या कहे फिर मस्ताना
होली के रंग में डूबे हुए हमको सब मंजूर है।
Friday, February 4, 2011
तेरे पह्लू में गुजरी हुई रातों का क्या होगा
तुझ से न हो सकी उन बातों का क्या होगा।
यह शानो शौकत भी बेकार जा रही है सारी
तमाशबीन ही नहीं है तमाशों का क्या होगा।
खून के सारे रिश्ते भी अब पैसों में बिक गये
किरचें भरी हैं जिस्म में लाशों का क्या होगा।
सफ़र में सफ़ीना अगर मोड़ता रहा यूं ही
समंदर पार करने के इरादों का क्या होगा।
एक ही मंडी बची है शहर में बिकने को
अगर न बिक सका वायदों का क्या होगा।
तुझ से न हो सकी उन बातों का क्या होगा।
यह शानो शौकत भी बेकार जा रही है सारी
तमाशबीन ही नहीं है तमाशों का क्या होगा।
खून के सारे रिश्ते भी अब पैसों में बिक गये
किरचें भरी हैं जिस्म में लाशों का क्या होगा।
सफ़र में सफ़ीना अगर मोड़ता रहा यूं ही
समंदर पार करने के इरादों का क्या होगा।
एक ही मंडी बची है शहर में बिकने को
अगर न बिक सका वायदों का क्या होगा।
Thursday, February 3, 2011
सता रहे हो तुम क्यों सवेरे से मुझको
याद आ रहे हो क्यों सवेरे से मुझको।
घने जंगल में रहने का रबत है मुझे
डर लगता नहीं अब अँधेरे से मुझको।
मुहब्बत निभाता हूँ हर दिल से मै
फर्क नहीं पड़ता किसी चेहरे से मुझको।
माँ की दुआ का नूर बरसता है हर घडी
दूर रखता है हर गम के घेरे से मुझको।
कैसे उन आँखों को ठंडक पहुंचाऊं मैं।
वो झाँक रहे हैं बीच सेहरे से मुझको।
याद आ रहे हो क्यों सवेरे से मुझको।
घने जंगल में रहने का रबत है मुझे
डर लगता नहीं अब अँधेरे से मुझको।
मुहब्बत निभाता हूँ हर दिल से मै
फर्क नहीं पड़ता किसी चेहरे से मुझको।
माँ की दुआ का नूर बरसता है हर घडी
दूर रखता है हर गम के घेरे से मुझको।
कैसे उन आँखों को ठंडक पहुंचाऊं मैं।
वो झाँक रहे हैं बीच सेहरे से मुझको।
Friday, January 21, 2011
Monday, January 17, 2011
शायरी करने की कभी सोची न थी
कविता कहने की कभी सोची न थी।
इतने नादान थे हम बचपन से ही
बज़्म में रहने की कभी सोची न थी।
राहत चाहतों में बदल जाएगी
हसरतें उड़ने की कभी सोची न थी।
पत्थर तो मिलते रहे सदा से ही
हीरा गढ़ने की कभी सोची न थी।
वह तो ख्याल तेरा आ गया यूं ही
खुद से मिलने की कभी सोची न थी।
दर्द को सुकून लिखता रहा सदा
उसे झेलने की कभी सोची न थी।
पता नहीं क्या निकल गया मुंह से
गुस्सा करने की कभी सोची न थी।
सम्भलने में वक़्त कुछ तो लगेगा
रुसवा होने की कभी सोची न थी।
कविता कहने की कभी सोची न थी।
इतने नादान थे हम बचपन से ही
बज़्म में रहने की कभी सोची न थी।
राहत चाहतों में बदल जाएगी
हसरतें उड़ने की कभी सोची न थी।
पत्थर तो मिलते रहे सदा से ही
हीरा गढ़ने की कभी सोची न थी।
वह तो ख्याल तेरा आ गया यूं ही
खुद से मिलने की कभी सोची न थी।
दर्द को सुकून लिखता रहा सदा
उसे झेलने की कभी सोची न थी।
पता नहीं क्या निकल गया मुंह से
गुस्सा करने की कभी सोची न थी।
सम्भलने में वक़्त कुछ तो लगेगा
रुसवा होने की कभी सोची न थी।
सुबह हुई परिंदे चहकने लगे
शफ़क़ में नए रंग भरने लगे।
आसमा देख के खुश था बहुत
दिन निकलते सब महकने लगे।
खुदा इतना बड़ा न बनाना मुझे
मुझसे मिलते हुए सब डरने लगे।
मैं इतनी न मुझ में भर देना कभी
वजूद टूटकर मेरा बिखरने लगे।
तन्हा तडपता रहूँ मैं उम्र -ता
मिटटी कंधों को मेरी तरसने लगे।
मुझे ऐसा बना देना मेरे खुदा
जिस गली चलूँ वो महकने लगे।
शफ़क़ में नए रंग भरने लगे।
आसमा देख के खुश था बहुत
दिन निकलते सब महकने लगे।
खुदा इतना बड़ा न बनाना मुझे
मुझसे मिलते हुए सब डरने लगे।
मैं इतनी न मुझ में भर देना कभी
वजूद टूटकर मेरा बिखरने लगे।
तन्हा तडपता रहूँ मैं उम्र -ता
मिटटी कंधों को मेरी तरसने लगे।
मुझे ऐसा बना देना मेरे खुदा
जिस गली चलूँ वो महकने लगे।
Saturday, January 15, 2011
फेंके हुए पत्थर सिमेट लेता
मैं अपना बिस्तर सिमेट लेता।
शहर में न बसता गर तेरे तो
मैं अपना दफ्तर सिमेट लेता।
किश्ती न टूटती रस्ते में गर
बाहों में समन्दर सिमेट लेता।
बर्फ के रस्ते कट जाते अगर
रेत की रहगुज़र सिमेट लेता।
वरक़ वरक़ फसाना न बिखरता
अगर अपना घर सिमेट लेता।
ग़ज़ल के पाँव न पड़ते बज्म में
तो मैं अपने शेर सिमेट लेता।
खुदा बख्शता शिफा जो मुझे
दुआओं में असर सिमेट लेता।
मैं अपना बिस्तर सिमेट लेता।
शहर में न बसता गर तेरे तो
मैं अपना दफ्तर सिमेट लेता।
किश्ती न टूटती रस्ते में गर
बाहों में समन्दर सिमेट लेता।
बर्फ के रस्ते कट जाते अगर
रेत की रहगुज़र सिमेट लेता।
वरक़ वरक़ फसाना न बिखरता
अगर अपना घर सिमेट लेता।
ग़ज़ल के पाँव न पड़ते बज्म में
तो मैं अपने शेर सिमेट लेता।
खुदा बख्शता शिफा जो मुझे
दुआओं में असर सिमेट लेता।
दोस्ती करने को मजबूर कर दिया
आईने ने पत्थर में गरूर भर दिया।
अपनी फितरत से मजबूर था बहुत
आइना पत्थर ने चकनाचूर कर दिया।
नाम लेते हैं लोग दोनों का साथ में
आईने ने पत्थर को मशहूर कर दिया।
कांच की दीवानगी की कद्र न की उसने
टकराते ही टूटने को मजबूर कर दिया।
दोस्ती का आईने ने हक यूँ अदा किया
चोट खाकर भी टूटना मंजूर कर दिया।
आईने ने पत्थर में गरूर भर दिया।
अपनी फितरत से मजबूर था बहुत
आइना पत्थर ने चकनाचूर कर दिया।
नाम लेते हैं लोग दोनों का साथ में
आईने ने पत्थर को मशहूर कर दिया।
कांच की दीवानगी की कद्र न की उसने
टकराते ही टूटने को मजबूर कर दिया।
दोस्ती का आईने ने हक यूँ अदा किया
चोट खाकर भी टूटना मंजूर कर दिया।
दरख्त चन्दन का न था महकता कैसे
घुटन दिल में थी बहुत चहकता कैसे।
हिचकियाँ ले रहा था साथ में लेटा
शब् में गम मुझे तन्हा रखता कैसे।
दीवानगी इस क़दर बढ़ी थी उसकी
किसी की सदा पर वो रुकता कैसे।
सातवें फलक से ओंधे मुंह गिरा था
हड्डी न मिली जिसकी दिखता कैसे।
सिमट गया था मुफलिसी में दायरा
दर्द खुद दवा बना था ठीक करता कैसे।
दिन शाम के कंधे सिर रख के रोता है
गले शब् के न लगता तो चमकता कैसे।
शुक्र है इंसा में जज्बा अभी जिंदा है
तमन्ना को नहीं तो जिगर मिलता कैसे।
घुटन दिल में थी बहुत चहकता कैसे।
हिचकियाँ ले रहा था साथ में लेटा
शब् में गम मुझे तन्हा रखता कैसे।
दीवानगी इस क़दर बढ़ी थी उसकी
किसी की सदा पर वो रुकता कैसे।
सातवें फलक से ओंधे मुंह गिरा था
हड्डी न मिली जिसकी दिखता कैसे।
सिमट गया था मुफलिसी में दायरा
दर्द खुद दवा बना था ठीक करता कैसे।
दिन शाम के कंधे सिर रख के रोता है
गले शब् के न लगता तो चमकता कैसे।
शुक्र है इंसा में जज्बा अभी जिंदा है
तमन्ना को नहीं तो जिगर मिलता कैसे।
Wednesday, January 12, 2011
हम बिखरा सामान बांधते रहे
वो सामान मेरा खंगालते रहे।
जितना मैं उनके दायरे में रहा
हदें मेरी उतनी ही बांधते रहे।
बोझ लगते हैं उन्हें रिश्ते सारे
हम गाँठ रिश्ते की बांधते रहे।
हमें मयस्सर थे कुछ ही पल
वो सदियाँ मुट्ठी में बांधते रहे।
हैरानियाँ आँखों में लिए हम
वजूद में उनके झांकते रहे।
जोशे इन्कलाब दिल में आया
पर सपने दहलीज़ लांघते रहे।
वो सामान मेरा खंगालते रहे।
जितना मैं उनके दायरे में रहा
हदें मेरी उतनी ही बांधते रहे।
बोझ लगते हैं उन्हें रिश्ते सारे
हम गाँठ रिश्ते की बांधते रहे।
हमें मयस्सर थे कुछ ही पल
वो सदियाँ मुट्ठी में बांधते रहे।
हैरानियाँ आँखों में लिए हम
वजूद में उनके झांकते रहे।
जोशे इन्कलाब दिल में आया
पर सपने दहलीज़ लांघते रहे।
Wednesday, January 5, 2011
नमक से नमक कभी खाया नहीं जाता
जबरदस्ती का बोझ उठाया नहीं जाता।
रूठ कर चला गया लम्हा जो अभी अभी
नज़दीक जाके उसे मनाया नहीं जाता।
कितना ही अन्दर में मचता रहे द्वंद
दर्दे ऐ दिल हर को सुनाया नहीं जाता।
मुहर बन कर लग गया है दिल पर
जख्मे निशाँ वो मिटाया नहीं जाता।
पहाड़ों का मौसम भले ही सुन्दर हो
सहरा में कभी ले जाया नहीं जाता।
जबरदस्ती का बोझ उठाया नहीं जाता।
रूठ कर चला गया लम्हा जो अभी अभी
नज़दीक जाके उसे मनाया नहीं जाता।
कितना ही अन्दर में मचता रहे द्वंद
दर्दे ऐ दिल हर को सुनाया नहीं जाता।
मुहर बन कर लग गया है दिल पर
जख्मे निशाँ वो मिटाया नहीं जाता।
पहाड़ों का मौसम भले ही सुन्दर हो
सहरा में कभी ले जाया नहीं जाता।
फलक टूटा तो बिखरेगा कैसे
गले ज़मीन के वो लगेगा कैसे।
गरूर खुद पर बहुत है उसको
गिर गया तो संभलेगा कैसे।
दीवारें शीशे की ही हैं सारी
लिबास अपना बदलेगा कैसे।
तिल तिल कर रोज़ मरता है
मौत न आयी तो मरेगा कैसे ।
कहानी प्यार की दो ही होती हैं
किताब अपनी लिखेगा कैसे।
ज़लज़ले बहुत आते हैं यहाँ
एक घरोंदा मेरा बनेगा कैसे।
हम तो दिल से चाहते हैं तुझे
इस बात से तू मुकरेगा कैसे.
गले ज़मीन के वो लगेगा कैसे।
गरूर खुद पर बहुत है उसको
गिर गया तो संभलेगा कैसे।
दीवारें शीशे की ही हैं सारी
लिबास अपना बदलेगा कैसे।
तिल तिल कर रोज़ मरता है
मौत न आयी तो मरेगा कैसे ।
कहानी प्यार की दो ही होती हैं
किताब अपनी लिखेगा कैसे।
ज़लज़ले बहुत आते हैं यहाँ
एक घरोंदा मेरा बनेगा कैसे।
हम तो दिल से चाहते हैं तुझे
इस बात से तू मुकरेगा कैसे.
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