Sunday, September 12, 2021

 दरक़ रही थी दीवार क्या करते

अच्छे नहीं थे आसार क्या करते।
नश्तर से खरोंच नहीं लगी कभी
इस ज़ुबान का यार क्या करते।
हर हाल में रहने की आदत है हमें
बेवजह की ही तक़रार क्या करते
सुबहो शाम ज़ाम पीने में ही कटी
इस तलब का भी यार क्या करते।
सक़ून चाहते तो मिल भी जाता
मगर खुद को निखार क्या करते ।
ता उम्र मर मर कर ही जिए हम
कयामत का इंतज़ार क्या करते ।

Thursday, February 27, 2020


होली पर तिरोहे
इस बार आऊँगा होली में छुट्टी ले के एक महीने की
खूब खेलेंगे मिलकर हम होली लठमार बरसाने की
ख़बर कुछ इस तरह भेजी थी उसने अपने आने की

वो आ जाता तो खेलते होली हम सब बरसाने की
दिल में कमी खल रही थी उसके ही न आने की
उसकी आदत न गई अब तक मुझको तरसाने की
ढोल नगाड़े होली के भी बजकर अब तो शांत हुए
घर आंगन बाट जोह रहे हैं अब भी उसके आने की
कसर न छोड़ी उसने कोई भी मुझको आजमाने की
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद जिला बिजनौर

Tuesday, January 7, 2020

तिरोही गज़ल

तिरोही गज़ल
इश्क कोई परदा एे साज़ नहीं होता
तूफान का कोई मिज़ाज नहीं होता
बिना दवा दर्द का इलाज नहीं होता
मर जाते प्यार में जिन्दा नहीं रहते
इश्क अगर शाहिद बाज़ नहीं होता
किसी को इसका अंदाज़ नहीं होता
मैंने क्या कहा और तुमने क्या सुना
अब हमें कोई ऐतराज़ नहीं होता
बेगानों का हमसे लिहाज नहीं होता
गरीब की भी कोई हैसीयत न होती
सामने अगर गरीब नवाज़ नहीं होता
दिल सदा मेहमान नवाज़ नहीं होता
परदा ए साज - हारमोनियम
शाहिद बाज़ - चाहने वाला
गरीब नवाज़ - अमीर
मेहमान नवाज़ - सत्कार करने वाला
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

तिरोही गज़ल

तिरोही गज़ल

जब से बस गए तुम आकर यहां
यह मौहल्ला बड़ा अमीर हो गया
खुबसूरती की ये जागीर हो गया
गुलाब की तरह महकने लगे दिल
हर नज़ारा तुम्हारी तस्वीर हो गया
हर दिल रांझा और हीर हो गया
हर एक सागर भर गया सरूर से
मुहब्बत की वह तहरीर हो गया
अंदाज़ शाहाना फ़कीर हो गया
तहरीर - लिखावट
शाहाना - राजसी
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद

तिरोही गज़ल

तिरोही गज़ल
हमने अपनी नींदे भी तेरे नाम करदी
सुहानी अपनी रातें भी तेरे नाम करदी
सुनहरी सब सुबहें भी तेरे नाम करदी
बचपन की उमंगें भी तेरे नाम करदी
जवानी की शामें भी तेरे नाम करदी
शबनमी मुहब्बतें भी तेरे नाम करदी
हम दिल से अमीर थे चाहे गरीब थे
दिल की दौलतें भी तेरे नाम करदी
अपनी ख़्वाहिशें भी तेरे नाम करदी
ज़िन्दगी तेरी आजमाईशें पूरी न हुई
हमने अपनी सांसें भी तेरे नाम करदी
दिल की मिल्कियतें भी तेरे नाम करदी
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

Wednesday, December 11, 2019

गज़ल तिरोही
हम इक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर जानिब महका लेते हैं
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं
जाने फिर मोहलत मिले न मिले
हर तस्वीर से दिल बहला लेते हैं
हम ग़ैरों से भी रिश्ते बना लेते हैं
पुराने जख़्म फिर से हरे न हो जाएं
वक्त रहते उन पे मरहम लगा लेते हैं
हम सबके गम सीने से लगा लेते हैं
ख़ुशबू लुटाने को जब खुदा कहता है
उसकी अदालत में सिर झुका लेते हैं
उसकी ख़ुशबू में खुदाई लूटा लेते हैं
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता
तिरोही गज़ल
कोई खूबसूरत सा शहर देख लेते
या दिल का मेरा ये नगर देख लेते
मुझे अपनी खुशबू में तर देख लेते
होश में रहकर के इश्क नहीं होता
दिल में मेरे तुम उतर कर देख लेते
अपनी मुहब्बत का असर देख लेते
सुकून इतना मिलता न दैरो हरम में
सुकून मिलता जो मेरे घर देख लेते
इश्क का तुम भी जिगर देख लेते
दूर तक फैल जाती खुशबू हमारी
मेरे प्यार करने का हुनर देख लेते
इन्तेहा ए इश्क का असर देख लेते
दैरो हरम - मंदिर मस्जिद
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता