खिंची लकीरें रेत पर मिटती चली गई
तीरगी उजालों में सिमटती चली गई।
बात कल और थी है आज कुछ और
जिंदगी इसी तरह कटती चली गई।
जरूरतें हथेली पर बिखरी नहीं लगती
सब महंगाई के गले लगती चली गई।
कन्धा कोई न मिला क़द उंचा करने को
बड़ा दिखने की आरज़ू घटती चली गई।
एक रिश्ता था दोनों के बीच कल तलक
दोस्ती दुश्मनी में सिमटती चली गई।
फायदा किसी बात का अब नहीं रहा
हादसों से जिंदगी बिखरती चली गई।
अपने वजूद में सबको सिमटा देखकर
मजबूरी मुफिलसी में सिमटती चली गई।
Wednesday, April 27, 2011
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