Saturday, January 15, 2011

फेंके हुए पत्थर सिमेट लेता
मैं अपना बिस्तर सिमेट लेता।
शहर में न बसता गर तेरे तो
मैं अपना दफ्तर सिमेट लेता।
किश्ती न टूटती रस्ते में गर
बाहों में समन्दर सिमेट लेता।
बर्फ के रस्ते कट जाते अगर
रेत की रहगुज़र सिमेट लेता।
वरक़ वरक़ फसाना न बिखरता
अगर अपना घर सिमेट लेता।
ग़ज़ल के पाँव न पड़ते बज्म में
तो मैं अपने शेर सिमेट लेता।
खुदा बख्शता शिफा जो मुझे
दुआओं में असर सिमेट लेता।


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