Sunday, February 14, 2016

तुम मिले तो दर्द ने रस्ता बदल दिया 
क़िस्मत ने  लिखा अपना बदल दिया। 

दीवारे- उम्र इश्क़ के आड़े न आ सकी 
दरिया ए इश्क़  ने नक़्शा बदल दिया। 

इश्क़ को भी हुस्न की पनाह मिल गई 
दिले नादां  ने भी धड़कना बदल दिया।

खुशबुओं के जैसे  सब दरीचे खुल गए 
हवाओं ने  अपना चलना  बदल दिया।

जिसको भी शिकायत थी मेरे वज़ूद से 
उसने ही  अपना नज़रिया बदल दिया। 

महफ़िल तुम्हारे आने  से ही सज गई 
ग़ज़ल ने भी अपना लहज़ा बदल दिया।

नशीली आँखों का खुमार देख  तुम्हारी 
हमने भी  पीने का जरिया बदल दिया।

मुराद मेरे दिल की जब सब पूरी हो गई
मैंने ही वो धागा मन्नत का बदल दिया।