Tuesday, January 7, 2020

तिरोही गज़ल

तिरोही गज़ल
इश्क कोई परदा एे साज़ नहीं होता
तूफान का कोई मिज़ाज नहीं होता
बिना दवा दर्द का इलाज नहीं होता
मर जाते प्यार में जिन्दा नहीं रहते
इश्क अगर शाहिद बाज़ नहीं होता
किसी को इसका अंदाज़ नहीं होता
मैंने क्या कहा और तुमने क्या सुना
अब हमें कोई ऐतराज़ नहीं होता
बेगानों का हमसे लिहाज नहीं होता
गरीब की भी कोई हैसीयत न होती
सामने अगर गरीब नवाज़ नहीं होता
दिल सदा मेहमान नवाज़ नहीं होता
परदा ए साज - हारमोनियम
शाहिद बाज़ - चाहने वाला
गरीब नवाज़ - अमीर
मेहमान नवाज़ - सत्कार करने वाला
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता

तिरोही गज़ल

तिरोही गज़ल

जब से बस गए तुम आकर यहां
यह मौहल्ला बड़ा अमीर हो गया
खुबसूरती की ये जागीर हो गया
गुलाब की तरह महकने लगे दिल
हर नज़ारा तुम्हारी तस्वीर हो गया
हर दिल रांझा और हीर हो गया
हर एक सागर भर गया सरूर से
मुहब्बत की वह तहरीर हो गया
अंदाज़ शाहाना फ़कीर हो गया
तहरीर - लिखावट
शाहाना - राजसी
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता नजीबाबाद

तिरोही गज़ल

तिरोही गज़ल
हमने अपनी नींदे भी तेरे नाम करदी
सुहानी अपनी रातें भी तेरे नाम करदी
सुनहरी सब सुबहें भी तेरे नाम करदी
बचपन की उमंगें भी तेरे नाम करदी
जवानी की शामें भी तेरे नाम करदी
शबनमी मुहब्बतें भी तेरे नाम करदी
हम दिल से अमीर थे चाहे गरीब थे
दिल की दौलतें भी तेरे नाम करदी
अपनी ख़्वाहिशें भी तेरे नाम करदी
ज़िन्दगी तेरी आजमाईशें पूरी न हुई
हमने अपनी सांसें भी तेरे नाम करदी
दिल की मिल्कियतें भी तेरे नाम करदी
डॉ सत्येन्द्र गुप्ता