ओंठो से छुआ तो लगा शराब है
चीज़ यह बड़ी ही लाजवाब है।
हुस्न है या है दहका हुआ पलाश
कभी कभी खिलता ऐसा शबाब है।
महक उसकी बड़ी ही खुश-लम्स है
उसका होना जैसे ख्यालो ख्वाब है।
हर अंग ग़ज़ल का मिसरा है जैसे
बदन पूरा ग़ज़लों की किताब है।
उसे देख दिल में उम्मीद है जगी
हर शब् न दिखता इदे महताब है।
Tuesday, May 31, 2011
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