Friday, December 30, 2016

खुली आखों से सपना देख रहे थे
हम भी पता नही क्या देख रहे थे
दूर तक निगाह लौट कर आ गई
जाने किस का रास्ता देख रहे थे
खुशबू तो मेरे ही भीतर बसी थी
नाहक  उसका रस्ता देख रहे थे
आज आइना देख जाने क्यूं लगा
तेरा ही चेहरा जाबजा देख रहे थे
मेरे चेहरे पर ये नूर तेरा ही तो था
कि जैसे चांद ईद का देख रहे थे
फिर कुछ यादें वह ताजा हो गई
हम जैसे कोई करिश्मा देख रहे थे 

Sunday, December 25, 2016

एक क़तरा समंदर में गिर गया 
बला का ग़ुरूर उसमे भर गया !

पल में ही वह समंदर बन गया
इतना बड़ा सफर तय कर गया !

डूबकर उभरा मैं फिर डूब गया 
मैं झील सी आखों में उतर गया !


अरसे से जल रहा था दिल में जो 
अलाव आज चश्म तर कर गया !

मुझमें हौसला तो बड़ा बुलंद था 
अंधेरे में अपने साये से डर गया !

मत पूछो  हालते दीवानगी मेरी 
चोट गहरी थी मगर  संवर गया !

दिलेर हूं दुश्मनों के बीच बैठा हूं 
सब  के चेहरे का रंग उतर गया !

हाथ में तो  कासा लिए था मैं भी
निर्धन को वह धनवान कर गया  !
   कासा --कटोरा 
       ------सत्येंद्र गुप्ता 

Monday, November 21, 2016

प्यार तो कर लूं मैं इजाज़त कहाँ से लाऊँ 
इश्क़ में  देने को  ज़मानत कहाँ से लाऊँ 

हवा महकती थी कभी ख़ुशबू से मेरी ही 
चूक गई अब वह  दौलत  कहाँ  से लाऊँ

रात बड़ी काली थी तोड़कर ही रख दिया
धूप निकल गई वो क़यामत कहाँ से लाऊँ

तुम भी मुझ को बेवफ़ा कह कर चले गए 
बेवफ़ाई करने की  आदत कहाँ से  लाऊँ 

यक़ीनन दुआ मेरी भी तो क़ुबूल हो जाती 
तुम जैसी मगर मैं सियासत कहाँ से लाऊँ 

तुझसे भी  एक दिन  बिछड़ना है ज़िन्दगी  
सदा  साथ रहने की रवायत कहाँ से लाऊँ

जाने वह कैसा है देखा नहीं जिसको कभी 
उसके साथ रहने की चाहत कहाँ से लाऊँ

माँ तेरे आँचल तले सीखी थी जो लेट कर 
तुतलाई हुई भाषा में आयत कहाँ से लाऊँ 

दिल बच्चा होने को मचलता  है आज भी 
बचपन की अब वो शरारत कहाँ से लाऊँ 

दिल का पैमाना अभी तक खाली है मेरा 
साक़ी तेरे यार की अमानत कहाँ से लाऊँ 

वह अपने साथ  मेरी वहशत  भी ले गया 
अब दर्द सहने की ताक़त कहाँ  से लाऊँ

यक़ीन है खुद मेरी   हर एक  शै संवारेगा 
उसकी मगर इतनी इनायत कहाँ से लाऊँ 
     आयत --- धार्मिक चौपाई 

                   ------सत्येंद्र गुप्ता 

Saturday, September 10, 2016

बेग़ुनाह को उसने मुज़रिम बना दिया 
ख़रोंच को कुरेद कर ज़ख़्म बना दिया !

उसका दर्द  मेरे दर्द दर्द से ज़्यादा था 
दर्द को ही मैंने तो मरहम बना दिया !

होंठ भी  हमारे अब  इंचों में हंसते हैं 
ख़ुशी को जाने क्यों मातम बना दिया !

आदत पड़ गई मैं को हम कहने की 
एक अकेले मैं को भी हम बना दिया !

मैं उसके वास्ते कुछ भी न कर सका 
उसने मुझे  शर्बते शबनम बना दिया !

खुली जो आँख तो मैं दामन भिगो गया  
 दर्द को मैंने अपना  अहम् बना दिया !

रोती रही गोपियां कृष्ण के ही विरह में 
किस पत्थर को हमने सनम बना दिया !

एक खूबसूरत ग़ज़ल लिखने को  मैंने 
दिल को ही सुनहरी क़लम बना दिया !

         -------सत्येंद्र गुप्ता 


Wednesday, August 31, 2016

चेहरा उसका चाँद का  ज़वाब है 
चाँद  को चूमता हुआ  गुलाब है !

चाँद  ने अपनी  रोशनी से लिखी  
बेपनाह  हुस्न की  वह किताब  है !

देखने से भी रंग वो शरमाने लगे 
सादगी उसमे  इतनी बेहिसाब है !

सुर्ख़ रुख़सार पर  सियाह ज़ुल्फ़ें 
चेहरे  पर कोई  जादुई  नक़ाब है !

ख़्वाहिशों  का भी रुख़  बदल दे 
हर अंदाज़  उसका  लाज़वाब है !

दिल की  बेचारगी का क्या करें  
दिल चुरा ले वह तो वो शबाब है !

आंखे है कि भूलती ही नहीं उसे  
देखने को वह अकेला ख़्वाब है !

शरबती आंखों में  वह सुर्ख डोरे
नशा न उतरे कभी ऐसी शराब है !

           ------सत्येंद्र गुप्ता 

Friday, August 12, 2016

भारत माँ तेरी सुंदरता का सानी नहीं कोई मिलता
तेरे मस्तक पर सजा ताज़ कहीं और नहीं माँ सजता !

प्रातः सूरज की लालिमा में रूप  तेरा ही  दमकता
चाँद भी अपनी धवल किरणों से सिंगार तेरा करता  !

गंगा यमुना की धारा से तन मन पुलकित रहता है 
श्रद्धा ,ममता ,त्याग ,शांति से है तेरा वैभव सजता  !

दक्षिण में सागर की लहरें  हैं चरण तेरे ही  धोती 
उत्तर में गिरिराज हिमालय  तेरी ही रक्षा करता !

तेरे आँगन में ही जन्मे  थे सूर, कबीर और तुलसी 
उनकी संस्कृत्यों का उजाला तुझे सुशोभित करता  !

रक्षा बंधन ,ईद ,दिवाली ,बैसाखी ,होली ,क्रिसमस 
बसंत अंक में लिए मधुमास , तुझे सुवासित करता !

गाँधी ,बोस ,भगत सिंह ,लक्ष्मी बाई की धरती पर 
कोई गद्दार आतंक वादी है पाँव नहीं रख सकता  !

एक सूत्र में बंधे हैं सब हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई 
कोई माई का लाल  हमे अलग नहीं कर सकता !

छीन सकेगा कोई न तुझ से माँ तेरा यश आधार 
माँ  तेरे सपूतों के आगे कोई नहीं टिक सकता !

तेरी आँखों में आंसू माँ  कभी नहीं आने देंगे हम 
माँ शत शत प्रणाम तुझे हर भारत वासी करता  !

                             ---- सत्येंद्र गुप्ता 
                                    नज़ीबाबाद  

Tuesday, August 9, 2016

जाने किस ज़माने की बात करते हैं 
वह  दिल दुखाने की बात करते हैं  !

ज़ख़्म ताज़ा हैं चोट बहुत गहरी है 
वह जशन मनाने की बात करते हैं  !

ज़माखोरी करते हैं  सदा दर्द की 
ख़ज़ाने  लुटाने की  बात  करते हैं  !

ग़ुब्बारे फूलाकर उम्मीदों के वह 
सूइयां  चुभाने की  बात  करते हैं  !

लाश शर्म  सब  वह छोड़ चुके हैं 
निगाहें  लड़ाने की बात  करते हैं  !

लहू कितना  बचा है मुझ में अभी 
मुझको आज़माने की बात करते हैं !

दो बूँद चखी नहीं  जिसने  कभी 
वो पीने पिलाने की बात करते हैं ! 

किसी सूरत से बचपन लौट आये 
हम पतंगें उड़ाने की बात करते हैं  !

           --------  सत्येंद्र गुप्ता 
तूने मुझे अब तक भी समझा नही है
या मेरे बारे मे तूझे कुछ पता नही है
मुझे आजमाने की तू जुर्रत न करना
इंसान है तू भी तो कोई खुदा नही है
बेवफ़ाई का मुझको हुनर नही आया
मंजर तो दिलकश है अच्छा नही है
जरूर कोई तो कमी मुझमे भी होगी
नसीब का खम अभी निकला नही है
तुम ही बताओ कहाँ जाएँ क्या करें हम
सुकून दिल को अब तक मिला नहीं है
हुस्न की भी इतनी न तारीफ करो तुम
ईमान पर इश्क़ के भी भरोसा नही है
अभी तो सफर भी बहुत दूर तक का है
और बीच मे भी कहीं रूकना नही है
उसकी खुशी में खुशी अपनी देखी थी
आज खुशियों की फुलझड़ी देखी थी
पहली बार आज हमें मजा आया था
पहली मरतबा हमने जिंदगी देखी थी
आज फूल ने खूशबू महसूस की थी
आज चांद ने अपनी चांदनी देखी थी
गरमी से तपती सुलगती हुई धरती पे
सावन की ठंडी फुहार पड़ी देखी थी
लगा मन की बातें कर लें उनसे आज
होठों पर अजब सी ही चुप्पी देखी थी
चकाचौंध इतनी थी कि न पूछो यारों
अंधेरे मे चिरागों की बस्ती देखी थी
उसको देख तबियत न भरी देखकर
खुशियां आपस मे यूं जुड़ी देखी थी

Monday, August 8, 2016

दर्दे दिल अभी हुआ नहीं है
दिल भी अभी दुखा नही है
उल्फत नई नई है अभी तो
इश्क़ भी अभी हुआ नहीं है
तुझसे बात करूं क्या मैं दिल
मुझे अभी कुछ पता नही है
हां इतना जरूर सुना है मैने
इश्क़ जुनून है ,सजा नही है
इश्क़ खुदा है जाना है यह
इश्क़ नही है तो खुदा नही है
खुदा का भी खुदा है इश्क़
इश्क़ अता है खता नही है
हम सदा तन्हाइयों के शहर में रहे 
जहां  रहे यादों के  खँडहर में  रहे !

ज़िन्दगी तूने ही कहीं रहने न दिया 
सारी उम्र हम तो बस सफर में रहे !

भाग दौड़ में ही कट गई ज़िन्दगी 
कभी  चैन से  न अपने  घर में रहे !

बाढ़ आई कभी तो सूखा भी पड़ा
कभी  हम अंधेरों  के नगर में रहे !

फैसले भी छोटे बड़े सारे ही लिए
हम हमेशा अपने ही  तेवर में रहे !

किरदार भी सारे ही निभाए हमने
जहाँ भी रहे सदा ही  खबर में रहे !

मत पूछ  हालते  दीवानगी हमारी
तूझे बिना  बताये तेरे  शहर में रहे !

ईमान को कभी चूर होने न दिया
हर वक़्त आइनों  के शहर में रहे !

तू भी न मिली कभी हमसे ज़िन्दगी
कहने को हम तेरी ही नज़र में रहे !

           ------सत्येंद्र गुप्ता

Sunday, July 24, 2016

मिजाज सबका ही बदल रहा है
चिराग हवाओं मे भी जल रहा है
जिस पहाड़ी पर बरफ गिरी थी
पत्थर उसका ही तो गल रहा है
कल गुरूर ही गुरूर था उसमे
आज गुरूर उसका पिघल रहा है
कभी जिसने देखा था न मुझको
साथ मेरे अब वही चल रहा है
आज आदमी मरने से पहले ही
हर लम्हा तिल तिल गल रहा है
न जख्म है न निशान है दिल पर
दर्द सीने मे तो मगर पल रहा है
दोस्त को आगे बढता देख कर
दिल ही दिल मे वह जल रहा है
गलती से पूज दिया था जिसको
खुदा बन कर वही तो छल रहा है
किस को फुरसत है जो सोचे
चलने दो अब जैसा चल रहा है
अपनी निशानी छोड़ जाना तू जिधर जाना
खुशबू की तरह तू हवाओं में बिखर जाना
तेरा नाम न लें और लोग पहचान लें तूझको
कुछ इस तरह से तू हर दिल मे उतर जाना
आजमाइशो में इश्क़ भी न पूरा उतरा सका
तू मगर हर कसौटी पर ही खरा उतर जाना
हिमालय की बुलंदियों से न ड़रना कभी भी
तू दरिया है अपना रास्ता तैयार कर जाना
सौ जतन किए मैंने मुझ पर रूप नही आया
तू गुलाबी रंग मेरी ओढ़नी में भी भर जाना
पीने वालो की भी कमी नही है दुनिया मे
बस तू जाम सबके मुहब्बत से भर जाना
भले ही दुश्मन है वह दिल का तो अच्छा है
आसान तू उसका भी तो सफर कर जाना

Friday, July 22, 2016

तुमसे न लड़ते तो किस से लड़ते हम
तुम्हारे साथ साथ कितना चलते हम
एक तुम्ही थे जिसने हमें बेवफ़ा कहा
मर नही जाते तो फिर क्या करते हम
पयार के सांचे मे हम जिस के ढले थे
उससे वादा खिलाफी कैसे करते हम
वक्त ने भी तो हमको पत्थर बना दिया
मोम के माफिक अब कैसे पिघलते हम
अच्छा हुआ तनहाईयों ने अपना लिया
दुनिया बहुत बड़ी है कहां भटकते हम
जाने क्या मजबूरी थी हम अश्क पी गए
बादलों की तरह से कितना बरसते हम
---- सतेन्द्र गुप्ता

Thursday, July 21, 2016

हमारे दर्द भी क्या गजब ढाते हैंं
दुनिया के बहुत काम आते हैंं
इंतज़ार रहता है सबको बहुत
दर्द पे मेरे सब खिलखिलाते हैं
आसुओं को बहता देखकर वह
चश्मे नम अपनी भी कर जाते हैंं
फिर पोंछ देते हैंं आसुओं को
हंस कर हमे गले से लगाते हैंं
चैन से जीने नही देते हमको
पीठ पीछे बातें बहुत बनाते हैंं
ऐसे दोस्तों का करें क्या बता
दोस्ती का भी मजाक उड़ाते हैंं
सतेन्द्र गुप्ता

Monday, June 27, 2016

फूलों ने हर मौसम में खिलना बंद कर दिया
खुशबूओं ने शिकवा करना बंद कर दिया
दिल तेरे लिए हमने प्राणायाम तक किया
तूने ही कायदे से धड़कना बंद कर दिया
वक्त जब से तू भी जिद्द पर आ गया अपनी
हमने भी अपनी हद में रहना बंद कर दिया
क्या कहें हिज्र अच्छा है कि विसाल अच्छा है
अब हमने मजनूं सा दिखना बंद कर दिया
अपना खून तक भी नही पहचान सके हम
शीशी में भरा था अपना लगना बंद कर दिया
मुझको देना तो अब तुम कोई दुआ मत देना
अब मैंने भी चांद सा दिखना बंद कर दिया
रोशनाई ही सूख गई है अब तो दिल की
खत हमने उनको लिखना बंद कर दिया
पानी भी अब जहर समान हो गया मेरे लिए
ड़ाकटर ने बार बार चखना बंद कर दिया
जरूरतों की सब चीजें हैं अब मेरे पास भी
अब मैंने हाय तौबा करना बंद कर दिया
सतेन्द्र गुप्ता

Thursday, June 23, 2016

जिंदगी तुझे सजदा करना भी सिखा दूंगा
सलीके से जीने का तूझे हुनर बता दूंगा
तेरा करज़ मुझ पर अभी बाकी है जिंदगी
तूने मोहलत दी तो उसको भी चुका दूंगा
दिल तेरे वास्ते हमने क्या क्या नही किया
रूक गया तो तूझे भी धड़कना सिखा दूंगा
बस कुछ दूर और तू मेरे साथ चला चल
मैं सासों का तेरे लिए खजाना लुटा दूंगा
फिर न कहना मुझे कि मैं बेवफ़ा निकला
तेरे लिए तो मैं अपनी हस्ती भी मिटा दूंगा

Saturday, June 18, 2016

मुहब्बत का दम अब तक भरते हैं 
जब भी तेरी गली से हम गुज़रते हैं। 

बेशक़ भूल गए वायदे तुम वह सब  
हमारे दिल में दर्द आज भी पलते हैं।

हर दर्द की भी तो दवा न बन सकी 
मुरझाए हुए फूल भी कहां खिलते हैं।

इश्क़ की धूप में हाथ भले  जल गए 
वह हुस्न देख अब भी आहें भरते  हैं। 

सलामत रहे आशिक़ी हमारी भी तो 
हम रब से दुआ भी यही तो करते हैं। 

स्याही उंडेल कर  दिल के पन्नों पर 
ग़ज़ल गीत  कभी कविता लिखते हैं।  

                     सत्येंद्र गुप्ता 

  


Monday, June 13, 2016

मौसम बदल रहा है अपना ख्याल रखना 
दिल  अपना हर हाल में खुशहाल रखना। 

समेट लेना  शिक़्स्ता गुलाब  की  खुशबू 
दिल में न  कोई तू अपने  मलाल रखना।

तहज़ीब का तेरी न कोई तमाशा बना दे 
जो बीत गईं हैं सदियाँ वो संभाल रखना।

नफरतों  के माहौल से  खुद को बचाना
मुहब्बत जो  मिले उसका ख्याल रखना।

तुम्हारा सामना मेरी दीवानगी से  हो तो 
रिश्ता तुम इश्क़ से ज़रूर बहाल रखना।

वह मेरा सब कुछ था पिछले बरस ही तो 
अब दिल न तू उससे कोई सवाल रखना।

लम्हा ज़िंदगी है तो हर लम्हा आज़माइश 
मिली है  ज़िंदगी तो उसे सम्भाल रखना।  

                 ------ सत्येंद्र गुप्ता  
  



Saturday, June 11, 2016

हमें दोस्तो यारों के बीच रहने दो
अपनो के सहारों के बीच रहने दो
सीख जाएंगे खुद जीने का हुनर
फूलों को खारों के बीच रहने दो
जाने किस रंग मे आ जाए बहार
दिल को बंजारों के बीच रहने दो
आज का चांद फिर निकलेगा नही
उसको इन सितारों के बीच रहने दो
आज तेरी गजल का अंदाज नया है
उसे हम से यारों के बीच रहने दो
गम को भुला दिया करो हंस कर
दर्द को फनकारों के बीच रहने दो
फिर यह दिन भी न लौटेंगे कभी
बचपन को बहारों के बीच रहने दो

Tuesday, June 7, 2016

बहुत खूबसूरत है खुशबू तुम्हारी
महकती है फिजा बदौलत तुम्हारी
मुबारक हो तुम्हे हर अदा तुम्हारी
सलामत रहे आशिक़ी भी हमारी
आज तुम बड़ा गजब ढा रही थी
चाँद ने थी आरती तुम्हारी उतारी
चांदनी भी आज पशेमां बहुत थी
चुका रही थी आज वो भी उधारी
एक बहम सा दिल मेंं बस गया था
हमने दिल में नज़र तुम्हारी उतारी
जाने उन लम्हो ने भी क्या सोचा था
गुदगुदा रही थी दिल को भी खुमारी
रूह मुहब्बत की बारिश मे भीगी थी
तुम बाहों मे सिमट रही थी हमारी
तुम्हारी खुशबू का ही पता करती है
जब भी चलती हैंं यह हवाएं बिचारी

Monday, June 6, 2016

बेसबब न इधर उधर फिरा करो
जमाने की नज़रों से ड़रा करो
नज़र लग जाएगी किसी की भी
हमारी ही नज़र में रहा करो
खूबसूरत हो तुम तुम्हे इल्म नही
नज़रों से मेरी खुद को देखा करो
तुमको देखकर ही जीते हैं हम
यकीन हमारा भी तो किया करो
तुम्हारी खूशबू का कायल हूं मैं
मेरी सासों को महका दिया करो
चांद भी पुराना लगता है सामने
दिल से अपने ही पूछ लिया करो
सलामत रहे हुस्न तुम्हारा ये सदा
दुआ यह भी तो करते रहा करो

Sunday, March 27, 2016

अपनी मुहब्बत का असर देख लेना 
मुझे तुम बस एक नज़र देख  लेना। 

मेरी दीवानगी तुम देखो या न देखो 
मुझे अपनी खुशबू से तर देख लेना। 

पन्ने पलट कर तुम अदाओं के मेरी
प्यार करने का मेरा हुनर देख लेना। 

सुक़ून इतना मिलेगा न दैरो हरम में 
सुकून वह मिलेगा मेरे घर देख लेना। 

मुझे मुहब्बत  ने बख़्शे  हज़ार गुल हैं 
मिलेगा न मुझसा हमसफ़र देख लेना। 

करीब से होकर  गुज़रो जब  मेरे तुम 
दिल का मेरे भी  तुम नगर देख लेना। 

महकने लगेगा इश्क़ जब यह हमारा 
दूर तक जायेगी यह खबर देख लेना।

बस एक गुज़ारिश तुम से है यह भी 
अपने  दोस्तों के  जिगर  देख लेना। 

                    ----  सत्येंद्र गुप्ता 

Sunday, February 14, 2016

तुम मिले तो दर्द ने रस्ता बदल दिया 
क़िस्मत ने  लिखा अपना बदल दिया। 

दीवारे- उम्र इश्क़ के आड़े न आ सकी 
दरिया ए इश्क़  ने नक़्शा बदल दिया। 

इश्क़ को भी हुस्न की पनाह मिल गई 
दिले नादां  ने भी धड़कना बदल दिया।

खुशबुओं के जैसे  सब दरीचे खुल गए 
हवाओं ने  अपना चलना  बदल दिया।

जिसको भी शिकायत थी मेरे वज़ूद से 
उसने ही  अपना नज़रिया बदल दिया। 

महफ़िल तुम्हारे आने  से ही सज गई 
ग़ज़ल ने भी अपना लहज़ा बदल दिया।

नशीली आँखों का खुमार देख  तुम्हारी 
हमने भी  पीने का जरिया बदल दिया।

मुराद मेरे दिल की जब सब पूरी हो गई
मैंने ही वो धागा मन्नत का बदल दिया। 
  


Tuesday, January 19, 2016

यारियां निभाने का  वक़्त न मिला 
दूरियां घटाने  का वक़्त  न  मिला।

भाग दौड़ में  ही गुज़र गई  ज़िंदगी 
ज़रा भी सुस्ताने का वक़्त न मिला।

सफर जो भी कटना था कट ही गया 
सिलसिले बनाने का वक़्त न मिला। 

ज़रा सी बात पर  ही जो रूठ गए थे 
फ़िर उन्हें मनाने को वक़्त न मिला। 

जिससे जीते हार भी उसी से मान ली 
हाले दिल सुनाने का वक़्त  न मिला। 

दिल की दीवार पर सीलन है ग़म की 
कभी धूप दिखाने का वक़्त न मिला। 
घुट कर रह जाएंगी ये तन्हाइयां मेरी 
ख़ुद को ही रिझाने का वक़्त न मिला।

कुछ तो ऐसा हो कि मैं ज़िंदा रह सकूं
मुक़द्दर आज़माने का वक़्त न मिला। 



तिरोही गज़ल

तीन मिसरी शायरी ------
                        तिरोहे --

मुक्तक , रुबाई  , छंद सब ही चार लाइनों  के होते हैं   कवि , गीतकार , ग़ज़लकार  भी अपनी बात को चार लाइनों में  यानि चार मिसरो में    ही पूरी तरह से कह पाते हैं। इधर मैंने तीन मिसरो  में अपनी बात को पूरी तरह से कहने का प्रयास किया है। तीन मिसरो में बात कहने और सुनने वाले को एक अतिरिक्त आनंद की प्राप्ति होती है। उदाहरण के       लिए ,
         पाँव डुबोये बैठे थे पानी में झील के 
         चांद ने देखा तो हद से गुज़र  गया 
         आसमां से उतरा पाँव में गिर गया 

          सच ढूंढ़ने निकला था 
           झूठ ने मुझे घेर लिया 
           सच ने मुंह फेर लिया 

           बहुत तक़लीफ़  सहकर पाला मां ने 
           मां की झुर्रियां बेटे की जवानी हो गई
           वक़्त बीतते बीतते मां कहानी हो गई 
           
          शान से ले  जाती है जिसको भी चाहे 
          दर पर खड़ी मौत फ़क़ीर नहीं होती 
          उसके पास कोई  तहरीर नहीं होती 

इन तीन लाइनों की शायरी पर मुझको इंडियन वर्चुअल यूनिवर्सिटी फॉर  पीस  एंड एजुकेशन ,  बंगलोर  द्वारा  मुझको डॉक्टर ऑफ़ हिंदी लिटरेचर की मानिद उपाधि से नवाज़ा गया।  यह मेरे द्वारा इज़ाद की गई बिलकुल एक नई विधा है जिसको मैंने नाम दिया है --    तिरोहे   --  तीन मिसरी शायरी।  इसमें पहला मिसरा स्वतंत्र है। दूसरा और तीसरा मिसरा क़ाफिये और रदीफ़ में है।  तीसरा मिसरा शेर की कैफियत में चार चाँद
लगा देता है उसको बुलंदियों तक पहुंचा देता है।  तीसरे मिसरे को मिसरा  ऐ ख़ास कहा है। 
                                        --------   डॉक्टर सत्येंद्र गुप्ता 
                                                                  -----  नज़ीबाबाद