Thursday, February 3, 2011

अभी धूप अभी छाँह हो गये
मौसम भी लापरवाह हो गये।
उजाला आएगा कहाँ से अब
दिल सब के सियाह हो गये।
फलक में उड़ते फिरते थे वो
गिर कर गर्दे -राह हो गये।
फूलों पर निखार आते ही
कांटे सब खैर ख्वाह हो गये।
लगा लगा कर दरबार रोज़
वो जहां - पनाह हो गये।
फलते फूलते रहे खुद तो
शख्स कुछ तबाह हो गये।


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