ईंट ईंट जोड़ कर मकान बनता है
सजाने से घर आलिशान बनता है।
ज़र्रा जो आसमान चूमकर आता है
सबकी नज़र में महान बनता है।
सनक नहीं चाहिए समझ चाहिए
समझ से आदमी इंसान बनता है।
कमाल तो सब ही करते हैं मगर
कोई आंसू ही मुस्कान बनता है।
ऐसे आदमी का करे क्या कोई
समझते हुए जो नादान बनता है।
काफिले से अलग चलता है जो
शख्श वही तो सुल्तान बनता है।
Wednesday, June 15, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment