Saturday, August 31, 2013

हर सवाल का ज़वाब मुहाल नहीं होता
सवाल का ज़वाब भी सवाल नहीं होता !
शिनाख्त कैसे करता दर्दे दिल की वह
हाल अपना ही कभी  बेहाल नहीं होता !
दिल सुर्ख़ लहू सुर्ख़ और ज़ख्म भी सुर्ख़
आँख से बहता आंसू ही लाल नहीं होता !
मैं अपना ज़वाल भी देख लेता होते हुए 
वक्त ने  किया अगर क़माल नहीं होता !
तन्हाइयां अगर मुझ में रंग नहीं भरती
उजाला कभी  घर में बहाल नहीं  होता !
मेरा चेहरा तक़सीम  हुआ नहीं दिखता
मेरे ही आईने में अगर बाल नहीं होता !
अब मुझ को रबत पड़ गया कुछ ऐसा
वो हंस भी देता है तो मलाल नहीं होता !
बुज़ुर्गों की दुआएं अगर साथ रख लेते
दिल यह जिगर कभी हलाल नहीं होता !

Monday, August 26, 2013

दिल बच्चा था शैतानी कर बैठा
किस्सा अपना जुबानी कर बैठा !
खुशबुओं को कौन चूम पाया है
खुशबु चूमने की नदानी कर बैठा !
सारे रंगों को घोल कर एक जगह
अपने रंगों को भी पानी कर बैठा !
दूधिया रात में  झील के किनारे
चांदनी को वो दिवानी कर बैठा !
जुल्फे सियह से लिपटा इस तरह
कि इश्क अपना तूफानी कर बैठा !
उजाले को ढूंढता फिरता रहता था
आसमान अपना नूरानी कर बैठा !

Saturday, August 24, 2013

हुस्न तो ढल गया ग़ुरूर अभी बाकी है
नशा भी उतर गया सरूर अभी बाकी है !
हवाओं ने छेड़खानी की और चली गई
फ़िज़ा में बिखरी गर्देसफ़र अभी बाकी है !
ढूंढते ढूंढते इश्क की नदी तक पहुँच गये
उसमे उतरने का ही हुनर अभी बाकी है !
तेरे बीमार को करार मिल सका न कहीं
उसका भटकना इधर उधर अभी बाकी है !
जो भो मिला बिछड़ने का सबब पूछता है
चेहरे पर जख्मों का नूर अभी बाकी है !
आँख से बहते आंसू थम न सके अब तक
सुनहरा है जख्म शबे हिज्र अभी बाकी है !
दिल को हमारे ही इश्क करना न आया
दिल में एक गम यह जरूर अभी बाकी है !

Wednesday, August 21, 2013

आख़िर कितनी और हम ख़ाक़ उड़ाते
कभी तो हवा के सुर में गीत मिलाते !
कोई खुशबु तो  हमारे अंदर  भी थी
क्या गज़ब करते अगर हम महक जाते !
ज़रा सी जिंदगी है बस चार दिन की
तमाशे इसमें और हम कितने दिखाते !
आंसुओं  के संग सब बह गया काज़ल
हिसाब दर्द का हम और कितना चुकाते !
वक्त अगर मोहलत हमको और दे देता
यक़ीनन हम भी कुछ क़माल कर जाते !

Friday, August 2, 2013

शहर तेरा यह बंज़र और नम निकलेगा
दिल पर यह जख्म भी रक़म निकलेगा !
यह ख़बर थी कि दम तो ज़रूर निकलेगा
ख़बर न थी इस क़दर यह दम निकलेगा !
नर्म लहजे से तुमने काम ले लिया अगर
उसूलों पर दिल मेरा भी क़ायम निकलेगा !
गलत लफ्ज़ अगर चुन लिया कहने  को
तो नक्शा   बदला हुआ हरदम निकलेगा  !
सर्दी की  कंपकपाती  हुई रात में भी तो
इन  आँखों  से आंसू तो गरम निकलेगा !
बैठे बैठे अँधेरी रात जब यह ढल  जायेगी
सुबह सूरज लेकर के नया दम निकलेगा !

Thursday, August 1, 2013

शुहरत छु लेती है जब भी ऊंचाइयां
आगे आगे चलती हैं तब परछाइयां !
मुझको काम में लगा हुआ  देखकर
मसरूफ़ होजाती हैं  मेरी तन्हाईयाँ !
खुशियों के रंग मुझ में जब भरते हैं
सिमट जाती हैं कहीं पे धुन्धलाइयां !
दिल की वादियों में शोर  मचता है
तो सुर्खियाँ बन जाती हैं  रानाइयां !
कुछ लोग मेरे उजालों से भी डरते हैं
परेशान करती हैं उनको अच्छाइयां !
ख़ुदकुशी कर लेते हैं  लोग बहुत से
और नापते ही रह जाते हैं गहराइयां !