Saturday, September 22, 2012

 
हज़ार बहानो से बेरुख़ी अच्छी -
हज़ार कोशिशों से बेबसी अच्छी !
आबरू पर आंच आने लगे तो -
हज़ार जवाबों से खामुशी अच्छी !
रौशनी ग़र आँख में चुभने लगे -
उजालों से फिर तीरगी अच्छी !
ताजमहल देख कर गुमां होता है -
है प्यार की मिसाल कितनी अच्छी !
क्या जज्बा था मुहब्बत का शाज़हाँ में
या मजदूर की थी कारीगरी अच्छी !
हम कायल हैं आपकी सादगी के
हमे लगती है मुखलिसी अच्छी !

मुखलिसी-- निस्वार्थता

Wednesday, September 12, 2012

 
तीर ने ना तलवार ने मारा -
हमको तो ऐतबार ने मारा !
जिसको निशाने पर रखा था -
उसके ही पलटवार ने मारा !
दुश्मन के जब गले लगे हम -
फिर तो हमको प्यार ने मारा !
पहले दिल था मान जाता था -
अब उसकी ही पुकार ने मारा !
कांच से नाज़ुक रिश्तो को तो -
रिश्तो की ही कटार ने मारा !
बिना आहट के दर खोला था -
वक्त की हम को मार ने मारा !
तुम भी वही हो मैं भी वही हूँ -
हम को तो तक़रार ने मारा !
तुम रातो को कुतरते रहे और -
हमको उनकी तीमार ने मारा !
कुछ दिन और संग रह लेते -
आँगन की इस दीवार ने मारा !