Sunday, July 24, 2016

मिजाज सबका ही बदल रहा है
चिराग हवाओं मे भी जल रहा है
जिस पहाड़ी पर बरफ गिरी थी
पत्थर उसका ही तो गल रहा है
कल गुरूर ही गुरूर था उसमे
आज गुरूर उसका पिघल रहा है
कभी जिसने देखा था न मुझको
साथ मेरे अब वही चल रहा है
आज आदमी मरने से पहले ही
हर लम्हा तिल तिल गल रहा है
न जख्म है न निशान है दिल पर
दर्द सीने मे तो मगर पल रहा है
दोस्त को आगे बढता देख कर
दिल ही दिल मे वह जल रहा है
गलती से पूज दिया था जिसको
खुदा बन कर वही तो छल रहा है
किस को फुरसत है जो सोचे
चलने दो अब जैसा चल रहा है
अपनी निशानी छोड़ जाना तू जिधर जाना
खुशबू की तरह तू हवाओं में बिखर जाना
तेरा नाम न लें और लोग पहचान लें तूझको
कुछ इस तरह से तू हर दिल मे उतर जाना
आजमाइशो में इश्क़ भी न पूरा उतरा सका
तू मगर हर कसौटी पर ही खरा उतर जाना
हिमालय की बुलंदियों से न ड़रना कभी भी
तू दरिया है अपना रास्ता तैयार कर जाना
सौ जतन किए मैंने मुझ पर रूप नही आया
तू गुलाबी रंग मेरी ओढ़नी में भी भर जाना
पीने वालो की भी कमी नही है दुनिया मे
बस तू जाम सबके मुहब्बत से भर जाना
भले ही दुश्मन है वह दिल का तो अच्छा है
आसान तू उसका भी तो सफर कर जाना

Friday, July 22, 2016

तुमसे न लड़ते तो किस से लड़ते हम
तुम्हारे साथ साथ कितना चलते हम
एक तुम्ही थे जिसने हमें बेवफ़ा कहा
मर नही जाते तो फिर क्या करते हम
पयार के सांचे मे हम जिस के ढले थे
उससे वादा खिलाफी कैसे करते हम
वक्त ने भी तो हमको पत्थर बना दिया
मोम के माफिक अब कैसे पिघलते हम
अच्छा हुआ तनहाईयों ने अपना लिया
दुनिया बहुत बड़ी है कहां भटकते हम
जाने क्या मजबूरी थी हम अश्क पी गए
बादलों की तरह से कितना बरसते हम
---- सतेन्द्र गुप्ता

Thursday, July 21, 2016

हमारे दर्द भी क्या गजब ढाते हैंं
दुनिया के बहुत काम आते हैंं
इंतज़ार रहता है सबको बहुत
दर्द पे मेरे सब खिलखिलाते हैं
आसुओं को बहता देखकर वह
चश्मे नम अपनी भी कर जाते हैंं
फिर पोंछ देते हैंं आसुओं को
हंस कर हमे गले से लगाते हैंं
चैन से जीने नही देते हमको
पीठ पीछे बातें बहुत बनाते हैंं
ऐसे दोस्तों का करें क्या बता
दोस्ती का भी मजाक उड़ाते हैंं
सतेन्द्र गुप्ता