पेड़ लचीला था पर टूट गया
साथ पुराना था छूट गया।
रफ्तार तूफ़ान की तेज थी
अपनों से रिश्ता टूट गया।
दर्द का बखान अब करें कैसे
जिस पे भरोसा था टूट गया।
रंग है न खुशबु न फूल कोई
हवाओं में सब ही लुट गया।
उसको अठखेलियाँ सूझी थी
किसी का आबला फूट गया।
तुम्हारे गाल गुलनार हैं मुझसे
कहते हुए आइना टूट गया।
जिसे देख वो याद आ रहा था
ख़त हाथों से वह ही छूट गया।
अब गीत ग़ज़ल मैं लिखूं कैसे
कलम ही कहीं मेर छूट गया।
आबला-छाला
गुलनार-लाल
Friday, June 10, 2011
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