Sunday, April 10, 2011
सुनाई जा रही जो तेरी जुबानी थी - किसी और की नहीं मेरी कहानी थी। खंडहर बता रहे हैं ईमारत बुलंद थी- बुढ़ापा भी कभी किसी की जवानी थी। खुश है नदी पार कर कागज़ की नाव से- कुछ देर पहले तो दिल में परेशानी थी। तेज़ हो गया फिजा में तूफ़ान हंसी का- अभी अभी आँखों में सबके हैरानी थी। परेशानी में रहने लगा शहर हर वक़्त - कभी महक उसकी बड़ी जाफरानी थी। तस्वीर पर पड़ गया हार उसकी भी- बुलंद जिसके दिल की सुल्तानी थी।
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