Monday, October 24, 2011

इस जमाने के चलन से डर लगता है
मुझे अपने ही जुनून से डर लगता है।
जिसको पकड़कर हम घूमते फिरते थे
अब मुझे उसी दामन से डर लगता है।
वो जो हाथों में तासीर थी मेरे कभी
अब मुझे अपने उस फ़न से डर लगता है।
पराई हो गई है किस्मत जब से यह
अब मुझे लफ्ज़ मिलन से डर लगता है।
मुफलिसी को मेरी जग ज़ाहिर न कर दे
मुझे अपने इस पैरहन से डर लगता है।
हादसे गली गली में होने लगे हैं इतने
अब तो मुझे इस तन से डर लगता है।
आईने के सामने जब भी खड़ा होता हूँ
मुझे अपने बुरे मन से डर लगता है।




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