रंग बिरंगी समीर हो गई
माटी भी अबीर हो गई।
मस्त फागुन के आते ही
धरती झूमके हीर हो गई।
अधरों पर धधका है टेसू
लाज भीगके नीर हो गई।
साँसों में महका है चन्दन
मैं तो बहुत अमीर हो गई।
दुश्मन लग गया गले से
दूर मन की पीर हो गई।
नेह का धागा जोड़ते जोड़ते
जिंदगी भी कबीर हो गई।
फागुन का है अभिनन्दन
उम्र मीठी अंजीर हो गई।
होरी आई है होरी आई
कहती मैं अधीर हो गई।
रंग बिरंगी दुनिया सारी
की सारी तस्वीर हो गई।
Tuesday, March 15, 2011
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