पत्तों में इतनी सरसराहट क्यों है
दर पर अज़ब सी आहट क्यों है।
हमने कर ली है दिल से सुलह
सांसों में मगर थरथराहट क्यों है।
तूफ़ान भी गुज़र गया कभी का
बादलों में अब गडगडाहट क्यों है।
ठोकर कभी मायूसी कभी हादसा
पावों में इतनी लडखडाहट क्यों है।
बेटा जा रहा है शहर नौकरी करने
दिल में माँ के घबराहट क्यों है।
दिये ने तो जलना है तमाम रात
हवा में इतनी कंपकंपाहट क्यों है।
Monday, May 2, 2011
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