हम मांगते मांगते फ़कीर बन गये
तुम कुछ न बने एक तस्वीर बन गये।
दोस्ती फ़िज़ूल है मेरे ख्याल में अब
तुम किसी हाथ की लकीर बन गये।
मेरी तलब का ही शख्स न मिला
तेरे जनून की सब तहरीर बन गये।
शुहरत के भी तुम सिलसिले हुए
बेकसी की हम ही पीर बन गये।
रस्मो रिवाज़ ही तेरे ऐसे थे कुछ
जो मेरे पाँव की ज़ंजीर बन गये।
Friday, February 4, 2011
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