Monday, November 21, 2016

प्यार तो कर लूं मैं इजाज़त कहाँ से लाऊँ 
इश्क़ में  देने को  ज़मानत कहाँ से लाऊँ 

हवा महकती थी कभी ख़ुशबू से मेरी ही 
चूक गई अब वह  दौलत  कहाँ  से लाऊँ

रात बड़ी काली थी तोड़कर ही रख दिया
धूप निकल गई वो क़यामत कहाँ से लाऊँ

तुम भी मुझ को बेवफ़ा कह कर चले गए 
बेवफ़ाई करने की  आदत कहाँ से  लाऊँ 

यक़ीनन दुआ मेरी भी तो क़ुबूल हो जाती 
तुम जैसी मगर मैं सियासत कहाँ से लाऊँ 

तुझसे भी  एक दिन  बिछड़ना है ज़िन्दगी  
सदा  साथ रहने की रवायत कहाँ से लाऊँ

जाने वह कैसा है देखा नहीं जिसको कभी 
उसके साथ रहने की चाहत कहाँ से लाऊँ

माँ तेरे आँचल तले सीखी थी जो लेट कर 
तुतलाई हुई भाषा में आयत कहाँ से लाऊँ 

दिल बच्चा होने को मचलता  है आज भी 
बचपन की अब वो शरारत कहाँ से लाऊँ 

दिल का पैमाना अभी तक खाली है मेरा 
साक़ी तेरे यार की अमानत कहाँ से लाऊँ 

वह अपने साथ  मेरी वहशत  भी ले गया 
अब दर्द सहने की ताक़त कहाँ  से लाऊँ

यक़ीन है खुद मेरी   हर एक  शै संवारेगा 
उसकी मगर इतनी इनायत कहाँ से लाऊँ 
     आयत --- धार्मिक चौपाई 

                   ------सत्येंद्र गुप्ता