है अपनी ज़मीं अपना आसमां
दोनों ही मुझ पर हैं मेहरबां।
भरोसा खुद पर है मुझे इतना
पूरे होंगे अपने सारे अरमां।
काम करते हैं मेहनत से हम
नहीं उड़ाते खाके-बयाबां।
बोते हैं फसलें सदा ही शादाब
हम नहीं हैं हल्क़-ऐ-बाजीगरां।
सारा जहां हमारा है कहते हैं हम
बदल कर रहेंगे तस्वीरे-जहां।
याद करेगा हमें जमाना सदा
छोड़ कर जायेंगे हम ऐसे निशां।
खाक-ऐ- बयाबां --वीराने की धूल
शादाब -- हरी भरी
हल्क़-ऐ- बाजीगरां --तमाशा दिखाने
वालों के झुण्ड
Wednesday, April 27, 2011
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