Saturday, August 23, 2014

वो झुर्रियां तो अपनी आईने को दिखाते हैं
तल्ख़ियां ज़िंदगी की खुद से ही छिपाते हैं।
क़िस्सा ए ज़िंदगी हम इस तरह सुनाते हैं
दिन तो गुज़रता नहीं साल गुज़र जाते हैं।
संभाले रखते हैं  अपनी ख़ुदी को भी  हम
वक़्त को भी रफ़्तार हम ही तो दिलाते हैं।
बुलंद हौसलों की मिसाल है  यह भी एक
उदासियों में भी हम तो ठहाके लगाते हैं।
यूं बात करते हैं पुर- तपाक लहज़े से हम
अपनी ख़ामियां भी हम खुद ही गिनाते हैं।

Thursday, August 21, 2014

वक़्त जब यह गुज़र जाएगा 
लम्हा जाने ये किधर जाएगा। 
यक़ीन क्या इन हवाओं का 
नशा तो नशा है उतर जाएगा। 
दवा की अब ज़रूरत न रही 
ज़ख़्म पुराना है  भर जाएगा। 
दरीचा खुला न कोई अगर 
दर्द अंदर से तन्हा कर जाएगा। 
इस दस्तूर से वाक़िफ़ हैं सब 
आया है जो लौट कर जाएगा। 
चराग़ रोशन लिए हाथ में 
कौन ख़ुद की क़ब्र पर जाएगा।   
आज़कल पिछले दस दिनों से मैं सपत्नी बैंगलोर अपने बड़े बेटे
बहू और बच्चों के पास आया हुआ हूँ ,यहाँ का मौसम लाजवाब है
तरसेंगे ऐसे मौसम को हम
याद आएंगे लम्हे ये हरदम
आँख खुलेगी जब  रातों में
ढूँढा करेंगे ख़ुद  को ही हम।

Thursday, August 7, 2014

खुशबु बिकने लगी जब से  बाज़ारों में
नाम लिखवा दिया हमने खरीदारों में।
ख़बर छप गई सुबह  जब अख़बारों में
खलबली सी मच गई मेरे सब यारों में।
टुकड़े टुकड़े होकर ढह गया मक़ान वह
सपने सुनहरे सजे थे जिसके आसारों में।
खता तेरी थी न ही खता मेरी थी  कभी
मज़ा फिर भी आता था उन तक़रारों में।
शर्त लगाते हैं तूफानों से तो अब भी हम
जान बहुत है अब भी दिल की दीवारों में।
मेरे पूजते पूजते ही देवता बन गया वह
कोई तो हुनर होगा हम जैसे फ़नकारों में। 
  

Saturday, August 2, 2014

ख़ूबसूरती कभी बेनज़र नहीं होती
मुहब्बत की कोई डगर नहीं होती।
बहुत शौक़ था महकने का उसको
फूल की ही उम्र  मगर नहीं  होती।
मुहब्बत तो पलकर बड़ी हो जाती
छत नीची घर की अगर नहीं होती।
ज़ख्म भी भर जाते  सारे कभी के
निशानी तुम्हारी  अगर नहीं होती।
 उम्र भर का हिसाब न मांग मुझसे
साथ तेरे अब तो गुज़र नहीं होती।
फ़िक़्रे दुनिया ने तोड़ दिया मुझको
अब मुझे मेरी ही ख़बर नहीं होती।
 ऐसे भी कुछ लोग हैं इस ज़हान में
जाम बग़ैर जिनकी सहर नहीं होती।