Tuesday, May 31, 2011

बात कर लेते तो कुछ बात हो जाती
नई शायद कोई करामात हो जाती।
लफ्जों का सहारा मिल जाता आँखों को
दिलों की आपस में ही बात हो जाती।
जाने वाले आवाज़ देते नहीं कभी भी
अगर पुकार लेते मुलाक़ात हो जाती।
रुखसती का इल्म पहले से अगर होता
करवटों के नाम ही सारी रात हो जाती।
कमाल शख्श था बस चेहरा देखता रहा
जुल्फें तराश देता तो बरसात हो जाती।
वक़्त अगर रुक रुक कर ही चलता तो
आशिकी में भी कोई नई बात हो जाती।
मुझसे मेरी पहचान गुम नहीं होती जो
समय रहते आईने से मुलाक़ात हो जाती।

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