मन के तहखाने कहाँ खुलते हैं
हंसने के बहाने कहाँ मिलते हैं।
पीने की तलब uthti rahti hai
हर जगह मैखाने कहाँ मिलते हैं।
धूप में पानी में कहीं भी बिठा दे
ऐसे अब दीवाने कहाँ मिलते हैं।
तन मन सबका सुलग उठता है
जलते हुए परवाने कहाँ मिलते हैं।
आँखें तो यूँ ही नम हो जाती हैं
गम वह पुराने कहाँ मिलते हैं।
हुलस हुलस कर देख तो लेते हैं
मिलने के बहाने कहाँ मिलते हैं।
Thursday, June 16, 2011
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