Monday, September 30, 2013

सूरज है , अंधकार से  नहीं डरता
पानी के साथ पत्थर  नहीं बहता !
थोड़ी सी मिलावट  बेहद जरूरी है
खरे सोने से भी ज़ेवर नहीं बनता !
यह खबर है  कि वो आने वाले हैं
इस खुशबु से ही  जी नहीं भरता !
घर की बात  घर में ही सुलझा लो
ठोकरों से कभी मुक़द्दर नहीं बदलता !
पेट में जब  कभी भी आग जलती है
रोटी कह लेने से ही पेट नहीं भरता !
उजाड़े या बसाये यह उसकी इच्छा है
किसी के रोके से दरिया नहीं रुकता !
तुम नादान हो तुम्हे यह इल्म नहीं
ज़न्नत का दर  बेवज़ह नहीं खुलता ! 

Saturday, September 28, 2013

राम को देखकर बहुत खुश था रहीम
श्याम का घर  चिन रहा था शमीम !
सब को  रास्ता दिखा रहा था  राम
दर्द  सब के दूर कर रहा था  रहीम !
किसकी आरज़ू और किसकी जुस्तजू
अपने ही तो हैं दोनों राम और रहीम !
किसकी मैं पूजा करूं या करूं सज़दा
पाई नहीं मैंने ही कभी इसकी तालीम !
खुशबु के झोंकों से हैं सुर्खरू दोनों ही
कहे चली जा रही है यह बादे नसीम !
 रिश्तों को बेच दें हम चंद पैसों की खातिर
हमसे इतना भी शर्मसार नहीं हुआ जाता !
उम्र गुज़र गई  फाका मस्ती में ही  सारी
इस से ज्यादा इमानदार नहीं हुआ  जाता

Thursday, September 26, 2013

तेरे ग़म का आख़िर हम क्या करें
कब  तलक़ तेरा हम सज़दा  करें !
क्या करें  इससे ज़्यादा यह  बता
फ़ासला न रक्खें तो फिर क्या करें !
दिल का दर्द हमने भरा तस्वीर  में
लकीरों को कितना हम गहरा  करें !
वह तस्वीर  आईने में देखी थी जो
क्यों बार बार उस को ही देखा करें !
मिला है मुझ को ही हमसफ़र ऐसा
दुआओं का भी आख़िर हम क्या करें !
तेरी बातों से  मुझे डर लगने लगा है
तेरा कहा भी कैसे हम अनसुना करें !
बात कहने पर भी लगी हुई है पाबंदी
अब  किस क़दर  तेरा हम चर्चा करें !
शख्श किसी भी काम न आ सके जो
तू ही बता ,उस शख्श का  क्या करें !

Saturday, September 21, 2013

क्या कहूं, तेरे बिना मैं क्या हो गया
जगमगाते शहर में  अँधेरा हो गया।
ज्यों  फूल से गायब हो जाए  खुश्बू
बेचारगी का मैं  सिलसिला हो गया।
आँगन में उतरने को थी धूप  जैसे ही
सूरज पर बादलों  का पहरा हो गया।
किया करते थे हम बारिश की दुआएं
सैलाब आँखों में  हद दरज़ा हो गया।
भटक रहा हूँ अब अपनी ही तलाश में
अक़्स मेरा, दर्द का  नगमा  हो गया।
मेरे पास फ़क़त किरचियाँ ही  रह गईं
शीशा ए दिल  टूट कर , चूरा हो गया।
कभी तो  एक बार आकर  देखले मुझे
मैं धुंआ देती लकड़ी का टुकड़ा हो गया।
 

Thursday, September 19, 2013

आज़ फ़िर  उसी शाम की  तलाश है
आज़ फ़िर मुझे मक़ाम की तलाश है।
अपनी खुश्बु को हिसाब मत दे मुझे
आज़ मुझको मेरे दाम की तलाश है।
शराफ़तो से वह राह पर नहीं आयेंगे
फ़िर से किसी इल्ज़ाम की तलाश है।
निकल नहीं पाए क़द से बाहर कभी
झूठी शान को  गुलाम की तलाश है।
कान पक गये सुनते सुनते अब यही
हमको  सख्त निज़ाम की तलाश है।
होठों का तबस्सुम भी ये कह रहा है
तिश्नगी को फ़िर ज़ाम की तलाश है।
जिसके दम पर दुनिया सारी टिकी है
उसे  भी तो  एहतिराम  की तलाश है।



 

Monday, September 16, 2013

वक्त के  हाथों में, मैं  भी तो पला हूँ
वक्त की मैं भी तो जाने तमन्ना हूँ।
तुमने तो मौत मांगी थी मेरे लिए भी
ये मेरा हुनर है , अब तक मैं ज़िंदा हूँ।
वो बोले उम्र हुई, अब बचा भी क्या है 
मैंने कहा, मैं फूल हूँ अभी तो खिला हूँ।
मुहब्बत भी मुझे देख ,आहें भरती है
मैं प्यार का ऐसा ही तो सिलसिला हूँ। 
इतना हुआ ,आज़ मैं ज़रा संवर गया
आइना बोला , मैं ही तो बादे -सबा हूँ। 

Wednesday, September 11, 2013

हिन्दी को बेचारी  बनाया  हिन्दी भाषी लोगों ने
अंग्रेज़ी को सम्मान दिलाया हिंदी भाषी लोगों ने।
हिंदी दिवस पर जश्न मनाकर ,याद कर हिंदी को
हिन्दी पर अहसान जताया, हिन्दी भाषी लोगों ने।   
हिन्दी विदों को  शाल भेंट कर ,प्रशंसा में उन की
हिन्दी का गुणगान कराया , हिंदी भाषी लोगों ने।
हिन्दी की सुंदर माला में शब्द पिरोकर अंग्रेज़ी के
हिन्दी का  उपहास उड़ाया ,हिंदी भाषी लोगों ने।
हिन्दी  भाषा ऐसी है , दिल को ठंडक पहुंचाती है
उसको रेगिस्तान  बनाया, हिंदी भाषी लोगों  ने।
खुद में  सिमट कर रह गई, चुपके चुपके रोती है
हिन्दी को बेज़ुबान बनाया, हिंदी भाषी लोगों ने।

 

Thursday, September 5, 2013

हर वक्त  तो हाथ में गुलाब नहीं होता
उधार के सपनों से  हिसाब नहीं होता।
यूं तो सवाल बहुत से उठते हैं ज़हन में
हर सवाल का मगर ज़वाब नहीं होता। 
शुहरत मेरे लिए  अब  बेमानी हो गई
ख़ुश पाकर अब मैं  ख़िताब नहीं होता।
रात भर तो सदाओं से घिरा रहता हूँ मैं
सुबह उठते आँखों में ख्वाब नहीं होता।
छेड़छाड़ करता रहता हूँ  चांदनी से मैं
ख़फ़ा मुझ से कभी महताब नहीं होता।
मयकदा खुल गया घर के बगल में मेरे
हर वक्त मगर जश्ने शराब नहीं होता।


 

Tuesday, September 3, 2013

कुछ दाग़ ज़िन्दगी भर नहीं जाते
उम्र गुज़र जाती है छिपाते छिपाते।
इश्क़ का सौदा कर लिया था कभी
कटी रातें सब कर्ज़ चुकाते चुकाते।
चरागों की बस्ती में बहुत ही  ढूँढा
सितारे छिप गये   दिखते दिखाते।
भटकती हैं परछाइयां अब आवारा 
बे सदा हो गईं गम सुनाते सुनाते।
जवानी  कब आई, चली गई  कब
थक गया आइना भी बताते बताते।
न जाने बादल यह घने कब छटेंगे
उम्मीद  टूटी आस लगाते लगाते।
परदेस से लौटकर आ तो गये तुम
ख़बर मिल गई हमें भी उड़ते उड़ाते।