खुद ही लड़ते हैं खुद सुलह करते हैं
वो प्यार भी दीवानों की तरह करते हैं।
खुशनुमा होते हैं लफ्ज़ उनके बहुत
जब भी कहते हैं बड़ी जिरह करते हैं।
नजाकत वक़्त की भी नहीं जानते
कुछ लोग बातें ही बेवजह करते हैं।
फितरतन बुजदिल होते हैं शख्श वो
अक्सर जो बहुत ही कलह करते हैं।
किसको देखूं मैं न देखूं किसको
बेमतलब मुझ पे निगह करते हैं।
मुझसे न पूछा हाल मेरे होने का
ख्वाहिशें मुझसे बहुत वह करते हैं।
कभी इस पार आये गये उधर कभी
रहने की तमन्ना हर जगह करते हैं।
सहर तो होती है वक़्त पर रोज़ ही
सितारे कहते हैं सुबह वह करते हैं।
Wednesday, April 20, 2011
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