Friday, December 30, 2016

खुली आखों से सपना देख रहे थे
हम भी पता नही क्या देख रहे थे
दूर तक निगाह लौट कर आ गई
जाने किस का रास्ता देख रहे थे
खुशबू तो मेरे ही भीतर बसी थी
नाहक  उसका रस्ता देख रहे थे
आज आइना देख जाने क्यूं लगा
तेरा ही चेहरा जाबजा देख रहे थे
मेरे चेहरे पर ये नूर तेरा ही तो था
कि जैसे चांद ईद का देख रहे थे
फिर कुछ यादें वह ताजा हो गई
हम जैसे कोई करिश्मा देख रहे थे 

Sunday, December 25, 2016

एक क़तरा समंदर में गिर गया 
बला का ग़ुरूर उसमे भर गया !

पल में ही वह समंदर बन गया
इतना बड़ा सफर तय कर गया !

डूबकर उभरा मैं फिर डूब गया 
मैं झील सी आखों में उतर गया !


अरसे से जल रहा था दिल में जो 
अलाव आज चश्म तर कर गया !

मुझमें हौसला तो बड़ा बुलंद था 
अंधेरे में अपने साये से डर गया !

मत पूछो  हालते दीवानगी मेरी 
चोट गहरी थी मगर  संवर गया !

दिलेर हूं दुश्मनों के बीच बैठा हूं 
सब  के चेहरे का रंग उतर गया !

हाथ में तो  कासा लिए था मैं भी
निर्धन को वह धनवान कर गया  !
   कासा --कटोरा 
       ------सत्येंद्र गुप्ता