हम बिखरा सामान बांधते रहे
वो सामान मेरा खंगालते रहे।
जितना मैं उनके दायरे में रहा
हदें मेरी उतनी ही बांधते रहे।
बोझ लगते हैं उन्हें रिश्ते सारे
हम गाँठ रिश्ते की बांधते रहे।
हमें मयस्सर थे कुछ ही पल
वो सदियाँ मुट्ठी में बांधते रहे।
हैरानियाँ आँखों में लिए हम
वजूद में उनके झांकते रहे।
जोशे इन्कलाब दिल में आया
पर सपने दहलीज़ लांघते रहे।
Wednesday, January 12, 2011
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