Friday, October 21, 2011

हंसी को मुस्कराते लबों पर गरूर है
अश्कों को हसीन आँखों पर गरूर है।
मेहनत के जज़्बे से वाकिफ हूँ खूब मैं
मुझे मेरे मिट्टी सने पावों पर गरूर है।
चेहरा निखर जाता है हर पल हर घड़ी
बच्चे को अपने खिलोनों पर गरूर है।
ज़िद थी मुझे मंजिल चूम लेने की
अब मंज़िल को हौसलों पर गरूर है।
हंसी कभी रुदन ,चुभन कभी कसक
जिंदगी को अपनी चीज़ों पर गरूर है।

वो हर वक़्त नया इम्तिहान लेता है
मुझे उसकी नवाज़िशों पर गरूर है।
वो जो प्यार करते हैं दिल से मुझे
मुझे दोस्तों के दिलों पर गरूर है।









1 comment:

  1. सुन्दर प्रस्तुति |
    त्योहारों की यह श्रृंखला मुबारक ||

    बहुत बहुत बधाई ||

    ReplyDelete