Sunday, December 27, 2015

उसे ज़िद थी दिल में ही मेरे उतर जाने की 
मुझे ज़िद थी अपनी सल्तनत बचाने की। 

उस के पास वज़ह थी मुझसे रूठ जाने की 
मेरे पास  भी वज़ह थी उस को मनाने की।

हसरतें तो दिल में  मेरे भी बहुत सारी थी
फ़ुर्सत नहीं थी लेकिन मुझे सर उठाने की। 

बस एक बार मैंने हंसकर देखा था उसको 
क़सम खाई थी उसने मेरे नाज़ उठाने की।

उसे मंज़ूर था  अपने ज़ख़्मियों से मिलना 
मुझको भी ज़िद थी अपना दर्द छिपाने की। 

दिल तू भूलने के फ़न में भी  तो माहिर है
कोई तो वज़ह  होगी उसके याद आने की। 

फिर तो बेख़ुदी में मैं ख़ुद को ही भूल गया
कुछ तो बात थी उन आँखों के पैमाने की। 

दिल का गुलाब मैंने जिसे चूम कर दिया 
दिल को  भी ज़िद थी  उसे आज़माने की। 
   


Saturday, December 26, 2015

कभी दिल हमारा तम ए ख़ाम था 
हमारी नज़र में मये गुल्फ़ाम  था। 
उनको शिकायत रही हमसे सदा  
उनकी नज़र में तो वो नाक़ाम था।   
गम नहीं था पास में जब दिल के 
ग़ोशे में  उसके  बड़ा  आराम था।
अब दर्द ने उस से दोस्ती कर ली 
अब करने को उसे बहुत काम था। 
तमाशे करने लगा  अब वो  इतने  
रफ्ता रफ्ता हो गया  बदनाम था।
मुद्दत हुई यार से रु ब रु हुए अब 
मेरा तो अब भी वो एहतिशाम था।  
  तम ए खाम --अनुभव हीन , कच्चा 
  मये गुल्फ़ाम - गुलाबी शय 
  ग़ोशे  - कोने 
  एहतिशाम - वैभव , शान 

                       -सत्येन्द्र गुप्ता 

Thursday, December 24, 2015

मैंने जब उनका काम कर दिया 
उन्होंने मुझे बदनाम कर दिया। 
इल्ज़ाम सर पर रख कर के मेरे 
चरचा मेरा सरे आम कर दिया। 
मैंने उनको अपना क्या बनाया 
जीना ही मेरा  हराम कर दिया। 
ग़ुरूर तोड़ के उसने दिल का मेरे  
उल्टा सारा  निज़ाम  कर दिया।
दिया भी अँधेरा ही  बाँट रहा था 
रोशनी को यूं बदनाम कर दिया। 
दिल की गहराइयां भी खामोश हैं
दिल मेरा तिश्ना काम कर दिया। 
शिद्दत से आज़माया उसने मुझे 
फिर  मुझ को नीलाम कर दिया। 
ज़िंदगी हम भी तो पीछे नहीं हटे
हमने हर दर्द तेरे नाम कर दिया।  
      तिश्ना काम - प्यासा 



Wednesday, December 23, 2015

हाथ ज़ख्मीं किये थे लकीरें मिटाने को 
मरहम लगाया फिर लकीरें बचाने को।

नसीब ने तो असर अपना दिखाना था 
दाग़ बाक़ी  छोड़ दिए दिल  दुखाने को। 

मुक़ाम कई आए हदें पार की मिल कर 
मिला न कोई ता उम्र साथ निभाने को।
  
वह अंदाज़ शोख़ वह तेवर वह बांकपन
तड़पे थे बहुत हम उसे  गले लगाने को।

अब तलक़ वह खूबसूरत पल नहीं आया 
सोचा था कभी घर को ज़न्नत बनाने को।

खता किसी की न थी वो खता मेरी ही थी 
मेरी ही ज़िद्द थी  तुमको आज़माने को ।

तुम्हारी खूबसूरती अब भी पहले जैसी है 
नज़र ही वह नही रही अब देख पाने को।

ज़िंदगी ठहरी है वहीँ,सब कुछ खो गया 
एहसास भी अब न रहे दिल बहलाने को।

कब तक़ किसी की आँखों में चुभते हम 
दिखलाई न तन्हाई अपनी  ज़माने को।

वक़्त ने भी कभी अपना साथ नहीं दिया 
मेह्नत तो बहुत की बुलंदियों पे जाने को। 



   

Monday, December 21, 2015

मेरे महबूब ही हमको  दर्द तमाम देते हैं 
हम इश्क़ का जब भी कभी नाम लेते हैं। 

बहुत खूबसूरत दिल था अपना भी कभी 
अब दिल से हम पत्थर का काम लेते हैं।

हवाओं ने भी चलन अपना  बदल लिया  
अब न ही आशिक़ी का वो सलाम लेते हैं। 

यादों में भी अब उनकी खुशबु नहीं आती 
हिचकी  हम अब भी  सुबहो शाम लेते हैं।

थक गई  राहे वफ़ा भी बता अब क्या करें 
लोग वफ़ाओं का भी  अब तो दाम लेते हैं। 

दुआओं की तो बहुत सारी शक़्लें हैं अब भी 
हम अब भी तो सर उनका इलज़ाम लेते हैं। 

मिज़ाज ही बदल गया उस शख्स का अब 
हम तो अब भी बस उनका ही नाम लेते हैं। 


Friday, December 11, 2015

अब किसी बात का ख़याल नहीं होता 
दिल चोट से अब  बेहाल  नहीं होता। 
ज़िंदगी से  समझौते  कर लिए इतने
अब ज़िंदगी से भी  सवाल नहीं होता। 
दिल के कोने में दर्द सिमटे  हैं  इतने 
ज़िक्र उन का  माहो साल नहीं होता।  
वफाओं का  सितम  अगर  देख लेते 
बेवफ़ाई पर  कभी मलाल नहीं होता। 
मिज़ाजे हुस्न अगर समझ आ जाता 
इश्क़ कभी जी का जंजाल नहीं होता। 
हाले दिल जाकर भी सुनाते किसे हम 
मुहब्बत के सौदे में दलाल नहीं होता। 
बहार तो दर पर  खड़ी है मेरे अब  भी 
तक़दीर का ही कोई क़माल नहीं होता। 

Wednesday, December 9, 2015

आंसुओं के मरहम से ज़ख्म नहीं भरते 
ज़र्द मौसम में  सुर्ख़ फूल  नहीं खिलते।

एक अरसा हो गया कस्तूरी को महकते 
वक़्त उतना ही हुआ मृग को भी तड़पते।

दिल ने बहुत चाहा  मिलता रहूँ तुम से 
भीड़ में ख्वाहिशों को रस्ते नहीं मिलते। 

उस लम्हे के गुज़रने  का इल्म न हुआ 
सदियां गुज़र गईं  उस पल के गुज़रते।

ज़िस्म उधड़ गया ताना बाना बुनने में 
वो कहते रहे  हम हद से नहीं गुज़रते। 

साक़ी से भी रब्त हमारा अब नहीं रहा
सिलसिला ए शौक़ अब हम नहीं रखते। 

तारे तो और भी उतर आते ज़मीन पर 
हर दरे दिल पर हम सज़दा नहीं करते।  







हम तुम्हारे अगर नहीं होते 
हम इतने पत्थर  नहीं होते। 
वक़्त अगर मोहलत दे देता 
हम इतने ख़ुदसर नहीं होते। 
दर्द के फूल भी नहीं खिलते 
इश्क़ के जो शज़र नहीं होते। 
उदासी मेरी फ़ितरत न होती 
फूल पत्थर खंज़र नहीं होते। 
पता नहीं हम किस दर होते 
अगर तेरे सू ए दर नहीं होते। 
अब यही सोच दिन कट रहे हैं 
दर्द के दिन मुक़र्रर नहीं होते। 
   ख़ुदसर - उद्दंड ,शज़र -पेड़ 
    सू ए दर -घर की ओर 

Friday, December 4, 2015

ज़िन्दगी मुझे एक सौग़ात दे दे 
फ़ुरसत के थोड़े से लम्हात दे दे। 

वक़्त नहीं है तेरे पास बिलकुल 
मुझको वक़्त ए मुलाक़ात दे दे।

दर्द को मेरे कहीं मह्फ़ूज़ कर दे 
ग़मों से मुझ को  निज़ात  दे दे।

गुलशन में सबा बन कर महकूं 
दिल को वह  राज़े हयात  दे दे। 

तेरे हिस्से का मिल गया तुझको 
मेरे हिस्से की भी क़ायनात दे दे।  

कहानी मेरी भी ये अमर हो जाए 
मुझ को तू वह आबे हयात दे दे। 

मैं भी तो बंदगी खुदा की कर लूं 
मुझे यह अदना सी बिसात दे दे।  

शान में उसके अता कर सकूँ मैं 
कुछ ऐसे मुझ को  नग्मात दे दे। 

मैं भी रह लूँ कुछ पल सुक़ून से 
लम्बी सी मुझको कोई रात दे दे। 

   राज़े  हयात - ज़िंदगी का राज़ 
   क़ायनात   - दुनिया , अदना -ज़रा सी 
  आबे हयात - ज़िंदगी का अमृत