सता रहे हो तुम क्यों सवेरे से मुझको
याद आ रहे हो क्यों सवेरे से मुझको।
घने जंगल में रहने का रबत है मुझे
डर लगता नहीं अब अँधेरे से मुझको।
मुहब्बत निभाता हूँ हर दिल से मै
फर्क नहीं पड़ता किसी चेहरे से मुझको।
माँ की दुआ का नूर बरसता है हर घडी
दूर रखता है हर गम के घेरे से मुझको।
कैसे उन आँखों को ठंडक पहुंचाऊं मैं।
वो झाँक रहे हैं बीच सेहरे से मुझको।
Thursday, February 3, 2011
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