वक़्त नहीं है कहते कहते वक़्त निकल गया
जुबान से हर वक़्त यही जुबला फिसल गया।
दिल से सोचने का कभी वक़्त नहीं मिला
दिमाग से सोचने में सारा वक़्त निकल गया।
खून के रिश्तों की बोली पैसों में लग गई
निज़ाम जमाने का किस क़दर बदल गया।
बुलाने वाले ने बुलाया हम ही रुके नहीं
अब तो वह भी बहुत आगे निकल गया।
हमें तो खा गई शर्त साथ साथ रहने की
वह शहर में रहा और घर ही बदल गया।
दिल मोम का बना है नहीं बना पत्थर का
जरा सी आंच पाते एक दम पिघल गया।
इतना प्यार हो गया है इस जिस्म से हमे
चोट खाकर दिलफिर झट से संभल गया।
तुम मिले मुझ को कुछ ऐसी अदा से
ग़ज़ल को मेरी खुबसूरत मिसरा मिल गया।
Wednesday, May 18, 2011
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