घर के आँगन में आएँगी तितलियाँ बुलाकर तो देखिये
मेरी गोल्ड कलेन्द्दुला गुलाऊद खिलाकर तो देखिये।
तितलियों के संग मन भी उड़ान भरने को मचलेगा
उलझे उलझे ख्यालातों से बाहर आकर तो देखिये।
दुश्मनी आपसी खुद-ब-खुद ही मिटती जायेगी
जख्मों को नर्म लम्स से सहलाकर तो देखिये।
दुआओं का ढेर सामने लगता ही चला जायेगा
एक परिंदे को पिंजरे से उडाकर तो देखिये।
गम की काली घटाएं न रुलायेंगी तुझे कभी
दिलों में वासंती बयार बहाकर तो देखिये।
खुदा की बनाई हर एक चीज़ अनूठी होती है
रेगिस्तान में दिल बहलेगा आकर तो देखिये।
Sunday, February 27, 2011
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