Friday, July 31, 2015

मेरे रिश्तों  को परखना  मेरे बाद 
चेहरे अपनों  के पढ़ना  मेरे बाद। 

उम्र ता मरने की राह देखी थी मेरे
कौन होगा  दर्द में  डूबा मेरे बाद। 

सिलसिला कभी कोई रुकेगा नहीं 
न दिखेगी  मेरी ही वफ़ा मेरे बाद।

मैं तो गया वक़्त हो जाऊँगा फिर 
मिलेगी न यह रंगे अदा मेरे बाद। 

यह मय परस्ती न ये  ऊज्रे मस्ती 
न ही  होगी कोई तमन्ना मेरे बाद। 

कहते हुए साक़ी से ये ह्या आती है
फिर नहीं होगा ऐसा नशा मेरे बाद। 

   मय परस्ती -मधुपान 
   ऊज्रे मस्ती -मधुपान का बहाना  

Thursday, July 30, 2015

मुश्क़िल से मिली है फ़ुरसत तेरे पास आने की 
ज़रूरत नहीं रही मुझे अब किसी भी बहाने की।

हर चन्द मेरी ज़ान को तो रब्त तुझ ही से था 
तमन्ना भी बहुत थी तुझे  गले से लगाने की।

हाँ तुमने ही  तो बेवफ़ा  कहा था मुझ को तब 
ताक़त नहीं थी तब किसी के  नाज़ उठाने की।

देखना क़िस्मत अब खुद ब खुद संवर जायेगी
मुहब्बत ने भी ज़िद की है अब तो निभाने की। 

बदी की उसने  जिससे हमने की थी  नेकियां 
 फिर ज़िद भी उसी की थी हमें  आज़माने की।  

ग़नीमत है कि ब उम्मीद ही गुज़र रही है अब 
बेताबी है दिल में बस ख़ुदी को भूल जाने की। 

रक्खा है  पैमाना ऐ शराब  तो कब से  सामने
आँखों से  पीने की तमन्ना है अब दिवाने की। 

क़ैदे हयात  में मौत आ जाए  इस से पहले ही 
हसरत है दिल में ग़मों से भी निज़ात पाने की।   


    


Tuesday, July 28, 2015

तेरा काम मुबारक़ तुझे 
तेरा नाम मुबारक़ तुझे। 

तेरी सुबह मुबारक़ तुझे 
तेरी शाम मुबारक़ तुझे। 

ये मैक़दा मुबारक़ तुझे 
तेरा ज़ाम मुबारक़ तुझे। 

मैं रहूँ या न रहूँ, मेरी हर 
सुबह शाम मुबारक़ तुझे। 

तू हमेशा ही सलामत रहे 
यह पैग़ाम मुबारक़  तुझे। 

तेरा ख़ुदा  मुबारक़  तुझे 
मेरा  राम  मुबारक़  तुझे। 

Monday, July 27, 2015

        …  तेरी  खुशबु … 

उधर से आई है या इधर से आई है 
मनचली है जाने किधर से आई है। 

सारे ही  फ़ूल  महक़ रहे होंगे वहां 
खुशबु ये खुशबु के नगर से आई है।

फ़िर ख़्याल आया जानी पहचानी है 
खुशबु तेरी है  तेरे ही दर से आई है। 

चाँद ने भी तो कल देखा था तुझको 
या खुशबु उतर कर ऊपर से आई है। 

या हम तुम दोनों कल मिले थे जहां 
खुशबु  उड़कर उस ही डगर से आई है। 

दिल ने कहा परेशां मत हो मेरे दोस्त
मैं जानता हूँ खुशबु  जिधर से आई है  



साँसों के ज़रिये दिल में समा गई थी 
ये  तेरी खुशबु मेरे ही अंदर से आई है। 


Saturday, July 25, 2015

दिल में ज़ुनून  था  मैं भी मज़बूर था 
आँखों में मेरी उनके चेहरे का नूर था। 

मैं तो आबाद ही आवारगी में हुआ था 
उन को भी इस बात पर बड़ा ग़ुरूर था। 

सुरूर तो आसमां से भी बरस रहा था 
चाँद  भी अपनी चांदनी पर मग़रूर था। 

देखने का अंदाज़ उन का भी नया था 
उनकी निगाहों में भी इश्क़िया नूर था। 

निगाहों में भी इश्क़ का  ज़लज़ला था 
साहिल तो सामने ही था मगर दूर था। 

मैक़दे का पता ही  तो  सब पूछ रहे थे 
हवाओं में बिखरा  नशे का फितूर था। 

उसके पास प्यास बुझाने का हुनर था 
उसको अपनी लायकी पे बड़ा ग़ुरूर था। 

नाहक़ ही बदनाम हो गया था वह तो 
दिल को संभालना ही उसका क़ुसूर था।

मेरा ही ज़िक्र उस की ग़ज़ल में भी था 
लफ्ज़ आस पास थे  मगर वह दूर था। 




Friday, July 24, 2015

अच्छे भले आदमी थे  पागल हो गए  
इश्क़ो मुहब्बत के हम क़ायल हो गए। 

हवाओं में नाच रही थी खुशबु तेरी ही 
संग नाचने को हम भी पायल हो गए।   

कहाँ  से लाए हो अदाओं में बांकपन 
कोई माने न माने हम घायल हो गए। 

आँखें बातें करती हैं जाने क्या कहती हैं 
समझते समझते हम भी पागल हो गए। 

हर जगह मौजूद है तू मेरे आस पास है 
अपनी दीवानगी के हम  क़ायल हो गए। 

समेट लो अपनी बाँहों के दायरों में हमें 



Thursday, July 23, 2015

सूरज ने अंधेरों की  ख़िलाफ़त की थी 
चाँद  ने  अंधेरों की  हिमायत की थी। 

वज़ूद अपना अपना क़ायम रखने को 
दोनों ने अपने ढ़ंग से सियासत की थी। 

वक़्त से भी देखा न गया था वह मंज़र 
उसने दूर रहने की उन्हें हिदायत की थी।

ज़रा से ज़लज़ले से ही बिखर गई थी वो   
हक़ीक़त  उसकी पुरानी इमारत की थी। 

इश्क़ को मैंने कभी क़मतर नहीं समझा
मैंने तो सदा इश्क़ की  ज़ियारत की थी। 

कोई तो तअर्रूफ़ मेरा उस से करा देता 
मैंने भी तो सदा उसकी इबादत की थी। 

मिसाल बनकर ज़िया जितना वो ज़िया  
नाहक़ ही  सबने उस से  बग़ावत की थी। 

हर वक़्त ही झेलीं  हैं  परेशानियां हमने 
ज़िंदगी ने तो सदा हम पे इनायत की थी। 






Tuesday, July 21, 2015

चेहरा तो सब ने देखा मगर दिल नहीं देखा 
आइना भी हमने इतना  क़ाबिल नहीं देखा।

झुलस गए इश्क़ की तपती तेज़ हवाओं में 
दिल को कभी इतना भी ग़ाफ़िल नहीं देखा। 

तन्हाईयाँ भी  हमको  रास  आ गई इतनी 
मुद्दत से हमने चराग़े महफ़िल नहीं देखा। 

वो खुशबु तेरी जिसने क़त्ल किया था मुझे 
उस महक का फिर कोई क़ातिल नहीं देखा। 

 मुहब्बतें तो दिलों में पहले भी  रहती थी 
ज़िंदगी को इतना भी मुश्किल नहीं देखा। 

आईने से भी मुलाक़ात अक्सर ही होती है  
उस ने कभी भी मेरा दाग़े -दिल नहीं देखा।

तुम खुशनसीब हो  तुम्हें सलाम है बहुत 
कोई शख़्स इतना  मुक़म्मल  नहीं देखा।  

खाली पीली बस मुंह ही  कड़वा होता है 
पीने से भी कभी कुछ हासिल नहीं देखा । 




Friday, July 17, 2015

हाथ ज़ख़्मी किये उसने लकीरें मिटाने को 
वक़्त ने मरहम लगाया लकीरें बचाने को। 

नसीब ने भी कभी कोई कसर नहीं छोड़ी 
आमादा रहा  वह भी हमेशा  मिटाने को।

वक़्त ने भी अपना असर दिखाना ही था 
दाग़ बाक़ी छोड़ दिए थे  दिल दुखाने को। 

मुक़ाम कईं आए हदें भी मिलके पार की 
मिला नहीं कोई भी उम्र साथ निभाने को। 

अब तलक़ वह खुबसूरत पल नहीं आया 
सोचा था घर को कभी ज़न्नत बनाने को।

तुम्हारी खुबसुरती अब भी पहले जैसी है 
नज़र  ही  न  रही  वह अब  देख पाने को। 

खता किसी की न थी वो खता ही मेरी थी 
मेरी ही ज़िद थी तुमको भी आज़माने को । 

ज़िंदगी ठहरी वहीँ सब कुछ ही खो गया    
एहसास भी अब न रहे दिल बहलाने को। 

कब तलक़ किसी की आँखों में चुभते हम 
दिखलाई न तन्हाईयाँ अपनी  ज़माने को।

Tuesday, July 14, 2015

शर्तों  पर  प्यार  करना  क्या 
दिल को  लाचार करना क्या।

परदेशी है वो तो चला जायेगा 
उसका ही इंतज़ार करना क्या। 

दिल में घुट कर ही रह जायेगा 
एक तरफ़ा भी प्यार करना क्या। 

उदासी भी तो एक तुहफ़ा ही है 
लेने से  उसे  इंक़ार  करना क्या। 

ये लम्हा भी अभी गुज़र जायेगा 
फिर  इसका ऐतबार करना क्या। 

जब तक़ इनायत है हम पे उसकी 
मांग  कर के  उधार करना  क्या। 

Monday, July 13, 2015

वक़्त क्या बदला रस्ते बदल गए 
वफ़ा मुहब्बत के किस्से बदल गए। 

एक दीवार उठाने की  कोशिश में  
दिलो आँगन  के नक़्शे  बदल गए।

मैं ख़ुदी को ख़ुदा समझता रह गया  
यहां जीने के  सिलसिले बदल गए।  

वो सुक़ून  तेरे आस पास रहने का 
किताबे दिल के  सफ़हे  बदल गए।

हुक्म देती आँखे कभी बोलती न थी
दिल दुखा तो  उनके परदे बदल गए। 

ज़िगर भी वह न रहा  पीने वालों में
साक़ी बदल गए वो मैक़दे बदल गए।    

Sunday, July 12, 2015

हमें ज़िंदगी से हमेशा शिक़ायत ही रही 
क़दमों से लिपटी हमेशा आफ़त ही रही। 

कभी हंसाना  कभी हंसाकर के रुलाना 
ज़िंदगी तेरी भी तो यह रिवायत ही रही।   

गिनाते रहे ख़ामियां हम अपने क़ुसूर की 
हमारे दिल में तो हमेशा शराफ़त ही रही। 

हमने अपने ग़मों का दिखावा नहीं किया 
सर पर तो  नाचती सदा क़यामत ही रही। 

वह दर्द है गले से भी फिर लिपटेगा वो तो 
ज़ख्म देना उस की तो ख़ासियत ही रही। 

ज़माना भी  बग़ावत  करता ही रह गया  
दिलों में मगर मुहब्बत  सलामत ही रही। 

ज़िंदगी ने तो बहुत कुछ दिया है हम को 
उसकी तो हम पर सदा  इनायत ही रही। 

जाने कितनी ज़ालिम शय है ये शराब भी 
कड़वी बहुत है पीने की मगर चाहत ही रही। 

शराब छोड़ने चले थे वो जहां ही छोड़ गए 
इसकी वज़ह भी तो उनकी  आदत ही रही।

अपना तो दुआओं से भी काम चल जाता 
अब दिल में बाक़ी न कोई  चाहत ही रही।  





Friday, July 10, 2015

कभी मीरा है  तो वो  कभी क़बीर है 
दिल तो मुहब्बत की एक  ज़ागीर है। 

उसके बाद वो किसी का न  हो सका  
हो गया जबसे किसी राँझा की हीर है। 

दिल की क़ीमत का ही अंदाज़ न हुआ 
या तो वो फ़क़ीर है या सबसे अमीर है। 

दौलत रखता है इतनी पास अपने वो   
फ़क़ीर  होकर  भी वह  नहीं फ़क़ीर है। 

कितना ही कोई उसे कहता रहे गरीब 
ख़ुद की नज़र में तो वो सबसे अमीर है। 

इश्क़ में  पागल हो जाता है कभी इतना
टूट कर बिखरना ही उस की  तक़दीर है। 

Tuesday, July 7, 2015

वह तो एक ही है जो मालिक़े जहान है 
हमने बनाया उसे हिन्दू मुसलमान है। 

अपनी पहचान बनाने के लिए हमने  
उसे नाम दिया गॉड ख़ुदा भगवान है। 

मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा गिरजाघर 
बनाया उसका अलग अलग मक़ान है। 

आ मिलकर चार दिन रह ले हम यहाँ 
मैं भी यहां तू भी तो यहां  मेहमान है।  

जो  कुछ हूँ मैं तो बदौलत उसी की हूँ 
वो ज़मीन है मेरा वही तो आसमान है। 



Monday, July 6, 2015

जलती हुई शमां के परवाने बहुत हैं 
इक हसीन रात के अफ़साने बहुत हैं। 

तन्हां न छोड़ना अपने चाँद को कहीं 
शब चांदनी में चाँद के दीवाने बहुत हैं। 

मिटा लेंगे तलब जब भी प्यास लगेगी   
हमारे लिएतो आँखों के पैमाने बहुत हैं। 

उन को अपना मसीहा  बना तो लिया 
मगर वो अपने आपमें सियाने बहुत हैं। 

प्यास उजालों की बढ़ रही है, हर घड़ी 
हमको तो अभी चराग़  जलाने बहुत हैं।

एक ही जगह दिल अब लगे भी  कैसे  
रहने को अब दिल के ठिकाने बहुत हैं। 




Thursday, July 2, 2015

जिसको भी मैंने हवा से बचाया 
उस चराग़ ने ही घर मेरा जलाया। 

हमसफ़र बनकर साथ चला जो 
तन्हाई का उसने ही फ़ायदा उठाया। 

सूने दालान हैं खिड़कियां वीरान 
घर का मेरे यह  क्या हाल बनाया। 

हज़ार खिड़कियां थी दिल में मेरे 
किसी को भी मैं नहीं  खोल पाया। 

ज़ख्म तूने मुझको दिए ही ऐसे 
वक़्त ने भी न उन पे मरहम लगाया। 

तीर की माफ़िक़ चुभी अंगुली वह 
किसी ने  ज़ख्म जब मेरा सहलाया। 

मेरे ज़ख्मों की महक कहती है 
तू भी तो मुझ को  नहीं भूल पाया। 

क़द से बाहर निकल आया था मैं 
ख़ुद से ही न बाहर न निकल पाया। 

Wednesday, July 1, 2015

मेरे हिस्से की शामे ग़म  दे दो। 
ग़मों का मुझको मौसम दे दो।  

उधारी चुकानी है मुझे दर्द की 
ज़ख्मों की मुझको रक़म दे दो। 

मरहम ठीक होने का मत देना   
लड़ी आंसुओं की  पुरनम दे दो। 

पता है  तुम मेहरबान हो बहुत 
 मुझे अपना रहमो करम दे दो। 

चाहत है उड़ने की  आसमान में  
मेरी सांसों को  नया  दम दे दो। 

रोशनाई नही सूखे जिसकी कभी 
प्यार की सुनहरी वो क़लम दे दो।