Sunday, April 15, 2012

रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता
तराजू से तौलकर भी तो प्यार नहीं होता।
दिल की ज़ागीर को मैं कैसे लुटा दूं
हर कोई चाहत का हक़दार नहीं होता।
उजाड़ शब की तन्हाई का आलम न पूछिए
मरने का तब भी तो इंतज़ार नहीं होता।
चमकते थे दरो-दीवार कभी मेरे घर के भी
अब शोखियों से भी दिल गुलज़ार नहीं होता।

बिछड़ते हुए उन आँखों का बोलना देख लेता
तो गया मैं कभी समन्दर पार नहीं होता।
मुझे देखते ही वो खिलखिलाकर हंस दिए
अदावत का कभी कोई मेयार नहीं होता।

अदावत--शत्रुता , मेयार--स्तर



Saturday, April 14, 2012

तुम्हारे जाने से हर आँख शबनमी होगी
महसूस हर दिल को तुम्हारी कमी होगी
कभी न बुझेगा तुम्हारी यादों का दिया
कि उसी से दिल में हमारे रौशनी होगी।
अंदर ही अंदर हम बड़े बिखर रहें होंगे
नक़ाब ओढ़े हर वक्त संजीदगी होगी।
अकेले होकर भी हम अकेले नहीं होंगे
ख़ुश्बू तुम्हारी ज़हन में महकती होगी।
दिल तेरे गम के दरिया मेंडूबा करेगा
अज़ब अंदाज़ लिए वो तिश्नगी होगी।
बिछ्डके तुमसे जीना तो पड़ेगा लेकिन
ढूंढती अशआरों में तुम्हे शायरी होगी।
ख़ुदा करे तुम हर कसौटी पर खरे उतरो
दिल से हर वक्त दुआ निकलती होगी।



Friday, April 13, 2012

जाने दिल को किसकी नज़र लग गई
दर्द को मेरे किसी की उम्र लग गई।
धूप शाम तलक मेरे आँगन में थी

सब को ही इस की खबर लग गई।
मैं तो चल रहा था संभल कर बहुत
मुझ को ही ठोकर मगर लग गई।
वारदात तो कोई बड़ी ही हो जाती
अच्छा हुआ जल्दी सहर लग गई।
मां से कहूँगा , मेरी नज़र उतार दे
मुझ को भी हवाए-शहर लग गई।










Tuesday, April 10, 2012

पर्दे के पीछे की असलियत देखता है वो
हाथ मिलाते हुए हैसियत देखता है वो।
वज़ूद कैसा है ,पहनावा कितना उम्दा है
गले लगते हुए शख्शियत देखता है वो।
ख़ुद तो फिरता है, गली गली मारा मारा
सब की मगर मिल्कियत देखता है वो।
गरूर है उसका या फितरत आदमी की
हर नज़र में अपनी अहमियत देखता है वो।



Wednesday, April 4, 2012

शुहरत बवाले-जां है,ख़ाली में नहीं मिलती
मंजिल कभी शब् की स्याही में नहीं मिलती।
दिल का सौदा तो कोई भी कर लेता है मगर
ज़िन्दगी किसी को उधारी में नहीं मिलती।
जो हंस रहा है उसको, हंस लेने दे खुलकर
चाहतें कभी भी मेहरबानी में नहीं मिलती।
चाँद को छूने का कभी जज़्बा जिगर में था
बचपन की महक जवानी में नहीं मिलती।
हवाएं तेज़ हों तो किश्तियाँ लौट आती हैं
मुहब्बत की हवेली नीलामी में नहीं मिलती।
आँखों से आंसूओं की बाढ़ रूक नहीं सकी
मिसाल ऐसी किसी तबाही में नहीं मिलती।




Sunday, April 1, 2012

घर का दर खुला रहा ,रात निकल गई
हद से बाहर अब तो बात निकल गई।

हम दर्द को बेक़सी या बेबसी कहते रहे
मुक़द्दर से उसकी मुलाक़ात निकल गई।
लेकर चले थे सामान जो यहीं का था
इस कश्मकश में पूरी रात निकल गई।
झुलस जाता ज़िस्म सहरा की तपिश में
शुक्र हुआ आँखों से बरसात निकल गई।
एक ही जुमला उसने बार बार सुनाया
अजीब सी वो तर्ज़े-मुलाक़ात निकल गई।
सस्ते दाम में मेरी महंगी शय बिक गई
ज़िन्दगी गिनती नुकसानात निकल गई।