Tuesday, May 31, 2011

बात कर लेते तो कुछ बात हो जाती
नई शायद कोई करामात हो जाती।
लफ्जों का सहारा मिल जाता आँखों को
दिलों की आपस में ही बात हो जाती।
जाने वाले आवाज़ देते नहीं कभी भी
अगर पुकार लेते मुलाक़ात हो जाती।
रुखसती का इल्म पहले से अगर होता
करवटों के नाम ही सारी रात हो जाती।
कमाल शख्श था बस चेहरा देखता रहा
जुल्फें तराश देता तो बरसात हो जाती।
वक़्त अगर रुक रुक कर ही चलता तो
आशिकी में भी कोई नई बात हो जाती।
मुझसे मेरी पहचान गुम नहीं होती जो
समय रहते आईने से मुलाक़ात हो जाती।
ओंठो से छुआ तो लगा शराब है
चीज़ यह बड़ी ही लाजवाब है।
हुस्न है या है दहका हुआ पलाश
कभी कभी खिलता ऐसा शबाब है।
महक उसकी बड़ी ही खुश-लम्स है
उसका होना जैसे ख्यालो ख्वाब है।
हर अंग ग़ज़ल का मिसरा है जैसे
बदन पूरा ग़ज़लों की किताब है।
उसे देख दिल में उम्मीद है जगी
हर शब् न दिखता इदे महताब है।

Monday, May 23, 2011

इतनी बेरूखी कभी अच्छी नहीं
ज्यादा दीवानगी भी अच्छी नहीं।
फासला जरूरी चाहिए बीच में
इतनी दिल्लगी भी अच्छी नहीं।
मेहमान नवाजी अच्छी लगती है
सदा बेत्क्लुफ्फी भी अच्छी नहीं।
कहते हैं प्यार अँधा होता है मगर
आँखों की बेलिहाज़ी भी अच्छी नहीं।
हर बात का एक दस्तूर होता है
प्यार में खुदगर्जी भी अच्छी नहीं।
वायदे तो खुबसूरत होते हैं बहुत
वायदा-खिलाफी भी अच्छी नहीं।



किताब आदमी को आदमी बनाती है
बेकद्री इनकी दिल को जख्मी बनाती है।
किताब कोई कभी भी भारी नहीं होती
किताब आदमी को पढना सिखाती है।
अदब आदमी जब सब भूल जाता है
किताब ही तब तहजीब सिखाती है।
उसके हर सफ़े पर लिखी हुई इबारत
सारी जिंदगी का एहसास दिलाती है।
किताबों के संग बुरा सलूक मत करना
यह मिलने जुलने के ढंग सिखाती है।
कभी रुलाती है कभी बहुत हंसाती है
नहीं किसी को ये कभी भरमाती है।
घाव ठीक हो गया दर्द अभी बाकी है
पेड़ पर पत्ता कोई ज़र्द अभी बाकी है।
सजल नर्म चांदनी तो खो गयी रात में
धूप निकल गयी हवा सर्द अभी बाकी है।
आइना तू मुस्कराना न भूलना कभी
चेहरे पर जमी हुई गर्द अभी बाकी है।
इंसान मर चूका इंसान के अन्दर का
अन्दर का शैतान मर्द अभी बाकी है।
जाने किस हाल में हैं आगे चले गये वो
यहाँ तो सफ़र की गर्द अभी बाकी है।
मेरे हाथों की लिखी हुई तहरीर में
वहशते-दिल का दर्द अभी बाकी है।



Saturday, May 21, 2011

बेरुखी ऐसी की छिपाए न बने
बेबसी ऐसी की बताए न बने।
वो रु-ब-रु भी इस तरह से हुए
उनको देखे न बने लजाए न बने।
उनके हाथों की हरारत नर्म सी
हाथ छोड़े न बने सहलाए न बने।
चेहरा निखरता गया हर एक पल
महक छिप न सके उडाए न बने।
वक्त अच्छा था गुज़र गया जल्दी
याद आए न बने भुलाए न बने।
बहुत जानलेवा बना है सन्नाटा
घर रहते न बने कहीं जाते न बने।

Friday, May 20, 2011

शाम होते ही शरारतों की याद आती है
चमकती तेरी आँखों की याद आती है।
वक़्त वह जब एक दूसरे को देखा था
महकते फूल से लम्हों की याद आती है।
सर-ता-पा तुझे आज तक भूला नहीं हूँ
मिट्टी से सने तेरे पावों की याद आती है।
मुहब्बत की फिजाओं में उस सफ़र की
खाई कौलों कसमों की याद आती है।
उन दिनों मैं मर मर कर जिया था
उस उम्र के कई जन्मों की याद आती है।
चिलचिलाती जेठ की तपती दुपहरी में
साया देते तेरे गेसूओं की याद आती है।
कहीं रहो तुम रहो खैरियत के साथ
दिल को इन्ही दुआओं की याद आती है।
आज दूरियां सिमटना चाह रही थी
आंधी बनकर लिपटना चाह रही थी।
ख्वाहिशों का कोई भी अंत नहीं था
हसरतें उड़ान भरना चाह रही थी।
कटने का उसे डर नहीं था जरा भी
पतंग ऊँची उड़ना चाह रही थी।
राज़ कोई न जान सका आज तक
मीरा क्यों जोगन बनना चाह रही थी।
पहाड़ों पर बर्फ पिघली जा रही थी
खुशबु जाफरानी बनना चाह रही थी।
लोग बड़े प्यार से सुन रहे थे सब
ग़ज़ल लब से निकलना चाह रही थी।
कौन है जिसने बुझा डाले थे चिराग
रात और आगे बढ़ना चाह रही थी।
मरने के बाद जिंदगी जैसा कुछ नहीं होता
स्वर्ग नरक कहते हैं वैसा कुछ नहीं होता।
कहने की बात है कहानी परियों की सी है
मरने के बाद जीने जैसा कुछ नहीं होता।
चिर निंद्रा में सो जाता है इन्सान जब भी
जगने जगाने जैसा वैसा कुछ नहीं होता।
दिल के अंदर झाँक सके तो झाँक देख ले
मन्दिर में भगवान जैसा कुछ नहीं होता।
जोगन बनना मीरा का बुद्ध का घर छोड़ना
लौ लग गई फिर ऐसा वैसा कुछ नहीं होता।
शब् के नसीब में तारीकियाँ हैं सदियों की
जलते दीयों से दिन जैसा कुछ नहीं होता।
ईद दिवाली होली क्रिसमस या बैसाखी
मुफलिसी में त्यौहार वैसा कुछ नहीं होता।

Wednesday, May 18, 2011

प्यादे बहुत मिले कोई वज़ीर न मिला
सबकुछ लुटा दे ऐसा दानवीर न मिला।
जिसे दरम चाहिए न चाहिए दीनार
ऐसा कोई मौला या फकीर न मिला।
अपनी फकीरी में ही मस्त रहता हो
फिर ऐसा कोई संत कबीर न मिला।
प्यार के किस्से सारे पुराने हो चले
अब रांझा ढूंढता अपनी हीर न मिला।
जख्म ठीक कर दे जो बिना दवा के
हमें ऐसा मसीहा या पीर न मिला।
खुद ही उड़ कर लग जाए माथे से
ऐसा भी गुलाल और अबीर न मिला।
किस्मत को कोसते हुए सारे मिले
लिखता कोई अपनी तकदीर न मिला।
धूप भी प्यार का ही एहसास है
लगता है जैसे कोई आस पास है।
पहाड़ों का दिल चीर देती है रात
दिन का होना सुख का एहसास है।
गुलाबी ठंड के साथ ताप जरूरी है
दर्द ही रौशनी का भी विश्वास है।
अर्श से फर्श पर आना आसान है
फर्श से अर्श तक जाना ही खास है।
चाँद के चेहरे पर दर्द पसरा है
रेत का बिस्तर चांदनी का वास है।
यह कहानी भी हमे सदा याद है
आँखों को आंसुओं की प्यास है।
सीमाएं अपनी जानता हूँ मैं
जबतक सांस है दिल में आस है।
वो मुझे पूछते हैं मेरा ही वजूद
प्यार करना ही मेरा इतिहास है।
काम मेरा रुका कभी भी नहीं
उस पर मुझे इतना विश्वास है।


कोई अपने वायदे से मुकर गया
कोई बात अपनी पूरी कर गया।
किसी सरहद ने उसे रोका नहीं
सफ़र अपना वो तय कर गया।
नाम उसका दिल से मिट गया
गुम हुए जिसे वक़्त गुज़र गया।
सिर्फ एक बार हुई मुझसे गल्ती
वह
हर बार गलतियाँ ही कर गया।
आँखों के सहरा में नमी सी लिए
मेरी रूह तक तर बतर कर गया।
शाम से सुबह कटी मुश्किल से
ख्वाब वो सारे सिफ़र कर गया।
मुहब्बत करने वाले कम नहीं होंगे
एक पागल यह खबर कर गया।
जीने की तमन्ना फिर जग उठी
कोई दिल दिल में ऐसे उतर गया।





वक़्त नहीं है कहते कहते वक़्त निकल गया
जुबान से हर वक़्त यही जुबला फिसल गया।
दिल से सोचने का कभी वक़्त नहीं मिला
दिमाग से सोचने में सारा वक़्त निकल गया।
खून के रिश्तों की बोली पैसों में लग गई
निज़ाम जमाने का किस क़दर बदल गया।
बुलाने वाले ने बुलाया हम ही रुके नहीं
अब तो वह भी बहुत आगे निकल गया।
हमें तो खा गई शर्त साथ साथ रहने की
वह शहर में रहा और घर ही बदल गया।
दिल मोम का बना है नहीं बना पत्थर का
जरा सी आंच पाते एक दम पिघल गया।
इतना प्यार हो गया है इस जिस्म से हमे
चोट खाकर दिलफिर झट से संभल गया।
तुम मिले मुझ को कुछ ऐसी अदा से
ग़ज़ल को मेरी खुबसूरत मिसरा मिल गया।



Sunday, May 8, 2011

मदर डे पर

तू हर एक से जुदा है मां
प्रार्थना और दुआ है मां।
मां के नाम का मोल नहीं
सन्तान का भला है मां।
मां के पैरों में ज़न्नत है
ममता का झूला है मां।
मां सुकून है दिल का
जख्मों पर दवा है मां।
कितनी अच्छी भोली है
लोरी है निंदिया है मां।
हमने देखा नहीं जिसे है
ईश्वर का पता है मां।
शत शत प्रणाम है तुझे
लक्ष्मी है व दुर्गा है मां।


Friday, May 6, 2011

पत्थरों का खाक बनके उड़ना अभी बाकी है
फलक का टूट कर बिखरना अभी बाकी है।
रेत में तब्दील हो रही हैं नदियाँ सारी
आदमी का पत्थर में बदलना अभी बाकी है।
जिंदगी पर तो बस नहीं चल सका कोई
मौत को ही परेशान करना अभी बाकी है।

नाम सुनते रहे चीजों का देखी न कभी
दिल के कोने में बचपना अभी बाकी है।
कौन खुश है और कौन ना खुश है यहाँ
ठिकानो का हिसाब रखना अभी बाकी है।
अपने सूखे हुए जख्म सबने दिखा दिए

मुझे अपना हाल कहना अभी बाकी है।
पाँव रखना होशियारी से सम्भाल कर
दर्द पुराने जख्म का सहना अभी बाकी है।
मुकदमे का फैसला हो भी कैसे जाता
लाख का खोके में बदलना अभी बाकी है।

दिलों की धडकनों को खोज है लफ्जों की
ग़ज़ल का कहना सुनना अभी बाकी है।


Wednesday, May 4, 2011

तुम्हारी मुस्कान बहुत लाजवाब है
ओंठों पर खिलता हुआ गुलाब है।
अनेक सवालों का एक ही जवाब है
खुली हुई जैसे वह एक किताब है।
उमंग है या कोई है नया जश्न
ख़ुशी सारी की सारी बेनकाब है ।
इस हंसी पर वारी वारी जाऊं मैं
हंसी नहीं है यह नशीली शराब है।
देख कर के दिल भरता नहीं कभी
जो भी है यह बहुत ही नायाब है।
उस उम्र में कभी फुरसत नहीं मिली
इस उम्र में हमको चाहत नहीं मिली।
सब वक़्त और किस्मत की बात है
वक़्त रहते हमें किस्मत नहीं मिली।
सबको मिल जाती है कभी भी कहीं भी
मुझे अपनी ही बस उल्फत नहीं मिली।
मुश्किलें सारी शायद आसान हो जाती
कभी मुझको अपनी जरूरत नहीं मिली।
आँखों में ढेर सारा समंदर ही भरा रहा
हिस्से की मेरे धूप खुबसूरत नहीं मिली।
अब कौन अपना कहने सुनने वाला है
वक़्त रहते ही कभी मुहलत नहीं मिली।


Monday, May 2, 2011

सिलसिला प्यार का मिलता चला गया
जिस्म ज़ाफ़रान सा महकता चला गया।
गेसू उस शोख ने अपने लहराए जैसे ही
इन्द्रधनुष जमीन पर उतरता चला गया।
तितलियाँ सब उड़ने को बैचैन हो उठी
फिजाओं में शहद घुलता चला गया।
इस अदा से बेनकाब हुआ वो लाजवाब
खुशियों में रंग नया भरता चला गया।
मन में उमंगों की मस्ती सी छा गयी
जाम पर जाम खुद भरता चला गया।
आँख मिलने की ही जैसे बस देर थी
सुखन को लहजा मिलता चला गया।

सुखन- साहित्य
दर्द रिश्तों से हर पल रिसता था
सीने में गम ही गम पलता था।
टूट जाऊँगा मैं रिश्तों की तरह से
दिल बार बार बस यही कहता था।
दिन गिनती के ही रह गएथे कुछ
दिल इस बात से सहमा रहता था।
चंद रोज़ जिंदगी के बढ़ भी जाते
सितम मगर दिल बहुत सहता था।
अब वक़्त बचा न ही बची किस्मत
दोनों में कभी मेल बहुत रहता था।
शायद आखिरी शाम लौट आये वो
दिल में ख्याल सदा यही रहता था।

पत्तों में इतनी सरसराहट क्यों है
दर पर अज़ब सी आहट क्यों है।
हमने कर ली है दिल से सुलह
सांसों में मगर थरथराहट क्यों है।
तूफ़ान भी गुज़र गया कभी का
बादलों में अब गडगडाहट क्यों है।
ठोकर कभी मायूसी कभी हादसा
पावों में इतनी लडखडाहट क्यों है।
बेटा जा रहा है शहर नौकरी करने
दिल में माँ के घबराहट क्यों है।
दिये ने तो जलना है तमाम रात
हवा में इतनी कंपकंपाहट क्यों है।