दिल को मेरे दुखा गया कोई
लम्हे वो याद दिला गया कोई।
गुलाब बनकर नश्तर से मेरे
जख्म को सहला गया कोई।
तमाम रंग चुराके ख्वाबों के
खुली हवा में उड़ा गया कोई।
मैंने पूछा राज़ उसके आने का
अजाब फ़साना सुना गया कोई।
हाथ पकड़ रहबर बनके मेरा
गलत रस्ता दिखा गया कोई।
महताब था या अक्स उसका
पानी में आइना दिखा गया कोई।
Wednesday, January 12, 2011
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