Friday, December 15, 2017

गमे दिल से ही निजात न मिली
जैसी चाही थी हयात न मिली
इससे बड़ा दर्द और क्या होगा
हमें इश्क की सौग़ात न मिली
इक उम्र तक मनाता रहा उनको
क्या करते हमारी जात न मिली
मुद्दत से तलाश थी हमें जिसकी
किसी सिम्त आबे हयात न मिली
कुछ तो सुकून मिल जाता हमको
कयामत की ही कोई रात न मिली
मौत जब खड़ी हुई दर पर आकर
पल की भी मोहलते हयात न मिली
निजात - छुटकारा
हयात - जिंदगी , सिम्त - तरफ
आबे हयात - जीवन अमृत
नर्म लहजे में प्यार से बात न हुई
मुद्दत से कोई जवान रात न हुई
उम्र तो हमारी भी हो चली अब
मुहब्बत की कभी बरसात न हुई
बादलों में ही छिपा रहा रात भर
नए चाँद से कोई करामात न हुई
इतना मिलते थे हम भी जवानी से
बाद उससे कभी मुलाकात न हुई
अब हर बात मुश्किल सी लगती है
पहले तो इतनी मुश्किलात न हुई
जिंदगी ने भी इतना आजमाया हमें
कभी उनसेभी दिल की बात न हुई

Tuesday, December 5, 2017

यूं क्यों तुझसे हम दूर हुए 
तन्हाइयों  का दस्तूर  हुए।

बेबसी की हद इतनी  थी 
मिलने से भी मज़बूर हुए। 

कईं चाँद सूरज निकले थे 
हम  ही  मगर बे नूर  हुए।

पत्थरों के शहर में रहकर
हम ज़ख़्मों से भी चूर हुए।

बाद मरने के दुआ लगी थी  
तभी तो हम  मशहूर  हुए। 

मुझको मेरा खुदा न मिला 
नाहक ही हम मगरूर हुए। 

साक़ी तेरे मैखाने  में आज 
आकर हम भी मसरूर हुए।
        मसरूर - खुश 
        ------- सत्येंद्र गुप्ता  

Monday, December 4, 2017

वो शोख़ियां तबस्सुम वो कहकहे न रहे 
मिलने के भी अब तो   सिलसिले न रहे। 

मेरे ख़्याल की दुनिया में तुम मेरे पास थे 
हकीकत में तुम कभी  मेरे बनके न रहे। 

वह चीज़  जिसे हसरत से  देखते थे हम 
हुस्न  फरेब था वह , उसके जलवे न रहे। 

तुमने  जिन ग़मों से  नवाज़ा था  मुझको 
वह बेमिसाल गम भी तो अब मेरे न रहे। 

अज़ब है इस दुनिया  का भी चलन यारों 
ज़रूरत के वक़्त भी तुम कभी मेरे न रहे। 

मेरी उम्मीद मिट गई अगर मिटने भी दो 
वो होली, वो  दिवाली, वो  दशहरे  न रहे। 

मुझे खबर है  ज़िंदगी की आस तुम्ही हो  
अब अपने लख्ते  ज़िगर भी अपने न रहे। 

        -------- सत्येंद्र गुप्ता 
मोहब्बत की तासीर बदल गई 
चाहत  की तदबीर  बदल गई। 

उनको सजा  संवरा देखा जब 
हुस्न की भी  तस्वीर बदल गई। 

आतिशे रुख़्सार की वह सुर्ख़ी 
लगा मेरी भी तो हीर बदल गई। 

अंगड़ाई लेने की  अदा उनकी 
ख्वाहिशों की तहरीर बदल गई। 

रूबरू थी  वो आईने की तरह 
रूठी  हुई  तक़दीर  बदल गई। 

हर तरफ उनका ही चेहरा था 
क़यामत अपना तीर बदल गई 

             -----सत्येंद्र गुप्ता 

Sunday, November 12, 2017

सांप लिपटे देखे जब से आस्तीन पर
यकीन नहीं हुआ हमें अपने यकीन पर
बेखबर हम थे मगर तुम तो वाकिफ़ थे
तुमने यक़ीं कर लिया उस कमीन पर
जलजलों का सिलसिला खत्म न हुआ
संभल कर चलना ज़रा इस जमीन पर
दिल की तमाम हसरतें दिल में रह गई
कैसा कहर बरपा था उस गमगीन पर
जिंदगी अब जाने किस जानिब ले जाए
जाने क्या क्या लिखा है इस जबीन पर
सूखी हुई शाखें अभी तक भी शादाब हैं
कुछ फूल महक रहे हैं बंजर जमीन पर
आज आइना देखने में उनसे चूक हो गई
हर निगाह टिकी थी लिबास महीन पर
जबीन - माथे
शादाब - हरी भरी
कद से बड़ा ख्वाब देख लिया
दिन मे ही माहताब देख लिया
जिंदगी की कमी पूरी हो गई
आज मैंने वो शबाब देख लिया
सवाल करने की हिम्मत न हुई
जब उनका जवाब देख लिया
हाले दिल उनहे सुनाते भी क्या
उनहोंने सारा हिसाब देख लिया
रात ने करवट जरा सी बदली
आखों ने आफताब देख लिया
खाली पीली मुंह कड़वा हो गया
पीकर के मैंने शराब देख लिया

Sunday, July 16, 2017

होशियार का मतलब फनकार नहींं होता
हर हुनरमंद भी तो कलाकार नहींं होता
मिला जो आज मुझको हंसकर बोला वो
हर गली कूचे मेंं भी तो बाजार नहींं होता
एक बार ही उसको जरा गौर से देखा था
अक्सर ऐसा भी तो बार बार नहींं होता
जो दिल मेंं बसा है वह चांद सा लगता है
चांद का भी तो हर रोज दीदार नहींं होता
पुरानी एलबम में एक ही तस्वीर झूठी है
बचपन का वो प्यार क्या प्यार नहींं होता
तेरी नफरत बनी रहे उम्र भर सदा यूं ही
अब हमसे भी इश्क़ का इजहार नही होता
मालूम हुआ है मुझको तुम्हारी ही जुबानी
मैं अपने फैसले पर शर्मसार नही होता
मेरे कमरे का आईना भी नाराज है मुझसे
मैं ऐतबार दिलाऊ उसे ऐतबार नही होता
न ही मंजिल का पता नहीं रस्तों की खबर
ऐसे भी तो सफर पूरा कभी यार नही होता
--------- सत्येंद्र गुप्ता

Monday, May 29, 2017

वह  रंज़ो ग़म  तेरी  बेवफ़ाई का
सिलसिला था वो मेरी तन्हाई का।

तू गया तो लौटके आ न सका था 
क्या सबब बताता मैं  जुदाई का।

तेरे चेहरे पर लिखा पढ़ा था मैंने
मेरा चरचा था न था रुसवाई का।

वही छोड़के चल दिया तन्हा मुझे
दावा किया था मेरी रहनुमाई का।

रात भर दिल में दर्द  उठा था मेरे
गूँज़ता रहा सुर उसी शहनाई का।

आज फिर  दिल  परेशान है बहुत
याद आ रहा है किस्सा सगाई का।

शहरे वफ़ा में दर्द का साथी न कोई
डर आज भी लगता है रुसवाई का।

खुशबु तेरी अब भी मिलती है मुझसे
एहितराम करती है मेरी तन्हाई का।
     
   एहितराम  - इज़्ज़त

         ------सत्येंद्र गुप्ता

Saturday, February 18, 2017

उनके पास जाने का बहाना नहींं मिला
प्यार को नापने का पैमाना नहींं मिला
कितने ही पागल हो गए जुनूने इश्क़ में
किसी को भी मगर हरजाना नहींं मिला
मुहब्बत तो हमारे भी दिल मेंं बसी थी
हर वक्त मगर समा सुहाना नहींं मिला
मुहब्बत का दम भरते तो हजारों मिले
हद से गुजरा कोई दिवाना नही मिला
जिंदगी का मौत से बना है सिलसिला
आबे हयात का उसे खजाना नहींं मिला
जगमगा उठता है ओस मे नहाकर फूल
हमको तो इसका भी बहाना नहींं मिला
सिक्का खोटा था कोने में ही पड़ा रहा
उसको कभी उसका घराना नही मिला
मिली कामयाबी मगर खुशी नही मिली
मुझको रहमतों का नज़राना नहींं मिला 
मैंने उसको अपना जिगर दे दिया
उसने गम मुझे इस कदर दे दिया
मेरा जिगर छलनी करने के वास्ते
मेरे हाथ मेंं अपना खंजर दे दिया
उसका मुकद्दर संवारने के लिए
 मैंने उसे अपना दस्ते हुनर दे दिया
छांह भी मयस्सर न होसकी कभी
 सूखी शाखों का मुझे शज़र दे दिया
आसूं तक अपना चलन भूल गए
मुझको ऐसा जख्मे जिगर दे दिया
अपनी बेबाकी से ड़र लगता है
दिल की मनमानी से ड़र लगता है
जिंदगी तुझसे शिकवा नहींं कोई
मौत की दावेदारी से ड़र लगता है
मुद्दत बाद मिले हैंं फुरसत से हम
वक्त की मेहरबानी से ड़र लगता है
कईं पागल हो गए जुनूने इश्क़ में
इश्क़ की वफादारी से ड़र लगता है
मैं अपनी रजा भी न बता पाया
मुझे अपनी खुद्दारी से ड़र लगता है
मेरी अमानत संभाल कर रखना
 मुझको निगहबानी से ड़र लगता है
ख्वाहिशें ही बांझ रह गई सारी
अब आंगन खाली से ड़र लगता है
बेबाकी - साफ कहना
निगहबानी - देखरेख

Wednesday, January 18, 2017

इस नजाकत से उसने नाम मेरा लिया
नूर मुहब्बत का  मुझ पर बरसा दिया
मैं झिझकता रहा उसने हाथ थाम मेरा
इश्क़ से मेरा भी तआर्रूफ करा दिया
मदमाती नज़रों से मुझे देखा इस कदर
नशे का मुझको भी तो आदी बना दिया
विसाले शब जुबां से कुछ भी नहींं कहा
सासों को खुशबू से अपनी महका दिया
मुहब्बत कहते हैंं रंगत ही बदल देती है
उम्र हो चली थी मुझको जवां बना दिया
कितना हसीं राग था वह सात सुरों का 
दिल को मुहब्बत का रस्ता दिखा दिया
विसाले शब -मिलन की रात
तआर्रूफ - परिचय
-------सत्येंद्र गुप्ता

Saturday, January 7, 2017

यादों का हमने शहर बसा रखा है
तनहाईयों में तहलका मचा रखा है
उनका दर्द सीने से लगा कर अपने
हमने उनसे तआल्लुक बना रखा है
तनहाईयां ही कहीं बगावत न कर दें
खुशबूओं को भी हमने बुला रखा है
यह इश्क़ कहीं बदनाम न हो जाए
दिल के दर्द को ही दवा बना रखा है
किसी ने जख्म दिया किसी ने फूल
सब को मैंने करीने से सजा रखा है
जिंदगी शर्तो पर भी नही जी जाती
चिराग तूफान में भी जला रखा है
मेरे दर्द को गजल मत समझ दोस्त
मैंने तो बस काफिया मिला रखा है
------सत्येंद्र गुप्ता
कुछ बातों पर बस चलता नहींं
वक्त का फैसला  बदलता नहींं
सब रहनुमा हैंं सब ताकतवर हैंं
कद किसी का कम लगता नहींं
रोज रोज मौजूअः बदलता है वो
दमखम उसमे कोई दिखता नहींं
मंजिल की खबर न रस्ते का पता
वक्त चला जा रहा है रूकता नहींं
झूठ सच मे फर्क इतना ही तो है
हकीकत का अंदाज लगता नहींं
हुस्न का भी तो अलग ही दस्तूर है
किसी को वह कुछ समझता नहीं
हुस्न की बाहों मे दम तोड़ देता है
इश्क़ किसी दर पर झुकता नहींं
जिंदगी तू भी जाने कैसी शराब है
तेरा ही  नशा कभी उतरता नही