Tuesday, December 27, 2011

मेले की मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती
जल्दी में कभी दिल से कोई बात नहीं होती।
वो जो हो जाती है जेठ के महीने में
बरसात वो मौसमे -बरसात नहीं होती।
चुराते दिल को तो होती बात कुछ और
नज़रें चुराना यार कोई बात नहीं होती।
डर लगने लगता है मुझे खुद से उस घडी
पहरों जब उन से मेरी मुलाक़ात नहीं होती।
वो मैकदा ,वो साकी वो प्याले अब न रहे
अंगडाई लेती अब नशीली रात नहीं होती।
आना है मौत ने तो आएगी एक दिन
कोई भी दवा आबे -हयात नहीं होती।


Sunday, December 25, 2011

अपने ही घर का रास्ता भूल जाती है
बात जब मुंह से बाहर निकल जाती है।
रुसवाई किसी की किसी नाम का चर्चा
करती हुई हर मोड़ पर मिल जाती है।
गली मोहल्ले से निकलती है जब वो
नियम कुदरत का भी बदल जाती है।
सब पूछा करते हैं हाले दिल उसका
वो होठों पर खुद ही मचल जाती है।
कौन चाहता है उसे मतलब नहीं उसे
वो चाहत में बल्लियों उछल जाती है।
अच्छी होने पर खुशबु बरस जाती है
बुरी हो तो राख मुंह पर मल जाती है।

Wednesday, December 21, 2011

खबर जब मिली कि ताज़ टेढ़ा हो गया
मुमताज़ शाहजहाँ में झगड़ा हो गया।
टेढ़ी कमर लिए हुए अब जायेंगे कहाँ
क़ब्र में भी एक नया बखेड़ा हो गया।

झुकना शहन्शाई मुहब्बत की तौहीन है
अब सीधे कैसे होंगे यह लफड़ा हो गया।
यकायक पता चला खबर बेबुनियाद है
अकड़ कर ताज़ फिर से खड़ा हो गया।



Sunday, December 18, 2011

किसी के लिए खुद को मिटाकर तो देखते
हाले दिल किसी को सुनाकर तो देखते।
गम तुम्हारा भी बहल जाता यकीनन
गम को मेरे जरा सहलाकर तो देखते।
जहां महक उठता सारा खुशबु से तेरी
प्यार का लोबान जला कर तो देखते।
सितारे जमीं पर उतर आते खुद ही
चाँद को पहलू में सजा कर तो देखते।
गम के सिवा दिल में आ बसता कोई और
निगाहों में किसी की समा कर तो देखते।

Wednesday, December 14, 2011

मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं
मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं।
कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको
वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं।
हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई
वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं।
बात का खुलासा होता भी तो कैसे
सब हैं कि नई गाँठ लगाने में लगे हैं।
फ़िराक़ मुझे जबसे लगने लगा अज़ीज़
वो मुझे मुहब्बत सिखाने में लगे हैं।
यकीनन चेहरा उनका बड़ा खुबसूरत है
उस पर भी नया चेहरा चढ़ाने में लगे हैं।
मुझसे न पूछा क्या है तमन्ना कभी मेरी
बस वो अपना रुतबा बढ़ाने में लगे हैं।

Saturday, December 3, 2011

पुराने किसी ज़ख्म का खुरंड उतर गया
दिल का सारा दर्द निगाहों में भर गया।
धुंआ बाहर निकला तब मालूम ये हुआ
जिगर तक जलाकर वो राख़ कर गया।
एक अज़ब सा जादू था हसीन आँखों में
तमाशा बनकर चारों सू बिखर गया।
तस्वीर जो मुझ से बात करती थी सदा
गरूर में उसके भी नया रंग भर गया।
लगने लगा डर मुझे आईने से भी अब
धुंधला मेरा अक्स इस क़दर कर गया।
दरीचा खुला होता तो यह देख लेता मैं
नसीब मेरा मुझे छोड़ कर किधर गया।
चिराग उम्मीदों का दुबारा न जलेगा
निशानियाँ ऐसी कुछ वो नाम कर गया।