इतने सारे लगे हैं मुझ पे इलज़ाम
दिल साफ़ हैं फिर भी हैं बदनाम।
तमन्ना थी हाथ मिलाने की उनसे
नहीं पता था अपना ये होगा अंजाम।
कागज़ की ही थी हमारी नाव
बादल लेते नहीं तो अपना मुकाम।
तस्वीर बनाने में लगे रहे उम्र ता
तराश न सके कभी अपना नाम।
अब तो पत्थर भी आके पूछते हैं
कहाँ है शीशा टूटा था उस शाम।
Friday, January 21, 2011
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