पीढियां बदली आज़ादी बदली बदला पन्द्रह अगस्त
केवल तारीख बन कर ही है आता पन्द्रह अगस्त।
भ्रष्टाचार में पल रहा और आतंक वाद से डर रहा
कितना सहमा सहमा सा है रहता पन्द्रह अगस्त।
समस्याएं अनगिनत खड़ी हैं हाथ फैलाये सर पर
महंगाई और भुखमरी से लड़ रहा पन्द्रह अगस्त।
कितने वीर शहीद हुए थे तब हमने पाया था झंडा
नई पीढी नहीं जाने है संतालिस का पन्द्रह अगस्त।
सर पे कफ़न बाँध कर के चूमा था फांसी का फंदा
उस संघर्ष की याद नहीं दिलाता पन्द्रह अगस्त।
देश भक्ति के गाने गाकर और झंडा फहराकर ही
है कुछ ही पलों में खत्म हो जाता पन्द्रह अगस्त।
खुद को बदल कर के नमन शहीदों को कर चलो
मनाये बापू सुभाष के सपनों का पन्द्रह अगस्त।
Saturday, August 13, 2011
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