फागुन मदमाता आता है
मस्ती का राग सुनाता है।
झीना झीना उनका आंचल
लहर लहर लहराता है।
हम गीत प्रेम के गाए नहीं सपने आँखों में सजाए नहीं
मदमाते नजारों से कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
माथे पर रोली धनकती है
चूड़ी गोरी की खनकती है।
फागुनी भाषा में सतरंगी
कोयलिया खूब चहकती है।
हम फूल चाहत के खिलाएं नहीं मस्ती में रास रचाए नहीं
तुम घर घर जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
रस कच्ची अमिया में उभरा है
सुर्ख अधरों पे टेसू निखरा है।
पलाश दहके हैं कपोलों पर
भीगी अंगिया और घघरा है।
उम्र ये बवाल मचाए नहीं उमंगों के गुलाल उडाए नहीं
एक नहीं हजारों से कह दो यह बात हमे मंजूर नहीं।
हम दुश्मनी से नाता तोड़ेंगे
हम धागा नेह का जोड़ेंगे।
अबीर गुलाल होली में लगा
हम दिल को दिल से जोड़ेंगे।
हम होली में झूमें गाए नहीं बिछड़ों को गले लगाएं नहीं
दुनिया से जाकर के कह दो यह बात हमें मंजूर नहीं।
Tuesday, March 15, 2011
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