Sunday, July 31, 2011

दौरे-उल्फत की हर बात याद है मुझे
तुझसे हुई वह मुलाकात याद है मुझे।
बरसते पानी में हुस्न का धुल जाना
दहकी हुई वह बरसात याद है मुझे।
तेरा संवरना उसपे ढलका आंचल
संवरी बिखरी सी हयात याद है मुझे।
सर्द कमरे में गर्म साँसों की महक
हसीं लम्हों की सौगात याद है मुझे।
दिल में उतरके रहने की तेरी वो ज़िद
ह्या में डूबी रेशमी रात याद है मुझे।

तेरी आँखों की मुस्कराती तहरीर
दिल लुभाती हर बात याद है मुझे।



Wednesday, July 27, 2011

हाथों में रची मेहँदी और झूले पड़े हैं
पिया क्यों शहर में मुझे भूले पड़े हैं।
आजाओ जल्दी से अब रहा नहीं जाता
कि अमिया की ड़ाल पर झूले पड़े हैं।
सावन का महीना है मौका तीज का
पहने आज हाथों में मैंने नए कड़े हैं।
समां क्या होगा जब आकर कहोगे
गोरी अब तो तेरे नखरे ही बड़े हैं।
आजाओ जल्दी अब रहा नहीं जाता
हाथों में रची मेहँदी सूने झूले पड़े हैं।


रोज़ रोज़ जश्न या जलसे नहीं होते
मोती क़दम क़दम पे बिखरे नहीं होते।
सदा मेरी लौटकर आ जाती है सदा
उनसे मिलने के सिलसिले नहीं होते।
खुश हो लेता था दिल जिन्हें गाकर
अब होठों पर प्यार के नगमे नहीं होते।
कितने ही बरसा करें आँख से आंसू
सावन में सावन के चरचे नहीं होते।
घबरा रहा है क्यों वक़्त की मार से
बार बार ऐसे सिलसिले नहीं होते।
गुज़र गई सर पर कयामतें इतनी
किसी बात में उनके चरचे नहीं होते।

Wednesday, July 6, 2011

मैं प्यार की इबारत लिख देता
अगर खुशबू की सूरत देख लेता।
मुहब्बत दर पर ही भटकती मेरे
जो चेहरा वो खुबसूरत देख लेता।
मेरा ख्वाब-गह दूधिया हो जाता
उन आँखों की शरारत देख लेता।
वो हंसी वो मिटटी सने पाँव उसके
उन में अपनी किस्मत देख लेता।
रात भर गलियों में न भटकता
अगर वो मेरी चाहत देख लेता।
नज़रों से नजरें यदि मिल जाती
मेरी आँखों की वहशत देख लेता।
मेरा बदन भी गुलाब हो जाता
एक नज़र मुझे वसंत देख लेता।
सारे खुबसूरत लफ्ज़ लिख देता
दिल को यदि सलामत देख लेता।
सितम को देख इनायत की बात होने लगी
क़हर के बाद हिफाज़त की बात होने लगी।
बीच समंदर के शोर मच गया यह कैसा
बुत को देख इबादत की बात होने लगी।
संगमरमर में दफ़न ठंडा दर्द है ताजमहल
देख कर उसे मुहब्बत की बात होने लगी।
मौत की इतनी हसीन तस्वीर देख कर
रूहों में भी हैरत की बात होने लगी।
अखलाक उसका अच्छा है उसका बुरा
कशिश देख चाहत की बात होने लगी।
इंसान का बदल गया है ज़मीर इतना
हर तरफ हसरत की बात होने लगी।
फलक पर निकल आया दूज का चाँद
गली गली मन्नत की बात होने लगी।