Sunday, December 23, 2012

नज़र तेरी बुरी है और पर्दा मैं करूं
तेरी हवस का सबब मैं ही क्यूँ बनूं !
मुझे जो मिला मुझी को घूरता मिला
उनकी बदनियत का ज़िक्र क्या करूं !
कब्ज़ा करने की ही फिराक में हैं सब
वहशत का सिलसिला मैं ही क्यूं बनूं !
एक से मुसाफिर हैं तुम भी और मैं भी
दरिंदगी का ज़ुल्म, मैं तन्हा क्यूँ सहूं !
वज़ह बस यह है कि मैं एक लड़की हूँ
संगदिल रिवाज़ों से भी बस मैं ही लडूं !
इज्ज़त के मेरी चिथड़े चिथड़े कर दिए
पत्थरों के शहर में रहूं तो कैसे रहूं !
हादसा न किसी के साथ फिर ऐसा हो
तसल्ली मिल जाये तो फिर मैं चलूं !

Monday, December 17, 2012

हम तुम्हारे अगर नहीं होते
हम इतने पत्थर नहीं होते !
यही सोच के दिन कट रहे हैं
दर्द के दिन मुक़रर नहीं होते !
बिन माँ के बच्चे का दर्द ------

दिल में बहुत वीराना है
उलझन है ,सन्नाटा है !
मुसीबतें मेरा मुक़द्दर है
न बदला मेरा फ़साना है !
हर वक्त मुद्दा मै ही बना
मुश्किलों ने मुझे तलाशा है !
चुन चुन के दर्द मिले मुझे
जैसे दर्द ही मेरा ठिकाना है !
मर्ज़ की मेरे दवा न मिली
मेरा दर्द दुनिया से निराला है !
सुबह से घर में शोर मचा था
शाम को दावत में जाना है !
चलते हुए कह गये मुझ से
मुझे अपना खाना बनाना है !
तन्हा बैठ कर, रो रो कर
मैंने खाया एक निवाला है !
काश ! मेरा भी कोई होता
दर्द दिल में बेतहाशा है !
मेरे आंसू ही मेरा ज़ेवर है
नश्तरों ने इन्हें तराशा है !
पैदायशी पर भी सवाल उठे
माँ तुझ को यह बतलाना है !
सदियों ज़लालत सही मैंने
ज़िल्लतों ने मुझे नवाज़ा है !
ख़ुदकुशी भी मै कर न सका
दिल सोचता तो रोज़ाना है !
तू मुझे छोड़ के चली गई माँ
बस इतना मेरा अफ़साना है 1

Thursday, December 13, 2012

देखी राह तुम्हारी हमने
तन्हा रात गुज़ारी हमने !
पूरी रात टहल टहल कर
खुशबु पहनी तुम्हारी हमने !
दरवाज़े को तकते तकते
सारी रात गुज़ारी हमने !
ज़ुल्फ़ें यूं ही खुल गई थी
बिन शीशे के संवारी हमने !
पलकों में सजा रखी थी
एक तस्वीर न्यारी हमने !
नज़र उसकी दिल ही दिल में
कितनी बार उतारी हमने !
तुमको सोचा जब भी सोचा
जिंदगी सोच गुज़ारी हमने !
चाँद आया नहीं गोद में
देखी यह लाचारी हमने !
नींद ने आँख पे दस्तक न दी
लोरी बहुत पुकारी हमने !
पहरों करवट बदली हमने
ऐसे रात गुज़ारी हमने !

Saturday, December 8, 2012

उससे निगाह मिला सके, किसमे ताब थी
उसकी आँखों में चमक ही लाज़वाब थी !

उसकी महक ने ही रौंद दिया ज़िस्म को
पता नहीं कैसी वह जादुई शराब थी !

सुलगती थी रूह और तपता था बदन
वह तो मगर कोई ख्यालो ख़ाब थी !

जी पढने का करे तो देखते  रह जाएं
वह तस्वीरों की ऐसी ही क़िताब थी !

फ़रिश्ते भी उसे देख कर के हैरान थे
वह महताब थी कि वह आफ़ताब थी !

Monday, December 3, 2012

ख़ुशी को किसी की नज़र लग गई
या ग़म को मेरी ही उम्र लग गई !

दिन दो चार मांगे थे जीने के लिए
मौत को पहले ही ख़बर लग गई !

बेहद उदास थे, रात में हम लोग
चश्म तर थी, फिर भी मगर लग गई !

यह पूछो वक्त से, शायद वो बताए
आग जो लगनी थी किधर लग गई !

दर्द छुपाकर रखा था, दिल में तेरा
इसकी भी दुनिया को ख़बर लग गई !

एकदम से चूम लिए होंठ, मैंने तेरे
मुझे भी शायद हवाए शहर लग गई !

Tuesday, November 27, 2012

दास्ताने - दर्द हम किसको सुनाते
पत्थरों के शहर में किसको बसाते !

आबे - हयात नहीं है पास में मेरे
दो घूँट पानी की किसको पिलाते !

शहर चले गये थे कमाने के वास्ते
लौट आये, शक्ल किसको दिखाते !

हवा बेवफ़ाई की ही बह रही थी
क़सम वफ़ा की किसको दिलाते !

अपने ख़त में तुमने लिखा था मुझे
महावर रचे पावों को चूम तो जाते !

क्या करें ख़ुद से ही परेशान थे हम
अपनी बेबसी क्या तुमको बताते !

Saturday, November 24, 2012

तुम उजालों के नाम हुए
हम अँधेरे में बेनाम हुए !
वफ़ा की रस्म निभाते रहे
और इश्क़ में नाकाम हुए !
अपने शहर में नेक नाम थे
तुम्हारे शहर में बदनाम हुए !
इतनी लुटाई दौलते -दिल
कि आख़िर में नीलाम हुए !
सहरा हूँ प्यास हं कौन हूँ मैं
ख़ुद की नज़र में बेदाम हुए !
हमें हमारे ही ग़म ने काटा
रफ़्ता रफ़्ता हम तमाम हुए !

Saturday, September 22, 2012

 
हज़ार बहानो से बेरुख़ी अच्छी -
हज़ार कोशिशों से बेबसी अच्छी !
आबरू पर आंच आने लगे तो -
हज़ार जवाबों से खामुशी अच्छी !
रौशनी ग़र आँख में चुभने लगे -
उजालों से फिर तीरगी अच्छी !
ताजमहल देख कर गुमां होता है -
है प्यार की मिसाल कितनी अच्छी !
क्या जज्बा था मुहब्बत का शाज़हाँ में
या मजदूर की थी कारीगरी अच्छी !
हम कायल हैं आपकी सादगी के
हमे लगती है मुखलिसी अच्छी !

मुखलिसी-- निस्वार्थता

Wednesday, September 12, 2012

 
तीर ने ना तलवार ने मारा -
हमको तो ऐतबार ने मारा !
जिसको निशाने पर रखा था -
उसके ही पलटवार ने मारा !
दुश्मन के जब गले लगे हम -
फिर तो हमको प्यार ने मारा !
पहले दिल था मान जाता था -
अब उसकी ही पुकार ने मारा !
कांच से नाज़ुक रिश्तो को तो -
रिश्तो की ही कटार ने मारा !
बिना आहट के दर खोला था -
वक्त की हम को मार ने मारा !
तुम भी वही हो मैं भी वही हूँ -
हम को तो तक़रार ने मारा !
तुम रातो को कुतरते रहे और -
हमको उनकी तीमार ने मारा !
कुछ दिन और संग रह लेते -
आँगन की इस दीवार ने मारा !

Friday, August 10, 2012

लोग उन्हें चाँद समझ कर देखते हैं
हम उन को जी भर कर देखते हैं।
उन आँखों मे हम जब भी देखते हैं
कुछ पल उनमे उतर कर देखते हैं।
खूबसूरती तो दिल की रौशनी है
हम उसे उनके बदन पर देखते हैं।
इतराने लगते हैं ख़ुद पर बहुत वो
सब उन्हें जब इस क़दर देखते हैं।
वो खुशबु हैं, ख्वाब हैं या ख़ुदा हैं
सब उन को ठहर कर देखते हैं।
सिफ़त साक़ी में है या पैमाने में
हम ये आँखों में डूब कर देखते हैं।


Sunday, August 5, 2012

रात भर तेरी याद आती रही
बेवज़ह क़रार दिलाती रही।
जैसे सुनहरी धूप सर्दी की
ठिठुरती देह सहलाती रही।
जैसे सहरा में चले बादे सबा
रूह को भी थपथपाती रही।
दमकता रहा चाँद आसमां पे
चांदनी दर खटखटाती रही।
ऊंघता बिस्तर सो नहीं सका
तेरी ख़ुश्बू नखरे दिखाती रही।
कितना मैं अधूरा रह गया था
इसकी भी याद दिलाती रही।




Friday, August 3, 2012

मेरे बाद मुझको ये ज़माना ढूंढेगा
हकीकत को एक अफ़साना ढूंढेगा।
सिर्फ यादों में सिमट जायेगा सफ़र
अश्क भी बहने का बहाना ढूंढेगा।
खत्म हो जायेगी कहानी जब मेरी
मेरा ही दर्द अपना ठिकाना ढूंढेगा।
सुबहें, शामें, रातें कितनी हसीं थी
सूनापन वो खिलखिलाना ढूंढेगा।
मुहब्बत करने वाले तन्हा नहीं रहते
इन लम्हों को मेरे हर दीवाना ढूंढेगा।
हर शख्श बेमिसाल होता है
ख़ुद अपनी मिसाल होता है।
तुझ जैसा कौन है दुनिया में
तुझे देख चाँद बेहाल होता है।
हुस्न पर अपने न इतराया करो
नज़रों में बड़ा बवाल होता है।
पाँव आइस्ता रखना जमीं पर
धरती के दिल में मलाल होता है।
दुनिया में कोई फरिश्ता नहीं है
तुझे देख मगर ख़्याल होता है।
किस किस के होकर रहोगे तुम
हवाओं से यह सवाल होता है।

Thursday, August 2, 2012

उबाल ने कुछ बवाल ने तोड़ दिया
कुछ दिल के मलाल ने तोड़ दिया।
जो कमाता था वो ही खाता था वो ।
एक दिन की हड़ताल ने तोड़ दिया।
उमीदों ने पंख नए खरीद लिए थे
पर बेतरतीब उछाल ने तोड़ दिया।
सिखाई थी अदाकारीहालात ने तो
क्या करें उसी कमाल ने तोड़ दिया।
कितना गुलाबी मौसम था देखिये
पता नहीं किस ख़्याल ने तोड़ दिया।
ख़िदमत तो उस ने बहुत की मगर
हमें उसकी सम्भाल ने तोड़ दिया।

Thursday, July 19, 2012

शहर में आये हुए ज़माने हो गये
फूल से बच्चे बड़े सयाने हो गये।
पुरानी बातों में दिलचस्पी न रही
रिश्ते नाते सभी अफ़साने हो गये।
कंचे, गिल्ली -डंडे व पतंगे उड़ाना
वे खेलने के तौर भी पुराने हो गये।
स्पायडरमेन ,डोरामोन छोटा भीम के
कम्पुटर के बच्चे बड़े दीवाने हो गये।
हरकतें बच्चों की समझ नहीं आती
नए तरह के जीने के बहाने हो गये।
टाईट जींस,टीशर्ट और मिनी स्कर्ट
हमतोपुराने कपड़ों से पुराने हो गये।










Monday, July 16, 2012

शख्श जिसका कौल ओ क़रार नहीं होता
कभी भी वो क़ाबिले- ऐतबार नहीं होता।
दर पर जब तलक कोई आहट नहीं होती
दिल भी तब तलक खबरदार नहीं होता।
प्यास रफ़्ता रफ़्ता ही तो बढ़ा करती है
ज़ुनून एकदम सर पर सवार नहीं होता।
ज़मीर बेचकर बहुत ख़ुश हो रहा था वो
कहता था कि गाँव में बाज़ार नहीं होता।
वार पर वार ख़ुदा तो करता ही रहता है
किसी को भी मगर इनकार नहीं होता।
अफवाहें भी तो सदा उडती ही रहती हैं
हक़ीक़त से मैं, कभी बेज़ार नहीं होता।
उदास तो मैं था पर इतना भी नहीं था
कि जश्न मेरा ही शानदार नहीं होता।
उम्र गुज़र गई थी सारी, सोचते यही
किस दिल में छिपा ग़ुबार नहीं होता।









Tuesday, July 3, 2012

दिल बहुत खुबसूरत हो गया है अब
चाँद की ही सूरत ,हो गया है अब।
बला का निख़ार आया है , उस में
हर दिल की चाहत हो गया है अब।
परेशान रहता था कभी था अकेला
बड़ा ख़ुश सोहबत हो गया है अब।
इशारे से बुलाने लगी हैं ,खुशबुएँ
उन की भी ज़रूरत हो गया है अब।
देख के ता उम्र खुश रह सके जिसे
ख्वाहिशों की आदत हो गया है अब।
किसी के तो हाथ उठे होंगे, दुआ को
करिश्मा बिना शर्त हो गया है अब।



Monday, July 2, 2012

हर हाल ही में दिल तो लगाना पड़ेगा
मौसम को भी अब तो मनाना पड़ेगा।
कहीं और बरस रहे हैं , बादल हमारे
लगता है , उनको तो बुलाना पड़ेगा।
आखिर कब तलक रहेंगे ,अकेले हम
कभी तो साथ हमें भी निभाना पड़ेगा।
मुहब्बत की कशिश बड़ी ही अज़ब है
दिल को तो बंजारा ही बनाना पड़ेगा।
ख़ार की तरह चुभती हैं मखमली बातें
उन से दामन को तो छुड़ाना पड़ेगा।
अगर कभी लिखना चाहो हाल हमारा
हर दर्द ,तुम्हे गले से लगाना पड़ेगा।
सूख चुकी आँख में ,अब ठहरता नहीं पानी
एक आंसू दे दो तो ,रिमझिम बरस जाएगी।
बिना बरसे बिखर गये, अब्र के टुकड़े अगर
मिट्टी की सोंधी महक को धरती तरस जाएगी।
हरे भरे खेत पर अगर, पाला पड़ गया रात में
ठंडी आहें भरकर फसलें सारी झुलस जायेंगी।
उबासी लेता सूरज ,कुहरे में छिप गया अगर
निकल नहीं पाया तो सुबह ही अलस जायेगी।
सुलगती धूप के माथे ,बहता रहा पसीना अगर
शाम के तपते हुए सीने में ठहर उमस जायेगी।
छुट जाती आदत, शराब पीने की हमारी भी तो
अगर जान जाते ,ज़िन्दगी यूँ ही झुलस जायेगी।

Thursday, June 28, 2012

मेरे बगैर, अब कोई सहर नहीं होती
तन्हाइयों की कोई उम्र नहीं होती।
बहुत दिलकश है, शहर मेरा लेकिन
मेरे हाल की उसको ख़बर नहीं होती।
उतर गया नशा, गमे फ़िराक का अब
दर्द की दिल में, अब गुज़र नहीं होती।
दहक उठता था बदन, जिसे देख कर
छूने से भी उसके अब सिहर नहीं होती।
घेरे हुए रहते हो, मुझे हर वक्त ही क्यों
सच कहें,मुहब्बत इस क़दर नहीं होती।
ख़ास खुशबु से, महक उठती महफ़िल
ख़ुदकुशी दिल ने, की अगर नहीं होती।






Tuesday, June 26, 2012

अपनी तस्वीर ,ख़ुद ही बनाना सीखो
ख़ुद की पीठ, ख़ुद थपथपाना सीखो।
दुनिया को बिल्कुल फ़ुरसत नहीं है
अपने जश्न ,ख़ुद ही मनाना सीखो।
मुश्किलें तो हर क़दम पर ही आएँगी
बस हौसलों को बुलंद बनाना सीखो।
गिर गये तो मज़ाक बनाएगी बहुत
दुनिया को क़दमों पर झुकाना सीखो।
कामयाबी का अपनी परचम लहराके
खुशबुओं को अपनी ही, उड़ाना सीखो।





Monday, June 25, 2012

उनके इंतज़ार का, हर एक पल मंहगा था
हर ख़्वाब मैंने उस वक्त, देखा सुनहरा था।
दीवानगी-ए-शौक मेरा ,मुझसे न पूछ दोस्त
दिल के बहाव का वह जाने कैसा जज़्बा था।
मेरे महबूब मुझसे मिलकर ऐसे पेश आये
जैसे उनकी रूह का मैं भी कोई हिस्सा था।
तश्नगी मेरे दिल की, कभी खत्म नहीं हुई
जाने आबे हयात का वह कैसा दरिया था।
मिलता नहीं कुछ उसकी रहमत से ज्यादा
मेरा तो सदा से बस एक यही नज़रिया था।
मेरी बंदगी भी दुनिया-ए-मिसाल हो गई
मेरे मशहूर होने का, जैसे वो ही ज़रिया था।





Friday, June 22, 2012

जाने को थे कि, तभी बरसात हो गई
खुलके दिल की दिल से फिर बात हो गई।
चाँद भी झांकता रहा, बादलों की ओट से
कितनी ख़ुशनुमा,वही फिर रात हो गई।
तश्नगी पहुँच गई लबों की जाम तक
बेख़ुदी ही रूह की भी सौगात हो गई।
जुल्फें तराशता रहा फिर मैं भी शौक़ से
कुछ तो, नई सी यह करामात हो गई।
दिल ने तमन्ना की थी जिसकी बरसों से
बड़ी ही हसीन वो एक मुलाक़ात हो गई।

Thursday, June 21, 2012

जो दिल में रहते हैं ,पास क्या वो दूर क्या
चाँद के रु-ब-रु कोई ,लगता है हूर क्या।
कितनी बार की हैं बातें, मैंने भी चाँद से
छलका है मेरे चेहरे भी ,कभी नूर क्या।
इस मुहाने पर हैं ,कभी उस मुहाने पर
छाया रहता है दिल पर जाने सरूर क्या।
बस एक हवा के झोंके से हम हिल गये
जाने क्या रज़ा है उसकी,उसे मंज़ूर क्या।
काले हो जाते हैं, चाँद, सूरज ग्रहण में
मिट जाता है उनके चेहरे से, नूर क्या।
ख्यालों में जब किसी के आते हैं बार बार
हो जाते हैं जमाने में, यूं ही मशहूर क्या।
बेवज़ह की उदासी को दिल से न लगाना
है बहार को खिजां में रहना, मंज़ूर क्या।











Wednesday, June 20, 2012

ज़िन्दगी बहता पानी है ,बहने दो उसे
अपना रास्ता ,ख़ुद ही ढूँढने दो उसे।
बिना लहरों के समन्दर फट जायेगा
जी खोल कर के ही, मचलने दो उसे।
नदी के अन्दर भी, एक नदी बहती है
रफ़्ता रफ़्ता समंदर से मिलने दो उसे।
घर किनारे टूट करवरना ढह जायेंगे
उफ़न कर, कभी न बिखरने दो उसे।
चाँद को भी जरूरत होती है चाँद की
अपनी चांदनी को ख़ुद चुनने दो उसे।
वक्त आदमी को काट ही डालता है
कभी, तन्हाइयों में न कटने दो उसे ।




Monday, June 18, 2012

तुम से मिलकर, तुम को छूना अच्छा लगता है
दिल पर यह एहसान करना, अच्छा लगता है।
लबों की लाली से या नैनों की मस्ती से कभी
चंद बूंदे मुहब्बत की चखना ,अच्छा लगता है।
लाख छिप कर के रहे, लुभावने चेहरे , पर्दों में
कातिल को कातिल ही कहना अच्छा लगता है।
देखे हैं शमशीर दस्त ,जांबाज़ बहुत से हमने
ख़ुद को ख़ुद में ढाले रखना, अच्छा लगता है।
तड़पाता है दर्द-ए- जिगर ,जब जीने नहीं देता
पुराना ज़ख्म कुरेद के सिलना अच्छा लगता है।
ठहरी हैं हज़ार ख्वाहिशें ,इस नन्हे से दिल में
मगर फिर भी सपने देखना, अच्छा लगता है।





Friday, June 15, 2012

रफ़्ता रफ़्ता खुशियाँ जुदा हो गई
खुद-बुलंदी की राख़ जमा हो गई।
लौटकर न आये वे लम्हे फिर कभी
और ज़िन्दगी बड़ी ही तन्हा हो गई।
ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर
खुदमुख्तारी शहर की हवा हो गई।
कैसे गुज़री शबे-फ़िराक़, ये न पूछ
मेरे लिए तो मुहब्बत तुहफ़ा हो गई।
इस क़दर बढ़ी दीवानगी -ए -शौक़
मिलने की आस भी, दुआ हो गई।
ज़िन्दगी बहुत कुछ सिखा देती है
ग़लत, ठीक में फर्क़ बता देती है।
बदी पर उतर आती है मगर जब
मज़ाक भी बहुत बड़ा बना देती है।
जब देती है, दिल खोलकर देती है
मुफ़लिसी का वरना तांता लगा देती है।
पहाड़ों पर जाने का जब मन होता है
सहरा का वह रास्ता दिखा देती है।
सवाल तो चंद घड़ियों का होता है
मगर ता-उम्र का रोग लगा देती है।
सुकून से जब भी दम लेने को होते हैं
बे-इल्म सफ़र नाकाम बना देती है।
उस रंग से सिंगार नहीं करती कभी
जिस रंग के कपडे पहना जाती है।

Tuesday, June 12, 2012

मुहब्बत में सवाल-ओ-जव़ाब नहीं होते
कागज़ों पर सजे कभी ख़्वाब नहीं होते।
तुम्हे देखता रहता मैं, फुरसत से, चैन से
ज़िन्दगी में अगर इतने अज़ाब नहीं होते।
लम्ह-ए-विसाल की कीमत क्या लगायें
इलाका-ए-मुहब्बत में मोलभाव नहीं होते।
हमको अँधेरी रातों में रहने की आदत है
हर रात तो दीदार-ए-महताब नहीं होते।
वफ़ा,ह्या,दुआ महकते झोंके हैं प्यार के
गले लगने को सब मगर बेताब नहीं होते।
बजते रहते हैं साज़, बंद कमरे में अकसर
दर्द के ही बेवज़ह हमसे हिसाब नहीं होते।




Thursday, June 7, 2012

हम एक पल में सदियाँ लुटा देते हैं
वक्त को हर ज़ानिब महका लेते हैं।
जाने फिर मोहलत मिले या न मिले
हर लम्हा मुहब्बत से सजा लेते हैं।
घाव पुराने फिर से हरे न हो जाएँ
रोज़ ख़ुद ही मरहम लगा लेते हैं।
हज़ारों लुभावने चेहरे मिलते हैं
हम तस्वीर से दिल बहला लेते हैं।
हर एक का दर्द अपने सीने पर हम
बिला तकल्लुफ़ के आज़मा लेते हैं।
खुदाई लुटाने को जब ख़ुदा कहता है
उसकी अदालत में सर झुका लेते हैं।





Tuesday, June 5, 2012

---- पर्यावरण दिवस पर विशेष------
हवा पानी जंगल सब को बचाना है
इन ही के दम पर सारा जमाना है।
इनके मजबूर ख़ामोश दर्द को हमे
सारी दुनिया की नज़रों में लाना है।
मौसम बदलते रहें फसलें उगती रहें
ऐसा ही कोई हमें क़दम उठाना है।
पेड़ फलदार लगाकर जगह जगह
गुलमोहर,नीम को भी तो बचाना है।
पर्यावरण को बचाने की दिशा में हमें
पर्यावरण अनुकूल जीवन अपनाना है।

Monday, June 4, 2012

महफ़िल में सब से खुबसूरत हम नज़र आते
आईने के सामने अगर, ढंग से संवर आते।
होश उड़ जाते सब के ही, वह चाँद देख कर
सितारे भी आसमान से जमीं पर उतर आते।
देखकर के सुर्खी ,गोरे गुलाबी रुखसारों की
गुलमोहर भी नए रंग में दहके नज़र आते।
वहशतें सब दिलों की, हद से गुज़र जाती
ख्वाहिशों के समंदर ,बदन में उतर आते।
निसार हम पर मुहब्बत का हर कतरा होता
हम चाहतों से हर दिल मालामाल कर आते।
उन लम्हों में क़ायनात भी सारी संवर जाती
अपनी खूबसूरती सबकी हम नज़र कर आते।
तोहफ़े तारीफ़ों के हमें मिल जाते इतने कि
फेरहिस्त उनकी पढ़कर बड़े खुश्नज़र आते।










Wednesday, May 30, 2012

नाम बहुत सुना ख़ुदा का,ख़ुदा नहीं मिला
नक्शे क़दम मिलते रहे,रस्ता नहीं मिला।
हम ज़िन्दगी की मय को पीने में लगे रहे
आबे-हयात का ही कोई कतरा नहीं मिला।
यूं तो संग मील के हजारों, हमें तय करने थे
नजदीकियों को ही कोई जज़्बा नहीं मिला।
शबे-फ़िराक़ के बाद ,उनसे मुलाक़ात तो हुई
पहले सा कमबख्त कोई लम्हा नहीं मिला।
शबनमी ताज़गी का फिर एहसास न हुआ
बचपन किधर गया कभी पता नहीं मिला।
यकीनन लहजा बातों का उनकी ख़ूबसूरत था
दरमियाँ गुफ़्तगू का ही सिलसिला नहीं मिला।







Tuesday, May 29, 2012

अखबार पढ़कर आज कुछ यूं लिखा ......

बंगलोर मिरर में खबर आज एक यह पढ़ी
कि आंसुओं से भी नमक अब बनने लगा।
गम और ख़ुशी के आंसुओं से बना नमक
विदेशी बाज़ार में ऊँचे दामों में बिकने लगा।
अलग आंसू से बना अलग तासीर का नमक
अलग कीमत की शीशियों में सजने लगा।
आंसुओं की कीमत ऊँची लगने लगी जब
प्याजी आंसुओं का भाव भी बहुत बढ़ने लगा।
नमक ख़ुशी के आंसुओं का चख कर के तो
जो रो रहा था बहुत ज़ोरों से वो हंसने लगा।
गम के अश्कों की कीमत इतनी ऊँची लगी
मोतियों के भाव में ही वह तो बिकने लगा।
जिसने चख़ लिया ज़ुकामी अश्क़ का नमक
वक्त बेवक्त ज़ुकाम बेचारे का बहने लगा।



Monday, May 28, 2012

दर्द दो चार थे कभी, अब हज़ार हो गये
जाने कितने नश्तर दिल के पार हो गये।
करवटें बदल कर ही गुज़री तमाम रात
सारे कौल-ओ-क़रार ही बेकार हो गये।
तस्सवुर में मेहरबान बन कर रह रहे थे
मिलते ही मुझ से ,मेरे दावेदार हो गये।
हम भरोसा कौन से चेहरे का अब करें
अब एक चेहरे के कईं क़िरदार हो गये।
दिल के क़रीब रहे थे जो सालों -साल
वही अब ना-क़ाबिले ऐतबार हो गये।
अपनी ख़ामियों से सामना जब हुआ
नज़रें चुराकर धीरे से फ़रार हो गये।
हम मिलने की चाहत दिल में लिए रहे
ख्वाब हमारे सारे ही तार-तार हो गये।
हस्ती किसी गरीब की जो लुटने को हुई
अमीर भी सारे के सारे तैयार हो गये।

















Friday, May 25, 2012


कमाया बहुत मैंने लुटाया बहुत कुछ
ज़िन्दगी की दौड़ में ,खोया बहुत कुछ।
शिकस्त -ओ-तजुर्बे ,हर क़दम पर मिले
इस से मैंने ज़िन्दगी में ,पाया बहुत कुछ।
शाकिर हूँ तेरा, ऐ वक्त, मैं दिलो जान से
तूने मुझे ज़िन्दगी में दिलाया बहुत कुछ।
कोई भी किस्सा ज़िन्दगी का ज़ाया न गया
ऐ ज़िन्दगी,तूने मुझे सिखाया बहुत कुछ।
ऐ दोस्त ,तुम्हारा भी शुक्रगुज़ार हूँ बहुत
जैसा भी हूँ ,मैं तुमने निभाया बहुत कुछ।





Thursday, May 24, 2012

ज़िन्दगी और ख़ूबसूरत हो गई
उन से मिलने की सूरत हो गई।
मुझे सुर्खरू कर गई एक खबर
सहर को मेरी ज़रूरत हो गई।
हर पल हो गया मेरे लिए ख़ास
वक्त की बड़ी अहमियत हो गई।
लम्हा कोई अब तंग नहीं करता
दिल को कितनी फ़ुरसत हो गई।
एक हसीन इत्तेफ़ाक ये भी हुआ
मुहब्बत सिला-ए-इबादत हो गई।
एक बीमार फिर ख़ुशनुमा हो गया
कितनी खुशख्याल हरक़त हो गई।



Wednesday, May 23, 2012

रिश्तों की जो हम कहीं बुनियाद डाल देते
हसरतें दिल की अपनी सारी निकाल देते।
महक उठती मिटटी आँगन की हमारे भी
प्यार की ख़ुशबू का अगर बीज डाल देते।
वक्त थोड़ी सी भी अगर मोहलत दे देता
निख़ार हम भी अपने ख़्वाबो-ख़्याल देते।
एक भी लफ्ज़ प्यार का जो हम बोल देते
सब हमारे उस लहज़े की ही मिसाल देते।
एहसास के आईने पर कभी गर्द न जमती
बिन पिए ज़ाम अपना जो हम उछाल देते।
तन्हाइयां जब भी हमे तड़पाने को होती
अपनों की हम भी फेरहिस्त निकाल देते।
चाँद भी हमारी चाहतों का कायल हो जाता
चांदनी के गले अगर अपनी बाँहे डाल देते।









Thursday, May 17, 2012

जिंदगी को बहुत ढूँढा ,ज़िंदगी नहीं मिली
दिल के लायक कहीं भी ख़ुशी नहीं मिली।
दरारें पड़ गई थी नई दीवारों में घर की
उनसे झांकती मगर रौशनी नहीं मिली।
बन्दों के हुजूम में ही घिरा रहा मैं अक्सर
बेरूखी तो मिली कहीं बन्दगी नहीं मिली।
दामन बेदाग़ रहा जिसका मैला न हुआ हो
ऐसी कभी भी कोई मुझे हस्ती नहीं मिली।
आसान नहीं था तूफाँ- ए- दरिया का सफ़र
वो तो हौसलों को दोपहर तपती नहीं मिली।
मंजिल को तलाशते तो सब ही मिले मगर
मंजिल किसी को भी तलाशती नहीं मिली।






Wednesday, May 16, 2012

क्यों कहा तुमने ,कि तुम शहर में नहीं
इसका जो असर हुआ, वो ज़हर में नहीं।
मान लिया मुलाक़ात के बाद ,यह मैंने
शबे-फिराक़ सा क़हर किसी क़हर में नहीं।
अपनी ही गहराइयों से अनजान रहा मैं
मुझ में जो गहराई है , समन्दर में नहीं।
दिल के रोग में ही गुज़र गई उम्र सारी
इतना सुकून किसी भी रहगुज़र में नहीं।
वो फूल की ख़ुशबू है कि घटा सावन की
इसका ज़िक्र सहरा की ख़बर में नहीं।
चेहरे की असलियत से करा दे रु-ब-रु
ऐसा कोई आइना अब तक नज़र में नहीं।












Saturday, May 12, 2012

ज़िन्दगी को क़रीब से देखने की ज़रूरत है
ख़ुद को ख़ुद से ही सीखने की ज़रूरत है।
इन्सान की फ़ितरत है, संतुष्ट नही होता
हमें अपनी आदत बदलने की ज़रूरत है।
ख़ुद की हर चीज़ में कमी नज़र आती है
हमे ख़ुद से ही ज़ंग करने की ज़रूरत है।
दूसरों से तुलना हमे नेगेटिव बना देती है
हमे ख़ुद पर विश्वास करने की ज़रूरत है।
आज दिन मैंने ख़ास किया, क्या सीखा
रात में ख़ुद से सवाल पूछने की ज़रूरत है।
आज दिन ढुलमुल नहीं जोश से भरा होगा
हर सुबह नया संकल्प भरने की ज़रूरत है।







Friday, May 11, 2012

खुद की तलाश में हूँ,राहगीर नहीं हूँ
अल्लाह का करम है,शमशीर नहीं हूँ।
इक नई सुबह का आगाज़ तो हूँ मैं
अँधेरी रात का मगर मैं तीर नहीं हूँ।
दिल ने ठानी है चुप रहने की वह तो
खामोश हूँ ,दिल का फ़कीर नहीं हूँ।
बेवज़ह उदासी जो दिल को दिला दे
मैं इतनी भी बुरी तस्वीर नहीं हूँ।
मिलना,बिछुड़ना और फिर तडफ़ना
बेचैन हूँ,गम की कोई तश्हीर नहीं हूँ।
बात कही है तो निभाऊंगा भी ज़रूर
कमी में हूँ मगर मैं तस्खीर नहीं हूँ।

तश्हीर-विज्ञापन तस्खीर-हारा हुआ




Thursday, May 10, 2012

मदर डे पर

माँ ही सब से अलहदा होती है
हर वक्त प्यार का लम्हा होती है।
दिल के काफी क़रीब होती है
प्यार का समन्दर गहरा होती है।
धूप में सुहानी छाँव होती है
दिखलाती वह सही दिशा होती है।
सबसे पहले दिल देते हैं जिसे
प्यार हमारा वह पहला होती है।
माँ की दुआ से काम संवरते हैं
माँ खुशियों का झरना होती है।
अपनी आँखों से दुनिया दिखाती है
माँ हमारी सारी दुनिया होती है।
जिससे सुंदर कोई और नहीं होता
वह हमारी रानी माँ ही होती है।

Wednesday, May 9, 2012

मेरे घर का अगर तुम एक फ़ेरा ही ड़ाल देते
पलकों से तुम्हारे पाँव के हम ख़ार निकाल देते।
किसी मक़सद से फ़ासला ए दिल जो मिटा देते
दरमियाँ नए रिश्तों की हम बुनियाद ड़ाल देते।
बर्फ सा ज़म गया है खून ज़िस्म का हमारे
अफशां-ए- ताब से तुम्हारे हम उसे उबाल देते।
दिल के बहाव में अगर तुम डूबने को होते
क़सम ख़ुदा की हाथ थाम कर सम्भाल देते।
हमारी बंदगी दुनिया ए मिसाल बन जाती
हसरत दोनों दिलों की ही हम निकाल देते।








रख्ते सफ़र लेकर चलना मुश्किल हो गया
बड़े लोगों की बस्ती में अब वो दाखिल हो गया।
कच्ची उम्र में सपने उस ने देख लिए इतने
अमीरों की हस्ती में दिल शामिल हो गया।
दिल इस तरह से दीवाना उन का हुआ फिर
उनका पऊंचा थाम लबे-साहिल हो गया।
रफ़्ता रफ़्ता रुख़ हवा का भी बदल गया
बड़े घर में रहने के वह काबिल हो गया।
इतर रहा है पहुँच कर शुहरत की उंचाई पे
दिल को नया मुकाम एक हासिल हो गया।

Tuesday, May 8, 2012

कुछ लोग जोड़ घटाने में लगे रहे
रिश्तों को अपने भुनाने में लगे रहे।
हमें रिश्तों की अहमियत पता थी
हम रिश्तों को निभाने में लगे रहे।
ज़िन्दगी की फ़ेरहिस्त न-तमाम थी
वह कमियों को गिनाने में लगे रहे।
धूप और छाँव का सफ़र है ज़िन्दगी
हम पेंच ओ ख़म सुलझाने में लगे रहे।
कांटे को भी चूम लिया हमने देख कर
हम अपनी खुदाई लुटाने में लगे रहे।
ग़ुरबत में भी ऊँची रही नजरें हमारी
फ़ाक़ा मस्ती से दिल लगाने में लगे रहे।

Saturday, May 5, 2012

ऐसा लगा दिल तुमसे, फिर कहीं और न लगा
घर में,किसी महफ़िल में, किसी ठौर न लगा।
मिलनसार,खुश सोहबत ,शादबाश होकर भी
दिल तन्हाई में तो लगा,फिर कहीं और न लगा।
तुमको तो मिलते रहे ,चाहने वाले हर क़दम
हमारे हाथ मुहब्बत का फिर वो दौर न लगा।
अपना अफ़साना ख़ुद की तरफ मोड़ दिया मैंने
तुमसे मिलने का जब कोई फिर तौर न लगा।
मेरे ज़हान में ख़ुदा बन्दों में ही तो बसता है
यह समझने में मुझे वक्त फिर और न लगा।

Thursday, May 3, 2012

वक्त ही था जो मुझे बाख़बर कर गया
तश्नगी से मगर तर ब तर कर गया।
ज़िस्म का शहर तो वही रहा मगर
दिल को मेरे रख्ते-सफ़र कर गया।
मैंने जिस के लिए घरबार छोड़ा था
अपने घर से मुझे वो बेघर कर गया।
फ़िराक में गुज़र रही थी ज़िन्दगी मेरी
मेरे हाल की सबको खबर कर गया।
गमों से मेरे ताल्लुकात बना कर
हर शब को मेरी बे-सहर कर गया।
माना तस्सवुर तेरा मेहरबान रहा
पर दुआ को मेरी बे-असर कर गया।
शराब का रंग किस क़दर सब्ज़-ओ- ज़र्द है
छिपाए ज़िगर में जैसे कोई गहरा दर्द है।
बांहे फैलाए फिर भी बुलाती है सबको वो
लगता है ,हर दिल की बड़ी ही वो हमदर्द है।
आसाँ नहीं है दुनिया-ए मुहब्बत का सफ़र
आलम बड़ा ही बेज़ान और पुर-ज़र्द है।
मुहब्बत कुदरत है ,अहद-ए-वफ़ा नहीं
जिसे पाने की कोशिश में हर एक फ़र्द है।
चलाकर तीर मुसलसल पूछते हो क्यों
बताओ तो सही होता तुम्हे कहाँ दर्द है।
बन्दगी की अब कहीं मिसाल नहीं मिलती
यही सोचकर परेशान अब अक्लो-खिर्द है।


ज़र्द- पीला पुर-ज़र्द -- बेज़ान
अहद-ए-वफ़ा ---वफ़ा का वचन
अक्लो-खिर्द---बुद्धि



Sunday, April 15, 2012

रिश्तों में प्यार का व्यापार नहीं होता
तराजू से तौलकर भी तो प्यार नहीं होता।
दिल की ज़ागीर को मैं कैसे लुटा दूं
हर कोई चाहत का हक़दार नहीं होता।
उजाड़ शब की तन्हाई का आलम न पूछिए
मरने का तब भी तो इंतज़ार नहीं होता।
चमकते थे दरो-दीवार कभी मेरे घर के भी
अब शोखियों से भी दिल गुलज़ार नहीं होता।

बिछड़ते हुए उन आँखों का बोलना देख लेता
तो गया मैं कभी समन्दर पार नहीं होता।
मुझे देखते ही वो खिलखिलाकर हंस दिए
अदावत का कभी कोई मेयार नहीं होता।

अदावत--शत्रुता , मेयार--स्तर



Saturday, April 14, 2012

तुम्हारे जाने से हर आँख शबनमी होगी
महसूस हर दिल को तुम्हारी कमी होगी
कभी न बुझेगा तुम्हारी यादों का दिया
कि उसी से दिल में हमारे रौशनी होगी।
अंदर ही अंदर हम बड़े बिखर रहें होंगे
नक़ाब ओढ़े हर वक्त संजीदगी होगी।
अकेले होकर भी हम अकेले नहीं होंगे
ख़ुश्बू तुम्हारी ज़हन में महकती होगी।
दिल तेरे गम के दरिया मेंडूबा करेगा
अज़ब अंदाज़ लिए वो तिश्नगी होगी।
बिछ्डके तुमसे जीना तो पड़ेगा लेकिन
ढूंढती अशआरों में तुम्हे शायरी होगी।
ख़ुदा करे तुम हर कसौटी पर खरे उतरो
दिल से हर वक्त दुआ निकलती होगी।



Friday, April 13, 2012

जाने दिल को किसकी नज़र लग गई
दर्द को मेरे किसी की उम्र लग गई।
धूप शाम तलक मेरे आँगन में थी

सब को ही इस की खबर लग गई।
मैं तो चल रहा था संभल कर बहुत
मुझ को ही ठोकर मगर लग गई।
वारदात तो कोई बड़ी ही हो जाती
अच्छा हुआ जल्दी सहर लग गई।
मां से कहूँगा , मेरी नज़र उतार दे
मुझ को भी हवाए-शहर लग गई।










Tuesday, April 10, 2012

पर्दे के पीछे की असलियत देखता है वो
हाथ मिलाते हुए हैसियत देखता है वो।
वज़ूद कैसा है ,पहनावा कितना उम्दा है
गले लगते हुए शख्शियत देखता है वो।
ख़ुद तो फिरता है, गली गली मारा मारा
सब की मगर मिल्कियत देखता है वो।
गरूर है उसका या फितरत आदमी की
हर नज़र में अपनी अहमियत देखता है वो।



Wednesday, April 4, 2012

शुहरत बवाले-जां है,ख़ाली में नहीं मिलती
मंजिल कभी शब् की स्याही में नहीं मिलती।
दिल का सौदा तो कोई भी कर लेता है मगर
ज़िन्दगी किसी को उधारी में नहीं मिलती।
जो हंस रहा है उसको, हंस लेने दे खुलकर
चाहतें कभी भी मेहरबानी में नहीं मिलती।
चाँद को छूने का कभी जज़्बा जिगर में था
बचपन की महक जवानी में नहीं मिलती।
हवाएं तेज़ हों तो किश्तियाँ लौट आती हैं
मुहब्बत की हवेली नीलामी में नहीं मिलती।
आँखों से आंसूओं की बाढ़ रूक नहीं सकी
मिसाल ऐसी किसी तबाही में नहीं मिलती।




Sunday, April 1, 2012

घर का दर खुला रहा ,रात निकल गई
हद से बाहर अब तो बात निकल गई।

हम दर्द को बेक़सी या बेबसी कहते रहे
मुक़द्दर से उसकी मुलाक़ात निकल गई।
लेकर चले थे सामान जो यहीं का था
इस कश्मकश में पूरी रात निकल गई।
झुलस जाता ज़िस्म सहरा की तपिश में
शुक्र हुआ आँखों से बरसात निकल गई।
एक ही जुमला उसने बार बार सुनाया
अजीब सी वो तर्ज़े-मुलाक़ात निकल गई।
सस्ते दाम में मेरी महंगी शय बिक गई
ज़िन्दगी गिनती नुकसानात निकल गई।






Saturday, March 31, 2012

आईने ने तो बहुत ख़ूबसूरत लगने की गवाही दी थी
कोई मुझे देखा करे, मैंने किसी को यह हक न दिया।
वक्त को भी दर्दे-तन्हाई का कभी एहसास नहीं हुआ
मेरे गरूर ने मुझे ,किसी आँख में रहने तक न दिया।
रह रह कर कईं सिलसिले याद आ रहे हैं आज
काश ! भूले से ही किसी महफ़िल में रह लिए होते
आज वक्त ही वक्त है ,काटे से भी नहीं कटता
मुहलत मिली होती तो, अपनों के गले लग गये होते।



Thursday, March 29, 2012

झुर्रियों पर सिंगार अच्छा नहीं लगता
हर वक़्त त्यौहार अच्छा नहीं लगता।
रूठना तो बड़ा अच्छा लगता है उनका
गुस्सा बार बार का अच्छा नहीं लगता।
तुम जरूरत हो हमारी यह माना हमने
पर लबों पे इसरार अच्छा नहीं लगता।
खनक चूड़ियों की बड़ी अच्छी लगती है
उस वक्त सितार अच्छा नहीं लगता।
तस्वीर पर तुम्हारी होंठ रख दिएमैंने
बेमतलब इंतज़ार अच्छा नहीं लगता।
मैख़ाने में तेरे साक़ी आ ही गये हैं हम
अब करना इन्कार अच्छा नहीं लगता।



Monday, March 26, 2012

------- गरीबी की रेखा -----
उस चेहरे की नाउम्मीदी को देखिये
गरीब की खाली थाली को देखिये।
गरीबी रेखा से नहीं बदलती जिंदगी
गरीब के चश्मे से गरीबी को देखिये।
गरीब की किसी बसाहट में जाकर
बेबस मां की बदनसीबी को देखिये।
जिगर के टुकड़े को रोटी न दे सकी
बाँहे पसारती भुखमरी को देखिये।
गरीब का बच्चा भी गरीब बनेगा
गरीबी नहीं उस मजबूरी को देखिये।
लक्ष्मण रेखा की तरह है गरीबी रेखा
इसके नीचे की लाचारी को देखिये।
सरकार वादे करके पल्ला झाड़ लेती है
गरीबी पर होती राजनीति को देखिये।




Saturday, March 24, 2012

सिंगार करके ज्यादा मासूम लगने लगे
शर्म ह्या के गहने उन पे सजने लगे।
देख कर के ताव, हुस्ने-महताब का
तुनक मिजाज़ शीशे भी चटकने लगे।

भीड़ में खो गये थे जो ,वो एहसास
फिर से उनके जादू से मचलने लगे।
ता-उम्र जिस प्यार को तरस रहे थे
इतराकर उस प्यार में उछलने लगे।
सिफ़त जाने क्या थी उन आँखों में
नशा इस क़दर चढ़ा, बहकने लगे।




Wednesday, March 21, 2012

तलवार घिसते घिसते छुरी रह गई
बात जो कहनी थी अधूरी रह गई।
तुम सा कोई भी नहीं था शहर में
अब तो यहाँ बस मजबूरी रह गई।
मैंने चिराग़ जलाये सबके वास्ते
खुद की राह मेरी अँधेरी रह गई।
तन्हा दिल भला करता क्या क्या
हंसने की चाह भी अधूरी रह गई।
पहनते ही फट गया पैरहन नया
चमकती हुई पुरानी ज़री रह गई।
तुम्हारे संग चीज़ें अच्छी लगती थी
मन में वही परतें सुनहरी रह गई।


Monday, March 19, 2012

दिल में जब से दर्द की शिद्दत नहीं रही
दर्द को दर्द कहने की हिम्मत नहीं रही।
इसी को ओढ़ लेंगे जो नीचे बिछी थी
हम को आसमां की जरूरत नहीं रही।
वो आयें न आयें अब फर्क नहीं पड़ता
दिल के कोने में भी वहशत नहीं रही।
तुम ही थे जिस को ख़ुदा से माँगा था
तुमसे भी मिलने की फुरसत नहीं रही।
शबाब का मौसम कभी का गुज़र गया
अब रोशनी को हमारी आदत नहीं रही।
शिकायत जमाने से भला क्या करें अब
फ़िज़ा में वो शौक वो निस्बत नहीं रही।

Saturday, March 17, 2012

कुछ तो है जिसकी परदे दारी है
दिल में सबके बड़ी ही बेकरारी है।
जताना नहीं उसे छिपाना आता है
उसके पास सियासत की पिटारी है।
हर वक्त नए पैंतरे अपनाता है वो
हर लम्हा आदमी में नई होशियारी है।
खून के रिश्ते सब पैसों में बिक गये
फटे हुए रिश्तों पर अब पैवंदकारी है।

क़दम क़दम पर मसले ही मसले हैं
ज़िंदगी की मुसलसल जंग जारी है।
दिल के अन्दर तक देख नहीं सकता
आईने की भी अपनी ही लाचारी है
अखब़ार ही आज सब से सस्ता है
क़ब्ज़े में उसके मगर दुनिया सारी है।




Friday, March 9, 2012

आँखों में बड़ी मजबूरियाँ थी
सूखे लबों पर ख़ामोशियाँ थी।
हसरतें दिल में उबल रही थी
चेहरे पर बड़ी ही बैचैनियाँ थी।
तबस्सुम जानलेवा था उनका
सफ़र में मगर सिसकियाँ थी।
नज़र के दायरे में आ गईं थी
गलतफहमियां जो दरमियाँ थी।
खुल तो जाते हम खुलते खुलते
मगर चाहतों पर सख्तियाँ थी।
इंतज़ार उनके आने का बड़ा था
भले ही दिल में मायूसियाँ थी।
दाग़ आईने में भी उभर रहे थे
मिली मुझे इतनी रुस्वाइयाँ थी।

Wednesday, March 7, 2012

दम ख़म जो हमने दिखाया न होता
जश्न तुमने ऐसा मनाया न होता।
बोली तुम्हारी ऊंची कैसे लगती
अगर दाम हमने लगाया न होता।
घरों से अँधेरे भी कभी न निकलते
सूरज ने मुंह जो दिखाया न होता।
हवा के मिजाज़ का पता न चलता
मुकद्दर ने अगर आजमाया न होता।
ख़्वाब ग़ाह का जाने हश्र क्या होता
अगर ख़्वाब कोई सजाया न होता।
मैकदे में, मैं लडखडाता ही रहता
जो आँखों से तुमने पिलाया न होता।
शाम के वक्त तो मैं भी बहल जाता
शाम ने अगर दिल दुखाया न होता।













गुलाल मेरे चेहरे पर अगर लगा देते
कमाल तुम्हे अपना हम भी दिखा देते।
होली आ जाती जो हमारे मुहल्ले में
रंगों से उसको बेमिसाल बना देते।
जो बावले न होते इंतज़ार में तुम्हारे
होली में हम तो धमाल मचा देते।
इठलाती हुई अगर तुम दिख जाती
तीर कामदेव के हम भी चला देते।
गुलाल मलमल कर लगाते गालों पर
चेहरे को तुम्हारे हम रंगीन बना देते।
होली के दिन गले लग कर तुम्हारे
दिल का अपने तुमको हाल बता देते।

Saturday, March 3, 2012

सजी हुई है रंगोली गली गली बरसाने में
धूम मची है चारो तरफ होली की बरसाने में।
उमड़ रहा है रसिकों का मेला भी बरसाने में
गोपियाँ अपने कान्हां को बुला रही बरसाने में।
किये हुए सिंगार सोलह, बनी ठनी हर सखी
खेल रही सखों से लठमार होली बरसाने में।
अबके बरस खेलने को होली मैं भी लट्ठमार
एक नया लट्ठ लेकर आ पहुँची बरसाने में।
देख रंग बिरंगी छटा आँखें मेरी चुन्धियाई
राधा संग खेल रहे कान्हां होली बरसाने में।
देख के ऐसी सुन्दर होली दिल में है ये आया
हर जन्म में मैं दुल्हन बन आउंगी बरसाने में।

Thursday, March 1, 2012

कसूर जो हों हमारे हिसाब लिख दो
गम हमारे नाम बेहिसाब लिख दो
शिफ़ा जिसने बख्शी है हंसने की हमें
अहसानों पर उसके किताब लिख दो।
मेरा तुम्हारा रिश्ता बेनाम तो नहीं
ज़माने को इसका जवाब लिख दो।
कुछ न बोलो कुछ भी न बताओ
आँखों में अपना ख्वाब लिख दो।
उसूलों पर कायम रह सकें दोनों
तहरीर एक ऐसी ज़नाब लिख दो।
बात ख़ुश्बू की तरह फ़ैल जाएगी
लफ्ज़ मेरे होठों पर गुलाब लिख दो।








उम्मीद की लौ तो जल रही है
ख्वाहिश दिल में नई पल रही है।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल सुनने के लिए
शमां धीरे धीरे पिघल रही है।
मस्त निगाहों से न देखो हमें
वहशत सी दिल में पल रही है।
सुन लो, कि शाम भी ढल गई
तबियत पीने को मचल रही है।
किसने बिखरा दिए हैं जुगनू
सिंगार शब् अपना बदल रही है।
छोड़ के अदावत यारी पकड़ ले
मुहब्बत भी करवट बदल रही है।


Friday, February 24, 2012

बचपन में हम अमीर थे गरीब हो गये
जिंदगी के ज़्यादा अब करीब हो गये।
ज़हाज कागज़ों के उड़ाते थे शौक से
हौसले वो सारे बे -तरतीब हो गये।
दूर हो गये आइना ए दिल से इतना
चेहरे दिखने में अजीबो गरीब हो गये।
हवा के मिजाज़ का भी पता न चला
हुस्नो इश्क ही दिल के रकीब हो गये।
रंगो लिबास वक़्त के संग बदल गया
रिश्तों के ढंग भी सब अज़ीब हो गये।
तितलियों के खेल पर पाबंदी लग गई
झूठी कहानियों के अब करीब हो गये।




Monday, February 20, 2012

लिए हाथ में कटोरा भिखारी मांग रहा है नोट
दिल में मगर उसके जरा सा भी नहीं है खोट।
अपनी अपनी भीख है, अपना अपना कटोरा
भिखारी तो भिखारी है, वो नोट मांगे या वोट।

Sunday, February 19, 2012

जलती हुई शमां के परवाने बहुत हैं
हर हसीन रात के अफ़साने बहुत हैं।
तन्हां अपने चाँद को न छोड़ना कहीं
शबे चांदनी में चाँद के दिवाने बहुत हैं।
यारों हमें दिल से पत्थर न समझना
हमको अपने गम अभी छुपाने बहुत हैं।
अलग क़ाफिले से मैं चल नहीं सकता
अभी तो मेरे साथ में ज़माने बहुत हैं।
प्यास उजाले की बढ़ रही है हर घड़ी
मुझे चिराग़ अभी तो जलाने बहुत हैं।
हम ज़ाम पी लेंगे,जब भी प्यास लगेगी
मेरे लिए उन आँखों के पैमाने बहुत हैं।
गेसू उनके बिखरे तो किस्मत संवर गई
ख्वाब उनके संग हमे सजाने बहुत हैं।
अपना मसीहा उनको बना तो लिया
मगर वे अपने आप में सयाने बहुत हैं।
एक ज़गह दिल लगे भी तो लगे कैसे
रहने को अब दिल के ठिकाने बहुत हैं।





Sunday, February 5, 2012

दोस्तों,
१८ जनवरी २०१२ को मेरी गजलों की एक ओडियो अल्बम * अनजाने हो गये * सोनिक इंटरप्राएइसेस ,दिल्ली द्वारा पूरे भारत में लोंच की गई है। इसकी कुछ ग़ज़लें हैं......
मैखाने में जरा कभी आकर तो देखिये....गायक -- सन्न्वर अली---
मैख़ाने में जरा कभी आकर तो देखिये
एक बार ज़ाम लब से लगाकर तो देखिये।
दुनिया को तुमने अपना बनाया तो है मगर
हमको भी कभी अपना बनाकर तो देखिये।
तुम हाले दिल पे मेरे हंसोगे न फिर कभी
पहले किसी से दिल को लगाकर तो देखिये।
जिसकी तुम्हे तलाश है मिल जायेगा तुम्हे
चाहत में उसकी खुद को मिटाकर तो देखिये।
फिर होश में न आओगे दावा है ये मेरा
उनकी नज़र से नज़र मिलाकर तो देखिये।

हर अदा में कमाल था कोई ---दीपा चौहान --सन्न्वर अली----
हर अदा में कमाल था कोई
आप अपनी मिसाल था कोई।
उसके आशिक थे मिस्ले-परवाना
हुस्न से मालामाल था कोई।
उससे छुटकारा मिल गया हमको
एक जाने बवाल था कोई।
वो मिला है न मिल सकेगा कभी
एक दिल में ख्याल था कोई।
बेचकर खून रोटियाँ लाया
भूख से यूँ निढाल था कोई।
भीगी आँखों से देखना उसका
आंसुओं में सवाल था कोई।

झुकी तो हया हो गई -----गायक-----सरफराज साबरी---
झुकी तो ह्या हो गई
उठी तो दुआ हो गई।
बढ़ी इतनी दीवानगी
मुहब्बत सजा हो गई।
तुम्हारे बिना जिंदगी
बड़ी बेमज़ा हो गई।
अजाब मुस्कराहट तेरी
सरापा कज़ा हो गई।
हुई तुमसे क्या दोस्ती
ये दुनिया खफा हो गई।

पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई -----गायिका ----दीपा चौहान
पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई
सुनते हैं नमी आँख में उनके भी आ गई।
मैं आईने के सामने पहुँची जिस घडी
मेरी बुराई साफ़ नज़र मुझको आ गई।
एक मैकदा सा बंद था उसकी निगाह में
मदहोश कर गई मुझे बेखुद बना गई।

Saturday, February 4, 2012

अदाकार तो बहुत हैं, फ़नकार नहीं है
अब किसी के सर पर दस्तार नहीं है।
साकी तेरे मैक़दे में मय बहुत है मगर
खुशबू बिखेर दे ,वो कद्रे-यार नहीं है।
हमदर्द बहुत मिलते हैं हर मोड़ पे खड़े
दिल में किसी के भी मगर प्यार नहीं है।
प्यार में, कसमें हों, वादे हों या हो वफ़ा
कुछ भी तो यहाँ सिलसिलेवार नहीं है।
हर कोई अपनी ख़ुदी में मस्त है बहुत
किसी को किसी की भी दरकार नहीं है।

Sunday, January 29, 2012

हिमालय से बर्फीली बयार आ गई
वसंत को भी ठंड की मार सता गई।
वसंत आने का अब के पता न चला
वसंत में वासन्ती साड़ी कंपकपा गई।
सुबह रजाई में सिमटा रहा वसंत
सर्दी मस्त उमंगों को भी सुला गई।
सुबह सवेरे कौवे ने तो कांव कांव की
कोयल की कूक मगर ठंड मना गई।
वसंत अपने पाँव चलकर नहीं आता
ज़िद मौसम की ये अहसास दिला गई।
वसंत आया और आकर चला गया
वसंत की याद मगर बहुत तडपा गई।


Saturday, January 28, 2012

हवा से न कहना, वो सब को बता देगी
तेरा हर ज़ख्म दुनिया को दिखा देगी।
तू डूबा हुआ होगा अपने गम में कहीं
वो जमाने भर में बहुत शोर मचा देगी।
चाहना उसे दिल से एक फासला रखकर
शुहरत बिगड़ गई तो हस्ती मिटा देगी।
तू दरिया प्यार का है, वो चाँद सूरत है
जिंदगी हर घडी तेरे होश उड़ा देगी।
मौत ने आना है, वो आएगी भी जरूर
फैसला भी अपना एकदम ही सुना देगी।
नादान है बहुत तू ,ये दुनिया शन्शाह है
जायेगा खाली हाथ तुझे ऐसा बना देगी।
हफ्तों, महीनों, सालों की तो बात न कर
दुनिया तेरे जाते तेरा किस्सा भुला देगी।




Thursday, January 26, 2012

क़दर करेंगे हम अपने भारत राष्ट्र महान की
जान लुटा देंगे, खातिर हम अपने स्वाभिमान की।
सारे जहां में जय जय होवे मेरे हिन्दुस्तान की
आओ मिलकर शपथ लें हम सब मतदान की।
सूरज चमकता रहे देश में सदा ही विकास का
रश्मियाँ फैलें चारों ओर मत के अभियान की
निर्भय हो मतदान करें जन जन को यह ज्ञान दें
रक्षा करनी है हमको अपने मान सम्मान की।
शत प्रतिशत मतदान हो दिल में यही चाह रहे
ताक़त हमको देखनी है शत प्रतिशत मतदान की।
जंग लगे हथियारों में अब नई धार लगानी है
नये अंदाज़ में वन्दे-मातरम की आवाज़ सुनानी है।
नहीं खेलने देंगे किसी को हम अपने सम्मान से
भ्रष्टाचार की होली भी तो हमको ही जलानी है।
सशक्त और समर्द्ध राष्ट्र अपना हमें बनाना है
इसके लिए हम को कोई नई चाल अपनानी है।
घोटालों का ताना बाना न कोई भी बुन पायेगा
सिरफिरे लोगों को यह बात हमें समझानी है।
हाथ उठाकर शपथ लेते हैं, वोट जरूर डालेंगे
हर हालत में देश की लाज हमको बचानी है।

Tuesday, January 24, 2012


दोस्तों ,
मेरी गजलों की एक ऑडियो अल्बम * अनजाने हो गये * सोनिक enterprises, दिल्ली
द्वारा आल इंडिया रिलीज़ की गई है। इस ऑडियो अल्बम में आठ ग़ज़लें --
पहचानते नहीं सभी अनजाने हो गये ..... मैखाने में कभी आकर तो देखिये .......
पैगाम लेके जो वादे- सबा गई........ हर अदा में कमाल था कोई .......उन्हें दुश्मनों
की बगावत ने मारा ......उल्फत के दौर की वो हर एक बात याद है.......झुकी तो ह्या
हो गई ,उठी तो दुआ हो गई .......राज़ कुछ ऐसा है दिल में छिपाए न बने , हैं।
जिनको दीपा चौहान , सरफराज साबरी , अनीस साबरी , लोकेश शुक्ल ,सन्न्वर अली ,

और हिना खान ने अपनी खुबसूरत आवाज़ से संवारा है।


Monday, January 9, 2012

भूलने का सबक

जो कुछ भी हुआ ,उसे भूल जाओ!--
पत्नी मुझे दिलासा दे रही थी--
बीती बातें याद रखने का कोई औचित्य नहीं है।
पास खड़ी नन्ही बिटिया कभी मुझे कभी अपनी
मम्मी को टुकुर-टुकुर निहार रही थी।
अरे! तुम्हे क्या हुआ, मेरी बच्ची ?-
हम दोनों के मुंह से यकायक निकला।
-हमें टीचर स्कूल में सिखाती है कि हमे कुछ भी
नहीं भूलना चाहिए। मम्मी जब भी मैं कोई बात
भूल जाती हो ,तुम मुझे डांटती हो। कहती हो-
तुझे कुछ भी याद नहीं रहता।मेरी स्मरण शक्ति बढ़ाने
के लिए ब्राह्मी भी खिलाती हो। वह कुछ पल रुक कर बोली-
अब मम्मी आप सबकुछ भूलने को कह रही हैं ! क्यों पापा?
उसके प्रश्नवाचक चेहरे को हम तकते रह गये थे।
मैं सोच रहा था जो उसके कोमल मुंह से निकला था-
सब सच था।-- एक उम्र होती है ,जब हम सीखते हैं पढ़ते हैं तो
सबकुछ याद रखना चाहते हैं। बार बार भगवान से प्रार्थना
करते हैं,की हमारी स्मरण शक्ति कमज़ोर न हो।
जैसे जैसे उम्र बढती है-जीवन में दुःख भरे एवम कटु
प्रसंग आते हैं , तब हमे अनुभव होता है की भूलना,याद रखनेसे भी
अधिक मूल्यवान होता है ।ईश्वर ने मनुष्य को दुखों से छुटकारा
पाने की जो शक्ति दी है,वह अनुपम है !अमूल्य है!
समय धीरे धीरे सबकुछ भुला देता है। नित्य ऐसी बातें होती हैं,
जिनसे दिल को आघात पहुँचता है। यदि हम इन आघातों को न भूलें
तो किसी बड़े मानसिक आघात से फट पड़ें।
नन्ही बच्ची ,जिसे अभी दुःख का अर्थ ही नही पता -उसे भूलने
के विषय में कैसे समझाए ?
तुम्हारी टीचर ठीक कहती है बेटा भूलने का कोई सबक नहीं होता
हमे कुछ भी नहीं भूलना चाहिए ,तुम्हारी मम्मी तो ऐसे ही कह रही थी।
-सच !!!--उसकी आँखों से प्रसनता बरस रही थी।
जिंदगी को मौत से लड़ते देखा है
दिल वेंटिलेटर पर धडकते देखा है।
मौत आती दिखाई देती है जब भी
दिल जीने की ही दुआ करते देखा है।
शाहे-दिल देखा है मुफलिस का तो
अमीर को भी आह भरते देखा है।
प्यार का अंजाम यह भी देखा हमने
ज़िस्म साबुत है दिल टूटते देखा है।
इंसान बनकर तो जी न सका कभी
आदमी को देवता ही बनते देखा है।
तासीर तेरे मैक़दे की गज़ब है साकी
पीकर आदमी सच उगलते देखा है।
मुझसे ज्यादा प्यार की दरकार किसे है
मैंने हर आँख से आंसू बहते देखा है।

Thursday, January 5, 2012

घड़ी घड़ी वो अपना रंग बदलते रहे
लेकर आइनों को भी संग चलते रहे।
हम उनको मुहलतें देते चले गये
बहाने मुकरने के वो सदा ढूंढते रहे।
ख़ता नहीं बताई सजा देने से पहले
इलज़ाम सर पर लगा हम देखते रहे।
दिन में बिल्कुल ही फुरसत न मिली
रातों में मुक़द्दर से हम लड़ते रहे।
रात ने भी मुझ को सोने नहीं दिया
मिलके साथ साथ सहर ढूंढते रहे।
यह बड़ा ही अजीबो गरीब सच है
मुफलिसी में सदा हम सिकुड़ते रहे।
ईमान ही दाँव पर न लगाया हमने
भले ही चीथड़े ज़िस्म पर लपेटते रहे।






Monday, January 2, 2012

या तो मेरे घर की मरम्मत करा दो
या कोई मुझको नया घर दिला दो।
दीवारें इसकी सारी ही सील गई हैं
जतन कोई करके इनको सूखा दो।
मौसम बदल रहा है हवाएं भी तेज़ हैं
खता क्या है मेरी इतना भी बता दो।
हाले- दिल बेहद ही बेहाल है मेरा
लम्स से अपने तुम इसको सहला दो।
रोएगा न दिल फिर यह वादा है मेरा
बस जरा सा इसको हंसना सिखा दो।
होती रहे प्यार की पूजा सदा जिसमे
मेरे दिल को ऐसा एक मन्दिर बना दो।
लो आ गया झूमता इठलाता नया साल
जैसा भी था, अच्छा था बीत गया साल।
प्यार की विश्वास की और खुशियों की
सम्पदाओं से सजे रहे सदा आपके थाल।
बुराई मिटे, महंगाई मिटे,मिटे भ्रष्टाचार
भूख से न हो इस वर्ष कोई भी निढ़ाल।
झूम के नाचे मस्ती में ,हो न कोई गम
मतवाली हो जाए हम सब की ही चाल।
तेरी भी मेरी भी ,है उसकी भी यही दुआ
मंगलमय हो जाए हम सब को यह साल।