Tuesday, November 27, 2012

दास्ताने - दर्द हम किसको सुनाते
पत्थरों के शहर में किसको बसाते !

आबे - हयात नहीं है पास में मेरे
दो घूँट पानी की किसको पिलाते !

शहर चले गये थे कमाने के वास्ते
लौट आये, शक्ल किसको दिखाते !

हवा बेवफ़ाई की ही बह रही थी
क़सम वफ़ा की किसको दिलाते !

अपने ख़त में तुमने लिखा था मुझे
महावर रचे पावों को चूम तो जाते !

क्या करें ख़ुद से ही परेशान थे हम
अपनी बेबसी क्या तुमको बताते !

Saturday, November 24, 2012

तुम उजालों के नाम हुए
हम अँधेरे में बेनाम हुए !
वफ़ा की रस्म निभाते रहे
और इश्क़ में नाकाम हुए !
अपने शहर में नेक नाम थे
तुम्हारे शहर में बदनाम हुए !
इतनी लुटाई दौलते -दिल
कि आख़िर में नीलाम हुए !
सहरा हूँ प्यास हं कौन हूँ मैं
ख़ुद की नज़र में बेदाम हुए !
हमें हमारे ही ग़म ने काटा
रफ़्ता रफ़्ता हम तमाम हुए !