Monday, December 27, 2010

कोई टूटे टुकड़ों से निर्माण कर जाता है

कोई टूटे टुकड़ों से निर्माण कर जाता है
तोड़ फोड़ कर कोई नुकसान कर जाता है।
किसी को दिल में रहने का हुनर आता है
कोई बातों से लहूलुहान कर जाता है।
काम कर जाता है जो तेज बहुत होता है
सीधा सादा तो बस परेशान कर जाता है।
ये जिंदगी अपनी है सफ़र भी अपना है
हमसफ़र कोई राह वीरान कर जाता है।
लड़ते रहते हैं जिस शख्स से उम्र -ता
कभी वह भी कोई एहसान कर जाता है।
नर्म टहनी पर खुरदरी गाँठ का होना
नया पत्ता आने का गुमान कर जाता है।
किसी ने कहा है तो ठीक ही कहा होगा
साहिल ही समंदर को वीरान कर जाता है।

बीते लम्हों से जो बात हुई

बीते लम्हों से जो बात हुई
लगा उनसे मुलाक़ात हुई।
कौन छूकर फिर गुजरा है
रूह की दिल से ये बात हुई।
पोर पोर जलाती दुपहरी में
चिनारों पे जैसे बरसात हुई।
मेरा दिल तेरी पनाह में है
आज भी उनसे यही बात हुई।
वक़्त का पता ही न चला
कब दिन बीता कब रात हुई।

आने वाला साल बेमिसाल हो जाये.

आने वाला साल बेमिसाल हो जाये
सालो में वह साल कमाल हो जाये।
आतंक भुखमरी भ्रस्टाचार मंहगाई
इन सबका बहुत बुरा हाल हो जाये।
आपसी नफरतें बैरभाव मिट जाये
हर दिल ख़ुशी से मालामाल हो जाये।
मानवता की जय हो बुराई की हार हो
नए साल में यह कमाल हो जाये।
आने वाला साल बेमिसाल हो जाये
सालों में साल नया साल हो जाये।

Friday, December 17, 2010

जाने किस डगर गया होगा

जाने किस डगर गया होगा
अपने साये से डर गया होगा।
अपने सपनो को जाते जाते
दर बदर कर गया होगा।
अपनों ने सताया इतना
जख्मे रूह लेकर गया होगा।
किसी ने कद्र न की उसकी
सूखा बादल बिखर गया होगा।
बच्चा होता तो बहल ही जाता
बूढा था कहीं मर गया होगा।

Tuesday, December 14, 2010

पास आके देखले मुझे करीब से

पास आकर देखले मुझे करीब से
क्या दुश्मनी है तेरी मुझ गरीब से।
पूछते हो हाल मेरा ये क्या हो गया
चैन छीन लिया तूने बदनसीब से।
दिल बहलता नहीं किसी बात से
मैं तो जी रहा था बड़ी तरतीब से ।
उम्र गुजर गई तब जाके ये जाना
ज्यादा मिलता नहीं कभी नसीब से।
दर्द की सौगात मैंने खुद चुनी थी
शिकायत नहीं है मुझे रकीब से।
गम दिल में रहेगा सदा बस यही
नहीं जान सका तू मुझे करीब से।

Saturday, December 11, 2010

जिसकी फितरत है दगा करने की

जिसकी फितरत है दगा करने की
सोच नहीं सकता वफ़ा करने की।
सुनकर भी नहीं सुनता किसी की
क्या जरूरत है उससे बात करने की।
हमें तो नागवार गुजरता है बहुत
नहीं आदत है गलत बात करने की।
लागा लिपटी पसंद नहीं बिल्कुल
हमे आदत है साफ़ साफ़ कहने की।
गली गली फिरता है मारा मारा
नहीं आती अदा उसे दिल में बसने की।

Friday, December 10, 2010

तुझे रुकने का वक़्त न था

तुझे रुकने का वक़्त न था
मिरा टोकने का वक़्त न था।
इतना भी यकीन है मुझको
पत्थर था तू सख्त न था।
साया दिया था जिसने हमे
सर पर बूढा दरख्त न था।
जमा होता तो मर गया होता
इतना ठंडा भी रक्त न था।
ज़ज्बात रहे न वो मगर
मैं कभी इतना मस्त न था।

दर्द से रोशनी नहीं होती.

दर्द से रोशनी नहीं होती
हर घड़ी बन्दगी नहीं होती।
कल हवेली थी अब खंडहर है
वक़्त से दोस्ती नहीं होती।
आसमा को तकते रहने से
हर शब् चांदनी नहीं होती।
घर की वीरानी में ऐ दोस्त
खिड़कियाँ खुली नहीं होती।
गुस्से में जो भी बात होती है
वजनी वो कभी नहीं होती।
जिंदगी किसी तरतीब से भी
पल पल रेशमी नहीं होती।
क्या अजब मिल जाये अभी
ख़ुशी सदा अपनी नहीं होती।