Saturday, December 21, 2013

अब किसी बात का भी अंदाज़ नहीं होता
हर वक़्त एक सा तो मिज़ाज नहीं होता।
हैरान होता है दरिया यह देख कर बहुत 
क्यूँ आसमां ज़मीं से  नाराज़ नहीं होता।
खिड़की खोल दी,उन की  तरफ़ की मैंने
अब परदे वालों का  लिहाज़  नहीं  होता।
गुज़रा हुआ हादसा फिर से याद आ गया
अब काँटा भी  नज़र- अंदाज़ नहीं  होता।
नहीं होता ज़ब कभी कुछ भी, मेरे घर में
दिल तब भी  मेरा  मोहताज़ नहीं होता।
अस्पताल तो बहुत सारे हैं इस शहर में
ग़रीबी का ही  कहीं , इलाज़  नहीं होता।
 



 

Thursday, December 19, 2013

हमने ज़न्नत का इक शहर देखा है
हमने उनके, मन का नगर देखा है।
चाँद शरमा के छुप गया, बदली में
उन के हुस्न का यह असर देखा है।
ओस में नहाया हुआ उनका हमने
फूल  सा  यौवन -शिखर  देखा है।
सर्द रुख़सार से  गर्म होठों तलक़
सियाह  ज़ुल्फ़ों का क़हर देखा है।
नज़रे-साहिल से नज़रें चुरा हमने
दरियाए  हुस्न में तैर कर देखा है।
देखा है वह सर-आ-पा हुस्न हमने
रेशमी रूप का वह समंदर देखा है।
वक़्त का क़ाफ़िला भी, रुक गया
उन्होंने जब हंस के, इधर देखा है।
हमें अपना बना लिया, जब चाहा
उन्हें मेहरबान इस क़दर देखा है।
नशा नहीं उतरा, कभी भी हमारा
हमने उम्र का वो भी सफ़र देखा है।
   

Friday, November 29, 2013

जवाब जिसका हो,लाज़वाब नहीं होता
ख्वाब जो सच्चा हो, ख्वाब नहीं होता।
उस की हर किरन ही बड़ी नाज़ुक सी है
माहताब कभी भी आफ़ताब नहीं होता।
ज़मीन छूने लगती है ,आसमान  जब
तो फ़िर कीमतों का हिसाब नहीं होता।
उस के नसीब में है, मुफ़लिसी का दर्द
ग़रीब ग़रीब होता है ,ज़नाब नहीं होता।
हर एक बात की इल्तिज़ा करता है वो
उस की शराफ़तों का ज़वाब नहीं होता।
भाप बन कर उड़ गया, सारा ही पानी
इन  आँखों में  अब सैलाब नहीं होता।
उसकी बेरुखी पर यह सवाल उठता है
सूखी नदियों में क्यों आब नहीं होता।
तौबा कर ली है जब से पीने की हमने
अब पीने को  दिल, बेताब नहीं होता।




 

Sunday, November 17, 2013

उम्र प्यार की अब कम हो गई 
यह सोचकर आँख नम हो गई।
चाँद  गोद में कभी आया  नहीं
ज़िन्दगी अँधेरे में गुम हो गई।
रिश्तों को भुनाते भुनाते ही तो
दिलों की चमक ख़त्म हो गई।
लगावट दिलों में अब रही नहीं
हँसी भी होठों पर हिम हो गई।
उम्र भर धूप में रहते रहते अब
छाँव में ये आंखें बेदम हो गई।
सहरा में भटक लिए इतना हम 
तिश्नगी  होठों की कम हो गई।
मेरी साख़ पर अंगुली क्या उठी
ज़िन्दगी ही अब सितम हो गई। 
 

Saturday, November 16, 2013

जिस को भी मैंने  है हवा से बचाया
उस चिराग़ ने ही  घर मेरा जलाया।
हमसफ़र बनकर साथ चला जो भी
तन्हाई का उसने ही फ़ायदा उठाया।
सूखे लब हैं ,यह भीगी भीगी  आँखें
बहार ने भी कैसा यह गुल खिलाया।
क़द से बाहर तो निकल आया था मै
ख़ुद से ही बाहर  न मैं निकल पाया।
ख़ुदा को खोजने निकला था, मैं तो
मुझ को  ढूँढता फिरा मेरा ही साया।
सूने दालान यह खिड़कियां वीरान 
घर का मेरे, यह क्या हाल बनाया।
हज़ार खिड़कियां थी, दिल में  मेरे
किसी को  भी मैं, नहीं खोल पाया।
तीर की  माफ़िक़, चुभी अंगुली वो
किसी ने जब मेरा ज़ख्म सहलाया।
मेरे ज़ख्मों की महक़ कहती है यह
तू भी तो मुझ को , नहीं भूल पाया।      

Tuesday, November 5, 2013

जलते सवालों के सुलगते ज़वाब कौन देगा
जो रात बीत गयी उस के ख्बाब कौन देगा।
इक आग होनी चाहिए, रौशनी के लिए भी
इस अँधेरे में उजालों का हिसाब कौन देगा।
इतनी ज़यादा मिल गई हमें गमों की दौलत
ज़र्द हवाओं को खुशबु-ए -गुलाब कौन देगा।
उदासियाँ सी बिखरी पड़ी हैं ,चारों ही तरफ
इस मौसम को बहार का ख़िताब कौन देगा।
हमारी तमन्ना को जगाया और बुझा दिया
हमारे ज़ुनून को अब हवा बेताब कौन देगा।
आज़ की शब् चाँद की चमक बहुत फीकी है
आज़ चांदनी को हुस्ने-माहताब कौन देगा।
हवा का एक झोंका आया, सब बिखर गया
अब मुहब्बत में भरोसे का हिसाब कौन देगा।

 

Tuesday, October 29, 2013

तारीख़ बदलने से तक़दीर नहीं बदलती
वक़त के हाथ की शमशीर नहीं बदलती।
मैं ज़िन्दगी भर ज़िन्दगी तलाशता रहा
ज़िन्दगी , अपनी ज़ागीर नहीं बदलती।
कितने ही पागल हो गये ज़ुनूने इश्क़ में
मुहब्बत  अपनी तासीर  नहीं बदलती।
प्यार ,वफ़ा,चाहत ,दोस्ती व  आशिक़ी
इन किताबों की तक़रीर नहीं बदलती।
अपनी खूबियाँ, मैं किस के  साथ बाटूं
अपनों के ज़िगर की पीर नहीं बदलती।
कईं बार आइना भी मुझसे लड़ा लेकिन
मेरी सादगी  ही  ज़मीर नहीं  बदलती।
बहुत ग़ुरूर है, चाँद को भी  चांदनी पर
चांदनी भी अपनी तस्वीर नहीं बदलती।
पड़ गई आदत मुझे साथ तेरे चलने की
मेरी बेरूख़ी भी , ज़ागीर नहीं बदलती।
मेरा वायदा है , मैं  निभाऊंगा भी ज़रूर
मेरे मनकों की भी तनवीर नहीं बदलती।

 

Saturday, October 19, 2013

नज़र में रह कर भी नज़र में नहीं
गुज़र अब मेरी उसके घर में नहीं।
मैंने तो सिलसिला रखा था उससे
उस की चाहत, मेरे असर में नहीं।
दुश्मनों से पहचान मिली है मुझे
अपनों  के तो, मैं बराबर  में नहीं।
पत्थरों से डर नहीं लगता मुझको
अब आइना कोई  मेरे घर में नहीं।
बहुत खुश था मैं तो सोच कर यह
मुझ से अच्छा सारे शहर में नहीं।
मगर मुझ में कुछ टूटने लगा अब
अब वो दम इस मुसाफिर में नहीं।


 

Friday, October 18, 2013

ख़ुद से भी मिलना मिलाना छोड़ दिया
अब हमने एहसान जताना छोड़ दिया। 
बहुत प्यार था  रूह से, ज़िस्म से हमें
अब अपने बारे में बताना  छोड़ दिया।
सुना है जबसे आइना झूठ बोलता नहीं
उसे देखने का शौक़ पुराना छोड़ दिया।
हादसे इस क़दर से गुज़रे गये  हम पर
ख़ुद जलते रहे अश्क़ बहाना छोड़ दिया 
पता चला ज़िंदगी  ही चार  दिन की है 
हमने अब खुद पर इतराना छोड़ दिया। 
जीते ज़ी यह दुनिया न हुई  किसी की 
दीवारों से ही  सर टकराना छोड़ दिया।
गिलास हाथ में था , याद तेरी आ गई 
फिर तो हमने पीना पिलाना छोड़ दिया।  

Wednesday, October 16, 2013

छत्त नीची हो तो  सर उठाया नहीं जाता
दुआ मांगते वक्त  सर झुकाया नहीं जाता !
जीना  है अगर,  धोखे  तो खाने ही पड़ेंगे
फूलों की तरह भी तो इतराया नहीं जाता !
अगर कहला भेजते  तो हम भी आ जाते
बिना बुलाये हम से कहीं आया नहीं जाता !
हर लम्हा आइना भी बदलता है अपना रंग
इस हकीकत को भी झुठलाया नहीं जाता !
बुतों से भी  हमको  कोई शिकायत नहीं है
जो सुन नहीं सके उसे सुनाया नहीं जाता !
आँखों ही आँखों में अदा होते हैं जो मजमूँ
लिख कर  वह पैगाम भिजवाया नहीं जाता !
सारी मस्ती तुम्हारी इन आँखों की ही तो है
ज़ाम लबों से अब हमसे लगाया नहीं जाता !
संवरने में अभी जाने कितना वक्त लगेगा
अब खुशबुओं का बोझ  उठाया नहीं जाता !

Monday, October 14, 2013

सुर्ख लबों पर तिल बेमिसाल होता है
कोई हुस्न सर-ता-पा कमाल होता है !
असीम सुन्दरता की मूरत है तू ,तुझे 
उर्वशी कहूं या वीनस सवाल होता है !
रजनीगंधा भी महक तुझसे चुराती है
दिल यूंही नहीं तुझपे निहाल होता है !
मौज में आया हुआ समंदर है तू तो
तुझे देख  आइना भी बेहाल होता है !
तुझे  देखा न करे तो क्या करे कोई
तेरा तब्बसुम आरजूऐ विसाल होता है !
ढूंढें नहीं मिलते लफ्ज़ तेरी तारीफ़ में
रु-ब-रु फीका चाँद का जमाल होता है !

Friday, October 11, 2013

कोई सरे आम लूट कर जाता है
वह  बुलाने से भी नहीं आता है !
दुश्मनी नसीब बन कर रह गई
अब मुहब्बतें भी कौन निभाता है !
इक गर्द सी फैली हुई है चारों सू
यह आंधियां भी कौन चलाता है !
वही मुद्दई है गवाह है मुंसिफ भी
अपना फैसला खुद ही सुनाता है !
यह खुशियाँ तो कर्ज़ हैं मुझ पर
वह खुशियों को बेमोल लुटाता है !
गिरा देते हैं आँख से सब ही तो
आंसुओं को भी  कौन सजाता है !
पलटकर के देखा भी नहीं उस ने
अब किसके गम कौन  उठाता है !
अब नहीं लौटेगा वह तो मौसम है
क्यों नाहक उसको तू बुलाता है !
आवारा बादल की तरह से हूँ मैं
जो आता है आकर चला जाता है !

Monday, September 30, 2013

सूरज है , अंधकार से  नहीं डरता
पानी के साथ पत्थर  नहीं बहता !
थोड़ी सी मिलावट  बेहद जरूरी है
खरे सोने से भी ज़ेवर नहीं बनता !
यह खबर है  कि वो आने वाले हैं
इस खुशबु से ही  जी नहीं भरता !
घर की बात  घर में ही सुलझा लो
ठोकरों से कभी मुक़द्दर नहीं बदलता !
पेट में जब  कभी भी आग जलती है
रोटी कह लेने से ही पेट नहीं भरता !
उजाड़े या बसाये यह उसकी इच्छा है
किसी के रोके से दरिया नहीं रुकता !
तुम नादान हो तुम्हे यह इल्म नहीं
ज़न्नत का दर  बेवज़ह नहीं खुलता ! 

Saturday, September 28, 2013

राम को देखकर बहुत खुश था रहीम
श्याम का घर  चिन रहा था शमीम !
सब को  रास्ता दिखा रहा था  राम
दर्द  सब के दूर कर रहा था  रहीम !
किसकी आरज़ू और किसकी जुस्तजू
अपने ही तो हैं दोनों राम और रहीम !
किसकी मैं पूजा करूं या करूं सज़दा
पाई नहीं मैंने ही कभी इसकी तालीम !
खुशबु के झोंकों से हैं सुर्खरू दोनों ही
कहे चली जा रही है यह बादे नसीम !
 रिश्तों को बेच दें हम चंद पैसों की खातिर
हमसे इतना भी शर्मसार नहीं हुआ जाता !
उम्र गुज़र गई  फाका मस्ती में ही  सारी
इस से ज्यादा इमानदार नहीं हुआ  जाता

Thursday, September 26, 2013

तेरे ग़म का आख़िर हम क्या करें
कब  तलक़ तेरा हम सज़दा  करें !
क्या करें  इससे ज़्यादा यह  बता
फ़ासला न रक्खें तो फिर क्या करें !
दिल का दर्द हमने भरा तस्वीर  में
लकीरों को कितना हम गहरा  करें !
वह तस्वीर  आईने में देखी थी जो
क्यों बार बार उस को ही देखा करें !
मिला है मुझ को ही हमसफ़र ऐसा
दुआओं का भी आख़िर हम क्या करें !
तेरी बातों से  मुझे डर लगने लगा है
तेरा कहा भी कैसे हम अनसुना करें !
बात कहने पर भी लगी हुई है पाबंदी
अब  किस क़दर  तेरा हम चर्चा करें !
शख्श किसी भी काम न आ सके जो
तू ही बता ,उस शख्श का  क्या करें !

Saturday, September 21, 2013

क्या कहूं, तेरे बिना मैं क्या हो गया
जगमगाते शहर में  अँधेरा हो गया।
ज्यों  फूल से गायब हो जाए  खुश्बू
बेचारगी का मैं  सिलसिला हो गया।
आँगन में उतरने को थी धूप  जैसे ही
सूरज पर बादलों  का पहरा हो गया।
किया करते थे हम बारिश की दुआएं
सैलाब आँखों में  हद दरज़ा हो गया।
भटक रहा हूँ अब अपनी ही तलाश में
अक़्स मेरा, दर्द का  नगमा  हो गया।
मेरे पास फ़क़त किरचियाँ ही  रह गईं
शीशा ए दिल  टूट कर , चूरा हो गया।
कभी तो  एक बार आकर  देखले मुझे
मैं धुंआ देती लकड़ी का टुकड़ा हो गया।
 

Thursday, September 19, 2013

आज़ फ़िर  उसी शाम की  तलाश है
आज़ फ़िर मुझे मक़ाम की तलाश है।
अपनी खुश्बु को हिसाब मत दे मुझे
आज़ मुझको मेरे दाम की तलाश है।
शराफ़तो से वह राह पर नहीं आयेंगे
फ़िर से किसी इल्ज़ाम की तलाश है।
निकल नहीं पाए क़द से बाहर कभी
झूठी शान को  गुलाम की तलाश है।
कान पक गये सुनते सुनते अब यही
हमको  सख्त निज़ाम की तलाश है।
होठों का तबस्सुम भी ये कह रहा है
तिश्नगी को फ़िर ज़ाम की तलाश है।
जिसके दम पर दुनिया सारी टिकी है
उसे  भी तो  एहतिराम  की तलाश है।



 

Monday, September 16, 2013

वक्त के  हाथों में, मैं  भी तो पला हूँ
वक्त की मैं भी तो जाने तमन्ना हूँ।
तुमने तो मौत मांगी थी मेरे लिए भी
ये मेरा हुनर है , अब तक मैं ज़िंदा हूँ।
वो बोले उम्र हुई, अब बचा भी क्या है 
मैंने कहा, मैं फूल हूँ अभी तो खिला हूँ।
मुहब्बत भी मुझे देख ,आहें भरती है
मैं प्यार का ऐसा ही तो सिलसिला हूँ। 
इतना हुआ ,आज़ मैं ज़रा संवर गया
आइना बोला , मैं ही तो बादे -सबा हूँ। 

Wednesday, September 11, 2013

हिन्दी को बेचारी  बनाया  हिन्दी भाषी लोगों ने
अंग्रेज़ी को सम्मान दिलाया हिंदी भाषी लोगों ने।
हिंदी दिवस पर जश्न मनाकर ,याद कर हिंदी को
हिन्दी पर अहसान जताया, हिन्दी भाषी लोगों ने।   
हिन्दी विदों को  शाल भेंट कर ,प्रशंसा में उन की
हिन्दी का गुणगान कराया , हिंदी भाषी लोगों ने।
हिन्दी की सुंदर माला में शब्द पिरोकर अंग्रेज़ी के
हिन्दी का  उपहास उड़ाया ,हिंदी भाषी लोगों ने।
हिन्दी  भाषा ऐसी है , दिल को ठंडक पहुंचाती है
उसको रेगिस्तान  बनाया, हिंदी भाषी लोगों  ने।
खुद में  सिमट कर रह गई, चुपके चुपके रोती है
हिन्दी को बेज़ुबान बनाया, हिंदी भाषी लोगों ने।

 

Thursday, September 5, 2013

हर वक्त  तो हाथ में गुलाब नहीं होता
उधार के सपनों से  हिसाब नहीं होता।
यूं तो सवाल बहुत से उठते हैं ज़हन में
हर सवाल का मगर ज़वाब नहीं होता। 
शुहरत मेरे लिए  अब  बेमानी हो गई
ख़ुश पाकर अब मैं  ख़िताब नहीं होता।
रात भर तो सदाओं से घिरा रहता हूँ मैं
सुबह उठते आँखों में ख्वाब नहीं होता।
छेड़छाड़ करता रहता हूँ  चांदनी से मैं
ख़फ़ा मुझ से कभी महताब नहीं होता।
मयकदा खुल गया घर के बगल में मेरे
हर वक्त मगर जश्ने शराब नहीं होता।


 

Tuesday, September 3, 2013

कुछ दाग़ ज़िन्दगी भर नहीं जाते
उम्र गुज़र जाती है छिपाते छिपाते।
इश्क़ का सौदा कर लिया था कभी
कटी रातें सब कर्ज़ चुकाते चुकाते।
चरागों की बस्ती में बहुत ही  ढूँढा
सितारे छिप गये   दिखते दिखाते।
भटकती हैं परछाइयां अब आवारा 
बे सदा हो गईं गम सुनाते सुनाते।
जवानी  कब आई, चली गई  कब
थक गया आइना भी बताते बताते।
न जाने बादल यह घने कब छटेंगे
उम्मीद  टूटी आस लगाते लगाते।
परदेस से लौटकर आ तो गये तुम
ख़बर मिल गई हमें भी उड़ते उड़ाते।
 

Saturday, August 31, 2013

हर सवाल का ज़वाब मुहाल नहीं होता
सवाल का ज़वाब भी सवाल नहीं होता !
शिनाख्त कैसे करता दर्दे दिल की वह
हाल अपना ही कभी  बेहाल नहीं होता !
दिल सुर्ख़ लहू सुर्ख़ और ज़ख्म भी सुर्ख़
आँख से बहता आंसू ही लाल नहीं होता !
मैं अपना ज़वाल भी देख लेता होते हुए 
वक्त ने  किया अगर क़माल नहीं होता !
तन्हाइयां अगर मुझ में रंग नहीं भरती
उजाला कभी  घर में बहाल नहीं  होता !
मेरा चेहरा तक़सीम  हुआ नहीं दिखता
मेरे ही आईने में अगर बाल नहीं होता !
अब मुझ को रबत पड़ गया कुछ ऐसा
वो हंस भी देता है तो मलाल नहीं होता !
बुज़ुर्गों की दुआएं अगर साथ रख लेते
दिल यह जिगर कभी हलाल नहीं होता !

Monday, August 26, 2013

दिल बच्चा था शैतानी कर बैठा
किस्सा अपना जुबानी कर बैठा !
खुशबुओं को कौन चूम पाया है
खुशबु चूमने की नदानी कर बैठा !
सारे रंगों को घोल कर एक जगह
अपने रंगों को भी पानी कर बैठा !
दूधिया रात में  झील के किनारे
चांदनी को वो दिवानी कर बैठा !
जुल्फे सियह से लिपटा इस तरह
कि इश्क अपना तूफानी कर बैठा !
उजाले को ढूंढता फिरता रहता था
आसमान अपना नूरानी कर बैठा !

Saturday, August 24, 2013

हुस्न तो ढल गया ग़ुरूर अभी बाकी है
नशा भी उतर गया सरूर अभी बाकी है !
हवाओं ने छेड़खानी की और चली गई
फ़िज़ा में बिखरी गर्देसफ़र अभी बाकी है !
ढूंढते ढूंढते इश्क की नदी तक पहुँच गये
उसमे उतरने का ही हुनर अभी बाकी है !
तेरे बीमार को करार मिल सका न कहीं
उसका भटकना इधर उधर अभी बाकी है !
जो भो मिला बिछड़ने का सबब पूछता है
चेहरे पर जख्मों का नूर अभी बाकी है !
आँख से बहते आंसू थम न सके अब तक
सुनहरा है जख्म शबे हिज्र अभी बाकी है !
दिल को हमारे ही इश्क करना न आया
दिल में एक गम यह जरूर अभी बाकी है !

Wednesday, August 21, 2013

आख़िर कितनी और हम ख़ाक़ उड़ाते
कभी तो हवा के सुर में गीत मिलाते !
कोई खुशबु तो  हमारे अंदर  भी थी
क्या गज़ब करते अगर हम महक जाते !
ज़रा सी जिंदगी है बस चार दिन की
तमाशे इसमें और हम कितने दिखाते !
आंसुओं  के संग सब बह गया काज़ल
हिसाब दर्द का हम और कितना चुकाते !
वक्त अगर मोहलत हमको और दे देता
यक़ीनन हम भी कुछ क़माल कर जाते !

Friday, August 2, 2013

शहर तेरा यह बंज़र और नम निकलेगा
दिल पर यह जख्म भी रक़म निकलेगा !
यह ख़बर थी कि दम तो ज़रूर निकलेगा
ख़बर न थी इस क़दर यह दम निकलेगा !
नर्म लहजे से तुमने काम ले लिया अगर
उसूलों पर दिल मेरा भी क़ायम निकलेगा !
गलत लफ्ज़ अगर चुन लिया कहने  को
तो नक्शा   बदला हुआ हरदम निकलेगा  !
सर्दी की  कंपकपाती  हुई रात में भी तो
इन  आँखों  से आंसू तो गरम निकलेगा !
बैठे बैठे अँधेरी रात जब यह ढल  जायेगी
सुबह सूरज लेकर के नया दम निकलेगा !

Thursday, August 1, 2013

शुहरत छु लेती है जब भी ऊंचाइयां
आगे आगे चलती हैं तब परछाइयां !
मुझको काम में लगा हुआ  देखकर
मसरूफ़ होजाती हैं  मेरी तन्हाईयाँ !
खुशियों के रंग मुझ में जब भरते हैं
सिमट जाती हैं कहीं पे धुन्धलाइयां !
दिल की वादियों में शोर  मचता है
तो सुर्खियाँ बन जाती हैं  रानाइयां !
कुछ लोग मेरे उजालों से भी डरते हैं
परेशान करती हैं उनको अच्छाइयां !
ख़ुदकुशी कर लेते हैं  लोग बहुत से
और नापते ही रह जाते हैं गहराइयां !

Wednesday, July 31, 2013

बीमार के संग बीमार नहीं हुआ जाता
टूटी किश्ती में सवार नहीं हुआ जाता !
हज़ार कयामतें लिपटती हैं  क़दमों से
मगर फिर भी लाचार नहीं हुआ जाता !
बेशुमार धब्बे हैं धूप के तो दामन पर
हम से ही गुनाहगार नहीं हुआ जाता !
रहमतें तो बरसती हैं आसमां से बहुत
रोज़ के रोज़ साहूकार नहीं हुआ जाता !
यह भी सच कहा है किसी ने  दोस्तों
दोस्ती में ही दावेदार नहीं हुआ जाता !
उम्र गुज़र गई फाकामस्ती में ही सारी
अब हम से तो बेकरार नहीं हुआ जाता !
अपने दुश्मन को भी दुआ दे दें दिल से
इतना भी तो दिलदार नहीं हुआ जाता !
अब ये करें की तोड़ लें रिश्ता बेवफा से
हम से और  तलबगार नहीं हुआ जाता !
अब फ़रिश्ते नहीं उतरते हैं  ज़मीन पर
अब किसी का तरफदार नहीं हुआ जाता !
कुछ नहीं बदलेगा यह मालूम है मुझको
फिर भी मगर खबरदार नहीं हुआ जाता !

Monday, July 29, 2013

इतना  पीओगे तो  पहचानोगे कैसे
वक्त से भी निगाहें मिलाओगे कैसे !
खुश्क लब और चश्मे-तर लिए हुए
जिंदगी का साथ  निभाओगे  कैसे !
प्यार कभी भी मज़ाक  नहीं होता
दिल को अपने ये समझाओगे कैसे !
चाँद को छूने का भी वक्त है  यह
गोद में तुम उस को बिठाओगे कैसे !
बाहों का दम अगर चूक गया  तो
नाज़ फिर किसी के उठाओगे कैसे !
यह पल जो बहुत ही कीमती से हैं
इन लम्हों को सम्भाल पाओगे कैसे !
ये पूछना वक्त से शायद वो बताये
कि मेरे बिना तुम रह पाओगे कैसे !
झूठे वायदों का ही एतबार  करते रहे
हम एक सितमगर से प्यार करते रहे !
हमको पता था तुम न आ सकोगे पर
बेवज़ह ही हम फिर इंतज़ार करते रहे !
सारी रात चलते रहे पर घर नहीं पहुंचे
जख्मों की ही ही चार दीवार करते रहे !
गुज़रा नहीं एक लम्हा भी चैन से कभी
जिंदगी से हम तब भी प्यार करते रहे !
ख्वाबों जैसा रूप नही मिल सका कभी
तैयार खुद को तो बार बार करते रहे !
कोलकाता

Saturday, July 20, 2013

दीवारों से हम  बात क्या करते
तस्वीर से मुलाक़ात क्या करते !
तुम ही  नहीं थे शहर में  जब
तुम्हारी दी सौगात  क्या करते !
फ़ुरसत ही नहीं थी तुम को तो 
हम गुफ़्त्गुए जज़्बात क्या करते !
बस चंद खुशियों  के वास्ते हम
दुश्वार यह  हयात क्या  करते !
तुम को  ही याद न करते अगर
तो और  सारी रात  क्या करते !
सिमटने की कोशिशों में थे हम
हम  और  सवालात क्या करते !
हर एक  सवाल जवाबी नहीं होता
चिराग  कभी आफ़ताबी नहीं होता !
गुज़र तो हमारी भी अच्छी हो जाती
दिल हमारा अगर नवाबी नहीं होता !
निगाहे नाज़ से अगर पिला देते मुझे
ख़ुदा की क़सम मैं शराबी नहीं होता !
खुशबु तो मुझमे वही आती है अब भी
मौसम  लेकिन अब गुलाबी नहीं होता !
मैं लफ़्ज़ों में खुद को सिमेट तो लेता
हर एक दर्द मगर  किताबी नहीं होता !
हजारों कत्ल हो गए इस राहे इश्क में
 इश्क खुद तो खानाख़राबी नहीं होता
अपनों की किस से शिकायत करूं
बच्चों सी क्या अब शरारत करूं !
मन्दिर मिली तुम तो सोचता रहा
देखता रहूँ तुम्हे या इबादत करूं !
बला की खुबसूरत हो तुम इतनी
इन आँखों पे कितनी इनायत करूं !
आँखे इतरा रही हैं देख कर तुम्हे
न देखने की कैसे मैं हिमाक़त करूं !
खुशबु की उजालों की धनक हो तुम
किस क़दर तुम्हारी हिमायत करूं !
खो न दे मासूमियत अपनी ये कहीं
इस दिल की कितनी हिफाज़त करूं !
यादों के सहारे जिंदगी नहीं कटती
आंसुओं से कभी झोली नहीं भरती !
दिल की धरती बंज़र अगर होती
तमन्नाओं की फसल नहीं खिलती !
जगमगाते शहर में अँधेरी सी गली
कौन कहता है , कि नहीं मिलती !
मैं भी अकेला हूँ, है तू भी अकेला
जिंदगी मिल कर क्यों नहीं चलती !
गम में दिल की हालत मैं क्या कहूं
बैठे बैठे अब रात भी नहीं ढलती !
... दिन भर का चैन और रात की सुध
खुशियाँ तो खैरात में नहीं मिलती !
चाँद में कोई बोल कर छिप गया
तस्वीर उसकी अब तो नहीं दिखती !
चलते रहने का ही तो नाम जिंदगी है
जिंदगी रुक रुक कर भी नहीं चलती !

Friday, June 28, 2013

उम्र तीस की थी पचास में ढल  गई
बच्चों को बड़ा करने में ही निकल गई !
वक्त का तो फिर पता ही नहीं चला
पाँव में जैसे एक चकरी सी चल गई !
जिम्मेदारियों का बोझ  उठाते उठाते
मुंह से कभी आह तक भी निकल गई !
कभी ख़ुशी कभी गम और कभी फिक्र
इन के सहारे से ही जिंदगी बहल गई !
बच्चों के सपनो को पूरा करते करते
जवानी ही सारी जैसे कहीं फिसल गई !
जिंदा दिली से सफ़र हम तय करते रहे
आज लगा जैसे कायनात ही मिल गई !
आज सपने उनके पूरे हो गये जब सब
जिंदगी जितनी बची हुई थी मचल गई !

Thursday, June 27, 2013

मंज़िल तक न पहुँच सकी मेरी कहानी
कहानी तो मेरी भी है वही बरसों पुरानी !
दिन यही थे चमक यही फ़िज़ा भी यही
यही रंग थे दिल में मेरे भी, आसमानी !
सियाह शब् में फ़लक़ पे तारों की सजावट
ऐसी ही होती थी तब भी तो रातें सुहानी !
इतना ज़रूर है मुझको नए गम मिले थे
सब को नहीं देती जवानी  ऐसी निशानी !
मेरा नाम मुझे दिया और दिया यह जहां
इससे ज़ियादा और क्या देती ये ज़िंदगी !

Monday, June 24, 2013



सहर से पहले मुझे जगा मत देना
नींद को मेरी  तुम उड़ा मत देना !
तस्वीरें जो दिल में सजाई हैं मेरी
उन्हें दिलसे अपने हटा मत देना !
खेल खेल लेना जितना खेल सको
मुझको मगर कभी दगा मत देना !
बड़ा शोर होता है दर्द गूंजता है जब
दुखती हुई रगों को हिला मत देना !
तन्हाईयाँ तोड़ दिया करती हैं बहुत
तन्हाइयों को  मेरा पता मत देना !
सुलगती दोपहर  में धूप के  वक्त
दरख्त की शाखों को जला मत देना !
ढूंढता फिर रहा हूँ किस्मत अपनी मैं
मेरे हाथ में क्या है  बता मत देना !

Sunday, June 23, 2013

पैसे की भेंट चढ़ गई सारी अच्छाइयां
हिस्से में रह गई खामियां परेशानियाँ !
हैरान है आम आदमी यह देखकर बहुत
जश्न मन रही हैं मिलकर सब बुराइयां !
भ्रष्टाचार लूट खसोट बलात्कार की ही
सुनने को मिलती हैं अब तो कहानियां !
नई सहर के खुदाओं का हाल मत पूछो
बाँट रहे हैं सब को दर्द की निशानियाँ !
इनके सहारे कुछ दिन जो और जी लिए
खा जाएँगी हमको हमारी ही लाचारियाँ !
सिलसिला खत्म न हुआ चलता ही रहा
सबब पूछेंगी इस बेबसी का कुर्बानियां  !

Friday, June 21, 2013

फूल भी तो कभी पत्थर का काम करते हैं
नाखून पैने हों तो खंज़र का काम करते हैं !
कौन मानेगा मगर सोलह आने सच है यह
सीना चीर कर जिंदगी को तमाम करते हैं !
रोज़ मेरी दहलीज़ पर रख जाते हैं, पत्थर
मैं सोचता हूँ वो इसी तरह सलाम करते हैं !
आज के दौर में लोग इस तरह से मिलते हैं
अकीदत रखते हैं दोस्ती का नाम करते हैं !
कुछ ऐसे भी तो किरदार हैं इस जमाने में
झुलसती धुप में भी साए का काम करते हैं !
और ऐसे भी कुछ लोग हैं इसी जमाने में
खरीदते कुछ नहीं पर मोल तमाम करते हैं
ग़ुम रहते हैं हम तो सवालों के जवाब में
वो खाली बैठे ही  सुबह से शाम करते  हैं !

Tuesday, June 18, 2013

किसी को  उस ने कबीरा बना दिया
किसी को कृष्ण की मीरा बना दिया !
उसकी रहमतों का मै जिक्र क्या करूं
मैं कांच का टुकड़ा था हीरा बना दिया !
किसी को खुशियों की सौगात दे दी
किसी को दर्द का जज़ीरा बना दिया !
धूप और बारिश की दरकार जब हुई
आसमा को इनका ज़खीरा बना दिया !
सुलगती रह गई  चरागों में  हसरतें
सितारों को उस ने जंजीरा बना दिया !
समझ में नहीं आई कारीगरी उस की
धनवान किसी को फकीरा बना दिया  !

Tuesday, June 11, 2013

फूल  टूट कर  भी  महका था
दर्द  खुशबुओं में  लिपटा  था  !
गहरा  नाता  है  सुख दुःख में
अश्क़ ख़ुशी में भी निकला था !
तितली फूल से लिपटी हुई थी
भँवरे का ताल्लुक़ भी गहरा था !
चांदनी धरती पर फैली हुई थी
चाँद आसमान पर अकेला था  !
बहुत  चीखता था  जो  तूफ़ान
दर दर भी वह ही तो भटका था !
समन्दर  से उठा था एक बादल
और सहरा में भी वह टपका था  !
कुछ तो  मेरी  ही  दीवानगी थी
कुछ  आइना  भी  बोलता  था  !
हर कोई अपना सा  था  लेकिन
यहाँ  कोई भी  नही अपना  था  !
सुख दुःख में साथ दिया जिसने
कोई और न था मेरा आइना था   !

Monday, June 10, 2013

तेरे जाने के बाद ही  शाम हो गई
शब् पूरी  अंधेरों के  नाम हो गई  !
मैक़दे की तरफ  बढ़ चले  क़दम
ज़िंदगी ही फिर जैसे ज़ाम हो गई !
आँखों से आंसु  बन  बह गया दर्द
उम्मीद मेरी मुझ पे इल्ज़ाम हो गई !
वक्त का फिर कभी पता नहीं चला
रफ़्ता रफ़्ता उम्र ही तमाम हो गई !
जिंदगी  में  ख़ुशी  जितनी  भी  थी
वक्त के हाथों सब  नीलाम हो गई  !
चल कहकहों में दफ़्न  कर दें अब
वह खामुशी  जो सरे आम हो गई !
"ना " को जिंदगी से  निकाल दें
दुनिया को इक  नई मिसाल दें  !
जिंदगी  एक  पिच की  तरह  है
गेंद को  अपनी  बड़ा उछाल  दें !
बिन पगलाए  कुछ न  मिलेगा
हिम्मत जज़्बे में अपने उबाल दें !
हर काम के लिए  ज़िद ज़रूरी है
बेचारगी को दिल से निकाल  दें !
हंसेगा  कोई  मज़ाक  बनाएगा
उनकी नजरों को नए सवाल  दें !
एवरेस्ट भी फ़तेह कर लोगे तुम
ख़ुद का ज़ुनून बाहर निकाल दें !
प्लेयर तुम चियरलीडर भी तुम
अपने फ़न को बस नये क़माल दें !

Tuesday, May 28, 2013

हर किसी को अपना वास्ता मत देना
नसीब जाग उठे  तो ख़ुदा  मत देना  !
 मज़ाक  बहुत  बना डालेगी दुनिया
दिल का अपने कभी रास्ता मत देना !
यहाँ किसी को भी तेरी परवाह नहीं है
हर किसी  को अपना पता मत  देना  !
बिगड़ जाएगी तेरे ज़ख्मों  की सूरत
बस घाव किसी को दिखा मत देना  !
दर्द के  नगर  पर नगर बस जायेंगे
ज़िन्दा सपनों को दफना मत देना  !
एक दरिया बना है आग का वह तो
उस को कभीभी तुम हवा मत देना  !
बुरा मान जायेगा  बहुत  जल्दी वह
उसको कभी भी  मश्वरा  मत देना  !
वफ़ा नहीं कर सको तो मत  करना
मगर किसी को भी दगा मत देना  ! 

Sunday, May 26, 2013

जब  तक  बड़ों का सरमाया है
हर तरफ़  रहमतों का  साया है  !
जब तक दुआएं  उनकी साथ हैं
दिल तब तक  नहीं  घबराया है !
क़िस्मत से ज़्यादा नहीं मिलता
वक़्त ने हमको यह सिखलाया है  !
उम्र  गुज़र गई  यही  सोचते हुए
कौन  अपना  है, कौन पराया  है  !
यक़ीन यह है वह बेवफ़ा  नहीं है
 दिल में ख्याल क्यूँ फिर आया है !
सर्दी गर्मी बर्दाश्त नहीं होती अब
बन गई जाने कैसी यह काया है !
थकान का तो नामो निशान नहीं
जब से  पयाम  उन का आया है  !
तेरे हाथ से बनी चाय का स्वाद
मुझे तुझ तलक़  खींच लाया  है  !
तुझसे खुशबु लेकर के गुलाब महकता है
तेरे नूर से फ़लक़ पर सूरज  चमकता  है  !
तेरी रूह की आंच से तपती है रूह  मेरी
तेरे बदन  की ताव से  चाँद पिघलता है !
ख़्वाबों सी मिली है खुबसूरती  तुझ को
दिलों की वादी में तेरा ही शोर मचता है  !
तेज़ हुआ जाता है तूफ़ान मुहब्बत  का
तुझे देख  मौसम भी सरगम बदलता है  !
बढ़ जाती हैं धडकने दिल की मेरे जब
तमाम शहर तुझको हसरत से तकता है  !

Friday, May 24, 2013

सपनों में मेरे रंग नए भरती चली गई
खुशबु तेरी बदन से लिपटती चली गई !
नर्मी फूलों की थी या मस्ती शराब की
रूह में ऐसी घुली की घुलती चली गई !
महक रही थी ग़ज़ल की तरह से तुम
बज़्म तुम्हारे हुस्न से सजती चली गई !
हिस्से में मेरे जब से घडी आई थी वह
रुत दिल में प्यार की मचलती चली गई !
वह अदा थी, दुआ थी, हवा थी क्या थी
किस्मत मेरी तब से चमकती चली गई !
मैं चाँद को छू लेने की तमन्ना लिए रहा
चांदनी आँगन में मेरे आकर बिखर गई !

Thursday, May 23, 2013

ख़ुशबुओं से घर मेरा भर जाने दो
जी भर कर मुझको मुस्कराने दो !
धूप मायूस होकर के लौट जाएगी
मुझे बालों को छत पर सुखाने दो !
महफ़िल सजाई है दोस्तों ने मेरे
मुझ को भी थोडा तो इतराने दो !
एक साल के बाद आया है सावन
झूम कर के इसको बरस जाने दो !
सालों के बाद ही आता है बुढ़ापा
इसको भी कुछ जश्न मनाने दो !
कोई तस्वीर या कोई अफसाना
कभी तो मुझ को भी बनाने दो !

Monday, May 20, 2013

पुराने रिश्तों को मज़बूती दे दो
इस माहौल को ज़िंदगी दे दो !
भोर हो जाएगी बस्ती में देखना
अंधेरो को धूप सुनहरी दे दो !
तस्वीर ख़ुद ब ख़ुद बोल उठेगी
कुछ लकीरें और गहरी दे दो !
ख़ुशबु से महकता रहेगा ज़िस्म
इक शाम अपनी संदली दे दो !
ज़रा सी ज़िंदगी है चार दिन की
ज़रा सा हौसला अफज़ाई दे दो !
ज़िंदगी मेरी भी संवर जाएगी
मुझे दोस्ती अपनी अनूठी दे दो !

Saturday, May 18, 2013

बस तुम्हारे इंतज़ार का मौसम नहीं बदला
आजा कि अभी प्यार का मौसम नहीं बदला !
गली गली तुमने वो लुटाई थी जो खुशबू
ज़हन में उस बहार का मौसम नहीं बदला !
नमी इन आँखों की कब की ख़ुश्क हो गई
इस ख़ुश्क आबशार का मौसम नहीं बदला !
शहर में सब कुछ है मगर तेरी ही कमी है
दिल की मेरी पुकार का मौसम नहीं बदला !
आह तो मेरी पहुँच गई उस पार तक उड़के
मगर कभी उस पार का मौसम नहीं बदला !
बदलाव का मौसम है सब कुछ बदल गया
दिल के हमारे यार का मौसम नहीं बदला !
आजा की पहाड़ों पे बर्फ़ अब तलक़ जमी है
वह ठंडक वह बहार का मौसम नहीं बदला !
अब ये करें, कि तोड़ लें रिश्ता ज़हान से
जब तुम्हारे ही क़रार का मौसा नहीं बदला !

Friday, May 17, 2013

मौत आये तो बड़े शौक़ से आये
मन्नत है मुझे शान से ले जाए !
गमे हयात की मंजिल, पता नहीं
ख़ुदा मुझे हर मुसीबत से बचाए !
मुझे तौफ़ीक़ अता कर मालिक
यह ज़र्रा उठके आसमां हो जाए !
पाकीज़गी भी दिल में बनी रहे
हर नज़र हैरतज़दा हो जाए !
यह ज़िंदगी तेरी ही मर्ज़ी से है
तेरी ही शान में अदा हो जाए !

Thursday, May 16, 2013

मेरे ख्यालों में ख्याल तेरे आने लगे
मेरे ख्वाबों को आकर सजाने लगे !
आस पास गूँज उठे नगमें मुहब्बत के
होंठ मेरे प्यार भरे गीत गाने लगे !
तेरे इंतज़ार की बेक़रारी बढ़ गई
समन्दर में दुआ के तूफ़ान आने लगे !
तमाम रात हवाएं सर्द चलती रही
सुबह उजाले शहर को जगाने लगे !
जाने किस हाल में हैं, कैसे होंगे वो
दिल को हम अपने यूं समझाने लगे !
पोंछ डाला , हमने भी रंग रात का
तेरे आने की शर्त फिर लगाने लगे !
सारा दिन खुशबु तेरी साथ साथ रही
रात होते ही चाँद को फिर बुलाने लगे !

Monday, May 13, 2013

दिल को अपनी हिफ़ाज़त से डर लगता है
मुझे किसी की इनायत से डर लगता है !
इक मुद्दत से संभाल कर रखी हैं ख्वाहिशें
अब तेरी इसी अमानत से डर लगता है !
खुशियों के साथ वह गम भी लाता जरूर है
वक्त की इसी सियासत से डर लगता है !
अश्क काग़ज़ पर गिरे , गिर कर सूख गये
उनकी लिखी हुई इबारत से डर लगता है !
जाने क्या सुन ले ज़माना यह पता नहीं
ज़माने की इसी समाअत से डर लगता है !
वस्ल की उम्मीद से भी बहलता नहीं दिल
अब दिल को किसी राहत से डर लगता है !
तेरी तो दुआएं भी खाली नहीं जाती कभी
मुझे तो अब तेरी इबादत से डर लगता है !
पी पी कर बहुत ही थक गया हूँ मैं अब
अब मुझे अपनी आदत से डर लगता है !

बंगलूर
मदर डे पर सब माताओं को शुभ कामनाएं एवम मेरा प्रणाम !

माँ के प्यार का दिन मुकरर्र नहीं होता
माँ के प्यार सा गहरा समन्दर नहीं होता !
माँ दुनिया का सबसे अनमोल रिश्ता है
माँ के बिना कोई भी घर , घर नहीं होता !
माँ की करता है जो शख्स दिल से पूजा
उसको कभी किसी बात का डर नहीं होता !
लोग मस्ज़िद ,मंदिर में ज़न्नत तलाशते हैं
माँ के क़दमों से बड़ा ख़ुदा का घर नहीं होता !
मांग ले मन्नत फिर कभी मिले या न मिले
माँ की दुआओं सा भी कोई ज़ेवर नहीं होता !

Tuesday, March 19, 2013

बहुत दौलत थी दिल के ख़ज़ाने में
लुट गई सब, दोस्ती निभाने में !
खून के रिश्ते तक पैसे में बिक गये
चूक हो गई हमसे ही आज़माने में !
नशा बला का था हसीन आँखों में
हम करते क्या जाकर , मैख़ाने में !
तन्हा रह गया मै चाँद की मानिंद
ज़रा देर कर दी थी ,घर बसाने में !
क़िस्मत ज़रा सी ही तो बिगड़ी थी
सदियाँ गुज़र गई उसको मनाने में !
हसरतों का दाम चुकाते चुकाते
ज़िंदगी उलझ गई ताने - बाने में !
दोस्ती, वफ़ा और दरियादिली
अब नहीं मिलती कहीं ज़माने में !

Wednesday, March 13, 2013

मेरे ग़मों का क़यामत नाम रख दो
आंसुओं का शराफ़त नाम रख दो !
सर पे छत नहीं, तन पे पैरहन नहीं
मज़बूरियों का हसरत नाम रख दो !
पोर पोर में ही जला करती है जो
उस आग का बग़ावत नाम रख दो !
बहुत सारे ज़ख्म दे कर चला गया
दोस्ती का अदावत नाम रख दो !
फ़ुरसत ही नहीं है मुझे ख़ुद से अब
तन्हाई का मसरूफ़ियत नाम रख दो !
खो दिया है मैंने पा कर जिसको
उस बला का चाहत नाम रख दो !

Sunday, February 17, 2013

सीखने की उम्र में, सिखाना आ गया
सबने कहा कैसा ये दिवाना आ गया !
शमां तो जल न पाई थी अब तलक़
इतनी जल्दी कैसे परवाना आ गया !
जिसने भी तुझे देखा, तारीफ़ तेरी की
हर नज़र में कोई बुतख़ाना आ गया !
ज़िक्र होता है, जब भी, उन लम्हों का
लगता है हाथ में कोई ख़ज़ाना आ गया !
यादों के सिवा तेरी , कुछ भी नहीं बचा
हमें भी घर अपना यूं सजाना आ गया !
उम्र की कभी कोई मन्ज़िल नहीं होती
समझ में अब यह अफसाना आ गया !
बुरा नहीं लगता, अब हंसना किसी का
मिज़ाज दोस्ताना वो पुराना आ गया !
इनायतें बरसने लगी, आसमान से यूं
लगा सियासत का अब ज़माना आ गया !

Saturday, February 16, 2013

--------- माँ शारदे स्तुति ---------
नमस्कार है ,सरस्वती को, माँ सरस्वती को नमस्कार
माँ ब्रह्म रूपा को नमस्कार,वीणावादिनी को नमस्कार !
रंग माँ का चन्द्र सा धवल , है कन्द पुष्प सा उज्जवल
श्वेत पद्मासन , विद्या देवी ,हंस वाहिनी को नमस्कार !
शिव, ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र भी करें स्तुति जिनकी सदा
गीत संगीत की, ललित कलाओं की देवी को नमस्कार !
शब्द नव , नव बंध भर, ताल नव , नव छंद भर
अंतर दीप जलाती माँ परमा- बुद्धि को नमस्कार !
है नमस्कार ,है नमस्कार ,है नमस्कार ,नमस्कार माँ
सरस्वती को नमस्कार है ,माँ सरस्वती को नमस्कार !
शहर में वसंत
--------------------------
गाँव पीछे छुट गया ,कहाँ गया वसंत
शहर में नहीं खिलता ,कहाँ गया वसंत !
सरसों के फूल सजे हैं सब्जी के ठेले पर
वो खेत में बिखरा हुआ कहाँ गया वसंत।
फूलों पर मदमाते हुए भवरों का गुंजन
वो कोयलों का कूकना ,कहाँ गया वसंत !
मांझे से कटी हुई चीसती वो अंगुलियाँ
वो पतंगों का उड़ना ,कहाँ गया वसंत !
वेलेंटाइन डे की धूम तो है गली गली
प्यार में लिपटा हुआ, कहाँ गया वसंत !
खिली खिली रुत का वो खिला सा यौवन
शहर में आता आता ,कहाँ गया वसंत !
जाड़ा जाता नहीं, वसंत मनाए कैसे
अचानक फ़लक़ पे बादल छाए कैसे !
गुलिस्तां पर जैसे कोई बला आ गई
त्यौहार वसंत का, दिल मनाए कैसे !
वसंत, अंतर के उजास का उत्सव है
सूरज बेहद उदास है, गीत गाए कैसे !
मौसम में भी मिलावट हो गई अब
मधुमास ठंड को गले से लगाए कैसे !
मादकता का आलम दिल में भरा है
वो मस्ती वो उल्लास पर छाए कैसे !
आसमान भीग रहा है सुबह से ही
वसंत , वसंत में पतंगे उड़ाए कैसे !

Wednesday, February 13, 2013

प्यार के इस दिन की सबको हार्दिक शुभ कामनायें
                -----------------
सबको तुझ से है बेहद प्यार
वाह रे गुलाब तेरे रंग हज़ार !
तुझे देख कर मचलता है दिल
तू ही करता है प्यार का इज़हार !

Monday, February 4, 2013

ग़मों की भी अब किस्मत बदलनी चाहिए
ज़िस्म से दुख की पीड़ा निकलनी चाहिए !
दर्द की इन्तिहा हो गई है सीने में अब तो
कैसे भी हो ज़ख्मों की सूरत बदलनी चाहिए !
तमाम हिम्मतें जमा की कुछ कहने के लिए
दिल की बात जुबां से तो निकलनी चाहिए !
हम पर पाबंदी है बे नक़ाब करने की उन्हें
कुछ ख़ता हवाओं को भी करनी चाहिए !
वक्त जो गुज़र गया, गुज़रना था वैसे ही
सफ़र पर चलने की तैयारी रखनी चाहिए !
फ़र्क कुछ भी नहीं मंदिर मस्ज़िद गुर्दवारे में
कैसे भी हो बीच की दीवार गिरनी चाहिए !

Saturday, February 2, 2013

पिछले जन्मों की क़िताब किसने देखी
थी वो कितनी लाजवाब किसने देखी !
याद कोई नामो निशान शेष नहीं है
वो नाव होती गर्क़ाब किसने देखी !
आंखे वो लब , चेहरा और वो रंगत
किसमे थी कितनी आब किसने देखी !
जिन्हें छोड़ कर चला आया था कभी
वो बस्तियां भी बेताब किसने देखी !
उम्र तमाम सजने संवरने में लगे रहे
वो मिट्टी अपनी बेआब किसने देखी !
जहां भी गये नसीब अपना साथ ले गये
सहरा में फसलें शादाब किसने देखी !
फ़रिश्ते ही चखा करते थे बस जिसको
कैसी थी वो आबे -शराब किसने देखी !
बस दो चार घडी का ही खेल है जिंदगी
यह जिंदगी फिर ज़नाब किसने देखी !
आबे - शराब ------सोमरस

Friday, February 1, 2013

मन लगा यार फ़कीरी में
क्या रखा दुनियादारी में !
कुछ साथ नहीं ले जायेगा
क्या रखा चोरा चारी में !
वो गुलाब बख्शिश में देते हैं
जब भी मिलते हैं बिमारी में !
फ़िर हिसाब फूलों का लेते हैं
वो ज़ख्मों की गुलकारी में !
किस किस को समझाओगे
कुछ नहीं रखा लाचारी में !
धूल उड़ाता ही गुज़र गया
तो क्या रखा फनकारी में !
मैं झुककर सबसे मिलता हूँ
कुछ दम है मेरी खुद्दारी में !

Wednesday, January 23, 2013

ख़ुशबू उनकी जाफ़रानी है
चेहरे पर अज़ब नदानी है !
गालों पर दहकते हैं पलाश
शबाब उनका बे बयानी है !
चरचा पहुंचा चाँद पे उनका
लगा चाँद रु ब रु बेमानी है !
शब् ने चाँद से कहा हंसकर
तेरी चांदनी तो ये पुरानी है !
चाँद बोला,मेला दो घडी का है
यह माना रुत बड़ी सुहानी है !
उम्र तो रवानी है मौजो की
नहीं रहती हर पल जवानी है !
शबाब हर रात मेरा नया है
फिर कैसे चांदनी पुरानी है !
ज़ाम हो, शीशा हो या दिल
टूट जाना सबकी कहानी है !

Wednesday, January 16, 2013

अंधों के शहर में आइना न मिलेगा
पत्थरों के शहर में शीशा न मिलेगा !
जितनी भी पीनी है पी ले तू ओक़ से
यहाँ तुझको कोई पैमाना न मिलेगा !
जाने क्या सोचा करता है, हर वक्त
किसी पल भी वो अकेला न मिलेगा !
देख ली तुमने अगर तस्वीर हमारी
दिल कहीं और फिर लगा न मिलेगा !
हाथ थामलूँ या तेरी पेशानी चूमलूं
बार बार ऐसा तो मौका न मिलेगा !
अज़ब आलम है मेरी बेचारगी का
मुझ जैसा कोई बावला न मिलेगा !
मन कर रहा है, तुझे शुक्रिया कहूं
तुझ जैसा शख्स दूसरा न मिलेगा !
जिंदगी के दिन थोड़े से ही बचे हैं
क्या खबर थी हमे ख़ुदा न मिलेगा !

Wednesday, January 9, 2013

बहुत दिनों से धूप नहीं निकली ---

भर सर्दी में वो रात भर काँपता रहा
एक चादर में ही गर्मी तलाशता रहा !
सुबह फिर कुहरे में छिप गई धूप
सूरज को सारा दिन पुकारता रहा !
शाम, धुंध के आगोश में आ गिरी
रात भर अँधेरा फिर चीखता रहा !
बहुत दिनों से धूप निकली नहीं
आकाश सल्तनत यूं बांटता रहा !
नाव डूब गई जैसे किनारे पे आकर
हाशिये पर खड़ा बस ताकता रहा !
कभी तो सूरज उसके घर आएगा
उम्मीद पर जिंदगी गुज़ारता रहा !
बेटा भले ही बुज़ुर्ग हो जाये ,माँ से यह कहता है
माँ मुझको सुकून तेरी ही गोद में तो मिलता है !
तेरी दुआओं से ही मेरे दिल में उजाला भरता है
माँ तेरा दिल भी तो बस मेरा ही रस्ता तकता है !
माँ कहती है ,
सफ़र जितना बाकी है यूं ही कट जाये मेरे बेटे
तेरे हाथों की हरारत से मेरा चेहरा निखरता है !
तू ही तो मेरा नटखट कन्हैया भी है मेरे बेटे
तेरी बातों में ही तो मेरा ज़हान भी बसता है !
मगर क्या करूँ, मेरी किस्मत में तो जुदाई है
यह सोच कर दिल मेरा बेहद ही धडकता है !