आज की रात करो न बहाना कोई
आज रात मेरा नहीं है ठिकाना कोई।
देख कर ही तुझे तसल्ली पा लेंगे
जरूरी नहीं है गले से लगाना कोई।
तेरे मिलने का एक लम्हा ही काफी है
नहीं चाहिए फिर मुझे जमाना कोई।
तितलियों पर भी पाबंदियां हैं लगी
नामुमकिन है खुशबु चुराना कोई।
जख्म पुराने हैं तकलीफ भी देंगे ही
जरूरी नहीं है मरहम लगाना कोई।
जिंदगी बीत गई तब जाकर ये जाना
ऐसे ही नहीं मिलता खज़ाना कोई।
ग़ज़ल खुद शमा सी पिघलती रही
दिल भूल गया सुनना तराना कोई।
नेकियाँ करके ही सोच लेते हैं हम
नहीं मुश्किल मुल्के-अदम जाना कोई।
Monday, April 25, 2011
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