Monday, February 19, 2018

जिंदगी की किताब में क्या लिखा है
न ही तुझे पता है न ही मुझे पता है
सांसें भी हर वक़्त दम तोड़ रही हैं
जाने किस जुर्म की मिलती सजा है
बड़ी शान से रहता है दर्द दिल में
कहते हैं इसका रक्बा भी बड़ा है
ख़ुशी आई थी कुछ पलों के लिए
उसने मुंह दिखाई में लिया क्या है
उसकीआदत में शुमार है खामोशी
लगता है किसी बोझ तले दबा है
सबका अपना अपना ही हिसाब है
कहीं इब्दिता है तो कहीं इन्तिहा है
जिसने जाना था वह तो चला गया
अपनी मुहब्बत भी साथ ले गया है

Sunday, February 18, 2018

हमने हर गम तेरा दिल में छिपा रखा है
वरना इस दिल में बता और क्या रखा है
मेरी तन्हाई मुझसे बातें करती है अक्सर
क्या खूब तूने भी घर अपना सजा रखा है
नशा गज़ब का है नशीली आखों में तेरी
तूने आखों में कोई मैखाना छिपा रखा है
लाख देखा करे चाँद सितारे दुनिया तुझे
मेरी दुआ ने तुझे हर नज़र से बचा रखा है
साथ तेरे मैं, चलता भी तो चलता कैसे
तूने आसमान सारा सर पर उठा रखा है
लब खामोश हैं हो रही हैं नज़र से बातें
ये हुनर हमने तुझको भी सिखा रखा है
ख़ूबी हवा की थी वक़्त की थी या मेरी
हमने वीराने में अब चमन बसा रखा है
जाने कैसे लग गई थी लौ इश्क से हमें
अब हमने फ़कीरी में  मन लगा रखा है
-----सत्येन्द्र गुप्ता
जिंदगी की किताब में क्या लिखा है
न ही तुझे पता है न ही मुझे पता है
हर पल सांसें भी दम तोड़ती सी हैं
जाने किस जुर्म की मिल रही सजा है
दर्द की आहट है हर वक़्त दिल में
कहते हैं दर्द भी अभी नया नया है
उसकीआदत में शुमार है खामोशी
जाने किस बोझ से दबा हुआ सा है
सबका अपना अपना ही हिसाब है
कहीं इब्दिता है तो कहीं इन्तिहा है
जिसने जाना था वह तो चला गया
पता नहीं उसका मसअला क्या है
-------सत्येन्द्र गुप्ता

Friday, February 9, 2018

दिल जलाकर उजाला कर लेते हैं 
हम कमी में भी गुज़ारा कर लेते हैं 

घर में तो बैठी रहती हैं उदासियाँ 
खुश रहने का दिखावा कर लेते हैं 

अपनी तन्हाई का एहसास नहीं है 
दूसरों का गम तमाशा कर लेते हैं 

नफ़े नुक़सान की परवाह  न कर  
हम भी  जोड़  घटाना कर लेते हैं 

पडोसी  हमारा  चैन से  रह सके  
अपने दर्द में  इज़ाफ़ा कर लेते हैं

ज़िंदगी मेहरबान होती है जब भी 
उससे एक नया वादा कर लेते हैं 

बड़ी ख़ुशी पाने की उम्मीद में ही 
छोटी खुशी से किनारा कर लेते हैं 
       ------- सत्येंद्र गुप्ता