Sunday, April 10, 2011

दिखने में तो शांत बड़ा लगता है- अन्दर ही अंदर मचलता रहता है। समन्दर की दोस्ती है तस्करों से - इसलिए वह सहमा सा लगता है। नीला बना हुआ लगता है दिन भर - पूनम की चांदनी में बहका लगता है। शुरह्त की बुलंदी पल का तमाशा है- बाद उसके आदमी बिखरा लगता है। जी भर के कभी उसे देख नहीं पाते- उसे नज़र न लग जाए डर लगता है।

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